“यात्रा”
(भाग 2)
टिनकू बन्दर की जब
आँख खुली तो सूर्य उदय हो चुका था, चारों ओर पक्षी चहचहा रहे थे. टिनकू ने देखा कि
नाव एक किनारे पर खड़ी थी. उसके मित्र अभी भी सो रहे थे. उसने झटपट अपने मित्रों को
जगाया, सब ने देखा कि ना किनारे पर थी. सबने राहत की सांस ली.
“हम किसी किनारे तो
पहुंचे,” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
“पर उससे क्या होगा?
हमें तो यह भी नहीं पता कि हम हैं कहाँ पर? हम घर कैसे जायेंगे, यह भी नहीं पता?” बिन्ना
खरगोश ने कहा.
“क्या हम सारी रात
बहते रहे?” पिन्नी ने पूछा.
“मुझे तो लगता है कि
हम कई दिन और कई रातें इस नाव में सोये रहे और नाव नदी में बहती रही,” बिन्ना बोला.
“नहीं, हम कल ही
अपने घर से चले थे और एक रात ही नाव में सोये,” पिन्नी ने कहा.
“इस बहस से कुछ न
होगा, हमें अब कोई मिस्त्री ढूंढना होगा जो हमारी नाव का इंजन ठीक कर दे. तभी हम
कहीं जा पायेंगे,” टिनकू ने कहा.
भोला भालू इस सुझाव
से सहमत था. उसने कहा, “पिन्नी और बिन्ना, तुम दोनों नाव में ही रहो, हम रस्सी से
नाव को एक पेड़ के साथ बाँध देंगे. फिर टिनकू के साथ मैं जाऊंगा, हम दोनों किसी
मिस्त्री को ढूंढ कर ले आयेंगे.”
सब को भोला का सुझाव
ठीक लगा. नाव को बाँध कर टिनकू और भोला
मिस्त्री को ढूँढने निकल पड़े.
वह अभी कुछ दूर ही
गये थे कि उस वन के पशु-पक्षी चीखते-चिल्लाते भाग खड़े हुए, “भागो-भागो, दैत्य के
साथी आ रहे हैं.”
“बचाओ-बचाओ.”
“कोई तो हमारी
सहायता करो.”
“भागो-भागो.”
टिनकू और भोला ठिठक
कर खड़े हो गये. उनकी समझ में कुछ भी न आ रहा था.
“क्या हो रहा है?” टिनकू
ने धीरे से कहा.
“कोई दैत्य इन सब को
तंग करता है, और यह हमें उस दैत्य का साथी समझ रहे हैं,” भोला ने कहा.
“भाग चलें?”
“क्या हमें इन की
मदद नहीं करनी चाहिये?”
“हम तो मिस्त्री
ढूँढने आये हैं, इन के पचड़े में क्यों पड़ें?”
“हम ऐसे नहीं जा
सकते. पहले यह तो पता लगाएं कि बात क्या है. यह सब भयभीत हो कर इस तरह क्यों भाग
रहे हैं.”
दोनों धीरे-धीरे उस
वन में आगे बढ़ते रहे. एक जगह एक झाड़ी के पीछे एक हिरण छिपा था. उनको देख वह रोने-गिड़गिड़ाने
लगा, “मुझे मत पकड़ो, मुझ पर दया करो, मेरी टाँग में पहले से ही चोट लगी हुई है,
मैं दौड़ भी नहीं सकता.”
“डरो मत भाई, तुम सब
लोग हमें गलत समझ रहे हो. हम किसी को मारने या तंग करने नहीं आये,” टिनकू ने प्यार
से कहा.
“तुम दोनों नदी की
ओर से आ रहे हो? क्या तुम्हें उस नदी के दैत्य ने नहीं भेजा?” हिरण अभी भी सहमा
हुआ था.
“कौन दैत्य? कैसा दैत्य?
हम चार मित्र तो नाव से आये हैं. हमारी नाव ख़राब हो गई है और हम किसी मिस्त्री को
ढूंढॅ रहे हैं,” भोला ने कहा.
“आप सच कह रहे हैं?”
हिरण ने पूछा.
“हम झूठ क्यों
बोलेंगे? और यह दैत्य कौन है? आप लोग उस से इतना क्यों डर रहे हैं?” टिनकू ने
पूछा.
“एक भयंकर जीव है जो
इस नदी में रहता है, वह अचानक आ जाता है और अचानक हमला कर देता है, आजतक उसके हमले
से कोई भी नहीं बच पाया. मेरे दोनों भाइयों को भी वह मार कर खा गया था.”
“तुम सब मिल कर उसका
सामना क्यों नहीं करते?” भालू ने कहा.
“इस वन के सारे
प्राणी भोले-भाले और शान्ति-प्रिये हैं, हम उस दुष्ट का सामना नहीं कर सकते. वह
बहुत ही चालाक और ताकतवर है, पता ही नहीं चलता कि वो कब आता है और कैसे हमला करता
है.”
“परन्तु ऐसा कब तक
चलेगा? तुम सब को मिलकर उस दुष्ट का सामना करना होगा. हम भी तुम सब की मदद करेंगे,
और एक बात समझ लो, जहां ताकत से काम नहीं चलता वहां युक्ति से काम लेना पडता है,” टिनकू
बंदर ने समझाया.
“आप ठीक कह रहे हैं.
मैं सब से बात करूंगा, सबको समझूँगा,” हिरण का साहस लौट रहा था.
“हम चारों मित्र भी
कोई युक्ति सोचते हैं इस राक्षस से निपटने के लिए,” भोला भालू ने कहा.
टिनकू और भोला नाव
पर वापस आ गये. हिरण अपने वन के अन्य प्राणियों से बात करने चल दिया.
नाव पर लौट कर टिनकू
ने पिन्नी और बिन्ना को सारी बात बताई.
“तुम मिस्त्री
ढूँढने गये थे और यह एक नई समस्या ले कर आ गये हो,” बिन्ना खरगोश ने थोड़ा चिढ़ कर
कहा.
“अरे मित्र, हम तो ऐसे
ही साहस के काम करने के लिए ही घर से निकले थे,” भोला ने कहा.
“हम मौज-मस्ती करने
निकले थे, राक्षसों और दैत्यों से लड़ने के लिए नहीं. अगर उस दैत्य से लड़ते हुए हम
चारों में से कोई मारा गया तो?” बिन्ना ने थोड़ा चिल्ला कर कहा.
“जब तक भोला भालू
तुम लोगों के साथ है कोई तुम्हें कोई हाथ भी नहीं लगा सकता, तुम्हारा बाल भी बांका
नहीं कर सकता,” भोला ने अकड़ते हुए कहा.
“हमारी नाव का क्या
होगा?” पिन्नी लोमड़ी ने पूछा.
“अभी तो कुछ नहीं हो
सकता. अगर हम ने उस दैत्य से इन लोगों को छुटकारा दिलवा दिया तो शायद यह हमारी मदद
कर दें,” बन्दर ने कहा.
“हमें यह पता लगाना
पड़ेगा कि यह दैत्य है क्या बला? उसके बाद ही हम उससे निपटने की कोई चाल सोच सकते
है,” लोमड़ी ने कहा.
“हम चारों नदी
किनारे अलग-अलग जगह छिप जायेंगे और पता लगायेंगे कि नदी से कौन सा जंतु बाहर आता
है और इन लोगों पर हमला करता है,” भोला ने कहा.
चारों मित्र नदी
किनारे अलग-अलग जगह छिप गये. चारों पूरी तरह चौकस थे और नदी की ओर से आते हुए हर
प्राणी पर दृष्टि जमाये हुए थे.
कई घंटे बीत गये
परन्तु कोई भी दैत्य नदी से बाहर न आया. चारों मित्रों को लगा कि कहीं वह अपना समय
तो नष्ट नहीं कर रहे. तभी टिनकू ने पानी में किसी जीव को तैरते हुए देखा. उसने
संकेत कर भोला को सूचित किया. भोला ने पिन्नी और बिन्ना को सूचना दी. चारों बड़ी सावधानी
के साथ एक जगह इकठ्ठे हो गये.
चारों मित्रों के
दिल धड़क रहे थे, नदी में कोई विशालकाय जीव तैर रहा था. बीच-बीच में उसका एक सींग
पानी के बाहर दिखाई दे जाता था. धीरे-धीरे तैरते हुए वह दैत्य किनारे पर आया और
कुछ समय तक, बिना हिलेडुले, पानी के भीतर ही रहा. फिर आहिस्ता से वह पानी से बाहर
आया.
©आइ बी अरोड़ा
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