जंगल में थे सारे
सोये 
जंगल में थे सारे
सोये 
मीठे सपनों में थे
खोये 
कोई सोया घास में
छिपकर 
कोई सोया पेड़ के ऊपर
    
कोई सोया माँद के
भीतर 
और कोई किसी झाड़ पे चढ़कर   
किसी ने ओढ़ी डालों की
चादर 
किसी के ऊपर फैला
अंबर   
कोई सोया ले पत्तों
की ओट 
बंद किये अपने
प्यारे होंठ  
तभी अचानक हुआ धमाका
हर कोई सोया नींद से
जागा   
डर कर हर इक उठ कर बैठा
जान बचाने को हर कोई
भागा 
सब पर आफत आन पड़ी 
धमाकों की थी लगी
झड़ी    
भालू ने ही साहस दिखलाया
छड़ी लिए वह घर से
आया 
सब के सब थे हुए
हैरान 
वन में आया कैसा तूफ़ान   
‘भालू ही अब कुछ कर
पाये
कैसे भी कर संकट से
बचाये’ 
भालू पर था थोड़ा
सहमा 
साथ न था कोई अपना 
अँधेरे से उसे लगता
था डर 
कुछ तो करना होगा पर
  
‘सब के सब हैं बैठे छिपकर
कोई तो आता घर से
बाहर’
पर अब न था कोई उपाये  
मन चाहे क्यों न घबराए
छड़ी थामे चला उस ओर 
धमाके हो रहे थे जिस
ओर
देखी वहां इक बात
निराली 
मुहं से निकल गयी इक
गाली
इक पेड़ के नीचे था हाथी
जिसका था न कोई साथी
हाथी बैठा था पकड़े
माथा 
लगातार वह छींक रहा
था 
‘भाई, रखो तुम मुझ
से दूरी 
बिगड़ गई है हालत
मेरी 
कई बार कहा था नानी
ने  
न जाना ठन्डे पानी में
मुझे लगा है आज
ज़ुकाम 
अब छींकें आ रहीं बिना
विराम’
भालू हंसी रोक न
पाया 
लौट कर उसने सबको बतलाया
हाथी पर सबको गुस्सा
आया 
पर रातभर कोई सो न पाया.
© आइ बी अरोड़ा 
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