Tuesday 9 September 2014

अच्छे दिन

लोमड़ जेल से छूट कर आया ही था कि सियार और लकड़बग्घा उसके अड्डे पर आ पहुंचे.
“कहो भाई, कैसी रही जेल यात्रा?” सियार ने पूछा.
“जेल में कोई कष्ट तो नहीं हुआ?”लकड़बग्घे ने पूछा.
“मैं जेल गया था, श्रीनगर की सैर करने नहीं गया था,” लोमड़ ने गुस्से से कहा.
अरे भाई, नाराज़ क्यों होते हैं? हम जानते हैं कि जेल में आपको कितना कष्ट सहना पड़ा होगा,” सियार ने कहा.
“भाई, हमारे अच्छे दिन आने वाले हैं. मैं ऐसी सूचना लाया हूँ कि आप सुन कर उछल पड़ेंगे,” लकड़बग्घे ने कहा.
लोमड कुछ नहीं बोला. बस दोनों को घूर कर देखता रहा. दोनों डर कर चुप हो गये.
“बोलो क्या कहना है?” लोमड ने चिढ़ कर कहा.
वह दुःखी था क्योंकि इस बार जेल में कालू भेड़िये ने उसकी खूब पिटाई की थी. कालू हर दिन उसे मारता पीटता रहा था. लोमड़ कई बार जेल जा चुका था. पर जितनी दुर्दशा उसकी इस बार हुई थी ऐसे दुर्दशा उसकी पहले कभी न हुई थी.
“हमें पता चला है कि रिज़र्व बैंक बहुत सारा सोना मुंबई भेज रहा है. यह सोना मुंबई एक्सप्रेस से ले जाया जायेगा. हमने सब पता लगा लिया है कि सोना कब और कैसे भेजा जाएगा,” सियार ने कहा.
लोमड़ की आंखें चमकने लगीं. वह सोचने लगा कि अगर बैंक का सोना वह सब  मिलकर चुरा लें तो सच में अच्छे दिन आ जायेंगे. करोड़ों रूपए का सोना मिल जाये तो वह सीधा अमरीका चला जाएगा और वहां पर एक अच्छा अमरिकन बन कर रहेगा.
“क्या भइया, अमरीका के सपने देख रहे हो?” लकड़बग्घे ने पूछा.
“तुम्हें कैसे पता चला?” लोमड़ ने झेंप कर पूछा.
“क्योंकि मैं भी अमरीका के सपने देख रहा हूँ? बस यह सोना हमारे हाथ लग जाये,” लकड़बग्घा बोला.
“सपने देखना बंद करो और जल्दी से मुंबई एक्सप्रेस के तीन टिकटें ले लो,” लोमड़ ने कड़क आवाज़ में कहा.
“भाई, कुछ सोचा आपने? यह काम कैसे करेंगे?” सियार ने धीमे से पूछा.
“मेरे दिमाग में एक योजना आ रही है. यह ट्रेन रात के लगभग तीन बजे एक घने जंगल से होकर जाती है. उसी जंगल में हम चेन खींच कर ट्रेन को रोक लेंगे. जंगल में चारों ओर घना अन्धेरा होगा. हम तुरंत उस डिब्बे पर दावा बोल देंगे जिसमें सोना रखा होगा. डायनामाइट की मदद से पहले रेल के डिब्बे का दरवाज़ा और फिर तिजोरी का दरवाज़ा उड़ा डालेंगे. किसी के आने से पहले ही हम सोना लेकर चंपत हो जायेंगे.”
“वाह भाई वाह, क्या योजना बनाई है,” सियार ने चापलूसी करते हुए कहा.
“भाई, एक बात समझ नहीं आई. हर बार हम योजना तो अच्छी बनाते हैं पर हर बार ही हम पकड़े जाते हैं और हमें जेल हो जाती है. ऐसा क्यों?,” लकड़बग्घे ने पूछा.
“चुप हो जा. हर समय अंट शंट बोलता रहता है. इस बार लोमड़ भाई ने खूब सोच समझ कर योजना बनाई है. इस बार हम अवश्य सफल होंगे,” सियार बोला.
तीनों निश्चित दिन रेलवे स्टेशन पहुंच गये. लोमड़ ने सियार से कहा, “ ज़रा देख कर आओ सोना किस डिब्बे में रखा है.”
सियार झटपट चल दिया और जल्दी ही लौट आया.
“सोना अंतिम डिब्बे में है. कई पुलिस वाले उस डिब्बे को घेर कर खड़े हैं.”
“यह तो अच्छा ही है. रात के अँधेरे में उस डिब्बे को खोजना कठिन न होगा,” लोमड़ ने कहा.
ट्रेन समय पर चल पड़ी. लोमड़ ने अपने साथियों से कहा, “ रात तीन बजे उठ जाना. अपनी-अपनी घड़ी में अलार्म लगा कर सोना. मैं किसी को उठाऊंगा नहीं.”       
लोमड जानता नहीं था कि उसका सबसे बड़ा शत्रु उसी ट्रेन में यात्रा कर रहा था.
कालू भेड़िया जेल से छूट कर बाहर आ चुका था. वह भी उसी ट्रेन से मुंबई जा रहा था. उसने लोमड़ को देख लिया था.
“यह लोमड़ अपने इन साथियों के साथ कहाँ जा रहा है? कुछ तो गड़बड़ है?” भेड़िये ने अपने आप से कहा.
रात तीन बजे ट्रेन अचानक रुक गई. सभी यात्री गहरी नींद में थे. कोई जान ही न पाया कि ट्रेन रुकी हुई है. पर कालू भेड़िये को तो रात में नींद आती न थी. वह ट्रेन से बाहर आया.
“यहाँ जंगल में ट्रेन क्यों रुक गई?” वह मन ही मन सोचने लगा.
तभी उसने देख की लोमड़ और उसके साथी ट्रेन की अंतिम डिब्बे की ओर झटपट भागते जा रहे थे.
“कुछ तो गड़बड़ है,” भेड़िये ने अपने आप से कहा.
लोमड़ ने अंतिम डिब्बे के दरवाज़े को डायनामाइट से उड़ा दिया. डिब्बे के भीतर जाकर उसने तिजोरी के दरवाज़े को भी उसी भांति उड़ा दिया. तिजोरी सोने की इंटों से भरी हुई थी. तीनों मिलकर सोने की ईंटों को बड़े-बड़े थैलों में रखने लगे. तभी उन्हें कुछ शोर सुनाई दिया. लोमड़ ने अपने साथियों से कहा, “चलो निकल चलें, पुलिस इधर ही आ रही है.”
तीनों कंधों पर थैले उठाये रेल के डिब्बे से बाहर आये. तीनों जंगल की ओर चल दिए. परन्तु अभी वह थोड़ी दूर ही गये थे कि कालू भेड़िया उनके सामने आ खड़ा हुआ. कालू को देख कर लोमड़ की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.
लोमड़ कालू से डरता था. उसे यह भी डर था कि कहीं कालू उसके साथियों को यह न बता दे कि जेल में वह लोमड़ की खूब पिटाई किया करता था. सियार और लकड़बग्घे को अगर यह बात पता चल गई तो वह लोमड़ का कभी सम्मान न करेंगे.
“बड़ा हाथ मारा है इस बार. क्या बात है, ग्रेट ट्रेन राबरि. अब तो तुम पर फ़िल्में बनेगीं. किताबें लिखी जायेंगी,” भेड़िये ने हंसते हुए कहा.
“कालू यह ठीक नहीं कर रहे तुम,” लोमड़ ने कहा.
“मैं क्या कर रहा हूँ? मैं तो तुम्हारा बोझ हल्का करना चाहता हूँ. इतना बोझ लेकर तुम लोग कहाँ तक भागोगे?” कालू ने कहा.
“हम यह सोना नहीं देंगे,” लोमड़ ने अकड़ कर कहा.
“तीनों थैले यहाँ रख कर चलते बनो. मुझे गुस्सा आ गया तो वह तुम्हारे लिए ठीक न होगा,” भेड़िये ने गुर्रा कर कहा.
“कालू यह सोना अगर मुझे न मिला तो मैं तुम्हें भी न लेने दूंगा. मैं पुलिस को सब बता दूंगा.” लोमड़ ने उसे धमकाने का प्रयास किया.
“अच्छा, तुम पुलिस के पास जाओगे? पुलिस तुम्हारा विश्वास कर लेगी?” भेड़िये ने हंस कर कहा.
“नहीं-नहीं, यह लोमड़ पुलिस के पास क्यों जायेगा. पुलिस ही इसके पास आयेगी.”
कालू, लोमड़, सियार और लकड़बग्घा समझ न पाये कि यह बात किसने कही थी. उन चारों के अतिरिक्त वहां कोई न था. चारों एक दूसरे का मुंह देखने लगे.
बेचारे जानते न थे कि यह बात इंस्पेक्टर होशियार सिंह ने कही थी. हाथ में पिस्तौल लिए अचानक वह उनके सामने आ गया. इंस्पेक्टर को देख कर चारों के होश उड़ गये.
“आप यहाँ कैसे?” लकड़बग्घा अपने को रोक न पाया और पूछ बैठा.
“मैं तो इस कालू का पीछा कर रहा था. मुझे संदेह था की जल्दी ही यह कोई कांड करेगा. पर मुझे क्या पता था की तुम रिज़र्व बैंक का सोना लुटने वाले हो और मैं इतनी बड़ी डकैती को रोकने वाला हूँ. क्यों भई लोमड़, जेल से छूटते समय तो तुमने कहा था कि तुम सुधर गये हो. अब कोई गलत काम न करोगे. तो यह सब क्या है?”
“इंस्पेक्टर साहब, मैंने कुछ नहीं किया. यह काम  तो इन तीनों का है,” लोमड़ ने झूठ बोल कर अपने आप को बचाने का प्रयास किया. पर इंस्पेक्टर उसकी बातों में कहां आने वाला था.  उसने चारों को हथकड़ी लगा दी.
“मैंने कहा था, हमारी हर अच्छी योजना हमें जेल ही ले जाती है,” लकड़बग्घा बोला. वो पुलिस की मार से बहुत डरता था इसलिये उसकी आँखों से आंसू निकल आये.
रोते-रोते उसने लोमड़ से पूछा, “भइया, हमारे अच्छे दिन कब आयेंगे?” 

© आई बी अरोड़ा

No comments:

Post a Comment