Saturday, 1 August 2015

मनका राम की मूंछ

एक गाँव में एक हलवाई रहता था. नाम था मनका राम. अपने गाँव में नहीं, आस-पास के कई गाँव में भी वह प्रसिद्ध था, अपनी बड़ी-बड़ी मूंछों के कारण.

उसकी दूकान पर दिन भर लोगों की भीड़ लगी रहती थी. जो कोई आता वह कहता, ‘वाह, क्या शानदार मूँछे हैं आपकी मनका राम जी. ऐसी मूंछें तो दस गाँव में किसी की नहीं हैं.’

मूंछों की प्रशंसा सुन कर मनका राम फूल कर कुपा हो जाता. बड़े चाव से मूंछों को ताव देने लगता और कहता, ‘अरे भाई, यह थोड़ी मिठाई तो खाओ. ऐसी स्वाधिष्ट मिठाई दस गाँव में भी न मिलेगी.’

शाम होने तक वह ढेर सारी मिठाई लोगों को खिला देता, लेकिन मुफ्त. रात होने पर घर जाता और पत्नी से कहता, ‘आज तो कल से भी अधिक लोग आये थे. सबको मिठाई बहुत अच्छी लगी.’

‘आज तो फिर खूब बिक्री हुई होगी?’

‘बिकी तो बस दस किलो ही,’ वह धीमे से कहता.

‘तुमने तो पचास किलो मिठाई बनाई थी, बाकि का क्या हुआ? तुम ने आज फिर इतनी मिठाई मुफ्त ही खिला दी?’ पत्नी गुस्से से पूछती.

‘सब मेरी मूंछों की इतनी प्रशंसा कर रहे थे कि मैं अपने को रोक न पाया. सबको थोड़ी-थोड़ी मिठाई खिला दी.’

‘तो क्या तुम्हारी मूंछों को पका कर खाना बनाऊं आज?’ पत्नी ने गुस्से से कहती.

मनका राम को यह बात अच्छी न लगी, चिल्ला कर बोलता, ‘ऐसा न कहा करो.’

मनका राम एक बेटा था. नाम था गोविन्द. वह बहुत शरारती था. झगड़ालू भी था. हर दिन किसी न किसी से मार-पीट कर घर आता था. गोविन्द की माँ शिकायत करती तो मनका राम कहता, ‘मेरे बेटे को दोष मत दिया करो, सब के बच्चे मार-पीट करते हैं. गोविन्द अभी बच्चा है, थोड़ी उझल-कूद कर लेता है, इसमें इतना गुस्सा करने वाली क्या बात है.’

पत्नी को मनका राम की बात ठीक न लगती. एक दिन उस ने कहा, ‘लड़का बिगड़ रहा है. एक दिन तुम ही पछताओगे.’

मनका राम बेटे को समझाने लगा, ‘अरे मूर्ख, सारा समय यूँ खेल-कूद मत किया कर. थोड़ा पढ़-लिख ले, नहीं तो बड़ा हो कर मेरी तरह हलवाई ही बनेगा.’

‘हलवाई बन कर मैं भी बापू की तरह बड़ी-बड़ी मूंछे रखूँगा और बापू की तरह सबको मुफ्त मिठाई खिलाऊंगा,’ गोविन्द को ठिठोली का बहाना मिल गया और लगा पिता की नकल करने.

एक दिन मनका राम और उसकी पत्नी झगड़ रहे थे.

‘तुम सारा दिन मूंछों को ताव देते रहते हो और सबको मुफ्त मिठाई खिलाते हो, पर मैं घर कैसे चलाऊं? कुछ कमा कर लाओगे तभी तो घर चलेगा.’

‘सब मेरी मूंछों की प्रशंसा करते हैं पर तुम हर समय मेरी मूंछों के पीछे पड़ी रहती हो.’

‘वह सब प्रशंसा नहीं करते, तुम्हें मूर्ख बनाते हैं, थोड़ी से प्रशंसा कर ढेर सारी मिठाई मुफ्त खाते हैं.’

गोविन्द दोनों की बातें सुन रहा था. उसने मन ही मन सोचा, ‘अगर बापू की मूंछे काट दी जाएँ तो सब ठीक हो जायेगा. न कोई मूंछों की प्रशंसा करेगा, न बापू किसी को मुफ्त मिठाई खिलाएंगे.’

आधी रात के समय जब मनका राम गहरी नींद सो रहा था, गोविन्द ने मनका राम की आधी मूंछ काट दी. बची हुई मूंछ भी वह काटने वाला ही था कि मनका राम की नींद खुल गई.

एक खरगोश समान गोविन्द चुपके से भाग गया. मनका राम समझ न पाया कि क्या हुआ था. अचानक उसका हाथ मूंछों पर गया. वह चिल्लाया, ‘मेरी मूंछ?’

‘क्या हुआ? क्यों चिल्ला रहे हो?’ पत्नी ने झुंझला कर पूछा.

‘मेरी मूंछ?’

‘क्या मेरी मूंछ, मेरी मूंछ लगा रखा है?’

‘मेरी मूंछ नहीं है.’

पत्नी ने उठ कर बत्ती जलाई. देखा मनका राम की आधी मूंछ गायब थी. वह खिलखिला कर हंस दी.

‘लगता है तुम्हारी आधी मूंछ चोरी हो गई है.

‘किसी ने मेरी मूंछ काट डाली और तुम्हें हंसी आ रही है. अब क्या होगा?’

‘अब सारी मूंछ काटनी पड़ेगी.’

‘सब मुझ पर हंसेगे.’

‘पर बापू किसी को मुफ्त मिठाई तो न मिलेगी,’ यह बात गोविन्द ने कही थी. वह भी वहां आ पहुंचा था.

मनका राम को लगा कि यह शरारत उसी ने की होगी. वह डंडा ले कर दौड़ा. गोविन्द भाग कर माँ की गोद आ छिपा.

‘तुमने बापू की मूंछ काटी?’ माँ ने गोविन्द से पूछा.

‘और कौन काटता?’ गोविन्द अकड़ कर बोला.

‘क्यों काटी तुमने बापू की मूंछ?’ माँ ने आँखें दिखाईं.

‘जब मूंछ न होगी तो कौन मूंछों की प्रशंसा करेग? अब न कोई मूंछों की प्रशंसा करेगा, न किसी को मुफ्त मिठाई मिलेगी. सब को मिठाई खरीदनी पड़ेगी. अब खूब बिक्री होगी,’ गोविन्द ने चहक कर कहा.

गोविन्द का उत्तर सुन माँ ने ज़ोर का ठहाका लगाया पर मनका राम का मुहं गुस्से से लाल हो रहा था.

‘जब मैं कहती थी कि गोविन्द बिगड़ रहा है तब तुम मेरी एक न सुनते थे. अब पछताओ,’ मनका राम की पत्नी ने कहा.

मनका राम को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. उसका गुस्सा कुछ कम हुआ तो बोला, ‘अब क्या होगा? सब मेरा मज़ाक उड़ायेंगे.’

‘अब तो सारी मूंछ साफ़ करनी ही होगी, ऐसे तो तुम घर से बाहर नहीं जा सकते,’ पत्नी ने धीमे से कहा.

अगले दिन सब मनका राम को देख कर भौंचक्के रह गये. मनका राम का चेहरा पूरी तरह साफ़ था. पर कोई कुछ बोला नहीं, सब चुपचाप लौट गये. जब मूंछ ही नहीं थी तो प्रशंसा किस की करते? मनका राम ने किसी को भी मुफ्त में मिठाई न दी. सब ललचाई आँखों से मिठाई देखते रहे पर किसी को भी खाने के लिए मुफ्त मिठाई न मिली.

परन्तु मुफ्त की मिठाई खा-खा कर लोगों को मिठाई का स्वाद लग चुका था. सबका मन मिठाई खाने को हो रहा था. मनका राम की मिठाई थी भी बहुत स्वाधिष्ट. ऐसी मिठाई दस गाँव में न मिलती थी. मिठाई के बिना रहना सब के लिए कठिन हो रहा था.

एक–एक कर सब मनका राम की दूकान पर आने लगे. सब मिठाई मोल ले कर खाने लगे. मनका राम की मिठाई खूब बिकने लगी. हर रात वह बिक्री के सारे पैसे अपनी पत्नी को देता. वह प्रसन्नता से खिल उठती.

गोविन्द ने भी अपनी शरारतें कम कर दीं. कभी कोई शरारत करता तो माँ बड़े प्यार से समझा देती. मनका राम भी प्रसन्न था. एक दिन पत्नी से बोला, ‘हमारे तो भाग्य ही पलट गये. अब खूब बिक्री होती है, सब मोल ले कर मिठाई खाते हैं. गोविन्द भी मन लगा कर पढ़ता है.’

गोविन्द निकट ही था और सब सुन रहा था. बोला, ‘बापू, मैंने मूंछ काट कर ठीक किया न?’

‘अरे शरारती, तेरी पिटाई तो अभी बाकि है,’ इतना कह मनका राम खिलखिला कर हंस दिया.

© आइ बी अरोड़ा 

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