“यात्रा”
(भाग 6)
“अब इस जंगल में
सिर्फ हमारा हुक्म चलेगा,” खालिया भेड़िये ने चिल्ला कर कहा.
“बहुत धमकाता था
हमें, हो गया न काम तमाम,” दूसरे भेड़िये ने कहा.
“अब देखतें हैं कौन
रोकेगा हमें,” किसी और ने कहा.
“एक-एक को सीधा कर
देंगे, इस दुष्ट हाथी के मित्रों को तो पटक-पटक कर मारेंगे,” एक अन्य भेड़िया बोला.
ऐसे चीखते-चिल्लाते
भेड़िये हाथी के पास आ गये. एक भेड़िये ने हाथी को लात मार कर कहा, “उठ, अब दिखा
अपनी बहादुरी, रोक हमको.”
परन्तु हाथी मरा न
था. वह तो लेट कर मरने का नाटक कर रहा था. भेड़िये ने उसे मरा समझ कर लात मारी थी. अचानक
हाथी चिंघाड़ता हुआ उठ खड़ा हुआ. भेड़ियों की तो सांस ही रुक गयी. हर भेड़िये की टाँगे
कांप रही थीं. भेड़ियों ने भागना चाहा पर भाग न पाये.
हाथी ने किसी भेड़िये
को सूंड से पकड कर धरती दे मारा, किसी को अपने लम्बे दांतों पर उठा कर हवा में
उछाल दिया, किसी को इतनी ज़ोर से लात मारी कि उसकी हड्डी पसली टूट गई. खालिया के सर
ऊपर तो उसने अपना एक पाँव रख दिया. धीरे-धीरे अपने पाँव से उस का सर दबाने लगा.
अपने सरदार की दुर्दशा देख बाकि भेड़िये दुम दबा कर यहाँ-वहां भागने लगे. घबराहट
में कोई किसी पेड़ से जा टकराया, तो कोई किसी चट्टान से टकराया.
उनकी हालत देख टिनकू,
पिन्नी और भोला हंसी से लोट-पोट हो गये. तीनों ने विशाल हाथी को धन्यवाद दिया और
अपने मित्र को भेड़ियों की कैद से छुडाने चल दिए.
चारों मित्र अपनी
नाव पर आये, नाव का इंजन भेड़ियों ने ठीक करा दिया था. अब नाव अच्छे से चल रही थी.
“अब क्या करें? कहाँ
जाएँ?” टिनकू ने पूछा.
“मुझे तो इस यात्रा
में खूब मज़ा आ रहा है. चलो थोड़ी दुनिया और देख कर आते हैं,” भोला भालू ने कहा.
“यह पुरानी, बेकार
नाव है. अगर फिर से ख़राब हो गई तो क्या करेंगे?” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
“साहस के बहुत काम
कर लिए, अब घर चलना चाहिये,” बिन्ना खरगोश ने कहा.
“हमें तो यह भी नहीं
पता कि हम विचित्र वन से कितनी दूर आ चुके हैं. अब लौट चलते हैं, क्या पता लौटते
समय भी साहस के कोई कार्य करने पड़ें,” टिनकू ने सुझाव दिया.
सब को टिनकू की बात
ठीक लगी. पिन्नी ने नाव को नदी की धारा के विरुद्ध चला दिया.
नाव धीरे-धीरे चल
रही थी. नदी के दोनों ओर का दृश्य बहुत सुंदर था. चारों मित्र उत्सुकता से हर ओर
देख रहे थे. उनका मन ख़ुशी से झूम रहा था. वह अपने आप में इतने मग्न थे कि सामने
आती मुसीबत की ओर किसी का ध्यान न गया.
नदी में एक जगह कई
दरियाई घोड़े मस्ती से इधर-उधर तैर रहे थे. वह आपस में एक-दूसरे के साथ खिलवाड़ भी कर
रहे थे. उन दरियाई घोड़ों ने एक नाव को अपनी ओर आता देखा तो सब चौकस हो गये. उन्हें
लगा कि कोई शत्रु उन पर हमला करने आ रहा है.
सब दरियाई घोड़ों गुस्से
में अपने नथने फुलाने लगे. एक दरियाई घोड़े ने चिल्ला कर कहा, “खबरदार नाव वालो,
आगे मत आना. नाव वहीँ रुक दो.”
चारों मित्रों ने
दरियाई घोड़ों को देखा तो सहम गये. नदी में पानी के अंदर ऐसे विशालकाय पशु तो
उन्होंने आज तक न देखे थे. वह सब आपस में फुसफुसा कर बातें करने लगे.
“यह क्या मुसीबत आन
पड़ी?” टिनकू बन्दर ने कहा.
“अब हमें कोई नहीं
बचा सकता,” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
“यह पानी में क्या
कर रहे हैं,” बिनना खरगोश ने कहा.
“यह कैसे प्राणी हैं?”
भोला भालू ने कहा.
“डरो मत, मैं बात
करता हूँ. पिन्नी, इंजन बंद कर दो,” टिनकू ने कहा.
पिन्नी लोमड़ी ने
इंजन बंद कर दिया. धीरे-धीरे नाव रुक गई. कई दरियाई घोड़े नाव के आस-पास तैरने लगे.
चारों मित्रों ने देखा कि दरियाई घोड़ों के बड़े-बड़े जबड़ों में लम्बे नुकीले दाँत थे. उन दांतों से
वह किसी भी प्राणी को दबौच कर मार सकते थे.
टिनकू ने खरगोश को
आँख से संकेत किया. बिन्ना खरगोश ने बड़ी विनम्रता से कहा, “आप कौन हैं और हम से
क्या चाहते हैं?”
एक दरियाई घोड़े ने
खरगोश की ओर देखा और गरज कर कहा, “ पहले अपना परिचय दो, कौन हो तुम सब और यहाँ
क्या कर रहे हो?”
उसकी गरज भरी आवाज़
सुन सब के दिल धड़कने लगे. पिन्नी ने फुसफुसा कर कहा, “अब हम नहीं बच सकते.”
टिनकू भी डर रहा था
पर अपना डर छिपाते हुए उसने कहा, “चुप रहो, ऐसे ही कायर थे तो इस यात्रा पर क्यों
आये.”
“आपस में झगड़ो मत,”
भोला ने भी फुसफुसा कर कहा.
“क्या हुआ? चुप
क्यों हो गये? कुछ तो बोलो?” उस दरियाई घोड़े ने कहा. वह दरियाई घोड़ों का मुखिया
था.
“श्रीमान, हम चारों
मित्र हैं और विचित्र वन में रहते हैं. हम इस नाव में नई-नई जगहें देखने निकले थे.
हमारी नाव ख़राब हो गई और हम इस नदी में बहते गये. हमें तो यह भी नहीं पता कि हम
अपने वन से कितनी दूर आ चुके हैं. अब घर जाने को आतुर हैं. अगर आप कृपया करके हमें
रास्ता दे दें तो हम अपने वन जाना चाहेगे.” बिन्ना ने बड़े आदर और सम्मान से कहा.
बिन्ना की बात सुन
सारे दरियाई घोड़े एक जगह इकट्ठे हो गये और आपस में बात करने लगे. चारों मित्र उनके
उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे. चारों यही सोच रहे थे कि अगर दरियाई घोड़ों ने उनकी
बात न मानी तो वह क्या करेंगे.
इतने में दरियाई
घोड़े कुछ निश्चय करके उनके पास आये. मुखिया ने आगे आकर कहा, “हम तुम्हें रोकेंगे
नहीं, तुम सब विचित्र वन जा सकते हो. परन्तु हमारी एक शर्त है.”
“क्या शर्त है
आपकी?” इस बार टिनकू ने बात की.
“तुम को अपनी नाव छोड़नी
होगी; यह नाव हमें देनी होगी.”
चारों मित्र आश्चर्य
से एक-दूसरे को देखने लगे. वह जानते थे कि अगर यह नाव उन्होंने दे दी तो वह घर न
जा पायेंगे.
“इस नाव का आप क्या
करेंगे?” टिनकू ने धीमे से पूछा.
“हम भी इस नाव में बैठकर
दुनिया की सैर करने जायेंगे.”
“श्रीमान, अगर यह
नाव हम ने आप को दे दी तो हम वापस कैसे जायेंगे?”
“हम कुछ नहीं जानते.
अगर आगे जाना है तो नाव यहाँ छोड़ जाओ.”
लोमड़ी को गुस्सा आ
गया, वह बोली, “यह तो सरासर अन्याय है, आप सब बलवान हैं, गिनती में हमसे अधिक हैं
इसी कारण आप हमारे साथ ऐसी ज़बरदस्ती कर रहे हैं. हम यह अन्याय नहीं सहेंगे.”
टिनकू ने झट से
पिन्नी का हाथ दबाया और उसे चुप रहने को कहा.
“श्रीमान, आप मेरे
मित्र की बात का बुरा न माने. कई दिन घर से बाहर रहने के कारण यह थोड़ी चिढ़चिढ़ी हो
गई है. हमें आपकी शर्त स्वीकार है. आप हमारी नाव ले सकते हैं. हम जंगल के रास्ते
लौट जायेंगे,” यह बात भोला ने कही थी.
भोला की बात सुन
उसके मित्र हैरान हो गये. कुछ पलों के लिए कोई कुछ न बोला. फिर तीनों एक साथ बोले,
“यह क्या कह रहे हो, भोला.”
©आइ बी अरोड़ा
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