Saturday 28 February 2015

Humpty Dumpty
Humpty Dumpty
stood near a wall,
they wished they could
climb that wall.

Humpty was thin
and he was tall,
when he jumped
he crossed the wall.

 Dumpty was fat
but he was not tall,
when he jumped
he bounced like ball.

 They tried and tried
and tried again,
 but their jumps
were all  in vain.

Their folks were there
all near the wall,
 they had come
to see them fall.

Folks clapped
and clapped again,
 they pushed them to
try once again.

Humpty Dumpty
looked at the wall,
but they knew
it was a difficult call.

 Folks were sorry
sad and glum,
they had gathered
to have some fun.

Humpty Dumpty
didn’t fall,
 for they couldn’t
climb the wall.
© i b arora

Friday 20 February 2015


शाम का समय
(अंतिम भाग)

(कहानी का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं)


“डॉक्टर भालू, आपकी डिग्री हमारे पास है. यह डिग्री हमें स्टेशन के निकट मिली थी. डिग्री लौटाने के लिए हम आपसे कब मिल सकते हैं?”
“अपना पता बताओ, मैं अभी आकर डिग्री ले जाऊंगा. पुरस्कार की राशि भी तुम्हें दे दूंगा,” भालू ने कहा.
“नहीं आपको कष्ट करने की आवश्यकता नहीं है. आप अपना पता बता दें. हम ही आकर डिग्री दे जायेंगे,” सियार ने कहा. सियार और भेड़िया किसी को भी अपने अड्डे का पता बताना नहीं चाहते थे.
“ठीक है, तुम लोग कल दो बजे आ जाना. पर मेरी डिग्री संभाल कर रखना. अगर मेरी डिग्री को कुछ हो गया तो बड़ी मुसीबत हो जायेगी.” भालू ने अपना पता सियार को बता दिया.
अगले दिन दोनों डिग्री लेकर भालू के बताये पते पर पहुँच गये.
उन्हें देख कर भालू ने कहा, “ मेरी डिग्री तुम्हारे पास है? लाओ, मेरी डिग्री मुझे दे दो. डिग्री को लेकर मैं बहुत चिंतित हूँ. घबराहट के मारे दो रात से मैं सो भी नहीं पाया.”
“डिग्री हमारे पास है, अगर पुरस्कार की राशि हमें मिल जाती तो डिग्री भी आपको दे देंगे,” सियार ने कहा.
सियार की बात सुन डॉक्टर भालू ने कहा, “भीतर आ जाओ. मैंने पुरस्कार के रूपए पहले ही निकाल कर रखे हुए हैं. रूपए ले कर मेरी डिग्री मुझे दे दो.”
दोनों चोर घर के भीतर आ गये. उन्हें रुपयों का बंडल दिखाते हुए भालू ने पूछा, “मेरा सूटकेस भी तुम्हारे पास होगा?”
सियार और भेड़िये को झटका लगा. सियार ने भेड़िये को आँखों से संकेत किया कि वह कुछ न कहे.
“कौन सा सूटकेस? क्या कह रहे हो तुम?” सियार ने पूछा.
“हमारे पास कोई सूटकेस नहीं है,” भेड़िया चुप न रह सका.
तभी इंस्पेक्टर होशियार सिंह भी वहां आ पहुंचा. इंस्पेक्टर को देख सियार और भेड़िये की टांगें कांपने लगीं.
इंस्पेक्टर ने आते ही कहा, “अगर भालू की डिग्री तुम्हारे पास है तो उसका सूटकेस भी तुम्हारे होना चाहिये. और अगर सूटकेस तुम्हारे पास है तो उसमें रखे पचास हज़ार रुपये भी तुम लोगों के पास ही होने चाहिये.”
अब सियार का माथा ठनका. उसे तो भेड़िये पर पहले ही संदेह था. वह समझ गया कि भेड़िये ने उसके साथ धोखा किया था. उसने सूटकेस खोल कर उसमें रखे पचास हज़ार रूपए निकल कर अपने पास रख लिए थे. उसे गुस्सा आ गया और वह अपने को रोक न पाया. गुस्से हम हर किसी की मति भ्रष्ट हो जाती है. सियार की भी हो गयी और वह भारी भूल कर बैठा.
“तुम तो कह रहे थे की सूटकेस में कोई रूपये नहीं थे? और पचास हज़ार अपने   पास रख लिए. तुम ने मेरे साथ ही धोखा किया. क्यों?” सियार ने भड़क कर भेड़िये से कहा.
“यह सब झूठ है, सूटकेस में कोई रुपये नहीं थे. यह लोग हमें आपस में लड़वाना चाहते हैं. मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया. इनकी बातों में मत आओ,” भेड़िये ने कहा.
“श्रीमान सियार जी, आपका दोस्त ठीक कह रहा है. सूटकेस में कोई रूपए नहीं थे. यह झूठ तो मैंने सच जानने के लिए बोला था. आप दोनों मेरी चाल में फंस गये, आप दोनों ने स्वयं स्वीकार कर लिया है की सूटकेस आप के पास है.” इंस्पेक्टर ने कहा.
सियार और भेड़िये के हाथों के तोते उड़ गये. मूर्खों की भांति दोनों एक-दूसरे का मुंह देखने लगे.
इंस्पेक्टर ने कहा, “डॉक्टर भालू अपने मित्र भोला से मिलने राज नगर गया था. वह कुछ दिन उसके घर में रहने वाला था. पर वहां पहुँच, गलती से अपना सूटकेस सड़क किनारे ही छोड़ आया.”
“बड़ी भूल हो गयी थी. मित्र को देख में इतना प्रसन्न हो गया कि बातों में मुझे ध्यान ही न रहा की मेरा सूटकेस तो भोला के घर के बाहर ही रह गया है. भोला भी मेरे साथ बातों में इतना मग्न हो गया कि उसे भी ध्यान न आया की मैं अपना सामान बाहर छोड़ आया हूँ.  और जब ध्यान आया तब तक बहुत देर हो चुकी थी. सूटकेस गायब था. कोई उसे उठा कर ले गया था,” भालू ने कहा.
“भोला और भालू मेरे पास आये तो मैंने सोचा कि जिस चोर ने सूटकेस उठाया है उसे थोड़ा चालाकी से अपने जाल फांसना होगा. और देखो तुम दोनों मेरे जाल में फंस गये.” इतना कह इंस्पेक्टर खिलखिला कर हंस दिया.
सियार और भेड़िये के पास अब कोई उपाय न था. दोनों पकड़े गये. भालू को सूटकेस सहित अपना सारा सामान मिल गया.  

©आई बी अरोड़ा 

Thursday 19 February 2015

शाम का समय
(भाग 1)
शाम का समय था. श्रीमान सियार और श्रीमान भेड़िया राज नगर में टहल रहे थे. कई दिनों से दोनों ने न कोई चोरी की थी और न ही किसी को ठगा था. इस कारण उनका मन बेचैन था. किसी को ठगने या लूटने का अवसर वह दोनों ढूंढॅ रहे थे.
तभी उन्होंने एक घर के बाहर एक सूटकेस पड़ा देखा. आसपास कोई न था. सियार ने आँखों से ही भेड़िये को संकेत किया. दोनों ने चारों ओर देखा. कोई दिखाई न दिया. सियार ने सूटकेस उठा लिया. दोनों धीरे-धीरे, आपस में बातें करते, चलने लगे. कुछ दूर आकर दोनों भाग खड़े हुए.
अपने अड्डे पर पहुँच कर सियार ने कहा, “सूटकेस खोलो, देखें तो सही कि हाथ क्या लगा है?”
भेड़िये के पास चाबियों का एक गुच्छा था. उसने एक-एक कर हर चाबी से सूटकेस खोलने की कोशिश की परन्तु सूटकेस का ताला खुला ही नहीं.
“लगता है ताला तोड़ना पड़ेगा?” भेड़िये ने कहा.
“देखते नहीं कि सूटकेस कितना महंगा है, अगर इसका ताला टूट गया तो यह बेकार हो जायेगा. बाज़ार में इस सूटकेस के दो-तीन हज़ार रूपए मिल जायेंगे. मेरे पास भी चाबियों का एक गुच्छा है. मैं लेकर आता हूँ, ताला मत तोड़ना,” सियार ने कहा और चाबियाँ लेने अपने कमरे में चला गया.
सियार चाबियाँ ले कर आया तो देखा की सूटकेस खुला है.
“ताला क्यों तोड़ा?” उसने चिल्ला कर भेड़िये से पूछा.
“अरे ताला नहीं तोडा, एक चाबी से मैंने ताला खोलने की कोशिश फिर से की तो ताला खुल गया,” भेड़िये ने चाबी दिखाते हुए कहा.
“सूटकेस मेरे सामने खोलना चाहिये था. कुछ लिया तो नहीं?” सियार ने झल्ला कर कहा.
दोनों पक्के दोस्त थे पर सियार भेड़िये का विश्वास न करता था.
“तुम्हें कितनी बार कहा है कि एक चोर दूसरे चोर को कभी नहीं ठगता. मैंने कुछ नहीं लिया है,” भेड़िया भी गुस्से से चिल्लाया.
“ठीक है, ठीक है,” सियार ने कहा और सूटकेस की तलाशी लेने लगा.
सूटकेस में कुछ कपड़े, एक कैमरा और एक ऍम बी बी एस डिग्री थी.
“यह तो डॉक्टर भालू की डिग्री है. हमारे किस काम की?” इतना कह भेड़िये ने डिग्री फैंक दी.
“इसे मत फैंको, लोमड़ भाई इसके भी कुछ न कुछ पैसे दे देगा,”  सियार ने डिग्री संभाल कर रख दी.
“आज लोमड़ से बात कर लेते हैं, सामान कुछ दिन बाद ले जाकर उसे बेच देंगे,” भेड़िये ने कहा.
श्रीमान लोमड़ एक दुकानदार था. वह चोरी का सामान चोरों से खरीद लेता था. और उस सामान को अपनी दुकान छिपा कर रख लेता था और कुछ समय के बाद बेच देता था.
लोमड़ की दुकान बंद थी, वह अचरज वन गया हुआ था. दोनों चोर मुंह लटका कर लौट आये.
दो दिन बाद सियार एक समाचार पत्र लेकर भेड़िये के पास आया और बोला, “गुरु, ऐसी सूचना लाया हूँ कि सुन कर उछल पड़ोगे.”
“क्या हुआ.”
“समाचार पत्र में छपे इस नोटिस को पढ़ो. लिखा है, ‘मेरी ऍम बी बी एस डिग्री रेलवे स्टेशन के पास कहीं खो गई है. पाने वाले से अनुरोध है कि तुरंत लौटा दे. लौटने वाले को दस हज़ार का पुरस्कार दिया जायेगा. डॉक्टर भालू’. अब हम उस डिग्री के दस हज़ार पा सकते हैं.”
भेड़िया कुछ सोच में पड़ गया. बोला, “ यह डिग्री हमें सूटकेस में मिली और सूटकेस हमें राज नगर में मिला. यह रेलवे स्टेशन वाली बात कुछ हज़म नहीं हुई.”
“अरे, यह डिग्री किसी को स्टेशन पर मिल गई होगी, उसने डिग्री को अपने सूटकेस में रख लिया होगा.  भूल से सूटकेस राज नगर में छोड़ दिया होगा. तुम चिंता न करो. इस डिग्री के दस हज़ार तो हम ले कर ही रहेंगे.”
सियार खुशी से झूम रहा था. भेड़िया भी उसकी बातों में आ गया. दोनों बाज़ार आये. एक पब्लिक फोन से सियार ने नोटिस में दिए फोन नंबर पर फोन किया.

(क्रमश)

©आई बी अरोड़ा 
(कहानी का अंतिम भाग यहाँ पर है) 

Tuesday 17 February 2015

साइकिल की सैर
सुरेश का स्कूल उसके घर से चार किलोमीटर दूर था. वह अपनी साइकिल पर स्कूल आया जाया करता था.
हर दिन शाम के समय वह अपने छोटे भाई चिन्नी को साइकिल पर घुमाने भी ले जाता था. चिन्नी छह साल का था और बड़ा शरारती था. अगर कभी सुरेश उसे साइकिल पर घुमाने न ले जाता तो वह बहुत हो हल्ला करता. सुरेश अगर उसे डांटता तो वह मां से शिकायत करता. पर साइकिल की सैर किये बिना वह शांत न होता.
एक शाम वह दोनों घर से निकले ही थे कि उनके चाचा ने कहा, “ज़रा होशियार रहना. सुना है कि बदमाशों का एक गिरोह हमारे यहाँ में घुस आया है.”
“चाचा, हमारे पास है क्या जो वो लूट लेंगे, न जेब में पैसे हैं न हाथ में घड़ी,” सुरेश ने हँसते कहा.
सुरेश धीरे-धीरे साइकिल चला रहा था. चिन्नी पीछे कैरियर पर बैठा था. उसने अपने दोनों हाथ हवा में फैला रखे थे.
“भाई देखो, मैं अपने हवाई जहाज़ में बैठा हूँ. तुम मेरे हवाई जहाज़ के ड्राइवर हो. हवाई जहाज़ की स्पीड तेज़ करो, क्या धीरे-धीरे चला रहे हो,” चिन्नी ने चिल्ला कर कहा.
“अरे बुद्धू, हवाई जहाज़ चलाने वाले को पायलट कहते हैं, ड्राइवर तो मोटर चलाता है.”
दोनों इस तरह बातें करते हुए साइकिल की सैर कर रहे थे. उन्होंने ने देखा ही नहीं कि रास्ते में एक जगह एक रस्सा बिछा हुआ था. जैसे ही वह पास आये किसी ने रस्सा हवा में उछाल दिया. साइकिल रस्से में फंस गई और उल्ट गई. जब तक सुरेश सँभलता दो आदमी भाग कर वहां आ पहुंचे. एक ने चिन्नी को उठा लिया. दूसरे ने सुरेश के सिर पर डंडे से वार किया.
चोट लगने से सुरेश को चक्कर आ गया. वह गिर पड़ा. बदमाश चिन्नी को लेकर भाग गये. सुरेश ने अपने को सँभाला. चोट की परवाह लिए बिना वह बदमाशों के पीछे भागा. वह चिन्नी को बचाने का उपाये भी सोचने लगा. उसने मन ही मन कहा, “ इन बदमाशों से मैं अकेले मुकाबला न कर पाऊंगा. मुझे सूझबूझ से काम लेना होगा. तभी मैं चिन्नी को बचा पाऊंगा.”
उसके सिर में दर्द हो रहा था. पर वह होशियारी के साथ बदमाशों का पीछा करता रहा. बदमाशों को पता ही न चला कि सुरेश अपनी साइकिल पर उनके पीछे आ रहा था. बदमाश एक पुरानी हवेली में घुस गये. हवेली सुनसान थी और बस्ती से दूर थी. कभी-कभार ही कोई उधर आता था.
सुरेश ने साइकिल एक पेड़ के सहारे खड़ी कर दी. वह हवेली के पास आया. उसे एक टूटी हुई खिड़की दिखाई दी. उसने चुपके से भीतर झांका. बदमाश चिन्नी के हाथ पाँव बाँध रहे थे. तभी एक बदमाश ने कहा, “कल इसके बाप को संदेसा देना. कहना कि पचास हज़ार रूपए देकर इसे ले जाये.”    
“सिर्फ पचास हज़ार? सरदार क्या कहेंगे?” दूसरे बदमाश ने कहा.
“अरे, उसके पास इतने भी न होंगे. पचास हज़ार भी दे दे तो वह भी बहुत है.”
सुरेश समझ गया कि उसके भाई का इन बदमाशों ने अपहरण किया है. पैसे लिए बिना वह चिन्नी को छोड़ेंगे नहीं. पर वह जानता था कि उसके पिता पचास हज़ार रुपये न दे पायेंगे.
“उनके पास तो पाँच हज़ार भी न होंगे, पचास हज़ार कहाँ से देंगें. मुझे ही कुछ करना होगा.” सुरेश ने अपने आप से कहा. उसने सोच कि उसे पुलिस चौकी जाकर पुलिस की सहायता लेनी चाहिये. परन्तु चौकी पाँच किलोमीटर दूर थी. अँधेरा होने लगा था. अभी वह इसी सोच में था कि अंदर एक बदमाश बोला, “अरे बिज्जू, हमने बड़ी गड़बड़ कर दी.”
“क्या हुआ?”
“भूल गये, आज रात हमें लालगंज पहुंचना है. सरदार का हुक्म था. आज धनीराम के घर डाका डालना है.”
“अरे मर गये, मुझे भी बिलकुल याद न रहा. अब क्या करें? इस बच्चे को छोड़ दें?”
“नहीं इसे क्यों छोड़ेंगे? इसे साथ ले जायेंगे, सरदार देखेगा तो खुश होगा, शाबाशी देगा.”
सुरेश ने सुना तो घबरा गया. उसने मन ही मन कहा, “अब पुलिस के पास जाने का समय नहीं है. अगर यह बदमाश चिन्नी को साथ ले गये तो उसे बचाना असम्भव हो जायेगा. मुझे ही कुछ करना होगा. पर क्या करूं? किसी तरह इन बदमाशों को बाहर निकालना होगा.”
अचानक एक तरकीब उसे सूझी. वह अपनी साइकिल पर सवार हो कर फटाफट बस्ती की ओर चल दिया. वह एक घर के भीतर गया. कुछ समय बाद वह एक आदमी के साथ घर से बाहर आया. उस आदमी का नाम सगुना था. सगुना के हाथ में एक पोटली थी. सगुना साइकिल के कैरिएर पर सवार हो गया और दोनों हवेली की ओर चल दिये.
हवेली के निकट सुरेश ने साइकिल रोकी और सगुना के कान में फुसफुसा कर कहा, “वह रही खिड़की तुम उधर जाओ. मैं दरवाज़े की निकट छिप जाऊंगा. जैसे ही बदमाश हवेली से बाहर आयेंगे मैं चिन्नी को छुड़ा कर घर चला जाऊँगा. तुम कल मेरे घर आकर पैसे ले लेना, अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं.”
सुरेश हवेली के दरवाज़े के निकट छिप गया. सगुना खिड़की के पास ज़मीन पर बैठ गया. उसने अपनी पोटली से कुछ निकाला और उसे धीरे से खिड़की से हवेली के अंदर रख दिया.
अंदर दोनों बदमाश आपस में बातें कर रहे थे. अन्धेरा था और उन्होंने एक मोमबत्ती जला रखी थी.
“अब चलें, अँधेरा हो गया है.”
“हाँ, देर से पहुंचे तो सरदार की गालियाँ सुननी पड़ेंगी.”
तभी एक बदमाश चिल्लाया, “सांप, सांप.”
दोनों बदमाश एक साथ उछल कर खड़े हो गये. मोमबत्ती की रोशनी में उन्होंने देखा कि तीन सांप रेंगते हुए उनकी ओर आ रहे थे. एक सांप सिर उठा कर फुफ्कारने लगा. बदमाशों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. उन्होंने वहां से निकल भागने में अपनी भलाई समझी. उनके बाहर जाते ही सगुना भीतर आ गया. सांप उसने ही छोड़े थे. वह एक सपेरा था और सुरेश के कहने पर उसकी सहायता करने उसके साथ आया था. इस काम के लिए उसने सिर्फ बीस रुपये ही मांगे थे, साँपों को दूध पिलाने के लिए.
सगुना ने साँपों को पकड़ कर पिटारी में रख लिया और वहाँ से रफूचक्कर हो गया. इसी बीच सुरेश ने भीतर आकर चिन्नी के हाथ पाँव खोल दिए. साँपों के देख कर चिन्नी भी डर गया था पर बड़े भाई को देख कर उसका डर जाता रहा. सुरेश ने भाई को साइकिल पर बिठाया और घर की ओर चल दिया.
कुछ समय बाद दोनों बदमाश हवेली की अंदर आये. वहां न सांप थे और न ही चिन्नी. उन्हें पता ही न चला की क्या हुआ था.
घर पहुँच कर सुरेश ने अपने पिता को सारी घटना के बारे में बताया. फिर अपने चाचा के साथ वह पुलिस चौकी आया. उसने पुलिस अधिकारी को घटना की जानकारी दी, “वो लोग आज रात लालगंज में धनीराम को लूटने वाले हैं.”
पुलिस ने तुरंत कार्यवाही कर सबको गिरफ्तार कर लिया.
सुरेश के माता पिता गर्व से फूले न समाये. अपनी सूझबूझ से सुरेश ने छोटे भाई को छुड़वा लिया था और दुष्ट बदमाशों को भी पकड़वा दिया था. 

© आई बी अरोड़ा 

Monday 2 February 2015


A Little Poem





Little Zayn
went for a jog
on the way
he saw a frog
he felt he must
 stop and greet
 but frog was timid
it ran off street.