Thursday 14 July 2016

नदी किनारे

नदी किनारे खेल रहा था
इक दिन नन्हा हाथी
साथ में थे खेल रहे
उसके नन्हें साथी.
सुंदर तितली देखी उसने
बैठी एक डाल पर
चमक रहे थे उस तितली के
दोनों सुंदर पर.
झटपट भागा नन्हा हाथी
अपनी नानी के पास
सुंदर पंख पाने की थी
उसके मन में आस.
हंसी रोक न पाई नानी
सुनकर उसकी बात
और खूब जोर से हंसें
साथी जो थे उसके साथ.
‘जानते भी हो कैसे मिलते हैं
तितलियों को पर
एक ककून में बंद रहना पड़ता है
उन्हें मगर.
तोड़ कर लाने पड़ते हैं
आकाश से रंगीन तारे
चुरा लेती हैं इन्द्रधनुष के
कुछ रंग न्यारे.
न कुछ खाती हैं न पीती हैं
तितलियाँ कई दिनों तक
चुपचाप रहती हैं ककून में बंद
पंख नहीं आते जब तक
तुम कहो तो मैं करती हूँ  
किसी तितली से बात
वो बंद कर देगी तुम्हें ककून में
किसी नन्ही तितली के साथ’
सुन नानी की बात
नन्हें हाथी का ठनका माथा
एक ककून में रहना होगा बंद
ऐसा तो उसने सोचा न था
उसे तो अच्छा लगता था
वन में हुड़दंग मचाना
अपनी ही बात उसे
अब लगने लगी बचकाना
‘नानी, इन तितलियों के पंख
होते हैं बहुत ही छोटे
इन पंखों से कैसे उड़ पायेंगे
हम तो हैं थोड़े मोटे’
नदी किनारे फूलों पर
खेल रही हैं तितलियाँ
उनके पीछे भाग रहा है
इक नन्हा हाथी यहाँ वहाँ.

© आइ बी अरोड़ा 

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