Sunday 31 August 2014

अंगूठी
लटू सियार एक पेड़ के पीछे छिप कर खड़ा था. सुंदर हिरणी अपने घर से बाहर आई. उसने मोतियों की एक सुंदर माला पहन रखी थी. अचानक लटू ने उसके गले पर झपट्टा मारा और माला खींच ली. हिरणी को समझ ही न आया कि क्या हुआ है. माला छीन कर लटू सरपट भागा. तभी चतुरलाल बन्दर अपने घर से बाहर आया. हिरणी ने चिल्ला कर कहा, “वह सियार मेरी माला लेकर भाग रहा है.”
चतुरलाल ने लटू का पीछा किया और उसे धर दबोचा. उसे पकड़ कर वह पुलिस स्टेशन ले आया. सियार की तीन माह की कैद हुई. लटू ने मन ही मन निश्चय किया कि जेल से छूट कर वह बन्दर से बदला लेगा.
जेल से छूट कर वह अपने मित्र नटू भेड़िये के पास आया. मित्र को देखते ही उसने गुस्से से कहा, “मैं उस बन्दर को मार डालूँगा”
“उसे मार कर फिर जेल में ही जाओगे. मैं भी उससे बदला लेना चाहता हूँ. हम मिल कर कोई ऎसी चाल चलेंगे कि उस बदमाश बन्दर को नानी याद आ जायेगी,” नटू ने उसे समझाया.
तभी फोन की घंटी बजी. नटू ने फोन उठाया और झिड़क कर कहा, “मैं कब से तुम्हारे फोन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ.”
फोन पर बात कर उसने लटू सियार से कहा, “कल भीमा भालू बैंक से पाँच लाख रूपए निकालेगा. उसे अपने लिए घर लेना है. पर वह ले न पायेगा क्योंकि जैसे वह बैंक से रूपए ले कर बाहर आयेगा हम उसे लूट लेंगे.”
कुछ सोच कर लटू सियार ने कहा, “यही अवसर है जब हम उस चतुरलाल बन्दर की चतुराई निकाल सकते हैं. भालू को लूटेंगे हम और पकड़ा जायेगा बन्दर.”
“वह कैसे?” भेड़िये ने पूछा.
“ऐसी चाल सोची है की वह अब बच नहीं सकता,” सियार ने अकड़ कर कहा.
“क्या चाल सोची है तुमने?” भेड़िये ने पूछा.
“भालू को लूटने मैं जाऊंगा. चेहरे पर नक़ाब और हाथों पर सफ़ेद दस्ताने पहन लूंगा. भीमा को लूटने के बाद नक़ाब और दस्ताने बन्दर के घर में छिपा दूंगा. कुछ रूपए भी वहां छोड़ आऊंगा.”
“लेकिन तुम उसके घर के अंदर कैसे जाओगे?”
“जैसे ही भालू बैंक के भीतर जायेगा मैं तुम्हें फ़ोन पर बता दूँगा. तुम्हें  बन्दर के घर जाकर किसी तरह उसे घर से बाहर निकालना होगा.”
“मैं समझ गया. मैं ऐसा नाटक करूंगा कि उसे घर से बाहर आना ही होगा,”
भेड़िये ने इतराते हुए कहा.
अगले दिन लटू सियार बैंक के निकट भीमा भालू की प्रतीक्षा करने लगा. उसने हाथों पर सफ़ेद दस्ताने पहन रखे थे. चेहरे पर एक नक़ाब पहन रखा था. जैसे ही भीमा बैंक की अंदर गया उसने नटू को फोन कर कहा, “भीमा बैंक पहुँच गया है. जैसे वह रूपए लेकर बाहर आयेगा मैं उसे लूट लूंगा. तुम अपने मिशन पर निकल पड़ो.”
कुछ देर बाद एक बैग में रूपए लिए भीमा बैंक से बाहर आया. वह अपनी कार की और चल दिया. तभी सियार उस पर झपट्टा. भीमा भालू था तो लम्बा तगड़ा पर था वह डरपोक. नक़ाबपोश को अपने सामने देख कर वह डर गया. सियार ने उसका बैग छीन लिया. भीमा कुछ कर न सका. जब सियार कुछ दूर निकल गया तब भीमा ने अपने आप को सँभाला. उसे अपने आप पर गुस्सा भी आया. वह चोर के पीछे भागा.
उधर एक स्कूटर पर बैठ नटू भेड़िया चतुरलाल बन्दर के घर की ओर आया. चतुरलाल के घर के निकट उसने जानबूझ कर एक कार को टक्कर मार दी और चिल्लाया, “देख कर कार नहीं चलाते. अंधे हो क्या?”
कार एक चीता चला रहा था. गुस्से से भरा वह कार से बाहर आया और बोला, “टक्कर तुमने मारी और क्षमा मांगने के बजाय मुझ पर ही बिगड़ रहे हो.”
कई पशु इकट्ठे हो गये. शोर सुन कर चतुरलाल बन्दर भी घर से बाहर आ गया. पर वह एक भूल कर बैठा. घर का दरवाज़ा उसने बंद न किया. यह  देख कर नटू मन ही मन प्रसन्न हुआ. सबका ध्यान बांटने के लिए वह झगड़े पर उतर आया.
तभी सियार भागता हुआ उधर आया. वह चतुरलाल बन्दर के घर में चला गया. भीतर जाकर उसने नक़ाब और सफ़ेद दस्ताने अलमारी में छिपा दिए. रुपयों का एक बंडल भी वहां रख दिया.
भेड़िये और चीते का झगड़ा देखने में सब इतने मग्न थी कि किसी ने भी सियार को न आते देखा, न जाते देखा.  भीमा भालू हाँफते हुए उधर आ पहुंचा. उसे देख भेड़िये ने चीते से कहा, “क्षमा कर दो, गलती मेरी ही थी. यह लो हज़ार रूपए, अपनी कार ठीक करा लेना.” चीते को रूपए थमा वह अपने स्कूटर पर चल दिया.
चतुरलाल बन्दर ने भालू को देखा तो समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. पास आकर उसने पूछा, “क्या बात है? इतने घबराये हुए क्यों हो?”
“मैं लुट गया. किसी ने मेरा बैग छीन लिया. बैग में पाँच लाख रूपए थे.
तुम ने पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट लिखाई या नहीं?”
“मैं तो लुटेरे का पीछा कर रहा था. वह इधर ही आया है. पर अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा.”
भीमा भालू को साथ लेकर चतुरलाल पुलिस स्टेशन आया. इंस्पेक्टर होशियार सिंह ड्यूटी पर था. वह रिपोर्ट लिख ही रहा था कि फोन की घंटी बजी. इंस्पेक्टर ने फोन उठा कर पूछा “कौन बोल रहा?”
“मैं अपना नाम नहीं बता सकता. पर मुझे आपको एक सूचना देनी है. चतुरलाल बन्दर ने ही भीमा भालू को लूटा है. उसके घर की तलाशी लें. सारे सबूत मिल जायंगे.”
फोन लटू सियार ने ही किया था. पर इंस्पेक्टर यह बात जान न पाया. पर उसे कुछ संदेह हुआ. उसने भालू से पूछा, “ इस लूट के बारे कौन-कौन जानता है?”
“कोई भी नहीं. मैंने तो अभी तक किसी से बात नहीं की.”
इंस्पेक्टर ने चतुरलाल से कहा, “ आपके घर की तलाशी लेनी है. चलिये मेरे साथ.”
“मेरे घर की तलाशी क्यों लेनी है? यह क्या चक्कर है.” चुतरलाल ने आश्चर्य से पूछा.
“वह सब बाद में बताऊंगा.” इंस्पेक्टर ने कहा.
तीनों बन्दर के घर आये. तलाशी लेने पर इंस्पेक्टर को नक़ाब, दस्ताने और दस हज़ार रूपए मिले.
“इंस्पेक्टर, लुटेरे ने यही नक़ाब और ऐसे ही सफ़ेद दस्ताने पहन रखे थे,” भीमा चिल्लाया.
बन्दर हक्का बक्का रह गया था. वह कुछ कह ही न पाया.
“इंस्पेक्टर, इस बंदर को अभी गिरफ्तार कर लो.” भालू का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था.
“चुप हो जाओ और मुझे जांच करने दो,” इंस्पेक्टर ने डपट कर कहा.
इंस्पेक्टर ने नक़ाब और दस्तानों की जांच की. एक दस्ताने में उसे एक अंगूठी मिली.
“क्या यह तुम्हारी अंगूठी है?” उसने चतुरलाल से पूछा.
“नहीं.”
“मेरा भी ऐसा ही विचार था. लगता है हड़बड़ाहट में दस्ताने उतारते समय लुटेरे की अंगूठी भी उतर गई और इस दस्ताने में रह गई. उसी ने मुझे फोन किया और कहा कि चोरी के सबूत तुम्हारे घर में मिलेंगे.”
“यह अंगूठी मैंने कहीं देख रखी है. पर याद नहीं आ रहा कि कहाँ देखी थी.” चतुरलाल ने अंगूठी हाथ में लेकर ध्यान से देखी.
“ज़रा सोचो, किसी के हाथ में देखी थी या किसी के घर पर या किसी दुकान में?” इन्स्पेक्टर ने पूछा.
“यह तो लटू सियार की है. हां, यह उसी की है. तीन-चार माह पहले उसने सुंदर हिरणी की माला खींच ली थी. तब मैंने ही उसे पकड़ा था. उस समय यह अंगूठी उसने पहन रखी थी.”
“इंस्पेक्टर, यह हमें मूर्ख बना रहा है. इसकी बातों  में मत आइये और इसे गिरफ्तार करिये,” भीमा बीच में बोला.
“अभी पता चल जायेगा कि सच क्या है,” इंस्पेक्टर ने कहा और और दोनों को साथ लेकर नटू के अड्डे पर आ गया. उसे पता था कि लटू नटू के अड्डे पर ही समय बिताता है.
उन्हें देख कर नटू और लटू की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई. 
“हमें यह अंगूठी मिली है. क्या तुम जानते हो यह किस की है?” इंस्पेक्टर ने बड़े विनम्रता से पूछा.
लटू ने तुरंत अपने बायें हाथ की और देखा और बोला, “अरे, यह तो मेरी है, आपको कहाँ से मिली?”
इतना कहते ही उसके चेहरे का रंग उड़ गया. उसने मन ही मन कहा, “यह मैं क्या बोल बैठा? मुझे तो कहना चाहिये था कि यह मेरी अंगूठी नहीं है. अब फंस गया.”
“उसी दस्ताने में जिसे पहन कर तुमने भीमा को लूटा था.” इंस्पेक्टर ने कहा.
लटू और नटू के होश उड़ गये. इंस्पेक्टर ने कड़क आवाज़ में कहा, “ रूपए कहाँ हैं?”
लटू डर गया और भीमा का बैग ले आया.
“ लटू भाई, मुझे फंसाने की चाल तो तुमने खूब चली थी. पर तुम भूल गये की हर अपराधी कोई न कोई गलती कर बैठता है. तुम भी गलती कर बैठे और पकड़े गये,” चतुरलाल ने कहा.
“ भई, अब गलती का परिणाम भी तो भुगतना पड़ेगा.” इतना कह इंस्पेक्टर ने लटू और नटू को हथकड़ी लगा दी.
© आई बी अरोड़ा 

Friday 29 August 2014

Hungry Dog
A hungry dog found
a meaty bone,
and he wanted to enjoy
it all alone.

But his friends
were already there,
and they gave him
a dirty stare.

They were angry
and for a reason,
they had shared meals
all through season.

They glared and
bared their fangs,
and they were really
a nasty gang.

 Hungry dog tried
to sneak away,
but, alas, that day
was not his day.

 He chose to beat
a hasty retreat,
and with friends
he shared his treat.
© i b arora

Wednesday 27 August 2014

A Blue Star
A star looked at me with a twinkle in his eye
Blue star it surely was and I know why
Cheeky are blue stars and they are real hot
During the day they like to sleep a lot
Evening comes and they are unwilling to get up
For all through night they have to shine and stand up
Gathered in groups and scattered in sky
Heavens glitter and we all know why
It is an endless fire that always keeps burning
Jewels shoot out that stars keep churning
Knights of the night with armour shinning
Look like specks but a what pageant gleaming
Millions of them are out there in sky
No, we can’t see them all with a naked eye
Oh! How beautiful are stars on a moonless night
Pure joy it is to watch them night after night
Quaint they are like some magical lights
Rarely are they sad even on a cloudy night
Shinning like diamonds on a clear sky
They love to twinkle in the twinkling of an eye
Umpteen times I have dreamed of reaching the stars
Vainly I have tried to catch a shooting star
What charm they behold even if it just be the
Xmas blue star
Yes, I love the blue stars shinning in the sky
Zany you may think I am and I know why.
©i b arora

Monday 25 August 2014

हठ का परिणाम



एक वन में एक पेड़ था. वह पेड़ वन के अन्य पेड़ों से बहुत छोटा था. यह बात उस पेड़ को बहुत खटकती थी. हर समय वह मन ही मन सोचा करता था, “कितना अच्छा होता अगर मैं वन का सबसे ऊँचा पेड़ होता. वन के सब पेड़ मुझ से ईर्षा करते.”
उस पेड़ की एक पक्षी से गहरी मित्रता थी. पेड़ को लगता था कि उसका मित्र संसार का सबसे सुंदर पक्षी है. उसने एक दिन अपने मित्र से कहा, “मित्र, तुम संसार के सबसे सुंदर पक्षी हो. क्या सब तुम से ईर्षा करते हैं?”
“मैं नहीं जानता कि मैं सबसे सुंदर पक्षी हूँ और सब मुझ से ईर्षा करते हैं,” पक्षी ने भोलेपन से कहा.
“मेरा मन चाहता है कि मैं संसार का सबसे ऊँचा वृक्ष बन जाऊं. सब मुझ से ईर्षा करें. इस वन में सभी वृक्ष कितने ऊंचें हैं. क्या तुम जानते हो कि यह सभी वृक्ष इतने ऊंचे कैसे हो गये?” पेड़ ने पूछा.
“नहीं, मुझे तो ऐसी कोई जानकारी नहीं है.”
“अरे, कोई तो जानता होगा?”
“एक साधु बाबा कभी-कभी इस वन में आते हैं. वह जानते होंगे. इक दिन हाथी कह रहा था कि साधु बाबा को हर बात की समझ है,” पक्षी ने कहा.
“वह जब भी इस वन में आयें तो मुझे बताना. मैं स्वयं उनसे बात करूंगा,” पेड़ ने कहा.
अब पेड़ उत्सुकता से साधु की प्रतीक्षा करने लगा. एक दिन पक्षी ने आकर उस पेड़ से कहा,  “साधु बाबा इधर आ रहे हैं.”
पेड़ ने देखा कि एक बहुत ही बूढ़ा व्यक्ति उस ओर आ रहा था. उसकी सफ़ेद दाड़ी उसके घुटनों को छू रही थी. उसके पास आते ही पेड़ ने कहा, “बाबा, प्रणाम. बाबा, आपको मेरी सहायता करनी ही होगी.”
“कहो, मैं क्या कर सकता हूँ तुम्हारे लिए?” साधु ने पूछा.
“बाबा, मैं चाहता हूँ कि मैं वन का सबसे ऊँचा पेड़ बन जाऊं. आप मुझे बतायें कि मैं ऊँचा कैसे हो सकता हूँ.”
“अरे, ऊँचा होकर क्या होगा?” साधु बाबा ने कहा.
“वन के सब वृक्ष ऊंचे हैं. कुछ वृक्ष तो आकाश को छू रहे हैं. सिर्फ मैं ही छोटा हूँ. मुझे अच्छा नहीं लगता. आप मुझ पर कृपा करें. मुझे ऐसा उपाये बतायें जिससे मैं भी खूब ऊँचा हो जाऊं,” पेड़ ने कहा.
“मुझे तो लगता है कि दूसरों की नकल करने से कभी किसी का हित नहीं होता,” साधु ने समझाया.
“नहीं बाबा, मुझे भी औरों की भांति ऊँचा होना है.” पेड़ मिन्नत करने लगा.
“ठीक है, मेरी बात ध्यान से सुनो. तुम अपनी जड़ों को धरती में जितना गहरा फैला दोगे उतने ही तुम आकाश में ऊंचे होते जाओगे.”
“बस इतनी से बात है,” पेड़ ने कहा.
“हां, पर एक बात का ध्यान रखना. इतना भी ऊँचा मत हो जाना कि बादलों को आने-जाने में रुकावट हो.” इतना कह साधु बाबा चल दिये.
पेड़ प्रसन्नता से झूमने, गाने लगा. उसने अपने मित्र से कहा, “देखना अब मैं सब पेड़ों से ऊँचा हो जाऊँगा. आकाश को छू लूंगा.”
“तुमने सुना नहीं बाबा ने क्या चेतावनी दी थी?” मित्र ने कहा.
“अरे छोड़ो, अब तो मेरे मन में जो आयेगा मैं वही करूंगा.”
पेड़ अपनी जड़ों को धरती में दूर तक फैलाने लगा. जैसे-जैसे उसकी जड़ें धरती में फैलती गईं वैसे-वैसे वह ऊपर उठता रहा. हर दिन वह थोड़ा और ऊंचा हो जाता. एक सुबह जब वह नींद से जागा तो उसने देखा कि वह वन का सबसे ऊँचा पेड़ बन गया था. पल भर को उसे विश्वास न हुआ. वह ज़ोर से हंसा और उसने चिल्ला कर कहा, “अरे, सब इधर देखो. अब इस वन में मैं ही सबसे ऊँचा पेड़ हूँ. तुम सब पेड़ मुझ से छोटे हो. हा हा हा.”
उसका मित्र आया तो पेड़ को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ.
“मित्र, अब तो तुम सबसे ऊंचे पेड़ हो. तुम्हारे मन की इच्छा पूरी हो गई.”
“अभी तुम ने देखा ही क्या है? कुछ दिनों के बाद देखना वन के यह सारे पेड़ ऐसे लगेंगे जैसे कि छोटी-मोटी झाड़ियाँ हों,” पेड़ ने अकड़ कर कहा.
“लगता है कि तुम साधु बाबा की चेतावनी भूल गये हो?” पक्षी ने कहा.
“अरे, मेरे ऊंचे होने से बादलों को क्या दिक्कत हो सकती है?” पेड़ ने थोड़ा झुंझला कर कहा.
“तुम्हें बाबा की बात मान लेनी चाहिये. इसलिये अपना हठ छोड़ दो,” पक्षी ने समझाया.
पेड़ तो जैसे गर्व से फूला न समा रहा था. उसने अपने मित्र की एक न सुनी. वह ऊँचा होता गया. धरती के भीतर अपनी जड़ों को उसने बहुत दूर तक फैला दिया. उसे देख कर वन के सभी पशु, पक्षी, पेड़, पौधे आश्चर्यचकित हो गए. पेड़ बहुत ही ऊंचा हो गया था. ऐसा लग रहा था कि वह आकाश को छू रहा था. 

पर वह पेड़ अभी भी संतुष्ट न था. एक दिन उसके मन में आया कि अगर वह थोड़ा और ऊँचा हो जाये तो चाँद को भी छू लेगा.
तभी आकाश में घने बादल घिर आये. सब बादल दक्षिण से उत्तर की ओर जा रहे थे. अचानक सब बादल रुक गये. अपने रास्ते में एक विशाल पेड़ को देख कर सारे बादल भौंच्चके रह गये. ऐसा तो आज तक न हुआ था. किसी पेड़ ने उनका रास्ता रोकने का साहस न किया था. सब बादल गुस्से से गरजने लगे.
“ओ मूर्ख पेड़, हमारा रास्ता रोक कर क्यों खड़े हो?” एक बादल ने कहा. वह विशाल हाथी जैसा दिख रहा था.
“गलती तुम्हारी है जो इतना नीचे उड़ रहे हो. तम्हें तो बहुत ऊपर उड़ना चाहिये,” पेड़ ने अकड़ कर कहा.
“हमारे रास्ते से हटो और हमें आगे जाने दो,” बादल  ने गरज कर कहा.
“मैं संसार का सबसे ऊँचा पेड़ हूँ. मैं नहीं हट सकता. तुम सब थोड़ा ऊपर हो कर निकल जाओ,” पेड़ ने इतराते हुए कहा.
“हम सब बहुत भारी हैं. अभी हमें कई जगह वर्षा करनी है. हम ऊपर नहीं जा सकते,” कई बादल एक साथ बोले.
पेड़ ने उनकी बात की ओर ध्यान ही न दिया और अकड़ कर खड़ा रहा. बादल गुस्से में चीखने चिल्लाने लगे. सारा वन उनकी गर्जना सुन कर काँप उठा. लेकिन ऊंचे पेड़ पर तो जैसे कोई प्रभाव ही न पड़ा. वह अपनी मस्ती में झूमता रहा.



अचानक ज़ोर से बिजली चमकी. सबसे ऊँचा पेड़ जलने लगा. पेड़ के कुछ भाग टूट कर दूर जा गिरे. वन के अन्य पेड़ों ने जब यह दृश्य देखा तो सब थर-थर कांपने लगे.
ऊँचा पेड़ बहुत चिल्लाया, सबसे सहायता मांगने लगा, पर कोई भी उसकी सहायता न कर पाया. देखते ही देखते पेड़ पूरी तरह जल गया.
कुछ दिन बाद साधु बाबा उस वन में फिर आये. जले हुए पेड़ को देख कर उन्होंने मन ही मन कहा, “किसी को भी जीवन में इतना हठी न होना चाहिये. हठी प्राणियों का अंत ऐसा ही होता है.”
© आई बी अरोड़ा 

Saturday 23 August 2014

                            पाँव फिसला
मोटा राजा सैर को निकला
बीच सड़क में पाँव फिसला
ताज उछल कर दूर गिरा
दाँत टूट कर पास गिरा
चारों ओर मचा तब शोर
सेवक भागे राजा की ओर
रानी भी दौड़ी-दौड़ी आई
देख राजा को वह घबराई
बहुत ज़ोर से फिर चिल्लाई
“किसने थी यह सड़क बनाई
जल्दी उसे पकड़ कर लाओ
मिलकर उसको सबक़ सिखाओ”
सेवक भागे दे राजा को धक्का
रानी का था बस चलता सिक्का.


© आई बी अरोड़ा

Thursday 21 August 2014

क्रोध का परिणाम
विराट देश का राजा विक्रमजीत न्यायप्रिय था. वह बड़ी कुशलता से देश का राजकाज चलाता था. देश की सारी प्रजा सुखी थी. सब अपने राजा का बहुत सम्मान करते थे.
विक्रमजीत का इकलौता बेटा विश्वजीत स्वभाव का क्रोधी था. छोटी-छोटी बातों पर भी उसे गुस्सा आ जाता था. गुस्से में वह अपना आपा खो बैठता था. राजा ने कई बार उसे समझाया था कि क्रोध से सदा हानि ही होती है. सबसे अधिक हानि क्रोध करने वाले की ही होती है. परन्तु राजकुमार पिता की इन बातों को सदा अनसुना कर देता था.
विराट देश की राजधानी के निकट सुंदरवन था. उस वन में कई विरले और दुर्लभ पशु पक्षी रहते थे. उस वन के पशु पक्षिओं का शिकार करने पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था. वन का रखवाला सरजू राजा के इस आदेश का पालन सख्ती से करता था.
यह सब जानते हुए भी राजकुमार अपने मित्रों के साथ अकसर सुंदरवन आया करता था. अगर वह वहां पशुओं का शिकार करने लगते तो सरजू उन्हें रोकने का प्रयास करता था. राजकुमार गुस्से में आकर सरजू को डांटता था. कई बार तो उसके मित्रों ने सरजू को मारा-पीटा भी था.
परन्तु एक दिन राजकुमार और उसके मित्रों ने वन में बहुत उत्पात मचाया. सरजू ने बड़ी कठोर वाणी में राजकुमार से कहा, “आप सब तुरंत यहाँ से चले जाएँ. अन्यथा मैं अभी जाकर महाराज से शिकायत कर दूंगा.”
राजकुमार गुस्से से आग बबूला हो गया. वह अपना आपा खो बैठा. बिना सोचे समझे उसने सरजू पर अपनी तलवार से वार कर दिया. सरजू अपना बचाव न कर पाया. उसके मृत्यु हो गई.
अब राजकुमार घबरा गया. वह समझ गया की वह बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया है. परन्तु उसके मित्रों ने कहा, “अरे, चिंता न करो. हम सब महाराज से कहेंगे कि दोष सरजू का था, उसने ही अकारण तुम पर हमला किया था. तुमने तो बस अपना बचाव करने के लिए तलवार उठाई थी.”
राजकुमार मित्रों की बातों में आ गया. परन्तु गुप्तचरों ने घटना की सारी जानकारी महामंत्री को दे दी थी. महामंत्री को चिंता हुई. वह जानता था कि महाराज किसी अपराधी को क्षमा नहीं करते. राजकुमार को भी क्षमा न करेंगे.
मंत्री की अपनी कोई सन्तान न थी. वह राजकुमार विश्वजीत को अपने पुत्र समान ही मानता था. वह राजकुमार को महाराज के दंड से बचाना चाहता था. वह चुपचाप सरजू की पत्नी से मिला. उसने कहा, “सरजू के साथ जो हुआ वह बहुत ही गलत हुआ. पर अब वह लौट कर नहीं आ सकता. मैं जीवन भर तुम्हारे परिवार की देखभाल करूंगा. बस इस घटना का किसी को पता न लगना चाहिये.”
सरजू की पत्नी ने महामंत्री की बात मानने में ही अपनी भलाई समझी. महामंत्री को लगा कि समस्या सुलझ गई है. परन्तु ऐसा हुआ नहीं.
राजकुमार और उसके मित्र सब घबराये हुए थे. वह भयभीत थे कि कहीं सरजू का परिवार महाराज के पास न पहुंच जाये. उन्होंने तय किया कि वह स्वयं महाराज के पास जाकर उन्हें एक मनगढ़न्त कहानी सुना देंगे.
और उन सब ने ऐसा ही किया. उनकी मनगढ़न्त कहानी सुनकर राजा ने कहा, “उस रखवाले का इतना साहस कि उसने राजकुमार पर हमला किया? उसे कठोर दंड दिया जायेगा.”
“महाराज, उसकी तो मृत्यु हो गई. राजकुमार ने सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए उस पर तलवार से वार किया था,” एक मित्र ने कहा.
“ऐसे अपराधी के परिवार को भी दंड मिलना चाहिये,” राजा ने कहा और सेनापति को आदेश दिया कि सरजू के सारे परिवार को कैद कर लिया जाये.
सिपाही सरजू के परिवार के सभी सदस्यों को पकड़ कर ले आये. उन सब पर तो जैसे बिजली आन गिरी. पर सरजू की पत्नी ने साहस से काम लिया. उसने राजा से कहा, “महाराज, अगर सरजू ने राजकुमार पर हमला किया था तो महामंत्री ने हमें कैद करने के बजाय हमारी देख भाल करने का वचन क्यों दिया? सत्य तो यह है कि राजकुमार ने मेरे पति की हत्या की है.”
विक्रमजीत ने महामंत्री की ओर देखा. महामंत्री की पाँव तले से ज़मीन खिसक गई. वह आँखें नीचे किये चुपचाप खड़ा रहा. राजकुमार और उसके मित्र भी थरथर काँप रहे थे.
“हमें तो पहले ही संदेह था की राजकुमार ने ही क्रोध में आकर सरजू की हत्या की होगी. परन्तु राजकुमार के अपराध से बड़ा अपराध महामंत्री ने किया. उन्होंने राजकुमार के अपराध को छिपा कर ऐसी भूल की है जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता,” राजा ने गरजती वाणी में कहा.
महामंत्री की आँखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे. राजकुमार और उसके मित्र भी चुपचाप रो रहे थे. पर इस सब का राजा पर कोई प्रभाव न पड़ा. उन्होंने राजकुमार, उसके मित्रों और महामंत्री को देश से निर्वासित कर दिया.
राजा का आदेश सुन कर राजसभा में सन्नाटा छा गया. किसी ने भी कल्पना न की थी कि महाराज अपने इकलौते पुत्र को इतना कठोर दंड देंगे. कुछ मंत्रियों ने राजा से प्रार्थना की, “ महाराज, दया करें, इन सब की भूल को क्षमा कर दें, इन सब को इतना कठोर दंड न दें.”
“अगर इन लोगों को इनके अपराध की सज़ा न मिली तो प्रजा का हम से विश्वास उठ जायेगा. अगर इन्हें क्षमा कर दिया तो किस अधिकार से हम अन्य अपराधियों को दंड देंगे. इन्हें तो इतना कठोर दंड मिलना चाहिये कि कोई भी अपराध करने का साहस न कर पाए,” राजा ने कड़क आवाज़ में कहा.
राजा अपने निर्णय पर अटल रहा. देश के हर नागरिक पर इस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा. अपराधियों की दिल दहल गये. देश में अपराध की घटनाएं लगभग समाप्त हो गईं.
© आई बी अरोड़ा 

Tuesday 19 August 2014

I write a poem
it was a monday
thought I would write a poem
and not play
but with words
I couldn’t find my way
they kept floating near and far away
I wanted to write about a crocodile
who was stupid
and a turtle who would often skid
and a crow who lived on a tree
and hated the bothersome beach flea
I thought they were all nice characters
and they would do
what I wanted them to do
like decent actors
I thought I would weave a story
of good friends
who would always be true
and would walk on a path to glory
but even before I could begin
and what a great tale
I was about to spin
the stupid crocodile grabbed the turtle
my story began to skid and hurtle
and even before I could think of a twist
the crow tried to eat the beach flea
but the poor fellow
got stung in the ensuing melee
it was not the way
I wanted my story to end
but I had lost control of my characters
I would not pretend
it was not the first time
my poem had such a tragic fate
all my characters have been
behaving strangely of late
I fail to write
what I plan to write
but a poem or a tale
has to end someway, right.

© ib arora