एक लंबी कहानी---“पत्थर
का योद्धा” (भाग 1)
लगभग नौ सौ वर्ष
पुरानी बात है. तलाविया में एक बच्चे का जन्म हुआ. जन्म के समय ही वह शिशु बहुत
बड़ा था, उस भीमकाय शिशु को देख कर उसकी दादी ख़ुशी से चिल्लाई. उसने प्रसन्नता से
कहा, ‘अरे देखो, यह लड़का कितना बड़ा है. मेरी बात समझ लो, बड़ा हो कर यह संसार का
सबसे शक्तिशाली आदमी होगा. यह उतना ही शक्तिशाली होगा जितने शक्तिशाली ज़ारान
थे. क्यों न हम इसका नाम ज़ोरान रखें?”
बच्चे के पिता न
कहा, “तुम ने ठीक कहा माँ, मेरे बेटे पर अवश्य ही महान ज़ारान की कृपा है. इसका नाम
तो ज़ोरान ही होना चाहिये.”
ज़ारान का जन्म दो हज़ार
वर्ष पहले हुआ था. वह एक महान योद्धा था. उसने कई दैत्यों और दानवों से लड़ाई कर
उन्हें पराजित किया था. ज़ारान ने कई बार अपने देश को शत्रुओं के आक्रमण से बचाया
था. तलाविया के लोग उसे देवता सामान पूजते थे. तलाविया का हर युवक ज़ारान के समान
बहादुर और शक्तिशाली बनने का सपना देखता था. हर पिता चाहता था कि उसका पुत्र ज़ारान
जैसा निडर और ताकतवर हो.
ज़ोरान बड़ा हुआ. वह
ताकतवर लड़का था. अभी वह चौदह वर्ष का भी न हुआ था पर सात फुट से अधिक लम्बा था. वह
एक बैल समान मज़बूत और तगड़ा था. कुल्हाड़ी के एक वार से वह एक बड़ा पेड़ काट सकता था. निहत्थे
ही वह एक भारी-भरकम भालू से लड़ सकता था और उसे मार सकता था.
ज़ोरान का पिता एक
सीधा-साधा, चरवाहा था. उसकी इच्छा थी ज़ोरान भी उसकी भांति चरवाहा बने और
भेड़-बकरियों की देखभाल करे. परन्तु ज़ोरान सिपाही बनना चाहता था. वह सेना का सिपाही
बन, देश के शत्रुओं से लड़ना चाहता था. वह दैत्यों से लड़ना चाहता था. अपने देश, तलाविया, की रक्षा करना चाहता था और
ज़ारान की तरह एक महान योद्धा बनना चाहता था.
एक दिन, अपने पिता
को बताये बिना, वह तलाविया के राजा के सामने उपस्थित हो गया. राजा उसे देख कर बहुत
प्रसन्न हुए और बोले, ‘मेरे बच्चे, तुम्हें तो हमारी सेना का सिपाही होना चाहिये.
हमारी सेना को तुम जैसे बहादुर और शक्तिशाली युवकों की आवयश्कता है.’
‘महाराज, मेरे पिता
की इच्छा है कि मैं उनकी भेड़-बकरियों की देखभाल करूं. मैं अपने पिता की आज्ञा का
पालन ही करूंगा, मैं उन्हें दुःखी नहीं कर सकता,’ ज़ोरान ने कहा.
‘हम तुम्हारे पिता
से बात करेंगे. हमें विश्वास है कि वह हमारा अनुरोध स्वीकार कर लेंगे और तुम्हें
सिपाही बनने की अनुमति दे देंगे.’ राजा ने कहा.
ज़ोरान के पिता राजा
का कहा न टाल सके और उन्होंने अपने बेटे को सिपाही बनने की अनुमति दे दी. ज़ोरान की
खुशी का ठिकाना न था. वह तलाविया के सेना का एक सिपाही बन रहा था.
तीन वर्षों तक उसने
कड़ी मेहनत की. तलवार चलाना सीखा, तीर चलाने सीखे, भाले और गदा से युद्ध करना सीखा.
घुड़सवारी करना, रथ चलाना, बिना किसी शस्त्र के लड़ाई करना, दिन में लड़ना, रात के
अँधेरे में लड़ना, सब कुछ उसने पूरी लगन और मेहनत से सीखा.
तीन वर्षों के कड़े प्रशिक्षण
के बाद वह हर शस्त्र के साथ लड़ने में पूरी तरह सक्षम हो गया. वह एक भयंकर योद्धा
बन गया था. तलाविया के सैनिक उसका सम्मान करने लगे थे. कई तो उससे ईर्षा भी करते
थे.
राजा भी उसे देख कर
बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उसे अपना अंगरक्षक बना लिया. राजा का अंगरक्षक बनना एक
सैनिक के लिए सम्मान की बात थी. परन्तु ज़ोरान प्रसन्न न हुआ. वह अंगरक्षक बनने के
बजाये देश की सीमा पर जा कर शत्रुओं का सामना करना चाहता था.
प्रशिक्षण की
समाप्ति पर वह अपने परिवार से मिलने अपने गाँव गया. उसके पिता उसे देख कर प्रसन्न
हुए और बोले, ‘अब मुझे लगता है कि सैनिक बनने का तुम्हारा निर्णय सही था. चरवाहा
बन कर तुम अपना जीवन व्यर्थ ही गवां देते. मैं जानता हूँ कि प्रशिक्ष्ण के समय
तुमने कड़ी मेहनत की थी. अब एक अच्छा सिपाही बनना. शत्रु के साथ सिंह समान लड़ना, कभी
हार न मानना. देखना, महान ज़ारान की कृपा से, एक दिन सब तुम्हारी शक्ति से डरेंगे
और तुम्हारी बहादुरी का सम्मान करेंगे.’
ज़ोरान राजा के
अंगरक्षक के रूप में काम करने लगा. दिन बीते, सप्ताह बीते, माह बीते. सब ओर शान्ति
थी. परन्तु एक दिन ब्राशिया की सेना ने तलाविया पर अचानक आक्रमण कर दिया.
तलाविया और ब्राशिया
के बीच सौ वर्षों से कोई लड़ाई नहीं हुई थी. अतः सीमा पर तलाविया का प्रबंध थोड़ा
ढीला हो गया था. ब्राशिया का नया राजा यंगहार्ज़ महत्वाकांक्षी था. गुप्तचरों ने उसे बताया था कि
पूर्वी सीमा पर तलाविया की सेन्य शक्ति कमज़ोर थी. तलाविया की लापरवाही से उत्साहित
हो कर यंगहार्ज़ ने हमला कर दिया.
तलाविया के सैनिक
युद्ध के लिया तैयार न थे, परन्तु वह सब बहुत बहादुरी से लड़े. हार निश्चित लग रही
थी. लड़ाई शुरू होते ही, टुकड़ी के नायक ने एक सैनिक राजमहल की ओर दौड़ा दिया था. उस
संदेशवाहक ने राजा को आक्रमण की सूचना दी और निवेदन किया कि तुरंत कुछ सैनिक सीमा
की सुरक्षा के लिए भेजे जाएँ, अगर कुमक भेजने में ज़रा भी देर हुई तो ब्राशिया की
सेना जीत जायेगी और राजधानी की ओर बढ़ने लगेगी.
©आइ बी अरोड़ा
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