Monday, 10 August 2015

“यात्रा” (अंतिम भाग) 


“इस समय तुम वही करो जो मैं करने के लिए कह रहा हूँ,”  भोला भालू ने फुसफुसा कर कहा.

“मूर्ख, अगर हम ने नाव दे दी तो कभी घर नहीं पहुंचेंगे,” पिन्नी लोमड़ी ने आँखे दिखाते हुए कहा.

“चुप हो जाओ, पिन्नी.” यह बात टिनकू बन्दर ने कही थी. वह समझ गया था कि भोला ने कोई योजना सोच रखी थी. 

“नहीं.” पिन्नी लोमड़ी ज़ोर से चीखी.

एक दरियाई घोड़े ने कहा, “यह क्या हो रहा है? क्या कानाफूसी हो रही है?”

बिन्ना खरगोश भी समझ गया कि भोला ने कोई चाल सोच रखी थी. उसने भी पिन्नी को धीरे से समझाया. पर पिन्नी लोमड़ी तो कुछ सुनने को तैयार ही न थी.

भोला ने टिनकू बन्दर से कहा, “तुम नाव को किनारे तक ले जाओ.”

फिर उसने दरियाई घोड़ों से कहा, “हम किनारे जा कर नाव से उतर जायेंगे, आप यह नाव ले लेना.”

नाव किनारे पहुंची, चारों मित्र नाव से उतर गये. उतरते-उतरते टिनकू ने भोला से धीमी आवाज़ में कहा, “भोला, नाव ऐसे दे देना क्या समझदारी वाली बात है?”

“तुमने क्या उपाय सोच रखा है? ऐसा न हो की हम मूर्ख बन जाएँ?” बिन्ना ने भोला से पूछा. वह जानना चाहता था कि भोला के मन में क्या चल रहा था. अभी तक भोला न किसी को यह न बताया था कि नाव दे देने के बाद वह क्या करने वाला था.

पिन्नी लोमड़ी समझ तो न पाई थी कि क्या होने वाला है, पर अब उसने भी  चुप रहने में ही समझधारी. उसे लग रहा था कि भोला तब तक कुछ न बतायेगा जब तक दरियाई घोड़े आसपास थे और उनकी बातें सुन सकते थे.

भोला भालू ने दरियाई घोड़ों से कहा, “आप यह नाव ले जा सकते हैं. हम यहीं किनारे पर बैठ कर थोड़ी देर आराम करेंगे, फिर हम सब जंगल के रास्ते विचित्र वन चले जायेंगे.”

एक दरियाई घोड़ा आगे आया और नाव को खींच कर ले गया. नाव जब नदी के बीच पहुँच गई तो कई दरियाई घोड़े नाव की इर्दगिर्द इकट्ठे हो गये. 

उनके मुखिया ने कहा, “सब पीछे हो जाओ, अभी. सबसे पहले मैं इस नाव की सैर करूंगा.”

ऐसा कह, वह नाव पर चढ़ गया. पर वह इतना बड़ा और भारी-भरकम था कि उसके नाव पर चढ़ते ही नाव नदी में डूब गई. अन्य दरियाई घोड़े यह दृश्य देख कर अपने को रोक न पाये और खिलखिला कर हंस दिए. मुखिया को गुस्सा आ गया. वह चिल्लाया, ‘खामोश, तुम्हारी इतनी हिम्मत कि तुम मुझ पर हंस रहे हो. जानते नहीं कि मैं कौन हूँ और तुम सब के साथ क्या कर सकता हूँ? जाओ, नाव को बाहर निकाल कर लाओ.”

सब दरियाई घोड़े अपने मुखिया से बहुत डरते थे. मुखिया बहुत ताकतवर था और गुस्से में अपना आपा खो बैठता था और अपने लंबे दांतों से काट-काट कर लहुलुहान कर देता था. सब की हंसी बंद हो गई. दो-तीन दरियाई घोड़ों ने नदी डुबकी लगाईं और नाव को बाहर निकाल लाये.

“नाव को नीचे से सहारा दो,” मुखिया दरियाई घोड़ों पर चिल्लाया.

कुछ दरियाई घोड़ों ने पानी में डुबकी लगाई और नाव को अपनी पीठ पर उठा लिया. मुखिया नाव पर चढ़ गया.

“अब हटो नीचे से,” मुखिया चिल्लाया.

जैसे ही दरियाई घोड़े नाव के नीचे से हटे नाव फिर पानी में डूब गई. इस बार भी कुछ दरियाई घोड़े अपनी हंसी न रोक पाये और खूब ज़ोर से हंस दिए. उनको हँसता देख, मुखिया का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया.

उधर नदी किनारे बैठे चारों मित्र सारा तमाशा देख रहे थे.

भोला ने धीमे से कहा, “ मैंने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि ऐसा ही होगा. यह दरियाई घोड़े इतने भारी-भरकम हैं कि कोई भी नाव पर नहीं चढ़ सकता. अगर कोई चढ़ भी गया तो उसके बोझ से नाव पानी में डूब जायेगी. यही सोच मैंने नाव इन्हें देने का निर्णय लिया था.”

“पर क्या यह नाव हमें लौटा देंगे?” पिन्नी ने पूछा.

“नाव इनके किसी काम की नहीं है, देखते हैं कि अब यह क्या करते हैं,” भोला ने कहा.

“मुखिया नाव में नहीं बैठ पाया. अब चिढ़ कर वह किसी को भी नाव पर चढ़ने न देगा,” टिनकू बन्दर ने कहा.

वैसा ही हुआ. मुखिया ने गरज कर कहा, “सब दूर हो जाओ, कोई भी नाव पर नहीं चढ़ेगा.”

“क्यों” एक दरियाई घोड़े ने पूछा.

“क्योंकि मैं कह रहा हूँ और मैं तुम्हारा मुखिया हूँ, मुखिया,” मुखिया ने अपने लम्बे-लम्बे दाँत सब को दिखाए.

“हम एक प्रयास तो करने दीजिये, नाव की सैर करने की बहुत इच्छा है,” किसी ने कहने का साहस किया.

‘कोई प्रयास-व्रयास नहीं करेगा, जाओ और यह नाव उस बंदर को लौटा दो. यह हमारे किसी काम की नहीं,” मुखिया ने गरज कर कहा.

चारों मित्रों ने सुना और मन ही मन मुस्कुराने लगे.

तभी एक छोटे दरियाई घोड़े ने कहा, “क्या हम इस नाव से खेल सकते है? हम बच्चों के लिए यह अच्छा खिलौना है. इसके साथ खेलने में खूब मज़ा आयेगा.”

कई छोटे दरियाई घोड़े एक साथ बोले, ‘हाँ-हाँ, यह खिलौना हमें चाहिये, हम सब इस के साथ खेलेंगे. यह नाव हमें दे दो, हमें दे दो.”

चारों मित्रों की सांस रुक गई. चारों जानते थे कि अगर यह छोटे दरियाई घोड़े नाव के साथ खेलने लगे तो नाव के टुकड़े-टुकड़े हो जायेंगे.

“नहीं, यह नाव नहीं मिलेगी. यह कोई खिलौना नहीं है. तुम सब बहुत शरारती हो, तुम्हारे खेलने से नाव टूट जायेगी, फिर वह लोग घर वापस न जा पायेंगे. मैंने तो पहले ही सोच रखा था कि नाव पर थोड़ी सैर कर, नाव उन्हें लौटा देंगे.” मुखिया ने कहा.

भोला ने मन ही मन मुखिया को धन्यवाद दिया.

दो-तीन दरियाई घोड़े नाव को धकेल कर किनारे ले आये. चारों मित्रों ने ख़ुशी से उनका धन्यवाद किया और नाव पर सवार हो गये.

चारों मित्र विचित्र वन की ओर चल दिए.

“भई, यात्रा तो बड़ी मज़ेदार रही,” भोला भालू ने अपने मित्रों से कहा.

“अब घर पहुँच जाएँ तो बात बनेगी. रास्ते में ऐसे ही लोग मिलते रहे तो न मालूम क्या हो जाये,” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.

“एक बात तो पता चल गई, कैसे भी मुसीबत क्यों न आये, अगर हम हिम्मत न हारें और सूझबूझ से काम लें तो हर मुसीबत का सामना किया जा सकता है,” टिनकू बन्दर ने कहा.

“वह तो सब ठीक है पर घर कब पहुंचेंगे?” बिन्ना खरगोश ने कहा.


उसकी बात सुन उसके साथ हंस दिये. कई घंटे नाव में यात्रा करने के बाद उन्हें विचित्र वन दिखाई दिया. सब एक साथ बोले, “हम पहुँच गये.”

समाप्त
©आइ बी अरोड़ा    

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