“यात्रा”
(भाग 3)
वह एक बहुत बड़ा
मगरमच्छ था. पर ऐसा विचित्र मगरमच्छ उन सब ने पहले कभी न देखा था. मगरमच्छ के माथे
पर एक बड़ा-सा सींग था, जैसा एक गैंडे के
माथे पर होता है. उसके दाँत भी बहुत ही बड़े और डरावने थे. उसकी पूंछ भी बहुत बड़ी
थी और उस पर भी छोटे-छोटे कई सींग थे.
“यह कैसा मगरमच्छ
है? इसके माथे पर सींग है?” भोला भालू ने फुसफुसा कर कहा.
“यह कोई मगरमच्छ
नहीं है, यह तो कोई दैत्य है, इसकी पूंछ पर भी कई सींग हैं,” पिन्नी लोमड़ी ने कहा.
“चलो, भाग चलें,” बिन्ना
खरगोश ने कहा.
“चुप रहो,” टिनकू बन्दर
बोला.
मगरमच्छ एक जगह
झाड़ियों में छिप गया. कुछ बकरियां उधर ही घूम रहीं थीं. बकरियों को पता ही न चला
की मगरमच्छ उन की ओर आ रहा था. वह मज़े से घास चरती रहीं.
“उन बकरियों को वहां
से भागने के लिए कहना होगा,” भोला ने बन्दर के कान में धीरे से कहा.
इस से पहले कि कोई
कुछ करता, मगरमच्छ उन बकरियों पर बिजली की फुर्ती से झपटा. एक ही हमले में उसने
तीन-चार बकरियों को मार गिराया. उन्हें चट से निगल कर वह नदी की ओर चल दिया.
“यह तो सच में एक
दैत्य ही है,” पिन्नी ने कहा.
“ऐसे विशाल मगरमच्छ
का हम कैसे सामना कर पायेंगे?’ बिन्ना ने कहा.
‘इसमें तो गज़ब की
फुर्ती है, कितनी जल्दी बकरियों को पकड़ कर खा गया,” भोला ने कहा.
“हमें इस पचड़े में
नहीं पड़ना चाहिये. हम चुपचाप निकल चलते यहाँ से,” पिन्नी ने कहा, वह डर गयी थी.
“पर जायेंगे कैसे?”
बन्दर ने पूछा.
बन्दर की बात सुन सब
चुप हो गये. उनकी नाव ख़राब थी. जब तक नाव ठीक न होती तब तक वह कहीं न जा सकते थे.
वह सब इस वन में फंस गये थे.
“इस मगरमच्छ को किसी
जाल फांसना होगा, इससे हम लड़ नहीं सकते,” भोला भालू ने सोच कर कहा.
“तुम ठीक कह रहे हो.
अगर सब मिल कर मज़बूत रस्सियों का एक बड़ा-सा जाल बना लें तो इस दैत्य को पकड़ा जा
सकता है,” टिनकू बन्दर ने कहा.
टिनकू और भोला ने
तुरंत जाकर यह युक्ति उस वन के वासियों को बताई. कई जन डर रहे थे. मगरमच्छ के आतंक
ने उन्हें भयभीत कर रखा था. वह लोग ऐसा कोई भी काम करने को तैयार न थे जिसमे सफलता
की पूरी आशा न थी.
परन्तु जब भोला ने विश्वास
दिलाया कि चारों मित्र भी उनके साथ हैं और सब मिल कर मगरमच्छ को पकड़ सकते हैं तो
वह सब ऐसा चुनौती भरा काम करने को तैयार हो गये.
सब लोग उसी समय मज़बूत
रस्सियों का जाल बनने में लग गये. दो ही दिनों में उन सब ने मिलकर एक विशाल जाल
तैयार कर लिया.
इस जाल को उन्होंने नदी किनारे बिछा दिया. फिर उस जाल पर रेत डाल
दी, जगह-जगह झाड़ियों और पत्ते बिछा दिये, यहाँ-वहां
कुछ कंकड़-पत्थर भी उस पर डाल दिये. ऐसा करने से जाल पूरी तरह छिप गया.
अब सब झाड़ियों और
पेड़ों के पीछे छिप कर मगरमच्छ की प्रतीक्षा करने लगे. तीन दिनों से मगरमच्छ नदी के
बाहर न आया था. इस कारण सब को आशा थी कि वह जल्दी ही बाहर आयेगा. सब मन में यही
प्रार्थना कर रहे थे कि मगरमच्छ वहीं से बाहर आये जहां नदी किनारे जाल बिछा था. उन्हें
डर था कि अगर वह कहीं ओर से बाहर आया तो उनकी सारी मेहनत व्यर्थ हो जायेगी.
उस दिन मगरमच्छ पानी
से बाहर आया ही नहीं. सब थोड़ा निराश हो गये. तब टिनकू ने कहा, “घबराने की कोई बात
नहीं है. आज नहीं आया तो कल वह दुष्ट अवश्य आयेगा. कुछ खाए बिना कितने दिन जी
पायेगा? हम कल उसे पकड़ेंगे.”
“अगर वह यहाँ से
बाहर आया तो ही हम उसे पकड़ पायेंगे,” हिरण ने थोड़ी निराशा से कहा.
“तुम लोग चिंता न
करो, विश्वास रखो वह यहीं से बाहर आयेगा और सीधा हमारे बिछाए जाल में फंस जायेगा,”
टिनकू ने कहा.
“कैसे? क्यों?” हिरण
ने पूछा.
“वह सब तुम मुझ पर
छोड़ दो,” बन्दर ने कहा.
अगले दिन फिर सब छिप
कर मगरमच्छ की प्रतीक्षा करने लगे. परन्तु टिनकू उनके साथ न था.
टिनकू नदी किनारे
टहल रहा था. उसकी योजना थी कि मगरमच्छ उसे देख ले और उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा
करे. यही सोच वह नदी के बिल्कुल पास ही टहल रहा था.
मगरमच्छ आया. उस ने टिनकू
को नदी किनारे टहलते देखा तो उसके मुहं में पानी आ गया. इतना मोटा-ताज़ा बंदर उसने
कभी न खाया था. उसने यह भी सुन रखा था कि मोटे-ताज़े बंदरों का दिल बहुत स्वाधिष्ट
होता है. मोटे-ताज़े बन्दर को खाने के लिए मगरमच्छ का दिल ललचाने लगा. वह बड़ी
चालाकी के साथ पानी के अंदर तैरता रहा. अपनी आँखें वह पानी से बाहर बस एक-दो पल के
लिए ही बाहर निकालता और फिर पानी में छिप जाता.
टिनकू भी बहुत
होशियार था, उसने मगरमच्छ के माथे पर लगे सींग को देख लिया था. जब मगरमच्छ पानी से
बाहर आता तो उसका सींग भी पानी से बाहर आ जाता था.
टिनकू ने ऐसे
दिखलाया जैसे उस को पता नहीं चला था की मगरमच्छ उसका शिकार करने की योजना बना रहा
था. मगरमच्छ धोखा खा गया. वह समझा कि बन्दर लापरवाही से यहाँ-वहाँ टहल रहा है.
“यह बन्दर मूर्ख और
लापरवाह है, इसे अभी तक पता नहीं चला कि मैं इसको पकड कर कच्चा ही खाने वाला हूँ,”
मगरमच्छ ने मन ही मन सोचा.
उसने बन्दर को पकड़ने
मन बना लिया और उसका पीछा करने लगा.
टिनकू मगरमच्छ की चाल
समझ गया था. वह जान गया था कि मगरमच्छ
उसका शिकार करना चाहता है. टिनकू यही चाहता था. वह मस्ती में झूमता हुआ
इधर-उधर चलता रहा, परन्तु बड़ी होशियारी से वह उस जगह आ गया जहां जाल बिछा था. मगरमच्छ
उसके पीछे आता रहा. जब मगरमच्छ जाल के बीचों-बीच पहुँच गया तो टिनकू कूद कर एक पेड़
पर चढ़ गया और चिल्लाया, “भोला.”
यह संकेत था. भोला
और कई पशु एक साथ जाल को उठा कर भागने लगे. सब खूब हो-हल्ला भी कर रहे थे. मगरमच्छ
को समझ ही न आया कि क्या हो रहा था. वह थोड़ा घबरा गया. वह नदी की ओर भागा. पर वह
भागने में सफल न हुआ.
मगरमच्छ जाल में फंस
गया.
©आइ बी अरोड़ा
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