Wednesday, 19 August 2015

मीठे बेर
एक भालू था कुछ ज़्यादा ही अकड़ू
 नाम था उसका ‘मिस्टर पकड़ू’
अच्छे लगते थे उसी मीठे बेर
जिन्हें खाने में करता न कभी वह देर
एक दिन टहल रहा था वो वन में
मीठे बेर खाउंगा सोच रहा था मन में
एक पेड़ पर दिखे उसे लाल-लाल बेर
मीठे बेर खाए हो चुकी थी बहुत देर
पर पेड़ था थोड़ा अधिक ही ऊँचा
बेरों तक उसका कोई हाथ न पहुंचा


देखा पेड़ पर बैठा था एक छोटा बन्दर
एक बात आई भालू के मन के अंदर
थोड़ा अकड़ कर वह बोला, ‘अबे छोटू,
कुछ बेर तो तोड़ कर दे मुझे, ओ घोटू’
बन्दर ने सुनी न उसकी बात
बैठा रहा वो चुपचाप रख हाथ पर हाथ
भालू ने कहा, ‘मूर्ख, बहरा कहीं का’
तब बन्दर ने धीमे से उसे कहा,
‘तुम समझते हो मुझे अपना नौकर? 
कहा तुम्हारा मैं फिर भी मान लेता 
प्यार से यही बात कहते तुम अगर.’


एक जिराफ़ घूम रहा था पेड़ के पास
उसे देख भालू के मन में जागी इक आस
जिराफ़ मज़े से खा रहा था मीठे बेर
‘ओ लम्बू, मुझे भी दे दे कुछ बेर’
ऐसा बोल, देखने लगा वह जिराफ़ की ओर
हाथ से संकेत कर रहा था वह बेरों की ओर
जिराफ़ चुपचाप खाता रहा मीठे बेर
उत्तर देने में उसने कर दी बहुत देर
वह बोला, ‘मीठे बेर मुझे लगते बहुत अच्छे
खा रहा हूँ मैं वही जो नहीं हैं कच्चे
 तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी थोड़ी
इतनी जल्दी भी तुम्हें क्यों है पड़ी
बेर खा कर जब मेरा मन भर जायेगा
तभी फिर कुछ करने का सोचा जायेगा’
भालू को आया बहुत गुस्सा जिराफ़ पर
कर नहीं सकता था पर वह कुछ मगर


बड़ी दृष्टता से उसने तब कहा
इक गिलहरी से  
इक कौवे से और
इक कबूतर से  
‘मीठे बेर खाना चाहता हूँ मैं भी 
तुम मेरी मदद कर दो ज़रा सी.’
पर मिस्टर पकड़ू की बात सुनी न किसी ने
और एक बेर भी तोड़ कर न दिया किसी ने
मीठे बेर थे भालू के मन भाये
आंसू आँखों में उसकी अब न रुक पाये
बहने लगे आंसू भालू की आँखों से
सावन में जैसे काले बादल हों बरसे
बूढ़ा कछुआ चलता था
इक पगडंडी पर


देखा उसने भालू को
थोड़ा रुक-रुक कर
भालू की सूरत देख उसने यूँ कहा,
‘यह सब तुम्हारा ही तो है किया धरा.
तुम्हें भी है पता कि तुम हो
बहुत घमंडी
थोड़े अक्खड़ और
थोड़े ढीठ भी 
इस वन में
न है कोई तुम्हारा मित्र
और न है कोई मन का मीत
एक बात तुम मेरी सुन लो आज
जीवन का एक रहस्य समझ लो आज
थोड़ा कठिन होता है रहना
इस संसार में मित्रों के बिना
बिन मित्रों के हो जाता है  
जीवन सूना-सूना
शक्तिशाली को भी
पड़ सकती हैं मित्रों की आवश्यकता
अपनी शक्ति के दम पर
वह भी तो सब कुछ नहीं कर सकता
जीवन में तेरे होंगी खुशियां
अगर हों तुम्हारे अनके मित्र
अनेक न भी हों तो भी
साथ सदा देगा एक सच्चा मित्र.’
तब कछुए ने कहा नन्ही गिलहरी से,
‘मित्र, ले आओ कुछ बेर उस पेड़ से’
झटपट दौड़ी गिलहरी
और लाई तोड़ कर बेर
मीठे बेर खाने में हुई थी
भालू को कुछ अधिक ही देर.

© आइ बी अरोड़ा 

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