Sunday 26 October 2014

दीवाली


ऊंचे पर्वत की चोटी से
सैनिक ने देखा चारों ओर,
मन में उसके गूंज रहा था
अपने दोनों बच्चों का शोर.

बच्चों ने कहा था बड़े प्यार से,  
“हम संग रहेंगे सब इस बार,
दीवाली मनाएंगे सब मिलकर  
मिल जाये खुशियों का अंबार. 

पिछली होली और दीवाली
हम सब थे बहुत उदास,

घर था कितना खाली-खाली

आप न थे हम सब के पास.

 पर अब ऐसा नहीं चलेगा
आप को कुछ तो करना होगा,
घर आना ही है अब की बार
विनती करते है बारंबार.”

पर सैनिक लौट न पाया
सीमा पर था संकट छाया,
बच्चों की जब टूटी आशा
उनका मन भर सा आया.

माँ थी उनकी बहुत सुजान 
पति पर था उसे अभिमान,  
बच्चों को उसने पास बिठाया
बड़े प्यार से फिर समझाया,  

“पिता तुम्हारे हैं सीमा पर
देश की रक्षा करते डटकर,
  सब करते उनका सम्मान   
उन पर करो तुम अभिमान.

 सैनिक रहते चौकस हर पल
उनका बलिदान न जाता निष्फल,
चैन से सो पाते हम हर रात
 सतर्क है हर सैनिक दिन रात.

खूब मनाओ तुम दीवाली
मन पर रखो न कोई भार,
मैं कहती हूं बिलकुल सच
पिता तुमसे करते बहुत प्यार.”

बच्चों ने किया खूब धूम धड़ाका
चलने लगे  फूलछड़ी पटाखा,
सीमा पर सैनिक मुसकाया
जीवन में क्या-क्या न पाया.

© आई बी अरोड़ा 

1 comment:

  1. When it's peace, we tend to forget their sacrifice. Thanks for bringing this awareness to future generations.

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