ग्रैंडफादर क्लॉक
मेरे कमरे में है
लटकी
इक पुरानी
ग्रैंडफादर क्लॉक,
न करती वह कोई टिक
न करती वह कोई टॉक.
उसके भीतर तो रहता
है
नन्हा-सा इक नटखट
गोस्ट,
बार-बार वह वो मुझे
चिढ़ाता
मुझे बुलाता, ‘सिल्ली
दोस्त’.
नन्हें गोस्ट को
अच्छा लगता
बातें करना दिन हो
या रात,
होम वर्क लेकर जब
मैं बैठूं
शुरू हो जाता है उसकी बात.
गर्मी के दिन आते ही
वह
चुपके से फ्रिज में
घुस जाता,
आइस क्रीम और मीठे
जूस
हौले-हौले वो चट कर
जाता.
माँ सोचती, ‘अरे, ऐसा
काम
कर सकता है कौन भला?’
माँ भोली है, वह
क्या जाने
घर में ही रहती है एक
बला.
गोस्ट की शैतानी के
कारण
डांट पड़ी है मुझ को कई बार,
गोस्ट को आता खूब
मज़ा
जब माँ से होती मेरी
तकरार.
स्कूल बैग में रखा मेरा लंच
नन्हें गोस्ट को खूब
लुभाता,
और स्कूल बुक्स से
छेड़ाखानी
यही खेल है उसको आता.
एक दिन जब नोट बुक्स
को
बकरी समान वह निगल गया,
उस दिन मेरे धीरज का
बाँध
गुस्से में यूँ पिघल
गया.
बंद किये सब खिड़की दरवाज़े
और बुझा दी हर इक लाइट,
अपने कुत्तों से फिर
मैं बोला,
“शुरू करो तुम अपनी
फाइट”
कमरे में था गहन
अँधेरा
दोनों कुत्ते भौंक
रहे थे,
नन्हें गोस्ट के नन्हें
दाँत
डर से सभी खड़क रहे
थे.
नन्हा गोस्ट तो कुत्तों
से
रहता है हरदम भयभीत,
और गहन अँधेरे में
उसकी
बढ़ जाती है हार्ट की
बीट.
डर कर तब वह
दौड़ा-भागा
आया झटपट मेरी ओर,
कान पकड़ कर खड़ा हो
गया
सह न पाया इतना शोर.
“आज करता हूँ तुम से
प्रॉमिस
पर पहले तुम लाइट
जलाओ,
न करूंगा मैं तंग
कभी
इन कुत्तों से मुझे
बचाओ.”
मुझ को आई खूब हंसी
उसकी रोनी सूरत पर,
उसने किया था मुझे
हर दिन कितना तंग
मगर.
पर जो चाहा वह कर
पाया
उसको सही सबक
सिखाया,
अच्छे से वह सदा रहे
मैंने था बस इतना
चाहा.
मेरे कमरे में है
लटकी
इक पुरानी
ग्रैंडफादर क्लॉक,
नन्हा गोस्ट है रहता
भीतर
अब न करता वह कोई
टॉक.
© आइ बी अरोड़ा
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