नोनु
चली देखने मेला 
नोनु चली देखने मेला 
हाथ
में पकड़े थी इक केला, 
दादू-दादी
भी चले साथ में 
सब बैठ
गये अपनी मोटर में,
मेले
में था पर धक्कम-धक्का 
नन्ही
नोनु हो गई हक्का-बक्का, 
बहुत
मचा था मेले में शोर
लोग
ही लोग थे चारों ओर,
कहीं
पर भालू नाच रहा था 
कहीं
पर बन्दर उछल रहा था,
मोटा
हाथी भी था एक वहाँ 
ऊँट
भी थे कुछ यहाँ-वहाँ,
झूले
लगे थे कई इधर-उधर 
छोटे-बड़े बैठे थे उन पर, 
कोई
पतंग उड़ा रहा था
कठपुतली
कोई नचा रहा था,
खाने-पीने की थी कई दूकानें
खूब
सजी थीं कोई माने न माने,
पर
नोनु जी ने बस केला खाया 
केला
ही था उसके मन भाया,
हाथी
की उसने न की सवारी 
और
ऊँट देख कर वो घबराई, 
बैठी
न वह एक भी झूले पर
झूलों
से उसको लगता था डर, 
अच्छा
लगा बस भालू का नाच 
‘नाच ,नाच,भालू नाच,’
भालू
देख कर नोनु चिल्लाई
और
खूब ज़ोर से ताली बजाई.
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