Thursday, 16 July 2015

एक लंबी कहानी---“पत्थर का योद्धा” (भाग 2

तलाविया की सारी सेना अलग-अलग मोर्चों पर तैनात थी. तुरंत कुमक भेजना संभव न था. यह सोच राजा चिंतित हो गये. ज़ोरान वहीं था. उसने कहा, ‘महाराज, यह सोचने का नहीं, निर्णय लेने का समय है. अगर आप आदेश दें तो मैं बीस-पच्चीस अंगरक्षक अपने साथ ले कर जाता हूँ. हम शत्रु के साथ भयंकर युद्ध करेंगे और उनके दाँत खट्टे कर देंगे. देर न करें और हमें तुरंत आदेश दें.’

राजा को कोई उपाये सुझाई न दे रहा था. राजा जानते थे कि अगर शत्रु सीमा पार कर, देश के भीतर घुस आया तो स्थिति बहुत बिगड़ जायेगी. शत्रु को कैसे भी कर सीमा पर ही रोकना होगा.

ऐसा सोच राजा ने ज़ोरान का सुझाव मान लिया और उसे तुरंत सीमा पर जाने का आदेश दिया. बीस अंगरक्षक अपने साथ ले, ज़ोरान एक आंधी समान सीमा की ओर चल दिया. परन्तु जब तक वह लोग सीमा पर पहंचे, तब तक ब्राशिया की सेना लड़ाई जीत चुकी थी. हारी हुई तलाविया की सेना बिखर चुकी थी, ब्राशिया के सैनिक तलाविया के भीतर घुसने की तैयारी कर रही थी.

ज़ोरान एक क्रोधी शेर समान दहाड़ा. उसके साथी अंगरक्षक ब्राशिया की सेना पर टूट पड़े. ब्राशिया के सैनिक बहादुर थे, जीत ने उनका उत्साह बड़ा दिया था, परन्तु ज़ोरान तो एक अद्भुत योद्धा था. युद्ध के मैदान में वह एक प्रचंड आंधी के समान चारों ओर घूम रहा था. उसके आगे ब्राशिया का कोई भी सैनिक टिक न पा रहा था. एक ही वार से ज़ोरान बड़े से बड़े योद्धा को गिरा देता था. उसकी ताकत और जोश के सामने ब्राशिया के सेना डगमगाने लगी.

तलाविया के जो सैनिक हार कर पीछे हट गये थे वह भी युद्ध के मैदान में लौट आये. ज़ोरान को लड़ता देख वह सब उत्साह से भर गये, ब्राशिया के सैनिकों की गिनती अभी भी अधिक थी परन्तु वह सब ज़ोरान का सामना करने में असमर्थ रहे. वह धीरे-धीरे पीछे हटने लगे.

ब्राशिया की सेना हार गई और अपने देश की सीमा में लौट गई. तलाविया की सेना जीत गई. यह एक महत्वपूर्ण विजय थी, क्योंकि ब्राशिया की सेना बड़ी थी और पूरी तैयारी के साथ आई थी. सब जानते थे कि इस जीत का सारा श्रेय ज़ोरान को जाता था. तलाविया की सेना छोटी थी, पर ज़ोरान अकेला ही जैसे सौ सैनिकों के बराबर था. उसने अकेले ही युद्ध का पासा पलट दिया था.

सब ने ज़ोरान के साहस और बहादुरी की प्रशंसा की. राजा ने उसे देश का सबसे बड़ा सैनिक सम्मान दिया. लेकिन इस प्रशंसा और सम्मान से ज़ोरान को कोई ख़ुशी न मिली.

‘तुम प्रसन्न नहीं लगते? क्या हमसे कोई भूल हुई है?’ राजा ने बड़े प्यार से पूछा. ज़ोरान उन्हें अच्छा लगता था.

‘महाराज, मैं आपका आभारी हूँ कि इतना बड़ा सम्मान आपने मुझे दिया. सेना में ऐसे कितने ही वीर हैं जो कई लड़ाइयाँ लड़ चुके हैं पर उन्हें अभी तक यह सम्मान नहीं मिला. लेकिन मुझे इस में कोई रूचि नहीं है. अगर आप मुझे देश की रक्षा करने के लिए सीमा पर भेज दें तो मेरे लिए उस से बढ़ कर कोई सम्मान नहीं होगा.’

राजा ज़ोरान की बात सुन बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने उसे पूर्वी सीमा का नायक बना दिया और उसे सीमा पर जाने का आदेश दिया.

सारे तलाविया में उसका नाम प्रसिद्ध हो गया. शत्रु उससे डरने लगे. तलाविया के सभी सैनिक उसका आदर करने लगे. सभी सैनिकों के लिए वह एक आदर्श था, सब उसके जैसा वीर बनना चाहते थे.

ब्राशिया का महत्वाकांक्षी राजा यंगहार्ज़ इस हार से तिलमिला गया. वह तो सोचे बैठा था कि उसकी योजना सफल होगी और उसकी सेना युद्ध में जीत अर्जित करेगी. उसने इस हार का बदला लेने की ठानी. उसने सेना को युद्ध के लिए फिर से तैयार होने के लिए कहा. सेना ने छह महीने तैयारी की. हमले की पूरी योजना बनाई गई. अभ्यास भी किया गया. सेना के सबसे सक्षम नायक को हमला करने के लिए भेजा गया.

इस बार भी हमला पूर्वी चौकी पर किया गया. ब्राशिया का राजा जानता था कि पूर्वी चौकी का नायक ज़ोरान है. ज़ोरान को पराजित कर वह दिखलाना चाहता था कि ब्राशिया के योद्धा किसी से कम नहीं हैं.

ज़ोरान तैयार था. उसके अधीन सौ सैनिक थे. ब्राशिया की सेना के लगभग चार सौ सैनिकों ने आक्रमण किया था, परन्तु इतनी बड़ी सेना देख कर भी ज़ोरान बिल्कुल न घबराया. वह तो कब से इस दिन की प्रतीक्षा कर रहा था.

ज़ोरन और उसके सैनिक भूखे शेरों समान शत्रु पर टूट पड़े. ज़ोरान स्वयं इतनी बहादुरी से लड़ा कि शत्रु सेना उससे भयभीत हो गई, शत्रु सैनिक उसके सामने आने से कतराने लगे. बड़े से बड़ा योद्धा भी उसके आगे टिक न पा रहा था. ब्राशिया के अधिकतर सैनिक या तो मारे गये या बुरी तरह घायल हो गये.

ब्राशिया के सैनिक समझ गये कि वह युद्ध में जीत न पायेंगे. बहुत प्रयास के बाद भी वह एक इंच आगे न बढ़ पाये थे. सैंकड़ों सैनिकों का बलिदान वयर्थ जा रहा था. ब्राशिया के सेना ने हार मान ली और पीछे हट गई.

अब चारों दिशाओं में ज़ोरान का नाम प्रसिद्ध हो गया. दूर-दूर के देशों में भी योद्धा उसकी बहादुरी की कहानियां सुनने लगे. कई योद्धा तो यह मानने लगे कि महान ज़ारान की भांति ज़ोरान भी एक शक्तिशाली और अजेय योद्धा था. सौ सैनिक एक साथ मिल कर भी ज़ोरान का सामना नहीं कर सकते थे. हर योद्धा के मन में ज़ोरान के प्रति सम्मान था, परन्तु सम्मान से अधिक उनके मन में भय था.  हर कोई मन में यही कामना करता था कि उसे कभी ज़ोरान का सामना न करना पड़े.

ब्राशिया का राजा यंगहार्ज़ गुस्से से पागल हो रहा था. उसे विश्वास ही न हो रहा था कि इतनी तैयारी करने के बाद भी उसकी सेना हार कर लौट आई थी. अपनी हारी हुई सेना को देख कर राजा को गहरा धक्का लगा; उसके सैनिक झुझारू योद्धा नहीं, पिटे हुए पिल्लों जैसे लग रहे थे.
©आइ बी अरोड़ा 

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