Monday 29 June 2015

“संकेत समझा”

विराट देश का राजा सूर्यसेन एक न्यायप्रिय राजा था. परन्तु उसका सेनापति, विक्रमजीत, नीच स्वभाव का व्यक्ति था. विक्रमजीत रानी सुनंदा का भाई था और रानी के अनुरोध पर ही राजा ने उसे सेनापति बनाया था.

विक्रमजीत हर किसी के साथ बुरा व्यवहार करता था. सेना के अधिकारियों को अपमानित करता था. बात-बात पर लोगों के साथ भी मार-पीट करता था. उसके व्यवहार से सभी दुःखी थे. परन्तु इन बातों का राजा को पता न था. रानी ने सब को चेतावानी दे रखी थी कि कोई भी राजा के पास विक्रमजीत की शिकायत न करेगा. अगर कोई शिकायत करने का साहस करता भी तो विक्रमजीत के लोग उसको बंदी बना लेते थे.

मंत्री भीमदेव सब कुछ जानते थे. परन्तु वह कुछ कर न पाते थे, रानी ने उनसे वचन ले रखा था कि विक्रमजीत के संबंध में राजा से कुछ न कहेंगे.

भीमदेव ने रानी को वचन देते समय यह अनुमान न लगाया था कि विक्रमजीत इतना अत्याचारी व्यक्ति होगा और वह अपने पद का इतना दुरूपयोग करेगा. अब उन्हें अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था. परन्तु रानी उन्हें वचन से मुक्त करने को तैयार नहीं थी. 

एक दिन सेनापति विक्रमजीत अपने एक मित्र के साथ भरे बाज़ार में रथों की दौड़ लगा रहा था. इन दौड़ते रथों से बचने के लिए लोग, डरे हुए खरगोशों के भांति, इधर-उधर भाग रहे थे. लोगों को इस तरह भागता देख विक्रमजीत खिलखिला कर हंस दिया और रथ को और तेज़ दौड़ाने के लिए घोड़ों पर चाबुक बरसाने लगा.

रामहरि नाम का एक व्यक्ति, अपने बीमार लड़के को उठाये, उसी रास्ते से जा रहा था. वह बेटे को एक वैद्य के पास ले जा रहा था.  लड़के की बिमारी के कारण वह बहुत चिंतित था.

उसे पता ही न चला कि रास्ते पर दो रथ बड़ी तेज़ी से दौड़ते आ रहे थे. विक्रमजीत का रथ उससे जा टकराया. रामहरि को अधिक चोट न लगी थी पर उसका बेटा बुरी तरह घायल हो गया.

विक्रमजीत रथ से कूद कर नीचे आया और चिल्ला कर बोला, “अंधे भिखारी, देख कर नहीं चल सकते.”

इतना कह विक्रमजीत रामहरि को चाबुक से पीटने लगा. डर के मारे कोई भी उसकी सहायता को आगे न आया.

अपमान और पीड़ा से रामहरि तिलमिला गया और बेटे को गोद में उठा, राजमहल की ओर चल दिया. वहां उसने राजा से मिलने की याचना की. अधिकारियों ने उसे राजा के पास न जाने दिया तो वह महल के द्वार के निकट बैठ गया.

रानी को सूचना मिली तो वह रामहरि से मिलने आई. रामहरि और उसके घायल बेटे को देख रानी समझ गई कि विक्रमजीत ने फिर एक जघन्य अपराध कर दिया था. वह जानती थी कि अगर यह बात राजा को पता लगी तो वह विक्रमजीत को कठोर दंड दे देंगे.

रानी ने मंत्री भीम देव को सन्देश भिजवाया कि कैसे भी करके वह रामहरि से झुटकारा पायें.

रामहरि और उसके बेटे की दशा देख मंत्री बहुत दुःखी हुआ. मन ही मन अपने को कोसने लगा कि रानी को वचन दे कर उसने मूर्खतापूर्ण कार्य किया था. राजा को विक्रमजीत के कुकर्मो को पता न लग रहा था और उस नीच के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे.

उसने रामहरि से कहा, “अभी तुम जाओ और तुरंत अपने बेटे का इलाज कर वाओ. इसके लिए मैं तुम्हें सौ स्वर्ण मुद्रायें दूंगा. देर न करो, कहीं बेटे का कष्ट बढ़ न जाये.”

“मंत्री जी, मैं महाराज से मिले बिना न जाऊँगा, आप मुझे महाराज से मिलने दें,” रामहरि ने विनम्रता से कहा.

“महाराज अभी किसी से नहीं मिल सकते. थोड़ी देर में उन्हें महादेव के मंदिर जाना है. वह तो बस महल से निकलने ही वाले हैं. अतः तुम समय नष्ट न करो, तुरंत वैद्य के पास जाओ और अपने बेटे का इलाज करवाओ.”

रामहरि कुछ देर यूँही खड़ा रहा, फिर कुछ सोच कर उसने अधिकारी से सौ स्वर्ण मुद्रायें लीं और राजमहल से चला गया.

रानी पीछे छिप कर सारी बात सुन रही थी. उसने भीमदेव को धन्यवाद दिया और कहा, “ मंत्री जी, मैं विक्रमजीत को समझा दूंगी. अब वह कोई गलत काम न करेगा.”

भीमदेव चुप रहा, रानी ने ऐसा आश्वासन कई बार दिया था. परन्तु विक्रमजीत के आचरण में कोई परिवर्तन न आया था और न आने वाला था.

कुछ समय बाद महाराज सूर्यसेन महादेव के मंदिर आये. वहाँ उन्होंने एक दीनहीन व्यक्ति को देखा जो घायल भी था. उस व्यक्ति को देखते ही राजा समझ गये कि उसके साथ अवश्य कोई अन्याय हुआ था. परन्तु उस व्यक्ति को देख रानी के पाँव तले से धरती खिसक गई.

“तुम कौन हो और तुम्हारी यह दशा कैसे हुई? सूर्यसेन ने पूछा.

व्यक्ति ने कहा कि उसका नाम रामहरि है. अपने साथ घटी घटना के विषय में उसने राजा को बताया.

“महाराज, अपने बेटे को मैं चिकित्सा हेतु वैद्य जी के पास छोड़ आया हूँ. अब आपके पास न्याय के लिए आया हूँ.”

राजा का मुख क्रोध से लाल हो गया.

“आश्चर्य है विक्रमजीत ने ऐसा व्यवहार किया तुम से; हमें विश्वास नहीं हो रहा?” राजा ने धीमे स्वर में कहा.

“महाराज, ऐसा अत्याचार सेनापति ने पहली बार नहीं किया, आप चाहें तो जांच करवा लें.” रामहरि ने निडरता से कहा.

सूर्यसेन ने मंत्री की ओर देखा. मंत्री आँखें नीचे किये चुपचाप खड़ा रहा. क्रोध से राजा का शरीर काँप रहा था.

“मंत्री जी, क्या यह सच है? आपने हमें आज तक क्यों नहीं बताया?”

“महाराज, मैं रानी सुनंदा को वचन दे बैठा था. इस कारण सब जानते हुए भी चुप रहा. मैं भी आपका अपराधी हूँ.”

“अभी विक्रमजीत को कैद कर लिया जाये,” राजा ने आदेश दिया.

राजमहल लौट कर सूर्यसेन ने सुनंदा से कहा, “आपने हमें अपराधी बना दिया है. प्रजा तो हमारी संतान समान होती है. उनके दुःख-सुख का सोचने के बजाय आप अपने अत्याचारी भाई का साथ देती रहीं. मंत्री से वचन लेकर उसे भी पाप का भागीदार बना दिया. आप जैसी समझदार और पढ़ी-लिखी महिला से हमें ऐसी आशा न थी. कर्तव्य के स्थान पर अपने रिश्ते-नातों को अधिक महत्व दिया आपने. यह अन्याय है प्रजा के साथ. ऐसा अपराध किसी और ने किया होता तो हम उसे कठोर दंड देते. आपको क्या दंड दें?”

रानी को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने राजा से क्षमा मांगी.

परन्तु दुराचारी विक्रमजीत को आजीवन कारावास की सज़ा दी.

मंत्री भीमदेव ने मन ही मन रामहरि को धन्यवाद दिया. मंत्री का संकेत समझ कर वह महादेव के मंदिर गया था. वहां उसकी भेंट राजा से हो गई और उसने सारा सत्य बता दिया.

राजा का आदेश सुन प्रजा बहुत प्रसन्न हुई. सूर्यसेन के न्याय का डंका चारों ओर बजने लगा.
©आइ बी अरोड़ा


Sunday 28 June 2015

“तीन शिकारी”

रिंकू बन्दर विचित्र वन में रहता था. वह अपने आप को बहुत बुद्धिमान समझता था. 

एक दिन वह वन में यूँही यहाँ-वहां घूम रहा था. उसने वन में तीन आदमियों को देखा.
“यह तीन लोग इस वन में क्या कर रहे हैं?” रिंकू ने अपने आप से कहा, “यह तीनों अवश्य शिकारी होंगे, शेर को मारने आये होंगे. अगर इन्होंने शेर को मार डाला तो हम पर बड़ी मुसीबत आ जायेगी. मुझे कुछ करना होगा. अपने वनराज को इन शिकारियों से बचाना होगा. अगर मैंने वनराज को इस मुसीबत से बचा लिया तो वनराज बहुत खुश होंगे, मुझे पुरूस्कार देंगे, मेरी प्रशंसा करेंगे.”

रिंकू मन ही मन खुश होने लगा. वह शिकारियों से निपटने का उपाय सोचने लगा. तभी उसे भोला भालू दिखाई दिया. उसने सोच, “क्या भोला से बात करूं? नहीं, ऐसा नहीं करूंगा. अगर भोला से बात की तो शेर को बचाने का श्रेय इसे भी मिलेगा. सब भोला की भी प्रशंसा करेंगे. वनराज आधा पुरूस्कार इसे दे देंगे. जो करना है मुझे अकेले ही करना होगा. सारी प्रशंसा और सारा पुरूस्कार मुझे ही मिलना चाहिये.”

सोचते-सोचते उसके मन में आया कि शिकारियों के पास हथियार भी होंगे. जो कुछ करना होगा बहुत सावधानी के साथ करना होगा. तभी रिंकू की द्रष्टि एक पेड़ पर लगे मधुमक्खियों के छत्ते पर पड़ी.

वह झटपट उस पेड़ पर चढ़ गया और मधुमक्खियों से बोला, “अपनी रानी को बुलाओ, मुझे कुछ बात करनी है.”

एक मधुमक्खी ने पूछा, “क्या बात है? जो कहना है मुझ से कहो.”

“अरे समय नष्ट न करो, तुम सब पर बड़ी मुसीबत आने वाली है, जल्दी अपनी रानी को बुलाओ.’

मधुमक्खी घबरा गई और अपनी रानी को बुला लाई. रानी से रिंकू ने कहा, “मैंने अभी-अभी वन में तीन आदमियों को देखा है. वह लोग शहद चुराने आये हैं. मैंने छिप कर उनकी बात सुन ली थी.’

रानी भी घबरा गई, “अब हम अपनी रक्षा कैसे करें?”

“इससे पहले कि वह कुछ कर पायें तुम सब मिल कर उन तीनों पर हमला कर दो. वह भाग खड़े होंगे,” रिंकू ने कहा.

रानी ने कहा, “यही ठीक होगा, मैं सब मधुमक्खियों को बुलाती हूँ.” रिंकू की बात सुन सब मधुमक्खियाँ गुस्से से आग बबूला हो गयीं. 

"चलो उन लोगों को यहाँ से भगा दे." सब मधुमक्खियाँ एक साथ बोलीं.

रिंकू एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदता आगे चला. मधुमक्खियों का झुण्ड उसके पीछे-पीछे आता रहा. एक जगह पहुँच, रिंकू बन्दर ने अंगुली से इशारा कर मधुमक्खियों से कहा, “वह लोग तुम्हारा शहद चुराने आये हैं.”

मधुमक्खियों ने उन तीनों पर हमला कर दिया. तीनों घबरा कर यहाँ-वहां भागने लगे. इतने में शंकर हाथी उधर आया. उसने डपट कर मधुमक्खियों से पूछा, “यह क्या हो रहा है, तुम इन लोगों के पीछे क्यों पड़ी हो?”

सब शंकर हाथी से डरते थे. मधुमक्खियों भी डरती थीं. वह सब सहम गईं. पर उनके कुछ कहने से पहले ही रिंकू बंदर बोला, “दादा, यह तीनों शिकारी हमारे वनराज को मारने आये थे. मैंने अपनी सूझबूझ से वनराज को बचा लिया.”

मधुमक्खियों उसकी बात सुन हैरान हो गईं. रानी मधुमक्खी बोली, “नहीं-नहीं, यह तीनों तो हमारा शहद चुराने आये हैं. इस बन्दर ने ही हमें ऐसा बताया था.”

शंकर कुछ समझ न पाया. उसने उन तीनों आदमियों से ही पूछा, “आप लोग कौन हो और इस वन में क्या कर रहे हो?”

“हम महाराज विचित्र देव के अधिकारी हैं. महाराज को यह वन बहुत अच्छा लगता है. उन्होंने हमें इस वन में भेजा है, इस वन और यहाँ के सभी प्राणियों की देखभाल करने के लिए. पर इन मधुमक्खियों ने बिना कारण ही हम पर हमला कर दिया.”

उनकी बात सुन रिंकू बन्दर घबरा गया. वह समझ गया कि उस ने मूर्खतापूर्ण काम कर दिया है.

वो वहां से चुपचाप खिसकने लगा. शंकर हाथी ने उसे गर्दन से पकड कर वहीं रोक लिया.

“क्या हो रहा है? क्या गड़बड़ घोटाला किया है तुमने?”

“मुझे लगा यह तीनों वन में शेर का शिकार करने आये हैं. इसलिये मैंने मधुमक्खियों की सहायता से इन्हें मार भगाने की योजना बनाई थी.”

“तुम ने झूठ बोला था हमारे साथ?” सब मधुमक्खियाँ एक साथ गुस्से से बोलीं.

“वनराज को इन शिकारियों से बचाने के लिए मुझे झूठ बोलना पड़ा,” अब रिंकू के पसीने छूट रहे थे.

“मुर्ख, ऐसा कुछ करने से पहले तुमने किसी से बात भी न की? तुम ने सोचा होगा कि तुम अकेले ही शेर को इस मुसीबत से बचा कर हीरो बन जाओगे. सब तुम्हारी प्रशंसा करेंगे, तुम्हारा गुणगान करेंगे, वनराज तुम्हें पुरूस्कार देंगे.”

रिंकू बन्दर के चेहरे का रंग उड़ गया क्योंकि हाथी उसके मन की बात जान गया था. 
उसकी बोलती बंद हो गई.

“मैंने सच कहा न? अभी तो तुम मुझसे पुरूस्कार लो, बिना सोच-समझ के काम करने के लिए और मधुमक्खियों के साथ झूठ बोलने के लिए,” इतना कह हाथी ने उसे ज़ोर से एक थप्पड़ मारा और कहा, “आगे से बिना सोचे समझे कोई काम न करना, और पुरस्कार और प्रशंसा पाने के लिए तो कभी भी कुछ न करना.”

रिंकू बन्दर की सूरत देख कर वहां खड़े सब जने उस पर हंस दिए.

©आइ बी अरोड़ा 

Tuesday 23 June 2015

दो यार

इक बन्दर और इक भालू में
होने लगी इक दिन तकरार
वैसे थे वो दोनों ही
एक दूसरे के पक्के यार

बन्दर बोला “तुम जैसा आलसी
मैंने देखा नहीं आज तक”
भालू बोला “तुम ही करते हो
हरदम इतनी ज़्यादा झकझक”

“भालू, तन के तो हो तुम भूरे
पर मन है पूरा काला”
“बन्दर, तुम कपटी हो कितने
यह है सबने देखा भाला.”

बन्दर तब गुस्से से चिल्लाया
“आज बचोगे न तुम खाओगे मार”
भालू भी आँख दिखा कर बोला
“अरे, मैं तो हूँ कब से तैयार”

दोनों को लड़ता देख
सभी को आया खूब मज़ा
उनकी शैतानी की उनको
मिलने वाली थी आज सज़ा.

दोनों ही थे दुष्ट बहुत
और परले दर्जे के शैतान
उन बदमाशों के कारण
हर कोई था खूब परेशान

पर आज सभी ने
था वन में अवसर पाया
सब ने ही मिलकर उन
दोनों को खूब उकसाया

दोनों हो गये आग बबूला
आगा पीछा दोनों ने भूला
एक दूसरे पर टूट पड़े
और लातें घूसें खूब झड़े

भालू का टूट गया इक दाँत
 बहने लगा खून नाक से
बन्दर का टूट गया इक हाथ
 बहने लगे आंसू आँख से.

हाथी ने किया बीच-बचाव
और दोनों को इक डांट लगाई
“हुआ क्या है मुझे बताओ और
बंद करो यह हाथा-पाई”

बन्दर और भालू दोनों 
खड़े हो गये मुंह लटका कर
किस बात पर थे वह झगड़े
याद न था यह उनको पर

हाथी को आया गुस्सा
और दोनों पर वह चिल्लाया
“जब बात न थी कोई लड़ने की 
लड़ कर तुम ने क्या पाया”

सब को उन पर आई हँसी
सब ने ही था उनको उकसाया
“दादा,अपनी शैतानी का फल
आज है इन दोनों ने पाया”

बन्दर और भालू दोनों
समझ गये गलती अपनी
“अब न करेंगे तंग किसी को
मन में यह हमने ठानी”
© आइ बी अरोड़ा


Wednesday 10 June 2015

वाशिंग मशीन की छींक



मनु अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा था. पर पढ़ने में उसका मन न लग रहा था. आँखें पुस्तक पर थीं पर मन कहीं ओर था.

उसकी मां वाशिंग मशीन में कपड़े धो रही थी. अचानक वाशिंग मशीन ने ज़ोर से छींक मारी. मनु को गुस्सा आ गया. उसने माँ से कहा, “जब मैं पढ़ने बैठता हूँ यह मशीन छींकने लगती है. मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता.”

“जब तुम्हारी पुस्तकें मुझ पर हंसने लगती हैं तब क्या होता है? क्या वह तुम्हें अच्छा लगता है?” माँ ने कहा.

“मेरी पुस्तकों का क्या दोष है? मैंने कितनी बार कहा है कि मेरी पुस्तकों को नीला रंग अच्छा नहीं लगता, फिर भी आप नीले रंग के कपडे पहन कर मेरे कमरे आ जाती हैं, बस मेरी किताबें अपने को रोक नहीं पाती और हंसने लगती हैं.”

“अरे क्या बात है? अगर में हरे रंग के कपडे पहनूं तो तुम्हारे खिलौने नाराज़ हो जाते है......”

माँ की बात पूरी न हो पाई. दूसरे कमरे से मनु के पापा ने कहा, “तुम लोगों का झगड़ा कब तक चलेगा? यहाँ टीवी नाराज़ रहा है, तीन बार बिगड़ चुका है. मैं इसे क्या कहूँ?”

“उसे कहो थोड़ी देर पार्क में खेल आये.” माँ ने कहा.

“नहीं माँ, टीवी को पार्क में मत भेजो. पार्क में जाकर वह बहुत ऊधम मचाता है. पिछली बार उसने एक कार का शीशा तोड़ दिया था.” मनु बोला.

“अच्छा तो यही होगा कि तुम दोनों ही पार्क में जाकर अपना झगड़ा निपटा लो.” मनु के पापा ने थोड़ा गुस्से से कहा.

मनु ने झट से अपनी पुस्तकें उठाईं और जाने को तैयार हो गया. माँ ने एक थैले में कपडे और वाशिंग मशीन रख ली. दोनों पार्क में आ गये.

पार्क में मनु एक पेड़ के नीचे बैठ कर पढ़ने लगा. माँ ने पूछा, “मशीन कैसे चलेगी? बिजली का पॉइंट कहाँ है?”

“इस पेड़ पर एक कछुए का घर है. वहां बिजली का कोई पॉइंट होगा,” मनु ने कहा.

“तुम्हें कैसे पता कि इस पेड़ पर कछुए का घर है?”

“उसने मुझे बताया था, एक दिन, स्कूल में.”

“कछुआ तुम्हारे स्कूल में पढ़ता है?”

“वह तो रात में स्कूल जाता है, सोने के लिए. कह रहा था कि घर में उसे नींद नहीं आती. सारी रात उसके घर के ऊपर हवाई जहाज़ उड़ते रहते हैं. शोर के कारण वह घर में सो नहीं पाता. रात भर मज़े से किसी क्लास-रूम में बेंच पर लेट कर सो जाता है.”

“उससे पूछो कि क्या मैं उसके घर से बिजली ले सकती हूँ?”

“उसका घर तो बहुत ऊपर है, मैं ऊपर कैसे जाऊं?” मनु ने पेड़ की ओर देखते हुए कहा.

“अपनी साइकिल पर जाओ.”

मनु झटपट घर से अपनी साइकिल ले आया और पेड़ के ऊपर चढ़ गया. वह तुरंत लौट भी आया.

“कछुआ कह रहा है कि मुझ से क्यों पूछते हो, मैं यहाँ रहता हूँ पर यह घर मेरा नहीं है,” मनु ने कहा.

तभी कछुए ने ऊपर से ही चिल्ला कर कहा, “मैं तो मज़ाक कर रहा था. अपनी वाशिंग मशीन यहाँ लगा लो.”

मनु मशीन की तार लेकर पेड़ के ऊपर गया और कछुए के घर में एक बिजली के पॉइंट पर उसे लगा दिया. मशीन चलने लगी और मनु की माँ कपडे धोने लगी.

मनु कछुए से बातें करने लगा. तभी वाशिंग मशीन ने छींक मारी. कछुआ डर से उछल पड़ा और पेड़ से नीचे आ गिरा.

“यहाँ कुत्ता कौन ले कर आया है? इस पार्क में कुत्ते लाने की अनुमति नहीं है.” कछुए ने थोड़ा गुस्से से कहा.

“यहाँ तो कोई कुत्ता नहीं है,” मनु की माँ ने कहा.

“आपने कुत्ते को कहीं छिपा दिया है. मैंने अभी-अभी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ सुनी थी. अभी पिछले वर्ष ही ऐसा हुआ था. एक जोकर एक कुत्ता ले कर आ गया था. कुत्ता भौंकने लगा और ठीक मेरे घर के ऊपर एक वायुयान के सारे शीशे टूट गये थे,” कछुआ घबराहट में बहुत तेज़-तेज़ बोल रहा था.

“फिर क्या हुआ?” मनु ने पूछा. उसे कछुए की बातों में मज़ा आ रहा था.

“होना क्या था? दो दिन तक वह वायुयान मेरे घर के ऊपर ही खड़ा रहा और दो दिनों तक मुझे सभी यात्रियों की सेवा करनी पड़ी. इस महान कार्य के लिए मुझे सरकार की ओर से कोई मैडल या पुरूस्कार भी नहीं मिला. उसी दिन मैंने पार्क में कुत्तों को लाने पर रोक लगवा दी थी. जब तक सरकार मेरा सम्मान नहीं करती तब तक यह रोक लगी रहेगी.”

“अरे, यह तो मेरी वाशिंग मशीन है, यह कभी-कभी छींक मार देती है,” मनु की माँ ने कहा.

“क्या आप अपनी वाशिंग मशीन को सही समय पर चाय या कॉफ़ी नहीं पिलातीं?” कछुए ने पूछा.

क्या तुम मुझे बुद्धू समझते हो?” माँ ने कछुए से कहा.

“आप मेरी बात नहीं समझ रहीं, अगर आप मशीन को सही समय पर चाय, कॉफ़ी पिलाएँगी तो मशीन कभी भी छींक न मारेगी.”

मनु को उन दोनों की बातों में बिलकुल मज़ा न आ रहा था, वह सोच रहा था कि अगर कोई हवाई जहाज़ अभी इस पेड़ के ऊपर आकर रुक जाये तो कितना अच्छा होगा. अपनी साइकिल पर बैठ वह सीधा पेड़ पर चढ़  जायेगा और उस हवाई जहाज़ के अंदर चला जाएगा.

वह अपनी सोच में इतना मग्न हो गया था की उसे पता ही न चला की माँ उससे कुछ कह रहीं थीं.

“तुम पढ़ रहे हो या दिन में सपने देख रहे हो,” मां ने थोड़ा झकझोर कर कहा.

मनु नींद से जागा. वह अपने स्टडी टेबल पर ही बैठा था. माँ को देख वह मंद-मंद मुस्कुरा दिया.


© आइ बी अरोड़ा