छोटूमल और सांप 
झील किनारे घूम रहा
था 
इक दिन छोटा छोटूमल 
घास में देखा एक सांप
और ठिठक गया उसी पल 
सांप रेंग रहा था
धीरे-धीरे 
अपने में ही था वो खोया
उसे लगा सांप बेचारा
कई रात का था न सोया
छोटूमल को उस सांप
पर 
आई खूब दया 
सोचा ‘इस बेचारे के
लिए 
मैं कर सकता हूँ
क्या’
छोटूमल को देख 
सांप को आने लगी रुलाई
छोटूमल ने देखा रुक कर
सांप की आँखें थीं
भर आई 
छोटूमल था बेचारा 
दिल का बहुत ही नरम 
दिल की सुन वह करता था
सहायता सब की हर दम
सांप से उसने पूछा 'मित्र  
क्यों हैं आँखों
में आंसू 
मुझे बताओ हो सकता
है 
मैं ही कुछ कर पाऊं’
सांप ने उसको देखा 
और कहा ज़रा सम्भल कर 
‘कई दिनों से आता बुखार
मुझे को रुक रुक कर 
 काँटा कहीं चुभ
गया है 
पेट में बहुत ही गहरे
इस कारण वन में
मुझ को  
सब दिखते हैं
हरे-हरे 
दस दिनों से नहीं है
मैंने कुछ भी खाया 
और दाँत के दर्द ने 
है मुझे बहुत
सताया  
मन मेरा करता है 
मैं देश-विदेश घूम
आऊँ 
यह दुनिया कैसी है 
सब कुछ मैं देख आऊँ 
कई सांप उड़ सकते हैं
ऐसा मैंने सुना है 
मैं भी उड़ूं
पक्षियों सा 
मेरा मन कहता है
रात में सोने के लिए
अपना हो इक सुंदर घर
 नाव में चढ़ कर चाँदनी रात में   
घूमूं झील में इधर
उधर’
सांप की बातें सुन 
छोटूमल हुआ बहुत हैरान
उसे लगा उसके तो 
पक जायेंगे दोनों
कान 
‘तुम्हारी इच्छाओं
की 
सूची है अधिक ही लंबी
पर एक इच्छा
तुम्हारी 
 कर सकता हूँ पूरी अभी-अभी  
एक मेंडक मुझे मिला
था 
वहां उस लट्ठे के ऊपर 
यह खा सकते हो तुम 
अच्छे लगते हों मेंडक
अगर.’ 
पास आकर छोटूमल ने 
रखा मेंडक धरती पर 
सांप ने उसके देखा 
पर अपना फन फैला कर 
‘यह मेंडक रख छोड़ा
था 
उस लट्ठे पर मैंने ही 
तुम हो निरे बुद्धू 
मैंने फांस लिया है तुमको भी 
मैं भूखा हूँ कई
दिनों का 
खाना चाहूँ इक बड़ा
शिकार 
तुम हो खूब मोटे
ताज़े   
बच न पाओगे तुम मेरे
यार'
सांप की बात सुनकर 
छोटूमल के उड़ गए होश
पर फंसा था वो अपने ही कारण 
किस को देता अब वो
दोष 
दुष्ट जनों की
सहायता 
करने में था न कोई
सार 
जान बचाने को छोटूमल
दौड़ा
ऐसे वो दौड़ा था पहली
बार 
©आइ बी अरोड़ा  

No comments:
Post a Comment