“यात्रा”
(भाग 5)
“हम क्यों मारें
उसे?” टिनकू बन्दर ने
पूछा.
“वह हाथी बहुत ही
क्रूर है, वन के सीधे-साधे प्राणियों को मारता-पीटता रहता है. सब उसके आतंक से बहुत
दुःखी हैं. इन भोले-भाले लोगों का दुःख देखा हम से नहीं जाता. हम इन बेचारों की
सहायता केना चाहते है. अगर हमारी कैद से छूटना है तो तुम्हें उस हाथी को मारना
होगा. करोगे यह काम या इस कोठड़ी में ही बंद रहना है?” खालिया भेड़िये ने कहा.
“आप लोग इतने बहादुर
हो, आपके पास पिस्तोलें भी हैं. आप स्वयं क्यों नहीं उसे मार डालते?”
“हम अपने बराबर
वालों से टक्कर लेते हैं, तुच्छ प्राणियों से हम टक्कर नहीं लेते. हम सिर्फ
बहादुरी के बड़े-बड़े काम करते हैं. छोटे-मोटे बहादुरी के काम तो हम तुम जैसे वीरों से
करवाते हैं.”
“अरे वाह, हमें
मूर्ख समझा है क्या? तुम सब को डर लगता होगा उस हाथी से टक्कर लेने में और हमें
भेज रहे उस को मार गिराने के लिय,” इस बार टिनकू ने थोड़ा अकड़ कर कहा.
“खामोश! अगर तुमने
हमारा काम न किया तो तुम चारों को इस कोठड़ी में हमेशा के लिए बंद कर देंगे.”
“हम यह काम करेंगे,
पर हमारी एक शर्त है,” भोला भालू ने कहा.
“अरे भोला, हम इनके
झगड़े में क्यों पड़ें? किसी हाथी से लड़ना हमारे बस का नहीं.” पिन्नी ने बीच में टोक
कर भोला से कहा.
भोला के कुछ कहने के
पहले ही खालिया बोला, “क्या शर्त है तुम्हारी?”
“हमारी नाव का इंजन
ख़राब है. उसे ठीक करवा दें.”
“इंजन ठीक करवा
देंगे और नाव को भी चकाचक बना देंगे, परन्तु पहले उस हाथी को मार भगाओ.”
“नहीं, पहले नाव ठीक
होगी तभी हम हाथी के बारे में सोचेंगे.”
खालिया ने एक भेड़िये
से कहा, “इनकी नाव ठीक कराओ, जल्दी.”
नाव ठीक हुई तो खालिया
ने टिनकू, पिन्नी और भोला को छोड़ दिया, “जाओ और उस हाथी को मार डालो. अगर तुम ने
हाथी को मार डाला तो हम इस खरगोश को भी छोड़ देंगे. तुम्हारी नाव भी लौटा देंगे. अगर
तुम ऐसा नहीं कर पाये तो हम पहले तुम्हारे मित्र को मारेंगे फिर तुम तीनों को.”
“हाथी का नाम क्या
है?” टिनकू ने पूछा.
“उस दुष्ट हाथी का
नाम है विशाल.”
टिनकू बन्दर, पिन्नी
लोमड़ी और भोला भालू हाथी को मारने चल दिए. कुछ दूर जाने के बाद भोला ने कहा, “यह भेड़िये
हाथी से डरते हैं, हाथी बहुत ताकतवर होगा. हम उसे कैसे मारेंगे?”
“तुम देखते जाओ मैं
क्या तमाशा करता हूँ.”
तीनों चलते रहे. एक
जगह उन्हें हाथी दिखाई दिया. वह बहुत ही विशाल और शक्तिशाली था. भोला, पिन्नी और टिनकू को थोड़ी
घबराहट हुई पर उनके पास कोई रास्ता भी न था. उन्हें तो इस हाथी का सामना करना ही
था. अपने मित्र की कैद से छुड़ाने के लिए उन्हें साहस का यह कार्य तो करना ही था.
टिनकू ने हाथी के
पास आकर कहा, “महाराज प्रणाम, हमारे शंकर दादा ने आपको नमस्ते कहा है.”
हाथी ने टिनकू की ओर
देखा. वह थोड़ा आश्चर्यचकित था, “तुम कौन हो? और यह शंकर कौन है?”
हाथी ने बड़े प्यार
से बात की थी. टिनकू का डर थोड़ा कम हुआ.
“श्रीमान, मैं टिनकू
बन्दर हूँ. विचित्र वन में रहता हूँ. शंकर दादा भी वहीं रहते हैं. आपके बचपन के
मित्र हैं. आपकी बहुत प्रशंसा करते हैं, आप दोनों बचपन में एक साथ बहुत खेले-कूदे
हो.’
“बचपन में? बचपन के
मेरे सारे मित्र तो यहीं इस वन में रहते हैं.”
“आप शायद भूल रहे
हैं, पर वह आपको बिल्कुल नहीं भूले, सदा कहते हैं कि मित्र हो तो विशाल जैसा.”
“अरे, वह तो नहीं
जिसके माथे पर एक काला सा निशान है? वह कई वर्ष पहले यहाँ से चला गया था; माँ से एक
बार लड़ बैठा था और गुस्से में आकर अपना घर छोड़ बैठा था.”
“वही हमारे शंकर
दादा हैं, पर माँ के साथ हुई लड़ाई के बारे में उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा.”
“पर उसका नाम तो भीम
है?”
“यही नाम तो बताया
था उन्होंने हमें, भीम. पर हम उनके कहे अनुसार उन्हें शंकर दादा कह कर बुलाते हैं.”
“वह मेरा पक्का
मित्र था, कैसा है अब वह?”
“खूब अच्छे हैं, हमारे
वन में सबसे ताकतवर वही हैं. पर आप जैसा विशाल और शक्तिशाली हाथी हमने पहली बार
देखा है. आपकी माता ने बहुत ही उचित नाम रखा है आपका. आपको शोभा देता यह नाम.”
हाथी अपनी प्रशंसा
सुन कर मंद-मंद मुस्कुराया, बोला, “तुम इधर कैसे आये?”
“हम चार मित्र नाव
में बैठ दुनिया की सैर करने निकले थे, इधर पहुंचे तो भेड़ियों ने हमें पकड लिया.”
“बड़े मक्कार हैं वह
सब. दूसरों को सताने का कोई अवसर नहीं छोड़ते. सब को परेशान कर के रखा है उन
दुष्टों ने. मेरे कारण थोड़ा घबराते हैं, नहीं तो यहाँ तूफ़ान खड़ा कर देते.”
“उन बदमाशों ने हमें
कैद कर लिया. फिर कहा कि विशाल हाथी को मार डालो. हमारा एक मित्र अभी भी उनकी कैद
में हैं. नाव भी उनके पास है.”
“अच्छा!”
“हां, यह भी कहा कि
उस तुच्छ जानवर से हम लड़ना नहीं चाहते.”
“मुझे तुच्छ जानवर कहा?”
हाथी का गुस्सा सातवें आसमान पहुंच रहा था.
“अगर हम उनका कहा
नहीं मानते तो वह हमें मार डालेंगे.”
“चलो मेरे साथ,”
हाथी अपने क्रोध को रोक न पा रहा था.
वह सब भेड़ियों के
अड्डे की ओर चल दिए. चलते-चलते सब ने एक योजना बनाई.
भोला भालू खालिया भेड़िये
के पास आया. खालिया ने उसे घूर कर देखा, “क्या हुआ? हाथी मार गया? बन्दर कहाँ है? लोमड़ी
कहाँ है? वह दोनों भाग गये क्या? ऐसा है तो तुम गये. तुम को कोई नहीं बचा सकता.
कुछ बोलो भी, बुत बन कर क्यों खड़े हो.”
“आप मुझे बोलने दें
तो बोलूं, हम ने आपका काम कर दिया है. हाथी मर चुका है. मैं आपको वहां ले जाउंगा
जहां वह मरा पड़ा है. लेकिन पहले मेरे मित्र को छोड़ो और हमारी नाव भी हमें दे दो.”
“नहीं, पहले हम उस
मरे हुए हाथी को देखेंगे बाकि सब बाद में.”
भेड़ियों का एक झुण्ड
भोला के साथ चल दिया. खालिया सबके आगे था. एक पेड़ के नीचे हाथी धरती पर मरा पड़ा था.
उसको देखते ही भेड़िये ख़ुशी से उछल पड़े.
©आइ बी अरोड़ा
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