Tuesday 26 May 2015

अधुरा सपना

पर्शिया (फ़ारस) के राजा डेरियस (दारा) को हरा कर सिकंदर ने भारत की ओर बढ़ने का निर्णय लिया.

अपने सेनिकों से उसने कहा, “मित्रों, अब तक यहाँ के लोगों ने हमें सिर्फ अपने सपनों में ही देखा था, लेकिन हमारा सामना पहली बार किया था. अगर हम यहाँ से ही लौट जाते हैं तो यह लोग हमें कायर और डरपोक समझेंगे और हम पर टूट पड़ेंगे. फिर भी अगर कोई सैनिक यूनान लौट जाना चाहता है तो लौट सकता है. लेकिन स्मरण रहे, विश्व-विजय पर निकले अपने राजा का साथ छोड़ने वाले सैनिकों पर देवता अवश्य नाराज़ होंगे.”

सिकन्दर की बातों का यूनानियों पर इतना प्रभाव पड़ा कि सब सैनिक एक साथ चिल्लाये, “हम सब आपके साथ हैं. आपके साथ विश्व के दूसरे छोर तक जाने को हम तैयार हैं.”

सेना कूच के लिए तैयार थी. सिकन्दर ने देखा कि सभी सैनिकों ने लूट का बहुत सारा सामान इकट्ठा कर रखा था. सामान गाड़ियों और खच्चरों पर लदा था. इतने सामान के साथ आगे बढ़ना कठिन लग रहा था.

सिकंदर ने अपना और अपने मित्रों का सामान एक जगह इकट्ठा करवा दिया. सारे सैनिक उत्सुकता से देख रहे थे. उसने आदेश दिया, “इस सामान को आग लगा दो.”

सारी सेना स्तब्ध सी देखती रही. सिकंदर और उसके मित्रों का सामान जलने लगा.

सिकंदर ने सैनिकों से कहा, “आवश्यक सामान रख कर बाकि सब जला डालो.”

अपने राजा के व्यवहार से प्रभावित हो,  सैनिकों ने अपना सारा अनावश्यक सामान खुशी से चीखते-चिल्लाते हुए जला डाला. तब यूनानी सेना भारत की ओर चल दी. 

भारत में तक्षशिला के राजा अम्बी से यूनानियों का सामना हुआ. तक्षशिला एक विशाल राज्य था. धरती उपजाऊ थी, अच्छी चरागाहें थीं, राज्य सम्पन्न था.

परन्तु अम्बी ने युद्ध न किया. सिकंदर से मित्रता करने वह यूनानियों के शिविर में आया. उसने कहा, “राजन, अगर आप हमारा दाना-पानी छीनने नहीं आये तो हम आपस में युद्ध क्यों करें? रही धन की बात, अगर हम आपसे अधिक धनी हैं तो अपना धन आप के साथ बांटने को तैयार हैं. और अगर आपका धन-भंडार अधिक बड़ा है तो आपके धन का भागीदार होने में हमें कोई आपत्ति नहीं.”

सिकंदर ने प्रसन्न हो कर कहा, “अगर आप सोचते हैं कि अपनी विनम्रता के कारण हमसे मुकाबला करने से बच जायेंगे तो आप गलत सोच रहे हैं. हम आप से अवश्य मुकाबला करेंगे, परन्तु हमारा मुकाबला उपहारों के लेन-देन का होगा.”

दोनों ने एक-दूसरे को बहुमूल्य उपहार दिए. अम्बी की भांति कई और राजाओं ने सिकंदर के साथ युद्ध करने के बजाय यूनानियों की अधीनता स्वीकार कर ली. इन राजाओं की सहायता से सिकन्दर ने तक्षशिला के आस-पास का सारा क्षेत्र जीत लिया.

अब सिकंदर ने पुरु (पोरस) को अपने शिविर में आमंत्रित किया. पुरु का राज्य झेह्लम नदी के पूर्वी तट पर था. पुरु ने उत्तर भिजवाया कि सिकंदर से उसकी भेंट अवश्य होगी. परन्तु यह भेंट यूनानी शिविर में नहीं, युद्ध के मैदान में होगी.

अभी तक किसी भी शक्तिशाली भारतीय राजा के साथ यूनानियों को युद्ध न करना पड़ा था. परन्तु पुरु के साथ युद्ध किये बिना आगे बढ़ना संभव न था. पुरु ने अपनी सेना नदी के पूर्वी तट पर इकट्ठी कर रखी थी. सेना में हाथी भी थी जो एक दीवार के समान नदी तट पर खड़े थे.

पुरु के सेना किसी भी आक्रमण के लिए तैयार थी. नदी पार करना असंभव लग रहा था. एक गतिरोध पैदा हो गया था.

सिकंदर ने सैनिकों को आदेश दिया कि  वह खूब शोर मचाएं. शोर सुन, पुरु की सेना समझी कि यूनानी सेना नदी पार करने का प्रयास कर रही है. पुरु के सेना सावधान हो गई. परन्तु कोई भी नदी पार न आया. यूनानी बस शोर मचाते रहे, नदी पार करने का कोई प्रयास उन्होंने नहीं किया. पुरु की सेना ढीली पड़ गई. उनकी सतर्कता कम हो गई. इस असावधानी का लाभ उठा, यूनानी चकमा देने में सफल हो गये.

अँधेरी और तूफानी रात में कुछ घुड़सवारों और पैदल सिपाहियों को साथ ले, सिकन्दर अपनी शिविर से दूर जाकर नदी पार करने का प्रयास करने लगा. वर्षा हो रही थी, बिजली चमक रही थी, नदी में बाढ़ आई हुई थी. बिना घबराये, यूनानी पानी में आगे बढ़ते रहे. कुछ सैनिक नदी की तेज़ धारा में बह भी गये. परन्तु सिकंदर और बाकि सैनिक नदी पार जाने में सफल हो गये.

नदी का पूर्वी तट कीचड़ से भरा था. यूनानी कीचड़ में फंस गये. तब सिकंदर ने चिल्ला कर कहा, “मित्रो, देखो तुम्हें यश और कीर्ति दिलाने के लिए मुझे कैसे-कैसे खतरों से गुज़रना पड़ता है.”

यूनानी उत्साह से भर गये. जो सैनिक नावों में सवार थे वह भी नदी में कूद गये. पूरी ताकत लगा कर वह नदी पार कर गये और पुरु की सेना की ओर चल दिए. योजना थी कि अगर पुरु की सेना आ जाती है तो उसे तब तक रोका जाये जब तक सारी यूनानी सेना नदी पार नहीं कर लेती.

पुरु को संदेह हुआ कि यूनानी नदी पार कर रहे हैं. एक हज़ार घुड़सवार और साठ रथों की एक टुकड़ी उसने यूनानियों को रोकने के लिए भेजी. यूनानी तैयार थे. घमासान लड़ाई हुई. पुरु के सैनिक हार गये और अपने रथ भी खो बैठे. पुरु समझ गया कि शत्रु सेना नदी पार करने में सफल हो गई है. उसने अपनी सारी सेना को यूनानी सेना की ओर मोड़ दिया.

पुरु की सेना के आगे-आगे सुसज्जित हाथी चल रहे थे. पुरु स्वयं भी एक विशाल हाथी पर बैठा था. इस सेना का सीधा सामना करने के बजाय, दायें और बायें से हमला करने का निर्णय सिकन्दर ने लिया. एक सेनापति  दायें ओर से पुरु की सेना पर टूट पड़ा, सिकंदर ने बायें ओर से आक्रमण किया. इस दुतरफा हमले से पुरु की सेना में भगदड़ मच गई. हाथी घबरा कर पीछे हटने लगे और अपने ही सैनिकों को रोंदने लगे. परन्तु इस अफरा-तफरी में भी एक भीषण युद्ध हुआ.

अपने हाथी पर बैठा पुरु अपनी सेना का संचालन कर रहा था. हाथी बड़ी सूझबूझ से अपने राजा को शत्रुओं के हमले से बचा रहा था और शत्रुओं को खदेड़ भी रहा था. पुरु बड़ी वीरता से लड़ रहा था. बाणों की वर्षा से वह बुरी तरह घायल हो गया था. ऐसा लग रहा था कि वह हाथी से गिर पड़ेगा. पर तभी हाथी संभल कर नीचे बैठ गया. पुरु उतर कर धरती पर आ गया. हाथी अपनी सूंड से राजा के शरीर में चुभे तीर खींच-खींच कर निकालने लगा.

यूनानियों ने पुरु को घेर लिया. पुरु की सेना हार गई. पुरु बंधी बना लिया गया. उसकी वीरता ने सिकन्दर को बहुत प्रभावित किया था. उसने पुरु से पूछा, “आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाये?”

“जैसा एक राजा के साथ होना चाहिये,” पुरु ने निडरता से कहा.

सिकंदर आश्चर्यचकित हो गया, “आप कोई अन्य निवेदन नहीं करना चाहते क्या?”

“नहीं,” पुरु ने गर्व के साथ कहा.

“आप सचमुच एक महान वीर हैं.” ऐसा कह सिकंदर ने पुरु को उसका राज्य लौटा दिया.

इस भीषण युद्ध ने यूनानियों को हतोत्साहित कर दिया. उन्होंने आगे जाने से इनकार कर दिया. सिकन्दर बहुत निराश हुआ पर उसे वापस लौटने का निर्णय लेना ही पड़ा. भारत विजय का उसका सपना अधुरा ही रह गया.

(प्लूटार्क के वर्णन से प्रेरित)
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© आई बी अरोड़ा 

सिकंदर से सम्बंधित कहानियां  
                 ‘दस प्रश्न
                       ‘मृत्यु निश्चित थी

Tuesday 19 May 2015

जन्मदिन का उपहार




मनु बहुत प्रसन्न था. 

आज उसका दसवां जन्मदिन था. उसके पिता ने उससे कह रखा था कि वह उसके लिए एक सुंदर उपहार लेकर आयेंगे. परन्तु उसी दिन उन्हें घर लौटने में देर हो गई. ऑफिस में अचानक एक आवश्यक काम आ पड़ा था. वह समय से घर आ नहीं पाए.

जब वो घर लौटे तो रात के आठ बज रहे थे. मनु उदास था. उसके मित्र जा चुके थे. उसे लग रहा था कि पिता उपहार न ला पायें होंगे. परन्तु जैसे ही उसके पिता आये मनु प्रसन्नता से झूम उठा. पिता जन्मदिन का उपहार लाये थे, एक सुंदर साइकिल.

मनु कई महीनों से एक साइकिल की मांग रहा था. पर पिता ने कभी हामी ही न भरी थी. साइकिल देख मनु ख़ुशी से उछल पड़ा. वह उसी समय साइकिल पर घूमने जाना चाहता था.

“बेटा, पहले मुझे केक तो खिलाओ, और इस समय अँधेरे में बाहर जाना उचित न होगा. कहीं गिर गये तो चोट लग जायेगी. सुबह जाना और अपनी साइकिल पर खूब घूमना,” पिता ने कहा.

“क्या इस साइकिल को मैं अपने कमरे में रख लूं?” मनु ने पूछा.

“अरे, साइकिल गैरिज में रखो. बैडरूम में क्या कोई अपनी साइकिल रखता है?” पिता ने समझाया.

मनु को अच्छा तो न लगा पर वह अपनी नई साइकिल गैरिज में रख आया. सारी रात वह साइकिल के सपने ही देखता रहा और सुबह होते ही गैरिज कि  ओर भागा. जैसे ही उसने गैरिज का दरवाज़ा खोला उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी. उसे आश्चर्य हुआ, समझ ही न आया कि गैरिज में कौन रो रहा था. अचानक उसके मुहं से निकला, “कौन है गैरिज में?”

“मैं हूँ.”

“मैं कौन?”

“मैं, साइकिल.”

मनु ठिठक कर रह गया.

“तुम रो रही हो? मैंने तो किसी साइकिल को रोते नहीं देखा.”

साइकिल ने कोई उत्तर न दिया और रोती रही.

“तुम रो क्यों रही हो?”

“यहाँ गैरिज में बहुत मच्छर हैं. इन मच्छरों के कारण मैं रात भर सो भी न पाई. यहाँ गर्मी भी कितनी है, न कोई पंखा है, न कोई वातानुकूलक.” साइकिल ने सुबुकते हुए कहा.

“वातानुकूलक? वह क्या होता है?”

“एयर कंडीशनर, तुम इतना भी नहीं जानते?”

“अरे वाह, मुझे नहीं पता था कि एक साइकिल को भी गर्मी लगती है, मच्छर काटते हैं?”

“और सुबह की चाय का क्या हुआ? अभी तक चाय भी नहीं पी,”साइकिल ने धीमे से पूछा.

“तुम्हें बैड टी भी चाहिये?” मनु को समझ न आ रहा था की यह किस प्रकार की साइकिल है.

“हां, बैड टी लेने की आदत है, पर सप्ताह में सिर्फ तीन दिन. बाकि दिन मैं संतरे का रस पीना पसंद करती हूँ. तुम लोग खाने में ज़्यादा मिर्च-मसाले तो नहीं डालते?” साइकिल ने पूछा.

“क्यों?”

“मुझे सादा भोजन ही अच्छा लगता है. भोजन सादा हो तो तन स्वस्थ रहता है और मन शांत.”

“तुम्हारी कोई और इच्छा हो तो वह भी बता दो?” मनु ने उसे चिढ़ाने के लिए कहा.

“तुम ने कोई कुत्ता तो नहीं पाल रखा?” साइकिल ने पूछा.

“तुम्हें कुत्ते अच्छे नहीं लगते क्या?”

मैं कुत्तों से बहुत चिढ़ती हूँ. उनका सामन्य ज्ञान बहुत कम होता है. उन्हें न्यूज़ पेपर फाड़ने में बड़ा मज़ा आता है, पढ़ना नहीं. पुरानी फिल्मों के गीत तो उन्हें बिल्कुल अच्छे नहीं लगते. सिर्फ शोर-शराबे वाले गाने ही सुनते हैं यह कुत्ते,” साइकिल ने नखरे भरी आवाज से कहा.

“अच्छा, मुझे यह सब नहीं पता था.” मनु ने नाक चढ़ा कर बोला.

“तुम्हें तो यह भी पता न होगा कि मैं दिन में बीस घंटे सोती हूँ और दस घंटे जागती हूँ?”

‘तुम मुझे मूर्ख समझती हो? एक दिन में सिर्फ चौबीस घंटे होते हैं, तीस नहीं.”

“वर्ष में कितने महीने होते हैं?” साइकिल ने थोड़ा ऊंची आवाज़ में कहा.

“बारह.”

“तुम निरे मूर्ख हो, एक साल में महीने होते हैं दस, बारह नहीं.”

“तुम्हारी बकवास सुन कर तो मैं पागल हो जाऊंगा,” मनु चिल्लाया

“पागलपन का भी इलाज है मेरे पास.” साइकिल ने कहा.

मनु को उसकी बात सुन कर गुस्सा आ गया और उसने साइकिल को ज़ोर से लात मारी. साइकिल धीरे से दीवार पर चढ़ गयी और अपने को बचा लिया.

“तुम्हारे पाँव इतने छोटे हैं कि तुम कुछ नहीं कर सकते,” साइकिल ने चिढ़ाते हुए कहा.

मनु ने अचानक झपट कर साइकिल की हैंडल पकड़ ली और उसे दीवार से नीचे खींचने लगा. परन्तु साइकिल जरा भी नहीं हिल्ली. साइकिल धीरे-धीरे छत की ओर खिसकने लगी. इतना ही नहीं मनु की बांह भी खिंचती गई. मनु को लगा जैसे उसकी बांह रबड़ की बनी हुई थी और लम्बी होती जा रही थी. देखते ही देखते साइकिल छत पर चली गयी और मनु की बाहं कोई सात-आठ  फुट लम्बी  हो गई.

उसने साइकिल की हैंडल छोड़नी चाही पर उसका हाथ जैसे हैंडल से चिपक गया था. मनु घबरा गया और पुरी ताकत लगा कर हाथ को छुडाने की कोशिश करने लगा. पर हाथ छूटा ही नहीं, चिपका रहा.

साइकिल छत पर गोल-गोल घूमने लगी. मनु का सर चकराने लगा. अचानक साइकिल ने घूमना बंद कर दिया. मनु छिटक कर दूर जा गिरा. मनु ने अपनी बाहं को टटोला, वह तो पहले जैसी ही थी, न लम्बी, न छोटी. साइकिल छत पर ही थी और फिर से रो रही थी और बार-बार कह रही थी, “मुझे गर्मी लग रही है, मुझे गर्मी लग रही है.”

मनु भाग कर अपने पिता के पास आया. उन्हें सारी बात बताई. वह बोले, “अरे ऐसा भी कहीं होता है? तुम ने अवश्य ही कोई सपना देखा है.”

पर मनु अपनी बात पर अड़ा रहा और बोला, “आप दुकानदार से बात करो.”

पिता ने फोन किया तो दुकानदार ने कहा, “लगता है आपके पास गलती से जादूगर सिमोन की साइकिल चली गई है. वह साइकिल बहुत ही शैतान है. उसने हमें भी तंग कर रखा था.”

“अब हम क्या करें?” पिता ने पूछा.

“आप कुछ नहीं कर सकते, जो करना है वह जादूगर सिमोन ही करेगा. तब तक उस साइकिल से ज़रा सावधान ही रहें. वह साइकिल कभी भी आप सब के लिए मुसीबत बन सकती है.”

पिता बात कर ही रहे थे की गैरिज से अजीब-अजीब आवाजें आने लगीं. जैसे कोई कह रहा हो, “मनु, जल्दी उठो देर हो गई. स्कूल बस छूट जायेगी.”

हड़बड़ा कर मनु उठ बैठा ओर बोला, “क्या मैं अभी तक सो रहा था? क्या यह सब एक सपना था?”

माँ ने कहा, “अरे, अपने आप से बातें मत करो. बिस्तर छोड़ो और झटपट तैयार हो जाओ. पहले ही देर हो चुकी है, स्कूल बस आती ही होगी. देर करगे तो बस छूट जायेगी.”
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©आई बी अरोड़ा 

Monday 18 May 2015

Yawn
The king yawned, once again.
“Fifty-three,” said the doctor.
“No, fifty-four,” mumbled the magician.
The king shouted in annoyance, “How does it matter whether it is the fifty-third yawn or fifty-fourth? When will I get sleep?”
“My Lord, it is just a matter of a few more minutes and then you will surely get a sound sleep,” said the doctor.
“My Lord, my magic has never failed. Just try to relax your frayed nerves and the magic will do the rest,” said the magicians.
“Throw these buffoons out of the palace,” the king thundered at his soldiers.
The king had not been able to sleep for many months. He would yawn and yawn and yawn but sleep would not come. He would toss on his bed; he would stroll in his room; he would walk in the garden but sleep refused to oblige him. Doctors had tried their medicines and magicians had tried their magic but all to no avail.
The king announced that anyone who would help him sleep would be declared heir to the throne for he had no son of his own.
One day a young man, named Hewise, came to the palace and said to the king, “My Lord, I don’t need to be declared as your heir for I am a farmer and I love my farm more than your kingdom. But if you do what I tell you to do, you will soon sleep like a child.”
The king was impressed by his confidence, “Youngman, I promise that I will do what you ask me to do.”
The man left for a few minutes and came with a boy who was about five years of age.
“My Lord, you have to pretend that you are a boy as young as my son, Newise, and just try to do whatever he does.”
The king looked at the man and his son and laughed, “Are you serious?”
“Yes, My Lord.”
The king agreed.
Newise had never seen a king’s palace. His excitement was boundless when he saw the royal bed chamber. In sheer joy, he started jumping on the ground; next moment he was dancing on the floor and later he was singing as loudly as he could. Sometimes he rolled on the ground and sometimes he laughed for no reason.
The king pretended that he was a little boy and he started copying every action and every movement of Newise. He tried to everything that the child did. But he could not keep pace with the boy and soon he was tired and breathless. It was difficult for him to match the boy’s energy and enthusiasm.
The king finally gave in and raised his hands. He asked the boy to relax for a few minutes. Both of them lay down on the royal bed. Soon the king was sleeping like a child. The boy too fell asleep.
When the king woke up he told Hewise, “This is the magic I had been looking for. If I want to sleep like a child then I will have to live like a child and find joy in everything I do”  
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The king still yawns but only for a few times; he has learnt to live and sleep like a child.
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© i b arora 

Saturday 16 May 2015

मृत्यु निश्चित थी

एक छोटी पर उत्साह से भरी सेना लेकर सिकन्दर युनान से निकला. उसकी आँखों में सारे विश्व को जीतने का सपना था. एक के बाद एक विजय प्राप्त कर उसकी सेना भारत तक आ पहुंची.

तक्षशिला के राजा अम्बी ने युद्ध नहीं किया. उसने यूनानियों की अधीनता स्वीकार कर ली. परन्तु झेह्लम नदी के तट पर सिकन्दर को पुरु के सेना का सामना करना पड़ा. घमासान युद्ध हुआ. पुरु हार गया.

जीत से उत्साहित सिकन्दर ने अपने सेनापतियों को आदेश दिया, “कूच की तैयारी करो. हम भारत के अन्य राज्यों को भी जीतेंगे”.

परन्तु यूनानी सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. पुरु की सेना छोटी थी लेकिन अपनी वीरता से उस सेना ने यूनानियों के दाँत खट्टे कर दिए थे. पुरु हार तो गया था पर इस युद्ध ने यूनानियों को साहस तोड़ दिया था.

यूनानियों को सूचना मिली थी कि गंगा पार एक विशाल सेना उनका सामना करने के लिए तैयार थी. उस सेना में दो लाख पैदल, अस्सी हज़ार घुड़सवार, आठ हज़ार रथ और छह हज़ार हाथी थे. इतनी बड़ी सेना से यूनानी टक्कर लेने को तैयार न थे.

सिकन्दर को विश्वास न हुआ कि उसकी सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया था. विश्व-विजय पूरी किये बिना लौट जाना उसके लिए हार समान ही था. क्रोध और निराशा ने उसे घेर लिया. उसने अपने आप को अपने खेमे में बंद कर लिया और धरती पर लेट गया.

उसके मित्र और सेनापति असमंजस में पड़ गये. मित्रों ने उसे समझाया. सेनिकों ने बिलख-बिलख कर वापस लौटने की प्रार्थना की. अंततः निराश सिकन्दर ने अपने देश लौट चलने का निर्णय किया. सेना का एक भाग नावों पर सवार हो नदी के रास्ते सागर की ओर चल दिया. बाकी सेना धरती मार्ग से चल दी.

सिकन्दर स्वयं नदी मार्ग से गया. यात्रा कठिन थी. कई जगह उन पर आक्रमण हुआ और कई राज्यों से उन्हें युद्ध करना पड़ा. ऐसी ही एक लड़ाई माल्वों के साथ हुई.

माल्व अपने रण कोशल के लिए सारे भारत में प्रसिद्ध थे. यूनानियों ने उनके राज्य पर हमला कर दिया. माल्वों के कई किले ध्वस्त कर दिए.

माल्वों के एक किले पर जब यूनानियों ने हमला किया तो किले की दीवार पर खड़े सेनिकों ने तीरों की वर्षा कर उन्हें पछाड़ दिया. दीवार पर चढ़ने के लिए यूनानियों ने एक जगह सीढ़ी लगाई. कुछ यूनानी सैनिक ऊपर चढ़ने लगे. चढ़ने वालों में सबसे आगे स्वयं सिकंदर था.

जैसे ही सिकंदर पहुंचा, सीढ़ी टूट कर नीचे गिर गई. किले के भीतर खड़े सेनिकों ने दीवार पर खड़े यूनानियों पर तीरों की बौछार कर दी. पीछे लौटना संभव न था. आगे मृत्यु दिखाई दे रही थी. बचाव का कोई उपाय न था.

अचानक सिकन्दर दीवार से नीचे कूद गया. उसने अपनी दोनों बाहें फैला रखे थे. वह ऊंची आवाज़ में माल्व सेनिकों को ललकार रहा था. माल्व सेनिकों को लगा कि जैसे आकाश से बिजली आ गिरी हो. घबरा कर वह पीछे हट गये. लेकिन उनकी घबराहट पल भर के लिए ही थी.

माल्व सेनिकों ने देखा कि सिकंदर के साथ सिर्फ दो सैनिक थे. माल्व यूनानियों पर टूट पड़े. सिकन्दर वीरता के साथ लड़ा पर घायल हो गया. तभी एक माल्व सैनिक ने इतनी ज़ोर से एक तीर मारा कि कवच को चीरता हुआ तीर सिकन्दर की छाती में धंस गया. सिकंदर इस चोट को सहन न कर पाया और धरती पर लुढ़क गया. माल्व सैनिक तलवार लेकर सिकन्दर पर झपटा.

दोनों युनानी अपने राजा की रक्षा के लिए आगे आये. माल्व सैनिक उन दोनों पर ही टूट पड़ा. उसने इतना भयंकर आक्रमण किया कि एक यूनानी मारा गया और दूसरा बुरी तरह घायल हो गया. परन्तु घायल यूनानी तब तक लड़ता रहा जब तक सिकन्दर कुछ संभल न गया.

सिकंदर उठ खड़ा हुआ और माल्व सैनिक से भिड़ गया. माल्व सैनिक घायल हो चुका था. वीरता से लड़ता हुआ वह मारा गया. तभी एक अन्य माल्व सैनिक वहां आ पहुंचा. उसने लकड़ी की गदा से सिकंदर की गर्दन पर प्रहार किया. सिकन्दर लड़खड़ा गया. खड़े रहने के लिए उसे दीवार का सहारा लेना पड़ा.

सिकंदर बिलकुल अकेला था. उसके शरीर की सारी शक्ति खत्म हो चुकी थी. अब वह लड़ने की स्थिति में न था. सामने खड़ा माल्व सैनिक किसी भी पल हमला कर सकता था. सिकन्दर को अपनी मृत्यु निश्चित प्रतीत हो रही थी.

उधर यूनानी सैनिक किले में घुसने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे. वह जानते थे की उनका सम्राट किले के अंदर फंस चुका था और उसका बचना असंभव था. किले के बाहर भीषण लड़ाई हो रही थी. दोनों ओर के सैनिक जान हथेली पर रख कर लड़ रहे थे.

एक भयंकर युद्ध के बाद यूनानी सैनिक किले के भीतर आने में सफल हो गये. कुछ यूनानियों ने तुरंत अपने असहाय राजा को घेर लिया. अन्य सैनिक माल्वों से लड़ने लगी. माल्व वीरता से लड़े पर हार गये.

घावों के कारण सिकन्दर बेहोश हो गया था. यूनानी उसे उठा कर अपने शिविर में ले आये. अफवाह फ़ैल गई कि उसकी मृत्यु हो गई  थी.

यूनानी चिकित्सकों ने सिकन्दर की छाती में धंसा तीर निकालने का बहुत प्रयास किया पर वो सफल न हुए. सिकंदर दर्द से छटपटा रहा था. जब किसी भी प्रकार तीर निकाला न जा सका तो चिकित्सकों ने तीर काट डाला. फिर उसका कवच उतारा और शल्य क्रिया से छाती में धंसा तीर का फल छाती से निकाला.

सिकन्दर के घाव गहरे थे. उपचार में बहुत समय लगा. यूनानी सैनिक बेचैन हो रहे थे. स्वास्थ्य में सुधार होने पर वह अपने सेनिकों से मिला, उन्हें उत्साहित किया. अपने सम्राट को जीवित देख यूनानी ख़ुशी से झूम उठे. यूनानी सेना अपने देश वापस चल दी.
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(प्लूटार्क के वर्णन से प्रेरित)

© आई बी अरोड़ा
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सिकंदर से सम्बंधित एक और कहानी ‘दस प्रश्न’

Thursday 14 May 2015

दस प्रश्न

पुरु को हरा कर सिकंदर भारत के अन्य  राज्यों को जीतने का सपना देखने लगा. परन्तु यूनानी सेना ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. अपनी सेना के व्यवहार से सिकंदर बहुत दुःखी व निराश हुआ. परन्तु उसने यूनान लौटने का फैसला कर लिया.

उन्हीं दिनों कुछ सन्यासियों ने उन राजाओं को उकसाया जिन्होंने सिकंदर के सामने घुटने टेक, यूनानियों की अधीनता स्वीकार कर ली थी. एक राजा ने विद्रोह कर दिया. सिकंदर ने सेना की एक टुकड़ी भेजी. युद्ध हुआ. वह राजा हार  गया.

सिकंदर के आदेश पर युनानिओं ने दस सन्यासियों को पकड़ लिया. उन पर आरोप था कि  वह राजाओं को विद्रोह करने के लिए उकसा रहे थे.

जब उन सन्यासियों को सिकन्दर के सामने लाया गया तो सिकंदर ने कहा, “तुम ने अपने राजा को भड़काया. उसने विद्रोह किया. इस विद्रोह का परिणाम तो तुम सब ने देख ही लिया है. अब तुम सब को भी दंडित किया जायेगा. तुम सब को मृत्यु दंड मिलेगा. परन्तु पहले किसे दंड दिया जाये यह तय करने के लिए मैं तुम सब से एक-एक प्रश्न पूछूँगा. जो संन्यासी सबसे पहले गलत उत्तर देखा उसे ही सबसे पहले मृत्युदंड दिया जाएगा. किस सन्यासी ने पहले गलत उत्तर दिया है, इस बात का निर्णय सबसे वृद्ध सन्यासी करेगा.”

सिकन्दर की बात सुन सन्यासी न डरे, न घबराये. वह सब चुपचाप उसके प्रश्नों की प्रतीक्षा करने लगे.

सिकंदर ने एक सन्यासी से पूछ, “इस संसार में कौन अधिक हैं, जीवित या मृत?” 

सन्यासी ने कहा, “जीवित ही अधिक हैं, क्योंकि मृत तो इस संसार में हैं ही नहीं.”

दूसरे सन्यासी से प्रश्न किया, “सबसे बड़े प्राणी कहाँ पाये जाते हैं, सागर में या धरती पर?”

उसने उत्तर दिया, “धरती पर, क्योंकि सभी सागर धरती का भाग ही हैं.”

“सबसे चालाक पशु कौन-सा है?” यह प्रश्न तीसरे सन्यासी से पूछा.

सन्यासी ने कहा, “वह पशु जिसके विषय में मनुष्य अभी तक कुछ नहीं जानता.”

चौथे सन्यासी से सिकन्दर ने पूछा, “तुम सब ने अपने राजा को विद्रोह करने के लिए क्यों उकसाया था?”

“क्योंकि हम चाहते थे कि या तो वह गौरव के साथ जीये या कायरों की भांति मर जाये,” उसने निडरता से कहा.

पांचवें सन्यासी से पूछा, “तुम्हारे विचार में कौन पुराना है, दिन या रात?”

उसने उत्तर दिया, “दिन; दिन रात से एक दिन अधिक पुराना है.”

“इस बात का अर्थ क्या है?” सिकन्दर ने आश्चर्य से पूछा.

“राजन, जटिल प्रश्नों के उत्तर भी जटिल ही होते हैं,” सन्यासी ने मुस्कुराते हुए कहा.

अगले सन्यासी से उसने प्रश्न किया, “आदमी को ऐसा क्या करना चाहिये कि  सब उससे प्यार करें?”

उत्तर मिला, “अगर वह शक्तिशाली है तो उसे ध्यान रखना चाहिये कि कोई भी उससे भयभीत ने होवे.”

सातवें सन्यासी से सिकन्दर ने पूछा, “देवता-समान बनने के लिए एक मनुष्य को क्या करना चाहिये?”

उसने उत्तर दिया, “वही जो किसी मनुष्य के लिए करना असंभव है.”

“तुम्हारे विचार में कौन अधिक शक्तिशाली है, जीवन या मृत्यु?” यह प्रश्न आठवें से किया.

“राजन, जीवन ही सब बुराइयों का सामना करता है और उनसे जूझता है, इसलिये जीवन अधिक शक्तिशाली है.”

नवें सन्यासी से प्रश्न किया, “आदमी को कब तक जीवित रहना चाहिय?”

“जब तक मृत्यु जीवन से बेहतर न लगे,” उस सन्यासी ने कहा.

अब सिकंदर ने सबसे वृद्ध सन्यासी की ओर देखा और बोला, “तुमने सबके उत्तर सुन लिए. बताओ किस सन्यासी ने सबसे पहले गलत उत्तर दिया?”

वृद्ध सन्यासी बिल्कुल शांत था. उसने बड़े धैर्य से कहा, “राजन, मेरे विचार में हर एक ने दूसरे से अधिक गलत उत्तर दिया.”

“अगर तुम्हारा यह निर्णय है तो सबसे पहले तुम्हें ही दंड दिया जायेगा,” सिकन्दर ने घूरते हुए कहा.

“अगर आप अपना वचन तोड़ना नहीं चाहते तो ऐसा नहीं हो सकता.”

“क्यों?”

“आपने कहा था की सबसे पहले उसे दंड दिया जाएगा जो सबसे पहले गलत उत्तर देगा,” सन्यासी ने मंद-मंद मुस्काते हुए कहा.

वृद्ध सन्यासी का उत्तर सुन सिकंदर अवाक हो गया. सन्यासियों की बुद्धिमता से वह प्रभावित हो चुका था. उसने सबको स्वतंत्र कर दिया. ऐसा माना जाता है की एक सन्यासी को वह अपने साथ यूनान ले गया था.

(प्लूटार्क के वर्णन पर आधारित)


© आई बी अरोड़ा