Thursday, 25 February 2016

 “दादी की सलाह” (अंतिम भाग)
अगले दिन उसके मित्र तीन साइकिलें लिए आ गये. रजत भी तैयार था. सभी साइकिलों पर सवार हो कर परेड ग्राउंड की ओर चल दिए.
पैड बांधे रजत बल्ले बाज़ी कर रहा था कि अचानक उसके मित्र भाग खड़े हुए. रजत कुछ समझ न पाया और भौंचक्का सा चुपचाप खड़ा रहा.
तभी दो लड़के आ धमके. दोनों लंबे-तगड़े थे. एक ने झपटा कर रजत को पकड लिया और उसे एक थप्पड़ मारा. दूसरा लड़का उसके मित्रों के पीछे भागा. उसने रजत के एक मित्र को पकड़ लिया.
‘चोर कहीं के, आज हम तुम्हें ऎसी सज़ा देंगे कि तुम चोरी करना भूल जाओगे.’ जिस लड़के ने रजत को पकड़ रखा था उसने चिल्ला कर कहा.
‘भाई, इन चोरों को थाने ले चलते हैं. पुलिस के डंडे पड़ेंगे तो ही यह सुधरेंगे.’ दूसरे लड़के ने कहा.
‘मैं चोर नहीं हूँ. मैंने कुछ नहीं चुराया,’ रजत ने कहा. उसकी आँखों से आंसुओं बह रहे थे.
‘तो क्या यह साइकिल तुम्हारे हैं? तुम सब ने हमारी दुकान से चुराये हैं.’ लड़के ने आँखें दिखाते हुए कहा.
दोनों लड़के रजत और उसके मित्रों को पुलिस स्टेशन ले आये. इंस्पेक्टर ने उन से पूछताछ की. रजत ने बताया कि उसके पिता सरकारी दफ्तर में काम करते हैं. इंस्पेक्टर ने फोन कर के उसके पिता को बुला लिया. इंस्पेक्टर की डांट सुन, रजत के मित्रों ने स्वीकार कर लिया कि साइकिल उन्होंने ही चुराये थे, रजत तो बस अपना खेलने का सामान ले कर आया था. इंस्पेक्टर ने रजत को घर जाने दिया. रजत के पिता ने राहत की सांस ली.
अब रजत को समझ आया कि दादी ने उसे क्यों कहा था कि वह उन लड़कों से मेलजोल न रखे. पर उसने दादी की बात अनसुनी कर दी थी. इसी कारण वह मुसीबत में फंस गया था और उसके पिता को भी अपमानित होना पड़ा था.
घर पहुँच उसने दादी को सब सच-सच बता दिया. उसने वचन दिया कि वह कभी भी बिना सोचे समझे किसी से मित्रता न करेगा. अगर कोई अच्छा मित्र न मिला तो वह अकेले ही रहेगा.
दादी ने उसे गले लगा कर खूब प्यार किया.
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