Wednesday 29 April 2015

Rainbow
A little boy saw
a little star
he thinks ‘ It can’t be
quite that  far’,
he wished if  
he had a tall stair
he would love to
go up there,
‘Where can I get
a stair just one,’
he looked around
but found none, 
he began to cry
and loudly shout
but his mama was
nowhere about,
now it happened
that a tiny fairy
was caught in spider net
and that was scary,
she was small
smaller than a fly
she loved to ride
a little butterfly,
she looked around
for help she cried 
little boy saw her
and his tears dried,
"Hurry and help me
before I get killed
your one wish
I will have fulfilled”
at the trapped fairy
did little boy look
spider’s net then
he wildly shook, 
the nasty spider
could do no harm
what little boy did
had worked like charm,
little fairy got free
from the trap
in sheer joy
did little boy clap,
“Well, well you are
a nice little boy
but were you crying
to get some toy?”
“Little fairy, toys are
of course real fun
but I wish I could go
to a star anyone”
fairy looked at stars
in the evening light
while she pondered
the boy stood quiet
“What you need is a bridge
from earth to sky
let me do something”
and she said goodbye,
one day little boy was
teasing his mother
when little fairy came
along with another.
“You will have to rush
if you want to go to a star
we have built a bridge
and it’s a bit far”,
the boy rushed out
and looked around
there was a  bridge
and it was round,
colours were streaming
across the sky
like a shining arch  
and it was really high,
but he could not
see any star
what fun it would be
to go that far,
he felt he would wait
till stars come
but when stars came
he was glum,
bridge had vanished
and Sun had set
stars were shining
and the boy could only fret.

© i b arora

Tuesday 7 April 2015

भद्दा मज़ाक
(अंतिम भाग) 
(कहानी का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं)

"पीपल वाले बाबा कहीं चले तो नहीं गये?” खरगोश निराशा से बोला.

“उस बन्दर ने मूर्ख बनाया हैं हमें.” भालू ने गुस्से से कहा.

“वह ऐसा क्यों करेगा?” खरगोश ने कहा.

“दूसरों को सताना उसे अच्छा जो लगता है. पर हमारे साथ ऐसा भद्दा मज़ाक करके उसने अच्छा नहीं किया. मैं अभी उसके घर जाकर उसकी ऐसी धुनाई करूंगा कि  आज के बाद वह किसी के साथ भी मज़ाक न करेगा.” भालू बुरी तरह भड़क चुका था.

“अभी उसके घर जाकर हंगामा करना ठीक न होगा. सब जान जायेंगे कि उसकी बातों में आकर हम दोनों बुद्धू बन गये. सब हम पर हसेंगे,” खरगोश ने समझाते हुए कहा.

“वह तो सब हंसेगे ही; वो बन्दर स्वयं ही सबको यह बात बड़ा-चढ़ा कर बतायेगा,” भालू ने कहा और दनदनाता हुआ बन्दर के घर की ओर चल दिया. खरगोश भी भागा-भागा उसके पीछे आया.

चीपू बन्दर के घर के निकट पहुँच कर दोनों ठिठक कर खड़े हो गये. दोनों ने देखा कि दो जने बन्दर के घर में घुसने की कोशिश कर रहे थे.

“चोर हैं,” खरगोश ने फुसफुसा कर कहा.

“चीपू के घर में चोरी करने जा रहे हैं,” भालू ने भी फुसफुसा कर कहा.

“हमें कुछ करना होगा,” खरगोश बोला.

“हम कुछ न करेंगे. बस तमाशा देखेंगे,”भालू ने कहा.

“यह क्या कह रहे हो? आज इन चोरों ने अगर चीपू के घर चोरी की तो कल हमारे, तुम्हारे घर में भी चोरी कर सकते हैं. चीपू से हम अलग से निपट लेंगे, पर इन चोरों को हम नहीं छोड़ सकते,” खरगोश ने समझाया.

“तुम ठीक कह रहे हो,” भालू ने कहा.

“पुलिस बुलायें?”

“इतना समय नहीं है, हमें ही साहस से कुछ करना होगा.”

दोनों सावधानी के साथ आगे आये, और अचानक चोरों पर झपट पड़े. चोर हक्के-बक्के रह गये. एक चोर के पास एक चाकू भी था. पर, इससे पहले कि वह कुछ कर पाता, भालू ने दोनों चोरों को धर-दबौचा.

दोनों चोरों को पकड़ कर, भालू और खरगोश पुलिस स्टेशन ले आये. चोरों के देखते ही इंस्पेक्टर खुशी से उछल पड़ा, “अरे, आप लोगों ने तो कमाल कर दिया.”

उसने भालू और खरगोश की पीठ थपथपाई और कहा, “आप दोनों को सरकार की ओर से पचास हज़ार रूपए का पुरस्कार मिलेगा. और यह पुरस्कार वनराज स्वयं अपने हाथों से देंगे”

“क्यों-क्यों?” भालू और खरगोश एक साथ बोले.

“इन बदमाशों को पकड़ने के लिए, चार महीने पहले यह दोनों, एक सिपाही को घायल कर, जेल से भाग गये थे. तभी वनराज ने कहा था कि जो कोई भी इन बदमाशों को पकड़वायेगा उसे वह पुरस्कार देंगे.”

भालू और खरगोश प्रसन्नता से खिल उठे. भालू भी अपना गुस्सा भूल गया. तब खरगोश ने कहा, “मित्र, सुबह चीपू जी से भी मिलना है.”

सुबह होते ही दोनों चीपू के घर पहुँच गये. दोनों ने मुंह लटका रखे थे. उनको देख बन्दर मन ही मन बहुत खुश हुआ. उसने बड़े भोलेपन से कहा, “क्या बात है? इतनी सुबह कैसे आना हुआ?”

“एक बात बतानी थी, वनराज हमें पचास हज़ार का पुरस्कार देंगे,” खरगोश ने धीमे से कहा.

बन्दर कुछ समझ न पाया, पूछा, “क्यों?”

“सुबह तुम्हारे पीपल वाले बाबा ने हम दोनों के सिरों पर हाथ रखा और बस पुरस्कार की घोषणा हो गई,” भालू ने कहा.

“क्या मज़ाक कर रहे हो? कोई पीपल वाला बाबा नहीं है, वह तो मैंने बस तुम्हें बुद्धू बनाया था.” बन्दर ने कहा.

“हम भी तो तुम्हें बुद्धू ही बना रहे हैं,” इतना कह खरगोश खिलखिला कर हंस दिया.
फिर उसने सारी बात बताई. अब चीपू बन्दर पानी-पानी हो गया.

“मैंने तुम लोगों के साथ भद्दा मज़ाक किया पर तुम दोनों ने मुझे चोरों से बचाया.”

“अब ऐसा मज़ाक किसी के साथ न करना. अगर रात में चोर तुम्हारे घर चोरी करने की कोशिश न कर रहे होते तो तुम्हारी धुनाई हो जाती. अपने मित्र को मैंने कभी इतने गुस्से में न देखा था जितना गुस्सा उसे रात में आया था. तुम तो बाल-बाल बच गये.” खरगोश ने कहा.

“कभी दुबारा ऐसा मज़ाक तुम ने किया तो पिटने से न बच पाओगे,” इतना कह भालू खिलखिला कर हंस दिया.


© आई बी अरोड़ा

Monday 6 April 2015

भद्दा मज़ाक
(भाग 1)
चीपू बन्दर को एक दिन एक शरारत सूझी. वह भालू के घर आया. खरगोश भी वहीं था. दोनों को एक साथ देख बन्दर मन ही मन मुस्कुराया और बोला, “अगले सोमवार वनराज का जन्मदिन है. उस दिन वनराज वन के दस बुद्धिमान पशूओं का सम्मान करेंगे और उन्हें पुरस्कार देंगें.”

“क्या पुरस्कार मिलेगा?” भालू ने पूछा.

“किन पशूओं को पुरस्कार मिलेगा?” खरगोश ने पूछा.

“यह मैं नहीं बता सकता, पर मैं इतना बता सकता हूँ कि सम्मान और पुरस्कार पाने वालों में मेरा नाम भी होगा.”

“हम तुम्हारे मित्र हैं. हमें तो बता सकते हो,” खरगोश ने कहा. वनराज से सम्मान और पुरस्कार पाने की इच्छा उसके मन में जाग उठी थी.

“यह सारी जानकारी अभी पूरी तरह गुप्त है. परन्तु पीपल वाले बाबा ने मुझे सब बता दिया है,” बन्दर ने ऐंठते हुए कहा.

“पीपल वाला बाबा? वह कौन है?” भालू ने नाक चढ़ा कर पूछा.

“पीली नदी के पास जो पुराना पीपल है वहां एक बाबा आजकल आये हुए हैं. सब उन्हें पीपल वाला बाबा कह कर बुलाते हैं. मैं कल उनके दर्शन करने गया था. उन्होंने मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा कि  शीघ्र ही वनराज मुझे सम्मान और पुरस्कार देंगे,” बन्दर गर्व के साथ बोला.

“अरे, यह बाबा लोग सब ढोंगी होते हैं. तुम तो इतने चालाक हो, तुम उनके चक्कर में कैसे पड़ गये?” भालू ने बन्दर का मज़ाक उड़ाते हुए कहा.

“पीपल वाले बाबा ऐसे-वैसे बाबा नहीं हैं, जिसके भी सिर पर हाथ रख देते हैं उसका भाग्य पलट जाता है.” बन्दर ने अकड़ते हुए कहा.

“अगर बाबा मेरे सिर पर हाथ रखेंगे तो क्या मेरा भाग्य भी पलट जायेगा?” खरगोश ने उत्सुकता से पूछा.

“हां, अवश्य पलट जायेगा.” बन्दर ने पूरे विश्वास से कहा.

“मित्र, हम भी बाबा के दर्शन करने चलें?” खरगोश ने भालू से पूछा.

“मैं इन बातों में विश्वास नहीं करता,” भालू ने कहा.

“एक बात जान लो, बाबा सुबह तीन और चार के बीच ही दर्शन देतें हैं. देर से जाओगे तो खाली हाथ लौटना पड़ेगा. और एक-दो दिनों में वह यहां से जा भी रहे हैं,” इतना कह चीपू बन्दर वहां से चल दिया.

उसके जाते ही खरगोश ने भालू से कहा, “ मुझे पीपल वाले बाबा के दर्शन करने ही हैं और वह भी कल सुबह. तुम मेरे सबसे अच्छे मित्र हो तुम्हें मेरे साथ चलना होगा. मैं कल सुबह तीन बजे तुम्हारे घर पहुंच जाऊंगा. तुम मेरे साथ चलना.”  
भालू मना न कर पाया और खरगोश की बात मान गया.

खरगोश तो रात भर सो भी न पाया. तीन बजते ही उसने भालू के घर का दरवाज़ा खटखटा दिया. भालू तो गहरी नींद सो रहा था. आवाज़ सुन कर वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. दरवाज़े के बाहर खरगोश के देख कर वह गुस्से से चिल्लाया, “इस समय दरवाज़ा क्यों पीट रहे हो? क्या हुआ है?”

“अरे, भूल गये? हमें पीपल वाले बाबा के दर्शन करने जाना है,” खरगोश ने धीमे से कहा.

“लगता है उस पाजी बन्दर ने तुम्हारा दिमाग़ ख़राब कर दिया है.”भालू ने कहा.

भालू को गुस्सा तो बहुत आ रहा था परन्तु खरगोश के साथ चलने के लिए वह तैयार हो गया. दोनों नदी की ओर चल दिये. चारों ओर घुप अँधेरा था. खरगोश को डर लग रहा था. भालू निडर था. उसे खरगोश पर तरस आया और उसने कहा, “ डरो मत, मैं साथ हूँ.”

नदी किनारे पीपल का एक पेड़ तो था, परन्तु वहां न तो कोई बाबा था और न ही बाबा के दर्शन करने आये लोग.
© आई बी अरोड़ा


Wednesday 1 April 2015


अप्रैल फूल
(अंतिम भाग)
(कहानी का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं)


बैंक के निकट उसने एक गाड़ी खड़ी थी. बैंक का दरवाज़ा खुला था. उसका माथा ठनका. वह सावधानी के साथ आगे आया. बैंक का चोकीदार दरवाज़े के पास लेटा था. वह बेहोश था. बैंक के अंदर एक चोर था. उसने अपने चेहरे को एक नकाब से छिपा रखा था. बैंक की तिजोरी खुली थी. चोर एक बैग में रुपये रख रहा था.

हिरण ने सोचा कि उसे पुलिस को सूचना देनी चाहिये. परन्तु जल्दबाज़ी में वह अपना सेल फोन घर ही छोड़ आया था. पुलिस स्टेशन अधिक दूर न था. वह पुलिस स्टेशन की और भागा.

तभी उसने देखा कि जहां पर चोर ने अपनी गाड़ी खड़ी कर रखी थी वहीं सड़क में एक मैनहोल था. कुछ सोच कर उसने मैनहोल का ढक्कन उठा कर एक ओर रख दिया और अँधेरे में छिप कर चोर की प्रतीक्षा करने लगा.

उसे ज़्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. थोड़े समय बाद ही चोर रुपयों से भरा बैग लेकर बैंक से बाहर आया. उसने चारों ओर देखा. उसे कोई दिखाई न दिया. वह बड़ी होशियारी के साथ अपनी गाड़ी की ओर चल दिया.

तभी हिरण ज़ोर से चिल्लाया, “चोर-चोर, पकड़ो-पकड़ो”

हिरण की चीख पुकार सुन, चोर घबरा गया और अपनी गाड़ी की ओर भागा. परन्तु हड़बड़ाहट में उसने देखा ही नहीं की रास्ते में एक बिना ढक्कन का मैनहोल. चोर सीधा मैनहोल में जा गिरा. रुपयों से भरा बैग उसके हाथ से छूट कर सड़क के एक ओर जा गिरा.

हिरण ने तुरंत बैग उठाया और पुलिस स्टेशन की ओर भागा. वहां उसने पुलिस इंस्पेक्टर को सारी बात बताई. वहीं से उसने अपने मैनेजर  को भी फोन किया और घटना की जानकारी दे दी.

दो सिपाहियों के साथ इंस्पेक्टर बैंक की ओर चल दिया. चोर अभी भी मैनहोल के अंदर था. गिरते समय उसके पैर में चोट लग गई थी और वह करहा रहा था. सिपाहियों ने उसे बाहर निकाला. उसके चेहरे से नकाब हटाई. वह तो लोमड़ था.

“अरे, इस बदमाश को तो हम एक साल से ढूंढ रहे हैं, इस पर तो दस हज़ार का इनाम भी है. हिरण भाई, आज तो आपने कमाल कर दिया. जिसे अपराधी को हम इतने दिनों तक नहीं पकड़ पाये उसे आपने अपनी सूझबूझ से पकड़वा दिया. आपको तो पुरस्कार मिलेगा,” इंस्पेक्टर ने कहा. 

इस बीच बैंक मैनेजर भी आ पहुंचा था. उसने भी हिरण की प्रशंसा की और कहा, “बैंक की ओर से भी आपको पुरस्कार दिया जाएगा.”

हिरण घर लौटा. सियार और भेड़िया खिड़की के निकट बैठे उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे. उसे आता देख सियार ने कहा, “क्या आज कल रात में भी बैंक में काम होता है?”

“अरे, आज तो मैंने अकेले ही बैंक को लुटने से बचा लिया. लोमड़ बैंक में चोरी करने आया था. वह पकड़ा गया. सरकार से मुझे दस हज़ार का पुरस्कार मिलेगा. बैंक से भी पुरस्कार मिलेगा.” हिरण एक हीरो की तरह मुस्कुरा रहा था.

सियार और भेड़िये की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी. वह तो उसे मूर्ख बन रहे थे, और वह हीरो बन गया था.

“ भाई, यह तो हम ही अप्रैल फूल बन गये,” सियार ने कहा.

भेड़िया क्या कहता, वह तो खुद ही दुःखी था.
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© आई बी अरोड़ा