बंदर की शैतानी 
इक बंदर को सूझी शैतानी 
किसी की पूंछ काटने की ठानी 
देखा उसने चारों ओर 
सब पूँछों पर किया कुछ गौर 
एक पूंछ लगी कुछ मोटी 
एक पूंछ लगी कुछ छोटी 
एक पूंछ थी बहुत ही तगड़ी 
एक पूंछ थी बिल्कुल कड़की 
पूंछ लोमड़ी की मन भायी 
पूंछ काटने की तरकीब बनाई 
घर अपने लोमड़ी को बुलाया 
उसको मछली भात खिलाया 
भात खा लोमड़ी सुस्ताई
लेट गई वह ले नर्म रज़ाई 
बन्दर भी आकर लेटा पास  
पूंछ काटने की लिए था आस.
हौले से इक पूंछ को पकड़ा 
मजबूती से उस पूंछ को जकड़ा   
पर जैसे ही कैंची उसने चलाई 
मुंह से अपने चीख निकल आई
 शैतानी का उसे मिला सबक था 
पूंछ अपनी को ही काट दिया था. 
                                                       © आई बी अरोड़ा 
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