टिनकू बंदर के तीन
मित्र थे, बिन्ना खरगोश, भोला भालू और पिन्नी लोमड़ी. यह सब विचित्र वन में रहते
थे. वन के बीचों-बीच विचित्र नदी बहती थी. टिनकू और उसके मित्र नदी की उत्तरी तट
पर रहते थे.
एक दिन टिनकू ने
अपने मित्रों से कहा, “क्या नदी के उस पार जाने की तुम्हारी इच्छा नहीं होती?”
“उस ओर जा कैसे सकते
हैं? नदी इतनी चौड़ी और गहरी है?” बिन्ना ने कहा,
“उस ओर तो भयंकर
प्राणी रहते है, ऐसा मैंने सुना है? पर सच कहूँ तो कभी-कभी मेरा मन भी करता है कि इस वन से बाहर जाएँ, दुनिया
की सैर करें, देखें कि इस वन के बाहर का संसार कैसा है,” भोला ने कहा.
“उस ओर जाकर क्या
होगा? और अगर किसी मुसीबत में फंस गये तो?” पिन्नी ने पूछा.
“क्या हम सारा जीवन
नदी के इस ओर ही बिता देंगे? इस संसार में कितना कुछ देखने, जानने को है. जीवन का
असली मज़ा तो नये-नये लोगों से मिलने में है, नई-नई जगह देखने में है,” टिनकू ने
कहा.
“तो तुम जाओ, घूमों
नई-नई जगह. अकेले जाने में क्या डर लगता है?” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
टिनकू को अकेले जाने
में डर तो लगता था, परन्तु अकड़ कर बोला, “डर किस बात का? मैं जब चाहूँ कहीं भी जा
सकता हूँ. मैंने सोचा तुम मेरे मित्र हो, साथ चलोगे तो अच्छा लगेगा. सब मिल कर
सैर-सपाटा करेंगे, दुनिया देखेंगे, सब साथ होंगे तो अच्छा लगेगा.”
अब खरगोश के मन में
भी नदी पार जाने की इच्छा हुई, नदी पार संसार कैसा होगा यह जानने की उत्सुकता उसके
मन में भी थी. वह बोला, “बात तो तुम ठीक कह रहे हो. जीवन में कुछ चुनौती होनी
चाहिये, कुछ उत्साह भी होना चाहिये.”
“पर हम जायेंगे
कैसे? मैं तो इस नदी में तैर नहीं सकता,” भालू ने कहा.
“अरे मेरे भोले
मित्र, नदी में तैर कर हम कहाँ तक जा पाएंगे? हमें नाव में जाना होगा. हम एक नाव
लेंगे और उस नाव में बैठ कर नदी के रास्ते लम्बी यात्रा करेंगे, अलग-अलग वनों में
घूमेंगे और .....”
“नाव में? कहाँ से
लेंगे नाव ? कैसे लेंगे?” बिन्ना खरगोश ने बन्दर की बात को काट कर कहा.
“एक नाव खरीदेंगे,
उस नाव में बैठ कर हम घूमने जायेंगे.” टिनकू ने कहा.
“टिम्पू भेड़िये के
पास एक नाव है, मैंने देख रखी है. मैं उससे बात करूंगी, हम वह नाव खरीद सकते हैं,”
लोमड़ी ने कहा.
“सब मिल कर पैसे
इकट्ठे करो, जो सामान साथ ले जाना होगा उसकी एक सूची बनाओ, अगर सारा प्रबंध सही ढंग से हो गया तो हम
अगले रविवार को अपनी यात्रा पर निकल पड़ेंगे,” टिनकू ने बड़े उत्साह के साथ कहा.
पिन्नी लोमड़ी ने टिम्पू
भेड़िये से बात की. वह उन्हें अपनी नाव पाँच सौ रूपए में देने को तैयार हो गया. उसने कहा कि वह
पिन्नी को नाव चलाना भी सिखा देगा. चारों ने वह नाव लेने का निर्णय लिया. पिन्नी
ने टिम्पू भेड़िये से नाव चलाना सीख लिया. फिर उसने अपने तीनों मित्रों को नाव
चलाना सिखा दिया.
आवश्यक सामान साथ ले
चारों मित्र अपनी नाव में चल पड़े. चारों उल्लास से भरे थे, थोड़े घबराए भी हुए थे,
जीवन में पहली बार वो सब अपने वन से दूर जा रहे थे.
नाव अभी अधिक दूर न
गयी थी कि इंजन चलना बंद हो गया. सब चौंके, सब एक साथ बोले, “यह क्या हो गया?”
“पिन्नी, इंजन को
फिर से चलाने का प्रयास करो,” टिनकू बंदर ने लोमड़ी से कहा. वही नाव चला रही थी.
पिन्नी लोमड़ी ने कई
बार प्रयास किया पर इंजन चला ही नहीं.
“लगता है इंजन में
कोई गड़बड़ है,” भोला भालू ने कहा.
“अब क्या होगा? अब
हमें वापस जाना पडेगा,” बिन्ना खरगोश ने मायूस हो कर कहा.
“अगर इंजन चलेगा तो
कहीं जा पायेंगे,” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
“नाव में कोई चपू भी
नहीं है. चपू होता तो उसकी सहायता से ही किनारे पर पहुँचाने की कोशिश करते,” भोला
ने कहा.
तभी चारों मित्रों
का ध्यान किनारे की ओर गया. किनारे पर खड़ा, टिम्पू भेड़िया ज़ोर-ज़ोर से हंस रहा था
और तालियाँ बजा रहा था.
“अरे मूर्खो, क्या पाँच
सौ रूपए में तुम्हें सही नाव मिलेगी? यह नाव तो कब से खराब पड़ी थी, तुम को बेच कर
मैंने इस कबाड़ से झुटकारा पाया. जाओ-जाओ, नाव की सैर करो, खूब मज़े करो,” टिम्पू ने
चिल्ला कर कहा.
भेड़िये की बात सुन कर
चारों को बहुत गुस्सा आया.
“हमें ठग लिया इस
धूर्त ने? मैं इसे ऐसा मज़ा चखाऊँगा कि सदा याद रखेगा,” टिनकू बंदर ने दाँत पीसते
हुए कहा.
“हम नदी के
बीचों-बीच हैं और वह है किनारे पर, यहाँ पड़े-पड़े तो तुम कुछ भी नहीं कर सकते,” बिन्ना
खरगोश ने कहा.
चारों इस सोच में पड़
गये कि इस स्थिति में वह क्या कर सकते थे. तभी उन्होंने देखा कि पानी के बहाव के
साथ उनकी नाव आगे बढ़ती जा रही थी.
“हम तो नदी में बहे
जा रहे हैं,” भोला ने कहा.
“मैं तैर कर किनारे
जाता हूँ और शंकर हाथी को बुला लाता हूँ. उनकी सहायता से हम नाव को किनारे तक ले
आयेंगे,” टिनकू बंदर ने कहा.
“जब तक तुम शंकर
दादा को ले कर आओगे तब तक यह नाव बहुत दूर निकल गई होगी,” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
बिन्ना खरगोश अधिक
ही घबराया हुआ था, “अगर हम ऐसे ही बहते रहे तो न जाने हम कहाँ पहुँच जायेंगे.
मैंने सुना है कि सब नदियाँ सागर में जा मिलती हैं. हम भी किसी सागर तक पहुँच
जायेंगे, सागर में तो यह छोटी से नाव एक दिन भी टिक न पाएगी. हमारी नाव सागर में
डूब जायेगी. नाव के साथ हम भी डूब जायेंगे.”
“अरे डरो मत, सागर
यहाँ से बहुत दूर है, सागर तक पहुँचने में हमें कई माह लगेंगे. सोचना तो यह है कि
हमें इस संकट से अब हम कैसे निपटें.” भोला ने कहा.
उनकी नाव विचित्र वन
से बहुत दूर निकल आयी थी. किनारे पर जाने का कोई उपाय उन्हें सुझाई न दिया था. दिन
ढलने लगा था, अँधेरा होने से पहले उन चारों ने थोड़ा-थोड़ा भोजन कर लिया. रात
होते-होते वह सब थक चुके थे. थक कर चारों नाव में ही लेट गये. नाव धीरे-धीरे नदी
में बहती रही. चारों मित्रों को पता ही न चला कि कब उनकी आँख लग गई.
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