Sunday, 28 February 2016

डर तो लगा(अंतिम भाग)
‘सर, भूल हो गई. माफ़ कर दें. मेरे मित्र की माँ बहुत बीमार है. हम उसे देखने अस्पताल जा रहे हैं. बस परेशानी में ध्यान ही न रहा कि कार की रफ्तार इतनी तेज़ हो गई है.’ सियार ने कहा.
‘सर, हम ऐसी गलती फिर कभी न करेंगे. हमेशा ट्रैफिक नियमों का पालन करेंगे. इस बार क्षमा कर दें और हमें जाने दें. हमें अभी अस्पताल पहुंचना है,’ लोमड़ ने भी गिड़गिड़ा कर कहा. 
‘तुम्हारी कार की तलाशी लेनी होगी. चलो बाहर आओ.’ इंस्पेक्टर ने कहा.
‘क्यों तलाशी लेनी होगी? हम कोई अपराधी हैं क्या?’ लोमड़ ने कहा.
‘तुम लोगों ने वेश बदल रखा है पर मैं जानता हूँ कि तुम कौन हो. अब मुझे यह देखना है कि तुम दोनों ने कोई गड़बड़ तो नहीं की.’
इतना कह कर इंस्पेक्टर ने कार के भीतर झांका.
‘इस कम्बल के नीचे कौन है?’ इंस्पेक्टर ने कड़क आवाज़ में पूछा.
‘मेरा बेटा है, सो रहा है,’ लोमड़ ने रिंकू की गर्दन में चाक़ू की नोक चुभाते हुए कहा. रिंकू डर से थर-थर कांपने लगा.
‘यह इस तरह कांप क्यों रहा है?’ इंस्पेक्टर ने पूछा.
‘वो बीमार है,’ लोमड़ ने बिना सोचे समझे कह दिया.
‘सियार कह रहा था कि तुम्हारी माँ बीमार है, तुम कह रहे  हो कि तुम्हारा बेटा बीमार है. यह चक्कर क्या है?’ इंस्पेक्टर ने कहा और झटक कर कम्बल खींच दिया.
कम्बल के नीचे रिंकू लेटा था. लोमड़ का चाक़ू उसकी गर्दन पर टिका था. इंस्पेक्टर ने अपनी पिस्तौल लोमड़ के सिर पर तान दी और गुस्से से कहा, ‘अपना चाक़ू कार से बाहर फैंक दो और बाहर आ जाओ, अभी, नहीं तो गोली मार दूँगा.’
लोमड़ सहम गया. उसने चाक़ू दूर फैंक दिया. दोनों बाहर आ गये. एक सिपाही ने सियार और लोमड़ को हथकड़ी लगा दी. रिंकू भी भाग कर कार से बाहर आ गया. इंस्पेक्टर ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा, ‘ तुम ठीक तो हो न? फोन करते समय तुम्हें डर तो न लगा?’
रिंकू कुछ कहने ही वाला था कि लोमड़ बोल पड़ा, ‘तुम ने पुलिस को फोन किया था? कब? कैसे?’
रिंकू ने जेब से एक सेलफोन निकाल कर दिखाया और बोला, ‘आज पापा ने अपना फोन मुझे दे दिया था. इसी से मैंने पुलिस को फोन किया था.’
फिर उसने इंस्पेक्टर से कहा, ‘इस बदमाश ने मुझे धोखे से बेहोश कर दिया था. मुझे जब होश आया तो मैं समझ गया कि मैं फंस गया हूँ. परन्तु मैंने साहस से काम लिया और चुपचाप कार में लेटा रहा. इन लोगों ने भूल से न तो मेरे हाथ पाँव बांधे और न ही मेरी तलाशी ली. बस मैं पुलिस को फोन करने का अवसर ढूँढने लगा. इनकी कार जब ट्रैफिक जाम में फंस गई तो यह घबरा गये. यह जाम से निकलने का रास्ता ढूँढने लगे और मुझे फोन करने का अवसर मिल गया. फोन करते समय मुझे थोड़ा डर तो लगा था परन्तु मैं जानता था कि मुझे थोड़ा जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा.’
‘तुम एक बहादुर बच्चे हो. सब बच्चों को तुम्हारी तरह साहसी होना चाहिये.’
लोमड़ और सियार फिर जेल पहुँच गये.   

Saturday, 27 February 2016


डर तो लगा(भाग 2
पुरानी हवेली के रास्ते में एक बहुत चौड़ी नदी थी. नदी के ऊपर एक पतला-सा पुल था. जैसे ही दोनों पुल के ऊपर आये उनके होश उड़ गये. पुल के बीचों-बीच एक ट्रक उलटा हुआ था. ट्रक के दोनों ओर गाड़ियों की लंबी कतार लगी थी.
‘जल्दी कार घुमाओ और वापस चलो. यहाँ जाम में फंस गये तो मुसीबत हो जायेगी. अपने दूसरे की ओर अड्डे चलते हैं,’ लोमड़ ने सियार से कहा.
‘वापस कैसे जाएँ? देखते नहीं, पीछे भी गाड़ियों की लाइन लग गई है.’
‘कुछ तो करो, यहाँ खड़े रहे तो गड़बड़ हो जायेगी. अगर किसी को ज़रा-सा भी संदेह हो गया तो फंस जायेंगे.’ लोमड़ ने बौखला कर कहा.
‘डरो नहीं कुछ न होगा.’ सियार ने कह तो दिया परन्तु पसीने तो उसके भी छूट रहे थे.
अचानक सियार कार से बाहर आ गया. वह थोड़ा घबरा गया था और चुपचाप वहां से खिसकने की बात सोच रहा था.
‘कहाँ जा रहे हो? कार में बैठ जाओ,’ लोमड़ ने झिड़कते हुए कहा.
‘मैं आगे जाकर देखता हूँ कि पुल पर क्या हो रहा है,’ सियार ने कहा.
‘कार में बैठे जाओ और कोई तमाशा न करो,’ लोमड़ ने गुस्से से कहा.
सियार लोमड़ से डरता था. वो लोमड़ से उलझना न चाहता था. चुपचाप कार में आकर बैठ गया.
सब गाड़ियां धीरे-धीरे आगे बढ़ रहीं थीं. उलटे हुए ट्रक के पास थोड़ा-सा रास्ता ही खाली था जहां से दोनों ओर रुकी गाड़ियां एक-एक कर निकल रहीं थीं.
लगभग आधे घंटा बाद ही दोनों वहां से निकल पाये.
‘आज किस्मत ने साथ दे दिया. न ही इस बन्दर के बच्चे को होश आया और न ही किसी को हम पर संदेह हुआ,’ लोमड़ ने राहत की सांस लेते हुए कहा.
‘अब पुरानी हवेली पहुँच कर ही दम लूंगा,’ इतना कह सियार ने कार की रफ्तार तेज़ कर दी.
पर तभी दोनों को साईरन की आवाज़ सुनाई दी. सियार ने एक पुलिस जीप को बड़ी तेज़ी से अपने पीछे आते देखा.
‘फंस गये, यह जीप हमारा पीछा कर रही है,’ सियार ने सहमी आवाज़ में कहा.
‘हमारा पीछा क्यों करेगी? कोई नहीं जानता कि हमने उस बन्दर के बच्चे का अपहरण किया है, कार चलाते रहो,’ लोमड़ ने अकड़ते हुए कहा. पर मन ही मन वह भी डरा हुआ था. सियार ने कार की रफ्तार बढ़ा दी पर पुलिस जीप उससे भी तेज़ रफ़्तार से पीछे आती रही. जल्दी ही पुलिस जीप आगे निकल आई. जीप में बैठे इंस्पेक्टर ने हाथ से संकेत किया और सियार को अपनी कार रोकनी पड़ी.
तभी लोमड़ को लगा कि रिंकू होश में आ चुका है. उसने अपना चाक़ू रिंकू की गर्दन पर रख दिया और धीमे से कहा, ‘चुपचाप कम्बल के नीचे लेटे रहो. अगर ज़रा से भी हिल्ले-डुल्ले तो इस चाक़ू से तुम्हारा गला काट दूँगा.’
रिंकू सहम गया और चुपचाप लेटा रहा. मन ही मन वह प्रार्थना कर रहा था कि पुलिस कार की तलाशी ले और वह बच जाये.
इंस्पेक्टर होशियार सिंह ने पास आकर गुस्से से पूछा, ‘कार इतनी तेज़ क्यों चला रहे थे? जुर्माना भरना पड़ेगा.’
(कहानी का अंतिम भाग अगले अंक में)

Friday, 26 February 2016

डर तो लगा(भाग 1)
जेल से बाहर आते ही लोमड़ ने सियार से कहा, ‘मैं रिंकू के बच्चे को छोडूंगा नहीं?’
‘मैं भी पीट-पीट कर उसकी चटनी बना दूँगा,’ सियार ने दाँत किटकिटाते हुए कहा.
तीन साल पहले दोनों एक बैंक में डकैती करने गये थे. कई दिनों से वह डकैती की योजना बना रहे थे. सब कुछ योजना अनुसार ही हो रहा था. पिस्तौल की नोक पर उन्होंने बैंक के सारे कर्मचारियों को बाथरूम में बंद कर दिया था. उसके बाद वह एक सूटकेस में जल्दी-जल्दी रूपए ठूंस रहे थे.
टिंकू बन्दर भी उस बैंक में काम करता था. उस दिन वो अपने बेटे, रिंकू, को अपने साथ बैंक ले आया था. डाकुओं को देखते ही रिंकू एक टेबल के नीचे छिप गया था.
उसे पता था कि बैंक में एक अलार्म लगा था. अलार्म का बटन दबाते ही निकट के पुलिस स्टेशन में अलार्म बज उठता था. वह रेंगता हुआ वहां चला गया जहां अलार्म का बटन था. उसने बटन दबा दिया. आनन-फ़ानन में पुलिस आ पहुंची. लोमड़ और सियार रंगे हाथों पकड़े गये.
सब ने रिंकू की बहादुरी की प्रशंसा की. उसे पुरूस्कार भी मिला. लोमड़ और सियार को जेल में ही पता चल गया था कि वह दोनों रिंकू के कारण पकड़े गये थे. दोनों ने मन ही मन तय कर लिया था कि जेल से छूट कर रिंकू को सबक सिखायेंगे.
रिंकू बन्दर स्कूल से लौट रहा था. तभी लोमड़ उसके पास आया. उसने एक बूढ़े का वेश बना रखा. उसके हाथ में एक पर्चा था. उसने रिंकू से कहा, ‘बेटा, ज़रा इस कागज़ पर लिखा यह पता पढ़ दोगे. मैं अपना चश्मा भूल आया हूँ. यह मेरे  भाई का पता है. मुझे उसके घर जाना है.’
रिंकू कागज़ ले कर पढ़ने लगा. लिखावट बहुत ख़राब थी. इस कारण वह बड़े ध्यान से पढ़ने की कोशिश करने लगा. तभी लोमड़ ने धीरे से अपना हाथ उसके मुहं पर रख दिया. उसके हाथ में एक रुमाल था जिस पर बेहोश करने वाली दवाई लगी थी.
एक पल में ही रिंकू बेहोश हो गया. लोमड़ ने फुर्ती से उसे गोद में उठा लिया. तभी एक कार उसके पास आकर रुकी. वो कार की पिछली सीट पर बैठ गया. कार में सियार था. लोमड़ के बैठते ही सियार ने कार चला दी.
लोमड़ ने रिंकू को कार की सीट पर लिटा दिया और उसके ऊपर कार में रखा एक कम्बल डाल दिया.
‘इसके हाथ-पाँव बाँध दो, जल्दी से,’ सियार ने कहा.
‘कोई आवयश्कता नहीं. इसके होश में आने से पहले ही हम पुरानी हवेली पहुँच जायेंगे,’ लोमड़ ने कहा. सियार का इस तरह आदेश देना लोमड़ को अच्छा न लगता था. वह अपने को सियार से अधिक होशियार समझता था.
‘मैं जो कह रहा हूँ वही करो, बहस मत करो,’सियार ने थोड़ा गुस्से से कहा.
‘तुम बहस कर रहे हो. चुपचाप ध्यान से कार चलाओ. अगर किसी से टक्कर हो गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे,’ लोमड़ ने भी थोड़ा चिल्ला कर कहा.
सियार ने मन ही मन लोमड़ को कोसा और गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी.

(कहानी का भाग 2 अगले अंक में)   

Thursday, 25 February 2016

 “दादी की सलाह” (अंतिम भाग)
अगले दिन उसके मित्र तीन साइकिलें लिए आ गये. रजत भी तैयार था. सभी साइकिलों पर सवार हो कर परेड ग्राउंड की ओर चल दिए.
पैड बांधे रजत बल्ले बाज़ी कर रहा था कि अचानक उसके मित्र भाग खड़े हुए. रजत कुछ समझ न पाया और भौंचक्का सा चुपचाप खड़ा रहा.
तभी दो लड़के आ धमके. दोनों लंबे-तगड़े थे. एक ने झपटा कर रजत को पकड लिया और उसे एक थप्पड़ मारा. दूसरा लड़का उसके मित्रों के पीछे भागा. उसने रजत के एक मित्र को पकड़ लिया.
‘चोर कहीं के, आज हम तुम्हें ऎसी सज़ा देंगे कि तुम चोरी करना भूल जाओगे.’ जिस लड़के ने रजत को पकड़ रखा था उसने चिल्ला कर कहा.
‘भाई, इन चोरों को थाने ले चलते हैं. पुलिस के डंडे पड़ेंगे तो ही यह सुधरेंगे.’ दूसरे लड़के ने कहा.
‘मैं चोर नहीं हूँ. मैंने कुछ नहीं चुराया,’ रजत ने कहा. उसकी आँखों से आंसुओं बह रहे थे.
‘तो क्या यह साइकिल तुम्हारे हैं? तुम सब ने हमारी दुकान से चुराये हैं.’ लड़के ने आँखें दिखाते हुए कहा.
दोनों लड़के रजत और उसके मित्रों को पुलिस स्टेशन ले आये. इंस्पेक्टर ने उन से पूछताछ की. रजत ने बताया कि उसके पिता सरकारी दफ्तर में काम करते हैं. इंस्पेक्टर ने फोन कर के उसके पिता को बुला लिया. इंस्पेक्टर की डांट सुन, रजत के मित्रों ने स्वीकार कर लिया कि साइकिल उन्होंने ही चुराये थे, रजत तो बस अपना खेलने का सामान ले कर आया था. इंस्पेक्टर ने रजत को घर जाने दिया. रजत के पिता ने राहत की सांस ली.
अब रजत को समझ आया कि दादी ने उसे क्यों कहा था कि वह उन लड़कों से मेलजोल न रखे. पर उसने दादी की बात अनसुनी कर दी थी. इसी कारण वह मुसीबत में फंस गया था और उसके पिता को भी अपमानित होना पड़ा था.
घर पहुँच उसने दादी को सब सच-सच बता दिया. उसने वचन दिया कि वह कभी भी बिना सोचे समझे किसी से मित्रता न करेगा. अगर कोई अच्छा मित्र न मिला तो वह अकेले ही रहेगा.
दादी ने उसे गले लगा कर खूब प्यार किया.
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Wednesday, 24 February 2016

दादी की सलाह (भाग 1)
रजत के पिता एक सरकारी दफ्तर में काम करते थे. हर दो तीन वर्षों में उनकी बदली एक नगर से दूसरे नगर हो जाती थी. जब भी उनकी बदली होती वो अपना सारा सामान बाँध कर रेल या बस से नई जगह आ जाते थे.
रजत को नए स्कूल में प्रवेश लेना पड़ता था. नये नगर और नये स्कूल में उसके नये मित्र बनते थे. पुराने मित्रों से नाता टूट जाता था.
नई जगह आकर उसका मन न लगता था. पर धीरे-धीरे उसे अपना नया स्कूल और अपने नये मित्र अच्छे लगने लगते थे.
जब वह आठवीं कक्षा में पढ़ता था तब उसके पिता की बदली पांडवपुर हो गई. पांडवपुर एक छोटा-सा नगर था. वहां आकर पिता ने उसे एक सरकारी स्कूल में प्रवेश दिला दिया. कुछ ही दिनों में स्कूल में छुट्टियां पड़ गईं.
घर के आस-पास जितने भी लड़के थे उनका चाल-चलन कुछ अच्छा न था. यह बात रजत की दादी पहले दिन ही जान गई थी. उसने रजत को समझाते हुए कहा, ‘यहाँ के लड़कों के साथ मित्रता करने में जल्दी न करना. मुझे इन लड़कों का चाल-चलन कुछ ठीक नहीं लगता. तुम्हें थोड़ा सावधान  रहना पड़ेगा.’
‘दादी, स्कूल में भी मेरा कोई मित्र नहीं बना. अगर मैं आस-पड़ोस के बच्चों के साथ मित्रता नहीं करता तो मेरा कोई मित्र न होगा.’
दादी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘अगर अच्छे मित्र न मिलें तो अकेले रहना ही उचित है. जिन लड़कों का चरित्र अच्छा नहीं उनके साथ मित्रता करके कभी भलाई न होगी. उल्टा कभी मुसीबत में ही पड़ जाओगे.’
रजत ने दादी की बात कुछ दिन अपने मन में रखी. लेकिन  अकेले रहना उसे अच्छा न लगता था. उसका दिल चाहता था कि उसके बहुत सारे मित्र हों. वो मित्रों के साथ खेले, पतंग उड़ाये, इधर-उधर घूमे. परन्तु उसे तो सारा समय घर पर ही बिताना पड़ता था.
उसके पिता अपने काम में व्यस्त रहते थे. माँ घर के काम-काज में लगी रहती थी. बस दादी थी जो उससे गपशप करती थी या कभी-कभार लूडो खेल लेटी थी. पर वो भी अपना अधिक समय पूजा-पाठ में लगाती थी.
कुछ दिनों के बाद दादी की बात भुला कर उसने अड़ोस-पड़ोस के लड़कों से मित्रता कर ली. उन लड़कों के साथ वह क्रिकेट या गिल्ली-डंडा खेलता. कभी-कभी उनके साथ घूमने चला जाता.
एक दिन दादी ने पूछा, ‘क्या बात है? आजकल तुम सारा दिन घर से बाहर रहते हो? कहीं तुमने इन शरारती बच्चों के साथ दोस्ती तो नहीं कर ली?’
‘दादी, यह लड़के वैसे नहीं हैं जैसा आप समझती हो.’
‘मेरी बात मानो और इन सब से थोड़ा दूर ही रहो.’
‘मेरा इन से कोई मेलजोल नहीं है, बस कभी-कभार इनके साथ क्रिकेट खेल लेता हूँ.’
‘मैंने मना किया था.’
‘अरे दादी, आप यूँही चिंता करती हैं. अच्छा, मैं उनसे दूर ही रहूँगा.’
परन्तु रजत ने ऐसा किया नहीं. धीरे-धीरे उसने उन लड़कों के साथ खूब मेलजोल बढ़ा  लिया.
एक दिन रजत अपने मित्रों के साथ घूम रहा था. एक मित्र ने कहा, ‘क्यों न हम कल परेड ग्राउंड जा कर क्रिकेट खेलें? गली में खेलने में मज़ा ही नहीं आता.’
‘क्या यहाँ कोई परेड ग्राउंड भी है?’ रजत ने पूछा.
‘कई साल पहले यहाँ एक राजा साहिब हुआ करते थे. उनके महल के पीछे एक ग्राउंड थी जहां उनकी सेना परेड किया करती थी. अब न राजा साहिब हैं, न उनकी सेना. सब लोग उस ग्राउंड में मौज-मस्ती करते हैं, लड़के दिनभर खेलते रहते है.’
‘कहाँ हैं यह परेड ग्राउंड?’
‘बहुत दूर, नगर के दूसरी ओर. साइकिलों पर जाना पड़ेगा.’
‘मेरे पास तो साइकिल है नहीं,’ रजत ने कहा.
‘तुम अपना क्रिकेट का सामान ले आना, हम साइकिल ले आयेंगे.’ दूसरे मित्र ने कहा.
‘कहां से? कैसे?’
‘साइकिल किराये पर ले लेंगे.’ तीसरे ने बताया.
अगले दिन उसके मित्र तीन साइकिलें लिए आ गये. रजत भी तैयार था. सभी साइकिलों पर सवार हो कर परेड ग्राउंड की ओर चल दिए.

पैड बांधे रजत बल्ले बाज़ी कर रहा था कि अचानक उसके मित्र भाग खड़े हुए. रजत कुछ समझ न पाया और भौंचक्का सा चुपचाप खड़ा रहा.
(कहानी का अंतिम भाग अगले अंक में पढ़ें) 

Monday, 22 February 2016

वनदेवी का क्रोध
एक समय की बात है. अचरज वन में बुद्धिमान सिंह राज करता था. वह जंगल के सब पशुओं से प्यार करता था. हर पशु का पूरा ध्यान रखता था. सारे पशु भी शेर का बहुत सम्मान करते थे.
अचानक एक दिन बुद्धिमान सिंह बीमार हो गया. सब ने उसकी खूब सेवा की, पर उसे बचा न पाये. उसकी मृत्यु हो गई.
सब को बहुत दुःख हुआ. परन्तु चिंता का विषय यह था कि राजा किसे बनाया जाये.
बुद्धिमान सिंह का एक बेटा था, नाम था घुम्मकड़ सिंह. उसे घूमना-फिरना बहुत अच्छा लगता था. जिस समय उसके पिता की मृत्यु हुई उस समय भी वह कहीं सैर-सपाटा करने गया हुआ था. उसे गये हुए तीन माह हो चुके थे. कोई न जानता था कि वह कहाँ था और कब लौट कर आयेगा.
पशुओं ने एक सभा बुलाई. हाथी ने सब से कहा, ‘जंगल के कानून के अनुसार तो घुम्मकड़ को ही राजा बनाना चाहिये. परन्तु कोई नहीं जानता कि वह कहाँ है. ऐसी स्थिति में हमें क्या करना चाहिये?’
सियार ने झट से कहा, ‘हाथी को ही राजा बना दिया जाये. वह सब से समझदार है, सबसे शक्तिशाली है.’
लोमड़ ने तुरंत सियार की बात का समर्थन किया.
वह दोनों धूर्त थे. वह जानते थे कि हाथी सीधा-साधा पशु था.  अगर वह राजा बन गया तो वह दोनों उसके भोलेपन का लाभ उठा कर खूब मनमानी कर सकते थे.
भालू ने कहा, ‘हम कानून नहीं तोड़ सकते. किसी शेर को ही जंगल का राजा बनाया जा सकता है. हाथी को राजा बनाना गलत होगा.’
सियार ने कहा, ‘आप बिलकुल सही कह रहे हैं. हमें कानून नहीं तोड़ना चाहिये. पर जब तक घुम्मकड़ सिंह लौट नहीं आता तब तक किसी न किसी को तो राजपाट चलाना ही होगा.’
लोमड़ ने कहा, ‘राजा के बिना अगर कोई गड़बड़ हो गई तो हम सब क्या करेंगे?’
गैंडे ने कहा, ‘राजा तो होना ही चाहिये. तभी तो सब पशु कानून का पालन करंगे.’
भेड़िये ने कहा, ‘चुनाव कर लेते हैं, अब तो कई वनों में चुनाव से ही राजा चुना जाता है.’
सियार और लोमड़ एक साथ बोले, ‘हमारा प्रस्ताव है कि हाथी को इस वन राजा बनाया जाये. जो पशु इस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं वह अपना हाथ उठायें.’
उनकी बात सुन कर सब पशु एक-दूसरे की ओर देखने लगे. लोमड़ और सियार को छोड़ किसी ने अपना हाथ न उठाया.
फिर दो-चार पशुओं ने अपने-अपने हाथ उठा दिए. उनको देख कर कुछ और पशुओं ने भी हाथ उठा दिए. देखते ही देखते लगभग सबने हाथ उठा दिए.
सियार ने खुशी से चिल्ला कर कहा, ‘सबके समर्थन से हाथी को इस वन का राजा बना दिया जाता है.’
हाथी जंगल का राजा बन गया.
सियार और लोमड़ अपनी चतुराई पर मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए. दोनों हाथी के आस-पास ही मंडराने लगे. अवसर मिलते ही उसकी चापलूसी करते. अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से हाथी का मन मोह लेने की कोशिश करते.
हाथी सीधा-साधा तो था पर मूर्ख नहीं था. वो जानता था कि सियार और लोमड़ धूर्त थे. दोनों उसका मन जीत कर जंगल पर अपना दबदबा बनाना चाहते थे. हाथी ने भालू से इस विषय में बात की. भालू ने कहा, ‘सियार और लोमड़ थोड़े चालाक हैं पर इतने बुरे पशु नहीं हैं.’
‘अरे, अवसर मिलते ही यह सब पर अपनी मनमानी करने लगेंगे. तुम्हें विश्वास नहीं हो रहा क्या? तो मेरी बात ध्यान से सुनो. मैं कुछ समय के लिए ऐसा व्यवहार करूंगा कि जैसे मैं इनकी बातों में आ गया हूँ. मेरे ऐसा दिखाते ही दोनों का व्यवहार बदल जायेगा. बस तुम दोनों पर होशियारी से अपनी नज़र रखना.’
वैसा ही हुआ जैसा हाथी ने सोचा था. जब सियार और लोमड़ को लगा कि हाथी उन पर विश्वास करने लगा था तो दोनों अन्य पशुओं के साथ बुरा व्यवहार करने लगे. किसी की पिटाई कर देते, किसी से कोई वस्तु छीन लेते, किसी को धमकाते कि वनराज से उसकी झूठी शिकायत कर देंगे.
सब जानते थे कि हाथी की सियार और लोमड़ से अच्छी मित्रता थी, इसलिये कोई भी उन दुष्टों की शिकायत करने का साहस न कर पाया.
भालू सब देख. उसने हाथी को सारी बात बता दी.
‘मैंने कहा था न कि यह दोनों धूर्त हैं. अब मैं इन्हें ऐसा सबक सिखाउंगा कि यह दोनों इस वन से ही भाग जायेंगे,’ हाथी ने थोड़ा गुस्से से कहा.
अगले दिन जब सियार और लोमड़ हाथी से मिलने आये तो हाथी ने कहा, ‘अरे तुम दोनों का क्या होगा?’
दोनों थोड़ा घबरा गये. सियार ने पूछा, ‘क्या हुआ महाराज, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?’
‘कल रात वनदेवी मेरे सपने में आईं. बहुत गुस्से में थीं, बोलीं कि मैंने राजा बन कर जंगल का कानून तोड़ दिया है. इस कारण मेरे सिर के सौ टुकड़े हो जायेंगे. मैंने कहा कि मैं अपनी इच्छा से राजा नहीं बना. मुझे तो सियार और लोमड़ ने ज़बरदस्ती राजा बना दिया है. इस पर वनदेवी ने कहा कि जिसने भी हाथी को राजा बनाया है उसके सिर के टुकड़े हो जायेंगे.’
सियार और लोमड़ के होश उड़ गये. सियार ने कहा, ‘आप तो सब के समर्थन से राजा बने. सब चाहते थे कि आप राजा बने.’
‘मैंने भी यही बात वनदेवी से कही थी. वह बोलीं कि प्रस्ताव किसने रखा था. मुझे बताना पड़ा कि प्रस्ताव तो तुम दोनों ने ही रखा था. बस, वनदेवी ने गुस्से में कह दिया कि जिसने भी मुझे राजा बनाने का प्रस्ताव रखा था उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे.’
हाथी की बात सुन सियार और लोमड़ की डर से घिग्घी बंद हो गई.
‘अब हमारा क्या होगा?’ सियार ने कहा.
‘मुझे भी तुम्हारी बहुत चिंता हुई. मैंने वनदेवी से कहा कि तुम दोनों को क्षमा कर दे.’ हाथी ने कहा.
‘वनदेवी ने क्या कहा?’ लोमड़ ने पूछा.
‘वनदेवी तो बहुत गुस्सा थीं. पर मैंने भी बार-बार विनती की तो बोली, “अगर वह दोनों घुम्मकड़ सिंह को ढूंढॅ कर ले आते हैं और उसे जंगल का राजा बना देते हैं तो मैं उनको क्षमा कर दूंगी.” मैंने वनदेवी से तुरंत कह दिया कि तुम दोनों घुम्मकड़ सिंह को अवश्य ढूंढॅ कर ले आओगे’
हाथी कि बात सुन सियार और लोमड़ की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.
‘महाराज, कोई नहीं जानता कि घुम्मकड़ सिंह कहाँ गये हैं. हम उन्हें ढूँढने कहाँ जाएँ,’ सियार ने कहा.
‘अब मैं क्या बताऊं, वनदेवी ने कहा है कि अगर तुम आज सूर्य अस्त होने से पहले घुम्मकड़ सिंह  को खोजने नहीं गये तो तुम दोनों के सिरों के टुकड़े हो जायेंगे. मेरी मानो तो तुम दोनों अभी निकल पड़ो नहीं तो तुम्हारा अंत निश्चित है.’
सियार ने लोमड़ की ओर देखते हुए कहा, ‘भइया, निकल चलो. अगर घुम्मकड़ सिंह नहीं मिले तो किसी दूसरे वन में आसरा ढूंढने की कोशिश करेंगे.’
उनके जाते ही भालू ने हाथी से पूछा, ‘क्या सच मैं वनदेवी सपने में आई थीं?’
‘अरे नहीं, मैं जानता था कि यह दोनों बड़े अन्धविश्वासी हैं. बस इसी बात का लाभ उठा कर इन्हें एक मनगढंत कहानी सुना दी और देखो, दोनों दुष्टों से हम सब को छुटकारा मिल गया.’

‘इन दुष्टों ने सब की नाक में दम कर रखा था. इन के साथ ऐसा ही व्यवहार करना उचित था.’
© आइ बी अरोड़ा 

Monday, 15 February 2016

निगरानी
भालू पुलिस स्टेशन आया. उसे देख इंस्पेक्टर ने पूछा, “ कैसे आना हुआ? सब ठीक तो है?”

भालू कुछ कहने वाला ही था कि एक सिपाही सियार को गर्दन से पकड़ कर इंस्पेक्टर के पास ले आया.

सियार को देख इंस्पेक्टर भड़क गया. गुस्से से बोला, “ तुम कब सुधरोगे? जेल से छूटे अभी चार दिन भी नहीं हुए और बदमाशी करने लगे.”

“मैंने कुछ नहीं किया. आपका यह सिपाही मुझ से पैसे मांग रहा था. मैंने मना कर दिया तो मुझे पकड़ कर ले आया,” सियार ने अकड़ कर कहा.

“साहब, यह एक बड़ा-सा चाकू लिए बाज़ार में घूम रहा था,” सिपाही ने चाक़ू दिखाते हुए कहा.

“यह झूठ बोल रहा है, यह चाक़ू मेरा नहीं है,” सियार चिल्लाया.

वहां दीवार के पास खड़े हो जाओ, तुम से मैं बाद में निपटूंगा,इतना कह इंस्पेक्टर ने भालू से पूछा, “आप कुछ कह रहे थे?”

“हम लोग एक सप्ताह के लिए अचरज वन जा रहे हैं. आप अपने सिपाही से कह दें कि मेरे घर पर निगरानी रखे.”

“अच्छा किया आपने मुझे बता दिया. आप निश्चिंत रहें. बस, जाते समय सारे दरवाज़े, खिड़कियाँ ठीक से अवश्य बंद कर देना.”

“वह तो मैं स्वयं करूंगा. सोचता हूँ सारे गहने और रूपए एक तिजौरी में बंद कर अपने बड़े ट्रंक में रख दूँ और ट्रंक को एक बड़ा सा ताला लगा दूँ.”

“अरे, आप इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं, हम हैं न घर की निगरानी करने के लिए.”

“आप ठीक कहते हैं पर मैं तिजौरी को ऐसे बाहर छोड़ के नहीं जा सकता.” इतना कह भालू लौट गया.

भालू की जाते ही इंस्पेक्टर ने सियार की ओर गुस्से से देखा. सियार ने हाथ जोड़ कर इंस्पेक्टर से क्षमा मांगी और कहा कि वह कभी भी, कोई भी गलत काम नहीं करेगा. इंस्पेक्टर ने उसे चेतावनी दे कर जाने दिया.

सियार भागा-भागा लोमड़ के पास आया और बोला, “बॉस, ऐसी खबर लाया हूँ कि सुन कर उछल पड़ोगे.”

“क्या पेड़ों पर पैसे उगने लगे?” लोमड़ ने उसका मज़ाक उड़ाते हुए कहा.

“भालू एक सप्ताह के लिये अचरज वन जा रहा है. उसके जाते ही हम उसके घर में चोरी करेंगे और उसकी तिजौरी में रखा सारा माल चुरा लेंगे.”   

सियार ने यह न बताया कि भालू ने पुलिस इंस्पेक्टर से कहा था कि उसके घर पर निगरानी रखे.

लोमड़ बहुत खुश हुआ और दोनों ने एक योजना बना ली. जिस रात भालू अचरज वन गया उस रात दोनों चोर भालू के घर के निकट छिप गये. उस रास्ते पर एक पुलिस का सिपाही बीच-बीच में चक्कर लगा रहा था. सियार ने उसकी ओर संकेत किया तो लोमड़ ने भी संकेत कर कहा कि कोई चिंता की बात नहीं.

रात एक बजे भालू के घर के निकट सड़क किनारे खड़ी एक कार में आग लग गई. यह लोमड़ की योजना थी. उस समय पुलिस वाला निकट ही था. वह गाड़ी की ओर भागा और आग बुझाने की कोशिश करने लगा.

सियार और लोमड़ इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रहे थे. वह झटपट भालू के घर में घुस गये. भीतर जाकर सियार वह ट्रंक खोजने लगा जिसमे भालू ने अपनी तिजौरी रखी थी.

“तुम्हें कैसे पता कि तिजौरी ट्रंक के अंदर है?” लोमड़ ने फुसफुसा कर पूछा.

“मुझे सब मालूम है, बस तुम चुपचाप खड़े रहो,” सियार ने अकड़ कर कहा. उसने लोमड़ को जानबूझ कर सारी बात न बताई थी.

ट्रंक मिलते ही सियार ने उस पर लगा ताला खोल दिया. ताले खोलने में वह बहुत माहिर था.

ट्रंक के अंदर एक तिजौरी थी. सियार झटपट तिजौरी खोलने लगा, पर तिजौरी खुली ही नहीं.

“इसे ही ले चलते हैं,” लोमड़ ने कहा.

“नहीं, अगर सिपाही आ गया तो इसे कैसे छिपाएंगे?” सियार ने कहा.

“वह तो आग बुझाने में व्यस्त है,” लोमड़ बोला.

“फिर भी हम कोई जोखिम नहीं उठा सकते. धीरज रखो, अभी तिजौरी खुल जायेगी,” सियार ने कहा. तभी तिजौरी खुल गई.

“जल्दी सारा माल निकालो,” लोमड़ ने कहा.

सियार ने तिजौरी में हाथ डाला.

पर यह क्या? भीतर तो कुछ भी नहीं था. सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा था. कागज़ के टुकड़े को सियार के हाथ से छीन कर लोमड़ पढ़ने लगा. उस पर लिखा था, ‘तुम्हारी मेहनत बेकार गई, इस बात का मुझे बड़ा खेद है. मैंने सारे गहने और रूपए कहीं ओर छिपा कर रख दिए हैं. ढूँढने का प्रयास भी न करना. अब समय नष्ट न करो और भागो. पुलिस आती ही होगी-- तुम्हारा शुभचिंतक भालू.’

गुस्से से लोमड़ की आँखें लाल हो गयीं. सियार डर गया. बोला, “मुझे क्या पता था कि भालू इतना धूर्त है. चलो निकल चलो यहाँ से, कहीं पुलिस न आ जाये.”

“उस गाड़ी पर मैंने दस हज़ार खर्च कर दिये थे और हमें मिला क्या?” लोमड़ गुस्से से चिल्लाया.

वह सियार को पीटने ही वाला था कि पुलिस इंस्पेक्टर आ पहुंचा. उसे देख कर दोनों चोरों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.

“तुम दोनों ने योजना तो अच्छी बनाई थी. कार में आग लगा दी और  हमारा सिपाही आग बुझाने लग गया, तुम यहाँ भीतर घुस आये. पर सिपाही ने मुझे फोन कर के तुरंत सूचना दे दी थी. मुझे लगा कि कुछ तो गड़बड़ है और मैं तुरंत आ पहुंचा.”

लोमड़ और सियार की बोलती बंद हो गयी थी. दोनों अपने को बहुत चालाक समझते थे. पर इस बार मात खा गये थे. भालू ने उन्हें चकमा दे दिया था, और इंस्पेक्टर उनकी चाल में न फंसा था. उलटे वह दोनों ही फंस गये थे. इंस्पेक्टर ने दोनों को हथकड़ी लगा दी और पुलिस स्टेशन ले आया. 
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 ©आइ बी अरोड़ा 

Friday, 12 February 2016

हाथी की दुकान
इक हाथी ने खोली दुकान
करने लगा वह भी कुछ काम
माल बहुत सा ले आया
सब को फिर संदेशा भिजवाया
“सामान सभी है मेरा अच्छा
सबसे बढ़िया सबसे सस्ता
झटपट न ले जाओगे
तो घाटे में रह जाओगे”
 पर कोई न आया लेने सामान
बैठे-बैठे बस हो गयी शाम
हाथी बहुत ही झुंझलाया
सब पर वह चीखा चिल्लाया
हल्ला सुन सिंह दौड़ा आया
हाथी पर उस को गुस्सा आया
सिंह ने खींचे हाथी के कान
बंद हो गई हाथी की दुकान.
© आइ बी अरोड़ा