Thursday 19 February 2015

शाम का समय
(भाग 1)
शाम का समय था. श्रीमान सियार और श्रीमान भेड़िया राज नगर में टहल रहे थे. कई दिनों से दोनों ने न कोई चोरी की थी और न ही किसी को ठगा था. इस कारण उनका मन बेचैन था. किसी को ठगने या लूटने का अवसर वह दोनों ढूंढॅ रहे थे.
तभी उन्होंने एक घर के बाहर एक सूटकेस पड़ा देखा. आसपास कोई न था. सियार ने आँखों से ही भेड़िये को संकेत किया. दोनों ने चारों ओर देखा. कोई दिखाई न दिया. सियार ने सूटकेस उठा लिया. दोनों धीरे-धीरे, आपस में बातें करते, चलने लगे. कुछ दूर आकर दोनों भाग खड़े हुए.
अपने अड्डे पर पहुँच कर सियार ने कहा, “सूटकेस खोलो, देखें तो सही कि हाथ क्या लगा है?”
भेड़िये के पास चाबियों का एक गुच्छा था. उसने एक-एक कर हर चाबी से सूटकेस खोलने की कोशिश की परन्तु सूटकेस का ताला खुला ही नहीं.
“लगता है ताला तोड़ना पड़ेगा?” भेड़िये ने कहा.
“देखते नहीं कि सूटकेस कितना महंगा है, अगर इसका ताला टूट गया तो यह बेकार हो जायेगा. बाज़ार में इस सूटकेस के दो-तीन हज़ार रूपए मिल जायेंगे. मेरे पास भी चाबियों का एक गुच्छा है. मैं लेकर आता हूँ, ताला मत तोड़ना,” सियार ने कहा और चाबियाँ लेने अपने कमरे में चला गया.
सियार चाबियाँ ले कर आया तो देखा की सूटकेस खुला है.
“ताला क्यों तोड़ा?” उसने चिल्ला कर भेड़िये से पूछा.
“अरे ताला नहीं तोडा, एक चाबी से मैंने ताला खोलने की कोशिश फिर से की तो ताला खुल गया,” भेड़िये ने चाबी दिखाते हुए कहा.
“सूटकेस मेरे सामने खोलना चाहिये था. कुछ लिया तो नहीं?” सियार ने झल्ला कर कहा.
दोनों पक्के दोस्त थे पर सियार भेड़िये का विश्वास न करता था.
“तुम्हें कितनी बार कहा है कि एक चोर दूसरे चोर को कभी नहीं ठगता. मैंने कुछ नहीं लिया है,” भेड़िया भी गुस्से से चिल्लाया.
“ठीक है, ठीक है,” सियार ने कहा और सूटकेस की तलाशी लेने लगा.
सूटकेस में कुछ कपड़े, एक कैमरा और एक ऍम बी बी एस डिग्री थी.
“यह तो डॉक्टर भालू की डिग्री है. हमारे किस काम की?” इतना कह भेड़िये ने डिग्री फैंक दी.
“इसे मत फैंको, लोमड़ भाई इसके भी कुछ न कुछ पैसे दे देगा,”  सियार ने डिग्री संभाल कर रख दी.
“आज लोमड़ से बात कर लेते हैं, सामान कुछ दिन बाद ले जाकर उसे बेच देंगे,” भेड़िये ने कहा.
श्रीमान लोमड़ एक दुकानदार था. वह चोरी का सामान चोरों से खरीद लेता था. और उस सामान को अपनी दुकान छिपा कर रख लेता था और कुछ समय के बाद बेच देता था.
लोमड़ की दुकान बंद थी, वह अचरज वन गया हुआ था. दोनों चोर मुंह लटका कर लौट आये.
दो दिन बाद सियार एक समाचार पत्र लेकर भेड़िये के पास आया और बोला, “गुरु, ऐसी सूचना लाया हूँ कि सुन कर उछल पड़ोगे.”
“क्या हुआ.”
“समाचार पत्र में छपे इस नोटिस को पढ़ो. लिखा है, ‘मेरी ऍम बी बी एस डिग्री रेलवे स्टेशन के पास कहीं खो गई है. पाने वाले से अनुरोध है कि तुरंत लौटा दे. लौटने वाले को दस हज़ार का पुरस्कार दिया जायेगा. डॉक्टर भालू’. अब हम उस डिग्री के दस हज़ार पा सकते हैं.”
भेड़िया कुछ सोच में पड़ गया. बोला, “ यह डिग्री हमें सूटकेस में मिली और सूटकेस हमें राज नगर में मिला. यह रेलवे स्टेशन वाली बात कुछ हज़म नहीं हुई.”
“अरे, यह डिग्री किसी को स्टेशन पर मिल गई होगी, उसने डिग्री को अपने सूटकेस में रख लिया होगा.  भूल से सूटकेस राज नगर में छोड़ दिया होगा. तुम चिंता न करो. इस डिग्री के दस हज़ार तो हम ले कर ही रहेंगे.”
सियार खुशी से झूम रहा था. भेड़िया भी उसकी बातों में आ गया. दोनों बाज़ार आये. एक पब्लिक फोन से सियार ने नोटिस में दिए फोन नंबर पर फोन किया.

(क्रमश)

©आई बी अरोड़ा 
(कहानी का अंतिम भाग यहाँ पर है) 

No comments:

Post a Comment