वनदेवी का क्रोध
एक समय की बात है. अचरज
वन में बुद्धिमान सिंह राज करता था. वह जंगल के सब पशुओं से प्यार करता था. हर पशु
का पूरा ध्यान रखता था. सारे पशु भी शेर का बहुत सम्मान करते थे.
अचानक एक दिन
बुद्धिमान सिंह बीमार हो गया. सब ने उसकी खूब सेवा की, पर उसे बचा न पाये. उसकी
मृत्यु हो गई.
सब को बहुत दुःख
हुआ. परन्तु चिंता का विषय यह था कि राजा किसे बनाया जाये.
बुद्धिमान सिंह का
एक बेटा था, नाम था घुम्मकड़ सिंह. उसे घूमना-फिरना बहुत अच्छा लगता था. जिस समय
उसके पिता की मृत्यु हुई उस समय भी वह कहीं सैर-सपाटा करने गया हुआ था. उसे गये
हुए तीन माह हो चुके थे. कोई न जानता था कि वह कहाँ था और कब लौट कर आयेगा.
पशुओं ने एक सभा
बुलाई. हाथी ने सब से कहा, ‘जंगल के कानून के अनुसार तो घुम्मकड़ को ही राजा बनाना
चाहिये. परन्तु कोई नहीं जानता कि वह कहाँ है. ऐसी स्थिति में हमें क्या करना
चाहिये?’
सियार ने झट से कहा,
‘हाथी को ही राजा बना दिया जाये. वह सब से समझदार है, सबसे शक्तिशाली है.’
लोमड़ ने तुरंत सियार
की बात का समर्थन किया.
वह दोनों धूर्त थे.
वह जानते थे कि हाथी सीधा-साधा पशु था.
अगर वह राजा बन गया तो वह दोनों उसके भोलेपन का लाभ उठा कर खूब मनमानी कर
सकते थे.
भालू ने कहा, ‘हम
कानून नहीं तोड़ सकते. किसी शेर को ही जंगल का राजा बनाया जा सकता है. हाथी को राजा
बनाना गलत होगा.’
सियार ने कहा, ‘आप
बिलकुल सही कह रहे हैं. हमें कानून नहीं तोड़ना चाहिये. पर जब तक घुम्मकड़ सिंह लौट
नहीं आता तब तक किसी न किसी को तो राजपाट चलाना ही होगा.’
लोमड़ ने कहा, ‘राजा
के बिना अगर कोई गड़बड़ हो गई तो हम सब क्या करेंगे?’
गैंडे ने कहा, ‘राजा
तो होना ही चाहिये. तभी तो सब पशु कानून का पालन करंगे.’
भेड़िये ने कहा,
‘चुनाव कर लेते हैं, अब तो कई वनों में चुनाव से ही राजा चुना जाता है.’
सियार और लोमड़ एक
साथ बोले, ‘हमारा प्रस्ताव है कि हाथी को इस वन राजा बनाया जाये. जो पशु इस प्रस्ताव
का समर्थन करते हैं वह अपना हाथ उठायें.’
उनकी बात सुन कर सब
पशु एक-दूसरे की ओर देखने लगे. लोमड़ और सियार को छोड़ किसी ने अपना हाथ न उठाया.
फिर दो-चार पशुओं ने
अपने-अपने हाथ उठा दिए. उनको देख कर कुछ और पशुओं ने भी हाथ उठा दिए. देखते ही
देखते लगभग सबने हाथ उठा दिए.
सियार ने खुशी से
चिल्ला कर कहा, ‘सबके समर्थन से हाथी को इस वन का राजा बना दिया जाता है.’
हाथी जंगल का राजा
बन गया.
सियार और लोमड़ अपनी
चतुराई पर मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए. दोनों हाथी के आस-पास ही मंडराने लगे. अवसर
मिलते ही उसकी चापलूसी करते. अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से हाथी का मन मोह लेने की
कोशिश करते.
हाथी सीधा-साधा तो
था पर मूर्ख नहीं था. वो जानता था कि सियार और लोमड़ धूर्त थे. दोनों उसका मन जीत
कर जंगल पर अपना दबदबा बनाना चाहते थे. हाथी ने भालू से इस विषय में बात की. भालू
ने कहा, ‘सियार और लोमड़ थोड़े चालाक हैं पर इतने बुरे पशु नहीं हैं.’
‘अरे, अवसर मिलते ही
यह सब पर अपनी मनमानी करने लगेंगे. तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा क्या? तो मेरी बात
ध्यान से सुनो. मैं कुछ समय के लिए ऐसा व्यवहार करूंगा कि जैसे मैं इनकी बातों में
आ गया हूँ. मेरे ऐसा दिखाते ही दोनों का व्यवहार बदल जायेगा. बस तुम दोनों पर
होशियारी से अपनी नज़र रखना.’
वैसा ही हुआ जैसा
हाथी ने सोचा था. जब सियार और लोमड़ को लगा कि हाथी उन पर विश्वास करने लगा था तो
दोनों अन्य पशुओं के साथ बुरा व्यवहार करने लगे. किसी की पिटाई कर देते, किसी से
कोई वस्तु छीन लेते, किसी को धमकाते कि वनराज से उसकी झूठी शिकायत कर देंगे.
सब जानते थे कि हाथी
की सियार और लोमड़ से अच्छी मित्रता थी, इसलिये कोई भी उन दुष्टों की शिकायत करने
का साहस न कर पाया.
भालू सब देख. उसने
हाथी को सारी बात बता दी.
‘मैंने कहा था न कि
यह दोनों धूर्त हैं. अब मैं इन्हें ऐसा सबक सिखाउंगा कि यह दोनों इस वन से ही भाग
जायेंगे,’ हाथी ने थोड़ा गुस्से से कहा.
अगले दिन जब सियार
और लोमड़ हाथी से मिलने आये तो हाथी ने कहा, ‘अरे तुम दोनों का क्या होगा?’
दोनों थोड़ा घबरा
गये. सियार ने पूछा, ‘क्या हुआ महाराज, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?’
‘कल रात वनदेवी मेरे
सपने में आईं. बहुत गुस्से में थीं, बोलीं कि मैंने राजा बन कर जंगल का कानून तोड़
दिया है. इस कारण मेरे सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे. मैंने कहा कि मैं अपनी इच्छा
से राजा नहीं बना. मुझे तो सियार और लोमड़ ने ज़बरदस्ती राजा बना दिया है. इस पर
वनदेवी ने कहा कि जिसने भी हाथी को राजा बनाया है उसके सिर के टुकड़े हो जायेंगे.’
सियार और लोमड़ के
होश उड़ गये. सियार ने कहा, ‘आप तो सब के समर्थन से राजा बने. सब चाहते थे कि आप
राजा बने.’
‘मैंने भी यही बात
वनदेवी से कही थी. वह बोलीं कि प्रस्ताव किसने रखा था. मुझे बताना पड़ा कि प्रस्ताव
तो तुम दोनों ने ही रखा था. बस, वनदेवी ने गुस्से में कह दिया कि जिसने भी मुझे
राजा बनाने का प्रस्ताव रखा था उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे.’
हाथी की बात सुन
सियार और लोमड़ की डर से घिग्घी बंद हो गई.
‘अब हमारा क्या
होगा?’ सियार ने कहा.
‘मुझे भी तुम्हारी
बहुत चिंता हुई. मैंने वनदेवी से कहा कि तुम दोनों को क्षमा कर दे.’ हाथी ने कहा.
‘वनदेवी ने क्या कहा?’ लोमड़ ने पूछा.
‘वनदेवी तो बहुत
गुस्सा थीं. पर मैंने भी बार-बार विनती की तो बोली, “अगर वह दोनों घुम्मकड़ सिंह को
ढूंढॅ कर ले आते हैं और उसे जंगल का राजा बना देते हैं तो मैं उनको क्षमा कर
दूंगी.” मैंने वनदेवी से तुरंत कह दिया कि तुम दोनों घुम्मकड़ सिंह को अवश्य ढूंढॅ
कर ले आओगे’
हाथी कि बात सुन
सियार और लोमड़ की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.
‘महाराज, कोई नहीं
जानता कि घुम्मकड़ सिंह कहाँ गये हैं. हम उन्हें ढूँढने कहाँ जाएँ,’ सियार ने कहा.
‘अब मैं क्या बताऊं,
वनदेवी ने कहा है कि अगर तुम आज सूर्य अस्त होने से पहले घुम्मकड़ सिंह को खोजने नहीं गये तो तुम दोनों के सिरों के
टुकड़े हो जायेंगे. मेरी मानो तो तुम दोनों अभी निकल पड़ो नहीं तो तुम्हारा अंत
निश्चित है.’
सियार ने लोमड़ की ओर
देखते हुए कहा, ‘भइया, निकल चलो. अगर घुम्मकड़ सिंह नहीं मिले तो किसी दूसरे वन में
आसरा ढूंढने की कोशिश करेंगे.’
उनके जाते ही भालू
ने हाथी से पूछा, ‘क्या सच मैं वनदेवी सपने में आई थीं?’
‘अरे नहीं, मैं
जानता था कि यह दोनों बड़े अन्धविश्वासी हैं. बस इसी बात का लाभ उठा कर इन्हें एक
मनगढंत कहानी सुना दी और देखो, दोनों दुष्टों से हम सब को छुटकारा मिल गया.’
‘इन दुष्टों ने सब
की नाक में दम कर रखा था. इन के साथ ऐसा ही व्यवहार करना उचित था.’
© आइ बी अरोड़ा