Wednesday 1 April 2015


अप्रैल फूल
(अंतिम भाग)
(कहानी का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं)


बैंक के निकट उसने एक गाड़ी खड़ी थी. बैंक का दरवाज़ा खुला था. उसका माथा ठनका. वह सावधानी के साथ आगे आया. बैंक का चोकीदार दरवाज़े के पास लेटा था. वह बेहोश था. बैंक के अंदर एक चोर था. उसने अपने चेहरे को एक नकाब से छिपा रखा था. बैंक की तिजोरी खुली थी. चोर एक बैग में रुपये रख रहा था.

हिरण ने सोचा कि उसे पुलिस को सूचना देनी चाहिये. परन्तु जल्दबाज़ी में वह अपना सेल फोन घर ही छोड़ आया था. पुलिस स्टेशन अधिक दूर न था. वह पुलिस स्टेशन की और भागा.

तभी उसने देखा कि जहां पर चोर ने अपनी गाड़ी खड़ी कर रखी थी वहीं सड़क में एक मैनहोल था. कुछ सोच कर उसने मैनहोल का ढक्कन उठा कर एक ओर रख दिया और अँधेरे में छिप कर चोर की प्रतीक्षा करने लगा.

उसे ज़्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. थोड़े समय बाद ही चोर रुपयों से भरा बैग लेकर बैंक से बाहर आया. उसने चारों ओर देखा. उसे कोई दिखाई न दिया. वह बड़ी होशियारी के साथ अपनी गाड़ी की ओर चल दिया.

तभी हिरण ज़ोर से चिल्लाया, “चोर-चोर, पकड़ो-पकड़ो”

हिरण की चीख पुकार सुन, चोर घबरा गया और अपनी गाड़ी की ओर भागा. परन्तु हड़बड़ाहट में उसने देखा ही नहीं की रास्ते में एक बिना ढक्कन का मैनहोल. चोर सीधा मैनहोल में जा गिरा. रुपयों से भरा बैग उसके हाथ से छूट कर सड़क के एक ओर जा गिरा.

हिरण ने तुरंत बैग उठाया और पुलिस स्टेशन की ओर भागा. वहां उसने पुलिस इंस्पेक्टर को सारी बात बताई. वहीं से उसने अपने मैनेजर  को भी फोन किया और घटना की जानकारी दे दी.

दो सिपाहियों के साथ इंस्पेक्टर बैंक की ओर चल दिया. चोर अभी भी मैनहोल के अंदर था. गिरते समय उसके पैर में चोट लग गई थी और वह करहा रहा था. सिपाहियों ने उसे बाहर निकाला. उसके चेहरे से नकाब हटाई. वह तो लोमड़ था.

“अरे, इस बदमाश को तो हम एक साल से ढूंढ रहे हैं, इस पर तो दस हज़ार का इनाम भी है. हिरण भाई, आज तो आपने कमाल कर दिया. जिसे अपराधी को हम इतने दिनों तक नहीं पकड़ पाये उसे आपने अपनी सूझबूझ से पकड़वा दिया. आपको तो पुरस्कार मिलेगा,” इंस्पेक्टर ने कहा. 

इस बीच बैंक मैनेजर भी आ पहुंचा था. उसने भी हिरण की प्रशंसा की और कहा, “बैंक की ओर से भी आपको पुरस्कार दिया जाएगा.”

हिरण घर लौटा. सियार और भेड़िया खिड़की के निकट बैठे उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे. उसे आता देख सियार ने कहा, “क्या आज कल रात में भी बैंक में काम होता है?”

“अरे, आज तो मैंने अकेले ही बैंक को लुटने से बचा लिया. लोमड़ बैंक में चोरी करने आया था. वह पकड़ा गया. सरकार से मुझे दस हज़ार का पुरस्कार मिलेगा. बैंक से भी पुरस्कार मिलेगा.” हिरण एक हीरो की तरह मुस्कुरा रहा था.

सियार और भेड़िये की सिट्टी पिट्टी गुम हो गयी. वह तो उसे मूर्ख बन रहे थे, और वह हीरो बन गया था.

“ भाई, यह तो हम ही अप्रैल फूल बन गये,” सियार ने कहा.

भेड़िया क्या कहता, वह तो खुद ही दुःखी था.
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© आई बी अरोड़ा



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