Tuesday 17 February 2015

साइकिल की सैर
सुरेश का स्कूल उसके घर से चार किलोमीटर दूर था. वह अपनी साइकिल पर स्कूल आया जाया करता था.
हर दिन शाम के समय वह अपने छोटे भाई चिन्नी को साइकिल पर घुमाने भी ले जाता था. चिन्नी छह साल का था और बड़ा शरारती था. अगर कभी सुरेश उसे साइकिल पर घुमाने न ले जाता तो वह बहुत हो हल्ला करता. सुरेश अगर उसे डांटता तो वह मां से शिकायत करता. पर साइकिल की सैर किये बिना वह शांत न होता.
एक शाम वह दोनों घर से निकले ही थे कि उनके चाचा ने कहा, “ज़रा होशियार रहना. सुना है कि बदमाशों का एक गिरोह हमारे यहाँ में घुस आया है.”
“चाचा, हमारे पास है क्या जो वो लूट लेंगे, न जेब में पैसे हैं न हाथ में घड़ी,” सुरेश ने हँसते कहा.
सुरेश धीरे-धीरे साइकिल चला रहा था. चिन्नी पीछे कैरियर पर बैठा था. उसने अपने दोनों हाथ हवा में फैला रखे थे.
“भाई देखो, मैं अपने हवाई जहाज़ में बैठा हूँ. तुम मेरे हवाई जहाज़ के ड्राइवर हो. हवाई जहाज़ की स्पीड तेज़ करो, क्या धीरे-धीरे चला रहे हो,” चिन्नी ने चिल्ला कर कहा.
“अरे बुद्धू, हवाई जहाज़ चलाने वाले को पायलट कहते हैं, ड्राइवर तो मोटर चलाता है.”
दोनों इस तरह बातें करते हुए साइकिल की सैर कर रहे थे. उन्होंने ने देखा ही नहीं कि रास्ते में एक जगह एक रस्सा बिछा हुआ था. जैसे ही वह पास आये किसी ने रस्सा हवा में उछाल दिया. साइकिल रस्से में फंस गई और उल्ट गई. जब तक सुरेश सँभलता दो आदमी भाग कर वहां आ पहुंचे. एक ने चिन्नी को उठा लिया. दूसरे ने सुरेश के सिर पर डंडे से वार किया.
चोट लगने से सुरेश को चक्कर आ गया. वह गिर पड़ा. बदमाश चिन्नी को लेकर भाग गये. सुरेश ने अपने को सँभाला. चोट की परवाह लिए बिना वह बदमाशों के पीछे भागा. वह चिन्नी को बचाने का उपाये भी सोचने लगा. उसने मन ही मन कहा, “ इन बदमाशों से मैं अकेले मुकाबला न कर पाऊंगा. मुझे सूझबूझ से काम लेना होगा. तभी मैं चिन्नी को बचा पाऊंगा.”
उसके सिर में दर्द हो रहा था. पर वह होशियारी के साथ बदमाशों का पीछा करता रहा. बदमाशों को पता ही न चला कि सुरेश अपनी साइकिल पर उनके पीछे आ रहा था. बदमाश एक पुरानी हवेली में घुस गये. हवेली सुनसान थी और बस्ती से दूर थी. कभी-कभार ही कोई उधर आता था.
सुरेश ने साइकिल एक पेड़ के सहारे खड़ी कर दी. वह हवेली के पास आया. उसे एक टूटी हुई खिड़की दिखाई दी. उसने चुपके से भीतर झांका. बदमाश चिन्नी के हाथ पाँव बाँध रहे थे. तभी एक बदमाश ने कहा, “कल इसके बाप को संदेसा देना. कहना कि पचास हज़ार रूपए देकर इसे ले जाये.”    
“सिर्फ पचास हज़ार? सरदार क्या कहेंगे?” दूसरे बदमाश ने कहा.
“अरे, उसके पास इतने भी न होंगे. पचास हज़ार भी दे दे तो वह भी बहुत है.”
सुरेश समझ गया कि उसके भाई का इन बदमाशों ने अपहरण किया है. पैसे लिए बिना वह चिन्नी को छोड़ेंगे नहीं. पर वह जानता था कि उसके पिता पचास हज़ार रुपये न दे पायेंगे.
“उनके पास तो पाँच हज़ार भी न होंगे, पचास हज़ार कहाँ से देंगें. मुझे ही कुछ करना होगा.” सुरेश ने अपने आप से कहा. उसने सोच कि उसे पुलिस चौकी जाकर पुलिस की सहायता लेनी चाहिये. परन्तु चौकी पाँच किलोमीटर दूर थी. अँधेरा होने लगा था. अभी वह इसी सोच में था कि अंदर एक बदमाश बोला, “अरे बिज्जू, हमने बड़ी गड़बड़ कर दी.”
“क्या हुआ?”
“भूल गये, आज रात हमें लालगंज पहुंचना है. सरदार का हुक्म था. आज धनीराम के घर डाका डालना है.”
“अरे मर गये, मुझे भी बिलकुल याद न रहा. अब क्या करें? इस बच्चे को छोड़ दें?”
“नहीं इसे क्यों छोड़ेंगे? इसे साथ ले जायेंगे, सरदार देखेगा तो खुश होगा, शाबाशी देगा.”
सुरेश ने सुना तो घबरा गया. उसने मन ही मन कहा, “अब पुलिस के पास जाने का समय नहीं है. अगर यह बदमाश चिन्नी को साथ ले गये तो उसे बचाना असम्भव हो जायेगा. मुझे ही कुछ करना होगा. पर क्या करूं? किसी तरह इन बदमाशों को बाहर निकालना होगा.”
अचानक एक तरकीब उसे सूझी. वह अपनी साइकिल पर सवार हो कर फटाफट बस्ती की ओर चल दिया. वह एक घर के भीतर गया. कुछ समय बाद वह एक आदमी के साथ घर से बाहर आया. उस आदमी का नाम सगुना था. सगुना के हाथ में एक पोटली थी. सगुना साइकिल के कैरिएर पर सवार हो गया और दोनों हवेली की ओर चल दिये.
हवेली के निकट सुरेश ने साइकिल रोकी और सगुना के कान में फुसफुसा कर कहा, “वह रही खिड़की तुम उधर जाओ. मैं दरवाज़े की निकट छिप जाऊंगा. जैसे ही बदमाश हवेली से बाहर आयेंगे मैं चिन्नी को छुड़ा कर घर चला जाऊँगा. तुम कल मेरे घर आकर पैसे ले लेना, अभी मेरे पास पैसे नहीं हैं.”
सुरेश हवेली के दरवाज़े के निकट छिप गया. सगुना खिड़की के पास ज़मीन पर बैठ गया. उसने अपनी पोटली से कुछ निकाला और उसे धीरे से खिड़की से हवेली के अंदर रख दिया.
अंदर दोनों बदमाश आपस में बातें कर रहे थे. अन्धेरा था और उन्होंने एक मोमबत्ती जला रखी थी.
“अब चलें, अँधेरा हो गया है.”
“हाँ, देर से पहुंचे तो सरदार की गालियाँ सुननी पड़ेंगी.”
तभी एक बदमाश चिल्लाया, “सांप, सांप.”
दोनों बदमाश एक साथ उछल कर खड़े हो गये. मोमबत्ती की रोशनी में उन्होंने देखा कि तीन सांप रेंगते हुए उनकी ओर आ रहे थे. एक सांप सिर उठा कर फुफ्कारने लगा. बदमाशों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. उन्होंने वहां से निकल भागने में अपनी भलाई समझी. उनके बाहर जाते ही सगुना भीतर आ गया. सांप उसने ही छोड़े थे. वह एक सपेरा था और सुरेश के कहने पर उसकी सहायता करने उसके साथ आया था. इस काम के लिए उसने सिर्फ बीस रुपये ही मांगे थे, साँपों को दूध पिलाने के लिए.
सगुना ने साँपों को पकड़ कर पिटारी में रख लिया और वहाँ से रफूचक्कर हो गया. इसी बीच सुरेश ने भीतर आकर चिन्नी के हाथ पाँव खोल दिए. साँपों के देख कर चिन्नी भी डर गया था पर बड़े भाई को देख कर उसका डर जाता रहा. सुरेश ने भाई को साइकिल पर बिठाया और घर की ओर चल दिया.
कुछ समय बाद दोनों बदमाश हवेली की अंदर आये. वहां न सांप थे और न ही चिन्नी. उन्हें पता ही न चला की क्या हुआ था.
घर पहुँच कर सुरेश ने अपने पिता को सारी घटना के बारे में बताया. फिर अपने चाचा के साथ वह पुलिस चौकी आया. उसने पुलिस अधिकारी को घटना की जानकारी दी, “वो लोग आज रात लालगंज में धनीराम को लूटने वाले हैं.”
पुलिस ने तुरंत कार्यवाही कर सबको गिरफ्तार कर लिया.
सुरेश के माता पिता गर्व से फूले न समाये. अपनी सूझबूझ से सुरेश ने छोटे भाई को छुड़वा लिया था और दुष्ट बदमाशों को भी पकड़वा दिया था. 

© आई बी अरोड़ा 

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