Friday, 26 February 2016

डर तो लगा(भाग 1)
जेल से बाहर आते ही लोमड़ ने सियार से कहा, ‘मैं रिंकू के बच्चे को छोडूंगा नहीं?’
‘मैं भी पीट-पीट कर उसकी चटनी बना दूँगा,’ सियार ने दाँत किटकिटाते हुए कहा.
तीन साल पहले दोनों एक बैंक में डकैती करने गये थे. कई दिनों से वह डकैती की योजना बना रहे थे. सब कुछ योजना अनुसार ही हो रहा था. पिस्तौल की नोक पर उन्होंने बैंक के सारे कर्मचारियों को बाथरूम में बंद कर दिया था. उसके बाद वह एक सूटकेस में जल्दी-जल्दी रूपए ठूंस रहे थे.
टिंकू बन्दर भी उस बैंक में काम करता था. उस दिन वो अपने बेटे, रिंकू, को अपने साथ बैंक ले आया था. डाकुओं को देखते ही रिंकू एक टेबल के नीचे छिप गया था.
उसे पता था कि बैंक में एक अलार्म लगा था. अलार्म का बटन दबाते ही निकट के पुलिस स्टेशन में अलार्म बज उठता था. वह रेंगता हुआ वहां चला गया जहां अलार्म का बटन था. उसने बटन दबा दिया. आनन-फ़ानन में पुलिस आ पहुंची. लोमड़ और सियार रंगे हाथों पकड़े गये.
सब ने रिंकू की बहादुरी की प्रशंसा की. उसे पुरूस्कार भी मिला. लोमड़ और सियार को जेल में ही पता चल गया था कि वह दोनों रिंकू के कारण पकड़े गये थे. दोनों ने मन ही मन तय कर लिया था कि जेल से छूट कर रिंकू को सबक सिखायेंगे.
रिंकू बन्दर स्कूल से लौट रहा था. तभी लोमड़ उसके पास आया. उसने एक बूढ़े का वेश बना रखा. उसके हाथ में एक पर्चा था. उसने रिंकू से कहा, ‘बेटा, ज़रा इस कागज़ पर लिखा यह पता पढ़ दोगे. मैं अपना चश्मा भूल आया हूँ. यह मेरे  भाई का पता है. मुझे उसके घर जाना है.’
रिंकू कागज़ ले कर पढ़ने लगा. लिखावट बहुत ख़राब थी. इस कारण वह बड़े ध्यान से पढ़ने की कोशिश करने लगा. तभी लोमड़ ने धीरे से अपना हाथ उसके मुहं पर रख दिया. उसके हाथ में एक रुमाल था जिस पर बेहोश करने वाली दवाई लगी थी.
एक पल में ही रिंकू बेहोश हो गया. लोमड़ ने फुर्ती से उसे गोद में उठा लिया. तभी एक कार उसके पास आकर रुकी. वो कार की पिछली सीट पर बैठ गया. कार में सियार था. लोमड़ के बैठते ही सियार ने कार चला दी.
लोमड़ ने रिंकू को कार की सीट पर लिटा दिया और उसके ऊपर कार में रखा एक कम्बल डाल दिया.
‘इसके हाथ-पाँव बाँध दो, जल्दी से,’ सियार ने कहा.
‘कोई आवयश्कता नहीं. इसके होश में आने से पहले ही हम पुरानी हवेली पहुँच जायेंगे,’ लोमड़ ने कहा. सियार का इस तरह आदेश देना लोमड़ को अच्छा न लगता था. वह अपने को सियार से अधिक होशियार समझता था.
‘मैं जो कह रहा हूँ वही करो, बहस मत करो,’सियार ने थोड़ा गुस्से से कहा.
‘तुम बहस कर रहे हो. चुपचाप ध्यान से कार चलाओ. अगर किसी से टक्कर हो गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे,’ लोमड़ ने भी थोड़ा चिल्ला कर कहा.
सियार ने मन ही मन लोमड़ को कोसा और गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी.

(कहानी का भाग 2 अगले अंक में)   

No comments:

Post a Comment