“यात्रा”
(भाग 4)
मगरमच्छ पूरी ताकत
लगा कर उलटने-पलटने लगा, पर वह जितना उलटता-पलटता उतना ही जाल में और फंसता जाता.
उसने जाल की रस्सियों को काटने की कोशिश की परन्तु वह अपना मुहं खोल ही न पाया.
वह चीखने-चिल्लाने
लगा पर अब कोई भी उससे डर न रहा था. सब चारों ओर खड़े होकर उसे देख रहे थे. उसने सब
को धमकाया परन्तु उसके धमकाने का भी किसी पर कोई प्रभाव न पड़ा.
जब वह पूरी तरह थक
गया तो थोड़ा शांत हुआ. वह समझ गया कि अगर वह जाल में फंसा रहा तो उसकी मृत्यु हो
जायेगी. घबरा कर वह गिड़गिड़ाने लगा, सबसे क्षमा मांगने लगा.
टिनकू बन्दर ने कहा,
“अभी इसे इस जाल में ऐसे ही बंद रहने दो. अगर यह आप को वचन देता है कि फिर कभी
किसी को सतायेगा नहीं तभी इसे छोड़ना.”
सबको टिनकू की बात
अच्छी लगी. सब मगरमच्छ को वैसे ही छोड़ जाने लगे तो मगरमच्छ ने कहा, “अरे रुको,
मुझे ऐसे ही छोड़ जाओगे तो मैं मार जाउंगा. मैं वचन देता हूँ, मैं किसी को तंग नहीं
करूंगा, मैं नदी से कभी बाहर न आऊंगा.”
मगरमच्छ की बात सुन
सब ख़ुशी से झूमने लगे. सबने टिनकू और उसके मित्रों को बार-बार धन्यवाद दिया.
टिनकू ने कहा, “अब
हमारी भी सहायता कर दो, हमारी नाव का इंजन ख़राब हो गया है. यहाँ कोई मिस्त्री है
जो हमारी नाव का इंजन ठीक कर दे?”
हिरण ने कहा, “यहाँ
तो कोई ऐसा मिस्त्री नहीं है. पर आप जब तक चाहो हमारे साथ रह सकते हो.”
चारों मित्र निराश
हो गये. वह तो अपनी यात्रा शुरू करने को उतावले हो रहे थे. यात्रा पूरी कर घर भी
लौटना था.
चारों अपनी नाव पर
लौट आये. सब उदास थे, सब थके हुए थे, उन्हें पता ही न चला कि कब नींद आई और कब वह
सो गये.
जब वह नींद से जागे
तो नाव नदी में बह रही थी.
“यह नाव कैसे बह रही
है?” भोला भालू ने पूछा.
“हम ने नाव को बाँध
कर रखा था?” टिनकू बन्दर बोला.
“लगता है रस्सी की
गांठ अपने-आप खुल गई होगी?” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
“अब क्या होगा? हम
घर कैसे जायेंगे?” बिन्ना खरगोश ने पूछा.
“चलो अच्छा है, वहां
रुके रहने से क्या होता? वहां कोई मिस्त्री भी न था,” भोला ने कहा, “देखते हैं यह
नदी हमें कहाँ ले जाती है.”
“देखो, यहाँ नदी के
दोनों ओर का दृश्य कितना सुंदर है,” टिनकू ने कहा. उसके मित्रों ने भी देखा कि नदी
के दोनों ओर का वन बहुत ही सुंदर था.
एक ओर ऊंची-ऊंची
पहाड़ियाँ थीं. दूसरी ओर खुला मैदान था जहां कई प्रकार के पेड़ लगे थे. कई पेड़ों पर
सुंदर फूल खिले हुए थे तो कुछ फल लगे हुए थे.
वह चारों आस-पास का
दृश्य देखने में इतने मग्न थे कि उन्होंने ध्यान ही न दिया कि नदी किनारे एक जगह
से तीन नावें आईं और बड़ी तेज़ी से उनकी नाव की ओर बढ़ने लगीं. उन नावों में पुलिस की
वर्दी पहने कई भेड़िये थे. सबके हाथों में पिस्तोलें थीं.
तीनों नावों ने उनकी
नाव को घेर लिया. चारों मित्र हैरान थे. वह थोड़ा डरे भी हुए थे. वह समझ गये थे कि
यह भेड़िये पुलिस की वर्दी पहने गुंडे थे. फिर भी साहस कर भोला भालू ने पूछा, “ आप
सब कौन हैं और आपने हमारी नाव को क्यों घेर रखा है?”
उसकी बात सुन सब
भेड़िये ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे. फिर एक भेड़िये ने दूसरे से कहा, “यही हैं वो चारों? तुम्हें पूरा
विश्वास है? गलती हो गई तो सज़ा मिलेगी.”
“मैं जानता हूँ, यही
हैं वो चारों, कोई संदेह नहीं है. आप इन्हें अपने साथ ले चलो. सरदार इन्हें देख कर
बहुत खुश होगा, शाबाशी देगा.”
पहले भेड़िये ने
चारों मित्रों को घूर कर देखा. फिर उसने चिल्ला कर चारों से कहा, “ध्यान से मेरी
बात सुनो. तुम चारों हमारी नाव में आ जाओ. तुम सब को हमारे साथ चलना है.”
चारों मित्र थोड़ा सहम
गये थे. बिन्ना कुछ बोलने वाला ही था कि टिनकू ने उसे चुप रहने के लिए संकेत किया.
वह समझ गया था कि भेड़िये उन चारों को भयभीत करने के लिए किसी एक को गोली भी मार
सकते हैं, इस स्थिति में थोड़ा सूझबूझ से काम लेना ही उचित होगा. चारों मित्र
भेड़ियों की नाव पर आ गये.
“हमारा सारा सामान
हमारी नाव में है. इस नाव को भी साथ ले चलते हैं,” टिनकू ने धीमे से कहा.
भेड़िये ने अपने एक
साथी को संकेत किया और उसने उनकी की नाव को अपनी एक नाव के साथ बाँध दिया. भेड़ियों
ने अपने नावें चला दीं. नदी में बहुत दूर जाने के बाद सारी नावें किनारे पर आ गईं.
किनारे पहुँच, भेड़ियों ने चारों मित्रों को एक कोठड़ी में बंद कर दिया. सारी रात वह
उस कोठड़ी में बंद रहे. उन्हें समझ न आ रहा था कि भेड़ियों ने उन्हें क्यों कैद कर
रखा था.
अगले दिन भेड़ियों का
सरदार आया. उसका नाम था खालिया. कोठड़ी के दरवाज़े के पास खड़े हो कर खालिया चारों को
घूर-घूर कर देखने लगा.
“तुम मूर्खों से कोई
भूल हो गई लगती है,” खालिया ने एक भेड़िये से कहा.
“नहीं सरदार, कोई
भूल नहीं हुई. यही हैं वह चारों. यही वह काम कर सकते है.”
“तुम ही वो चारों?” खालिया
ने गरज कर उन चारों से पूछा.
“कौन चारों?” भोला
ने पूछा.
“वही चारों
जिन्होंने नदी के दैत्य को मारा था?” सरदार भेड़िये ने चिल्ला कर पूछा.
“हम ने उसे मारा
नहीं था, सिर्फ पकड़ा था.”
“इतने ताकतवर लगते
तो नहीं तुम सब? क्या कोई जादू-वादू किया था उस पर? या फिर सब को मूर्ख बना दिया,
झूठ बोल कर?”
“हम अकेले नहीं थे,
हमारे साथ वन के और भी कई प्राणी थे, सब ने मिलकर उस मगरमच्छ को पकड़ा था, न कोई
जादू किया था और न ही कोई झूठ बोला था.”
“मुझे सब पता है,
होशियार बनने की आवश्यकता नहीं है.”
“हमें इस कोठड़ी में क्यों
कैद कर रखा है?” यह बात टिनकू ने पूछी.
“तुम बहादुरों को
मेरा एक काम करना है. इस वन में एक दुष्ट हाथी रहता है, उसे मारना है.”
©आइ बी अरोड़ा
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