Thursday, 30 July 2015

ग्रैंडफादर क्लॉक

मेरे कमरे में है लटकी
इक पुरानी ग्रैंडफादर क्लॉक,
न करती वह कोई टिक
न करती वह कोई टॉक.

उसके भीतर तो रहता है
नन्हा-सा इक नटखट गोस्ट,
बार-बार वह वो मुझे चिढ़ाता
मुझे बुलाता, ‘सिल्ली दोस्त’.

नन्हें गोस्ट को अच्छा लगता
बातें करना दिन हो या रात,
होम वर्क लेकर जब मैं बैठूं
शुरू हो जाता है उसकी बात.

गर्मी के दिन आते ही वह
चुपके से फ्रिज में घुस जाता,
आइस क्रीम और मीठे जूस
हौले-हौले वो चट कर जाता.

माँ सोचती, ‘अरे, ऐसा काम
कर सकता है कौन भला?’
माँ भोली है, वह क्या जाने
घर में ही रहती है एक बला.

गोस्ट की शैतानी के कारण
डांट पड़ी है मुझ को कई बार,
गोस्ट को आता खूब मज़ा
जब माँ से होती मेरी तकरार.

स्कूल बैग में रखा मेरा लंच
नन्हें गोस्ट को खूब लुभाता,
और स्कूल बुक्स से छेड़ाखानी
यही खेल है उसको आता.

एक दिन जब नोट बुक्स को
बकरी समान वह निगल गया,
उस दिन मेरे धीरज का बाँध
गुस्से में यूँ पिघल गया.

बंद किये सब खिड़की दरवाज़े
और बुझा दी हर इक लाइट,
अपने कुत्तों से फिर मैं बोला,
“शुरू करो तुम अपनी फाइट”

कमरे में था गहन अँधेरा
दोनों कुत्ते भौंक रहे थे,
नन्हें गोस्ट के नन्हें दाँत
डर से सभी खड़क रहे थे.

नन्हा गोस्ट तो कुत्तों से
रहता है हरदम भयभीत,
और गहन अँधेरे में उसकी
बढ़ जाती है हार्ट की बीट.

डर कर तब वह दौड़ा-भागा
आया झटपट मेरी ओर,
कान पकड़ कर खड़ा हो गया
सह न पाया इतना शोर.

“आज करता हूँ तुम से प्रॉमिस
पर पहले तुम लाइट जलाओ,
न करूंगा मैं तंग कभी
इन कुत्तों से मुझे बचाओ.”

मुझ को आई खूब हंसी
उसकी रोनी सूरत पर,
उसने किया था मुझे
हर दिन कितना तंग मगर.

पर जो चाहा वह कर पाया
उसको सही सबक सिखाया,
अच्छे से वह सदा रहे
मैंने था बस इतना चाहा.

मेरे कमरे में है लटकी
इक पुरानी ग्रैंडफादर क्लॉक,
नन्हा गोस्ट है रहता भीतर

अब न करता वह कोई टॉक.
© आइ बी अरोड़ा

Tuesday, 28 July 2015

एक कहानी  “पत्थर का योद्धा”(अंतिम भाग) 

ब्राशिया का राजा प्रसन्नता से मुस्कुराया. उसने कहा, ‘कल सूर्य उदय होते ही हम आक्रमण करेंगे और विजयी हो कर लौटेंगे.’

युद्ध शुरू हुआ. तलाविया की सेना युद्ध के लिए तैयार थी. गुप्तचरों से पहले ही सूचना मिल चुकी थी कि ब्राशिया के सेना निकट के वन में छिपी हुई थी. उन्हें इस बात की ज़रा भी घबराहट न थी कि शत्रु की सेना बड़ी थी. तलाविया के सेना ने बहादुरी से शत्रु का सामना किया.

राजा यंगहार्ज़ के आदेश पर ब्राशिया के दो गुप्तचर ज़ोरान की मूर्ती पर अपने नजरें गड़ाये बैठे थे. उनको आदेश था कि अगर मूर्ती जीवित हो गई या गायब हो गई तो राजा को तुरंत सूचित किया जाये. दोनों गुप्तचर पूरी तरह सतर्क थे और बिना पलकें झपकाये मूर्ती को देख रहे थे.

लड़ाई के मैदान में भीषण युद्ध हो रहा था. अचानक एक भयंकर चीख की आवाज़ आई. दोनों गुप्तचरों ने एक साथ लड़ाई के मैदान की ओर देखा. पर अगले ही पल उन्होंने अपनी आँखें ज़ोरान की मूर्ती की ओर घुमा दीं. मूर्ती अपनी जगह पर न थी, वह लुप्त हो चुकी थी.

ब्राशिया के सैनिकों ने अचानक पत्थर के योद्धा को युद्ध के मैदान में पाया. अपने शानदार युधवेश में वह बहुत ही भयानक लगा रहा था. युद्ध स्थल में प्रगट होते ही उसने एक ज़ोर की हुंकार लगाईं थी; ऐसी हुंकार जिसे सुन कर बहादुर से बहादुर सैनिक का खून भी डर से जम गया.

ब्राशिया के हर सैनिक ने उस ओर आँखें घुमाईं जहां ज़ोरान की मूर्ती खड़ी थी. सब ने देखा कि मूर्ती गायब थी. सब भयभीत हो गये. उन्हें विश्वास ही गया की पत्थर का योद्धा युद्ध करने आ पहुंचा था. वह सब भयभीत हो गये.

पत्थर का योद्धा उन पर टूट पड़ा. एक विशाल मस्त हाथी की तरह वह युद्ध के मैदान में घूम रहा था और शत्रु सैनिकों को कुचलता जा रहा था. कितने ही सैनिक घायल हो गये, कितने ही मारे गये. एक ही वार से वह बड़े से बड़े योद्धा को ऐसे मार गिरता था जैसे कि वह कागज़ की कठपुतली हो. ब्राशिया के सैनिक युद्ध स्थल से भागने लगे.

‘पत्थर का योद्धा सब को मार डालेगा, भागो, अपनी जान बचाओ,’ ब्राशिया के  सैनिक चिल्ला-चिल्ला कर एक-दूसरे को कह रहे थे.

ब्राशिया के राजा ने सैनिकों को पुकार कर कहा, ‘रुको, कायरों की तरह मत भागो. लौट आओ और वीरों की भांति लड़ो. तुम सब महान योद्धा हो, तुम ने कितनी लड़ाइयाँ लड़ी और जीती हैं. आगे आओ और महान वीरों के समान लड़ो.’

‘महाराज, हम किसी भी योद्धा से लड़ सकते हैं, परन्तु हम एक पत्थर के योद्धा से नहीं लड़ सकते. न हम उसे घायल कर सकते हैं, न ही हम उसे मार सकते हैं. पत्थर के योद्धा से लड़ना पागलपन है,’ एक सैनिक ने चिल्ला कर राजा  से कहा.

तलाविया की सेना जीत गई. सारे देश में इस जीत का जश्न मनाया गया.

तलाविया के राजा ने हर सैनिक का स्वयं सम्मान किया, पत्थर के योद्धा का भी राजा ने सम्मान किया.

‘महाराज, अपने मुझे एक गुप्त शस्त्र बना दिया है. हर कोई मुझ से डरता है. पर इससे मुझे कोई प्रसन्नता नहीं मिलती. मैं तो एक साधारण सैनिक हूँ और एक साधारण सैनिक की भांति युद्ध में भाग लेना चाहता हूँ,’ पत्थर के योद्धा ने कहा, वह कोई और नहीं ज़ोरान ही था.

‘ज़ोरान, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी बात समझता हूँ. पर हमें लगता है कि अब लंबे समय तक हमें कोई लड़ाई लड़नी ही न पड़ेगी. गुप्तचरों से सूचना मिली है कि हर कोई पत्थर के योद्धा से भयभीत है. कोई भी पत्थर के योद्धा का सामना  नहीं करना चाहता. हमारा विश्वास है कि अब हमारे देश में शान्ति रहेगी.’ 

फिर राजा ने पास खड़े अपने डॉक्टर से कहा, ‘हम तो समझते थे की आप सिर्फ एक अच्छे डॉक्टर हैं, आपने ज़ोरान को बचा कर चमत्कार तो किया ही, पर पत्थर के योद्धा की योजना बना कर आपने उससे भी बड़ा चमत्कार किया.’

राजा के डॉक्टर ने ही पत्थर के योद्धा की बात सोची थी. जब यह बात फ़ैल गई थी कि ज़ोरान मर चुका है, तब डॉक्टर ने जांच कर पाया था कि ज़ोरान मरा नहीं था, गहरी बेहोशी में था. उसका इलाज करने के लिए डॉक्टर उसे अपने अस्पताल ले आया था.

किसी को पता न चला कि ज़ोरान जीवित था और उसका का इलाज हो रहा था. धीरे-धीरे उसके घाव ठीक होने लगे थे. पर उसके स्वस्थ होने की बात गुप्त रखी गई थी.
उधर सीमा पर ज़ोरान की मूर्ती स्थापित कर दी गई. राज्य के गुप्तचरों ने यह बात फैला दी कि ज़ोरान मर चुका है. लेकिन कुछ गुप्तचर यह बात भी फैला रहे थे कि ज़ोरान जीवित है और स्वयं सीमा की निगरानी कर रहा है. तलाविया के शत्रु समझ न पा रहे थे की सच क्या है.

इन्हीं गुप्तचरों ने वीलीयन को ज़ोरान के मरने की सूचना देकर अपने जाल में फांसा था. योजना थी कि, ज़ोरान को मरा समझ, ब्राशिया का राजा हमला करे. उसे लड़ाई में हरा कर बंधी बना लिया जाये. वैसा ही हुआ था. ब्राशिया के राजा को बंधी बना लिया गया था.

जहां ज़ोरान की मूर्ती लगाईं गई थी वहां उस जगह, मूर्ती के नीचे, एक गुप्त तहखाना था. तहखाने में एक यंत्र रखा हुआ था. जब ब्राशिया के सैनिकों ने हमला किया तो तलाविया के सैनिकों ने बड़ी चालाकी से मूर्ति को यंत्र द्वारा तहखाने में उतार लिया था, मूर्ती के गायब होते ही ज़ोरान युद्ध-स्थल पर प्रगट हो गया था.

शत्रु सैनिक समझने लगे थे कि किसी जादुई शक्ति से मूर्ती जीवित ही गई थी और उनसे लड़ रही थी. दूसरी बार जब ब्राशिया के राजा ने हमला किया तब भी वैसे ही, मूर्ति को छिपा, ज़ोरान लड़ने आ पहुंचा था. शत्रु सैनिकों ने समझा था कि पत्थर का योद्धा उन से लड़ रहा था.

‘आपकी योजना बहुत सफल रही, पत्थर के योद्धा ने सभी शत्रुओं को इतना भयभीत कर दिया है कि अब कोई भी हम पर हमला करने का साहस न करेगा.,’ राजा ने अपने डॉक्टर से कहा.

फिर ज़ोरान की पीठ थपथपाते हुए राजा ने कहा, ‘ज़ोरान तुम एक महान योद्धा हो. हमें तुम पर गर्व है.’

‘महाराज, अब मेरे लिए क्या आदेश है? ज़ोरान ने पूछा.

“अपने माता-पिता के पास जाओ. वह भी समझे बैठें हैं कि तुम्हारी मृत्यु हो चुकी है, उनके पास जाओ, उनके साथ रहो. अगर कभी हमें तुम्हारी आवश्यकता हुई तो हम तुम्हें बुला भेजेंगे. लेकिन तुम जब भी युद्ध के मैदान में जाओगे तो पत्थर का योद्धा बन कर ही जाओगे.’

राजा ने उसे बहुत सारा धन और कई उपहार दिए. उसके माता-पिता उस देख कर फूले न समाये .

ब्राशिया के राजा ने आश्वासन दिया कि वह शत्रुता छोड़ देगा. तलाविया के राजा ने उसे रिहा कर दिया.


कई वर्षों तक किसी भी शत्रु ने तलाविया पर आक्रमण न किया, हर कोई पत्थर के योद्धा से डरता जो था. 
(समाप्त)
©आइ बी अरोड़ा 

Monday, 27 July 2015

एक लंबी कहानी---“पत्थर का योद्धा” (भाग 13) 
‘महाराज, ज़ोरान मर चुका है. मैंने तो पहले ही यह सूचना आपको दे दी थी. सीमा पर उसकी मूर्ति खड़ी है, मुझे पता लगा है कि ज़ोरान की मृत्यु से तलाविया सेना घबराई हुई है. सेना का साहस बढाने के लिए ही तलाविया के राजा ने ज़ोरान की मूर्ति स्थापित करवाई है. यही समय है जब हम उन्हें हरा सकते हैं और अपनी पराजयों का बदला ले सकते हैं,’ वीलीयन बड़े विश्वास के साथ ने राजा से कहा.

राजा कुछ सोच कर बोले, ‘हम हमला करेंगे परन्तु इस बार हम बड़ी सेना नहीं भेजेंगे. तुम सौ सैनिक ले कर जाओ और उनकी पूर्वी चौकी पर दावा बोलो.’

वीलीयन इतने कम सैनिकों के साथ हमला करने से घबरा रहा था, परन्तु इस स्थिति से बचने का कोई उपाय उसे सुझाई न दे रहा था. सौ सैनिकों के साथ वह पूर्वी चौकी पहुंचा. सब निकट के जंगल में छिप गये. सैनिकों ने ज़ोरान की मूर्ती को देखा. एक सैनिक बोला, ‘यह ज़ोरान ही है, वह जीवित है. वह सीमा चौकी की रक्षा कर रहा है. हम उससे युद्ध नहीं कर सकते. ज़ोरान किसी को जीवित नहीं छोड़ता.’

‘मूर्खो की भांति मत बोलो, जो तुम देख रहे हो वह एक मूर्ती है, ज़ोरान मर चुका है,’ वीलीयन ने झल्ला कर कहा.

पर सैनिकों को विश्वास न हुआ. वह युद्ध करने से कतराने लगे.

‘दो सिपाही मेरे साथ आओ. मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि सच क्या है.’

दो सिपाही साथ ले वीलीयन ज़ोरान की मूर्ती के निकट आया. सिपाहियों ने स्वयं जांच कर सत्य जाना.

‘अरे, यह तो सच में पत्थर की एक मूर्ती है, ज़ोरान नहीं. ज़ोरान मर चुका है,’ एक ने कहा.

“अब हमें किसी का भय नहीं, अब हमें कोई भय नहीं. हम इन कायरों को युद्ध में हरा देंगे. विजय हमारी होगी. अगर चौकी में हज़ार सैनिक भी हुए तब भी हम ही जीतेंगे.’ दूसरे ने कहा.

ब्राशिया के सैनिकों ने पूर्वी चौकी पर दावा बोल दिया, हमला अचानक हुआ था फिर भी तलाविया के सैनिक आश्चर्यचकित न हुए थे. वह इस आक्रमण के लिए तैयार थे. भीषण लड़ाई हुई. दोनों ओर के सैनिक पूरे उत्साह से लड़ रहे थे. कोई भी एक इंच पीछे हटने को तैयार न था.

तभी ब्राशिया के एक सैनिक ने ज़ोरान को अपने सामने खड़ा पाया. ज़ोरान का युद्ध-वेश बहुत ही शानदार और प्रभावशाली था. उसका चेहरा पत्थर की तरह कठोर था. उसकी और आँखें लाल थीं. सैनिक के होश उड़ गये.

उसने उस ओर देखा जहां ज़ोरान की मूर्ती लगी थी. मूर्ती गायब थी. सैनिक को समझ न आया कि यह चमत्कार कैसे हुआ. उसे लगा कि किसी जादुई शक्ति से मूर्ती जीवित हो गई थी. भय से वह सैनिक चिल्लाया, ‘पत्थर की मूर्ति लड़ने आ गई है.’

ब्राशिया के सभी सैनिकों ने अपने उस साथी की ओर देखा जो चिल्लाया था. सभी ने ज़ोरान को देखा, सभी ने एक साथ ज़ोरान की मूर्ती की ओर देखा. सभी ने देखा कि मूर्ती गायब थी. सभी ने समझा कि किसी जादुई शक्ति से मूर्ती जीवित हो गई थी. सभी भयभीत हो गये.

ज़ोरान ने शत्रु सैनिकों पर भयंकर हमला किया. देखते ही देखते सब तितर-बितर हो गये. कुछ मारे गये थे, अन्य बुरी तरह घायल हुए थे. सब अपनी जान बचाने को यहाँ-वहां भागने लगे.

भागते हुए कुछ सैनिकों ने पीछे मुड़ कर देखा. देखा की ज़ोरान की मूर्ती तो अपनी जगह ही स्थापित थी. सब भौंचक्के रह गये. क्या हुआ था, उन्हें समझ ही न आया.

‘लगता है मृत्यु के बाद ज़ोरान एक पत्थर का योद्धा बन गया है. जब हमने चौकी पर हमला किया तब वह पत्थर की मूर्ती था, पर अचानक वह युद्ध स्थल में आ गया और हमसे लड़ने लगा.’ एक सैनिक ने कहा.

‘हमारे वहां से भागते ही वह फिर पत्थर की मूर्ती बन गया है. परन्तु कैसे? पत्थर की कोई मूर्ति लड़ कैसे सकती है?’ दूसरे सैनिक ने कहा.

‘अवश्य ही किसी जादुई शक्ति से ऐसा हो रहा है,’ तीसरे सैनिक ने कहा.

‘अवश्य ही कोई जादूगर उनकी सहायता कर रहा है,’ पहले ने कहा.

‘ज़ोरान नहीं, पत्थर का योद्धा हमसे लड़ रहा था,’ दूसरा चिल्लाया.

‘ऐसे पत्थर के योद्धा को हराना असंभव है,’ तीसरे ने कहा.

चारों ओर यह बात फ़ैल गई कि मृत्यु के बाद ज़ोरान एक पत्थर का योद्धा बन गया है.

ब्राशिया के राजा यंगहार्ज़ को इस कहानी पर विश्वास न हुआ. उसने चिल्ला कर अपने सैनिकों से कहा, ‘तुम सब हार कर आये हो और अब मुझे एक मनगढंत कहानी सुना रहे हो. क्या कोई आदमी पत्थर की मूर्ती बन सकता है? क्या कोई पत्थर की मूर्ती आदमी बन सकती है? क्या एक पत्थर की मूर्ती युद्ध कर सकती है? तुम सब कायर हो, तुम सब को मृत्यु दंड मिलेगा.’

लेकिन जब हर सैनिक ने वही कहानी सुनाई तो उसे कुछ संदेह होने लगा. इस बार राजा ने तय किया कि वह स्वयं हमला करेगा. आठ सौ चुने हुए सैनिकों के साथ राजा पूर्वी चौकी की ओर आया.

चौकी के दक्षिण में जो वन था उस वन में सेना ने अपना शिविर बनाया. राजा ने अपने सबसे अच्छे गुप्तचर सारी जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजे.

अगले दिन गुप्तचरों ने बताया की चौकी में कोई सौ सैनिक थे, ज़ोरान चौकी में न था, उसकी मृत्यु हो चुकी थी. चौकी के निकट उसकी मूर्ती लगी थी.


‘महाराज, हमनें पूरी तरह जांच कर ली है. तलाविया वालों ने पत्थर की मूर्ती वहां स्थापित कर रखी है. मूर्ती इतनी अच्छी बनी है कि उसे देख कर हर किसी को भ्रम हो जाता है कि स्वयं ज़ोरान खड़ा है और सीमा की निगरानी कर रहा है. वह पत्थर की मूर्ती कभी भी जीवित नहीं हो सकती. न ही वह मूर्ती वहां से हटाई जा सकती है. ऐसा लगता है कि तलाविया वालों ने पिछली लड़ाई में कोई छल किया था. हमारे सैनिकों को लगा कि मूर्ती जीवित हो कर युद्ध करने लगी थी. यह अवश्य ही शत्रु की कोई चाल थी. हमारे सैनिक उनकी चाल में फंस गये और डर कर मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए. अब सच हमारे सामने है. डरने की कोई आवश्यकता नहीं है. हमारी संख्या अधिक है. हमारे सैनिक बहादुर हैं और तलाविया से बदला लेने को आतुर हैं. हमारी जीत निश्चित है.’

©आइ बी अरोड़ा 

Sunday, 26 July 2015

एक लंबी कहानी---“पत्थर का योद्धा” (भाग 12

जब राजा और वह सैनिक बातें कर रहे थे, डॉक्टर ज़ोरान के शव की जांच कर रहा था. डॉक्टर ने कहा, ‘महाराज, हमें ज़ोरान की अंतिम इच्छा पूरी करनी चाहिये. अब अगर आप अनुमति दें तो मैं ज़ोरान को अपने अस्पताल ले जाना चाहूँगा.’

‘तुम्हारा अर्थ है कि ज़ोरान के शव को?’

डॉक्टर ने सर हिला कर हामी भरी. राजा ने अनुमति दे दी. राजमहल पहुँच राजा ने देश के सबसे प्रसिद्ध मूर्तिकार को बुलाया और कहा, ‘ज़ोरान की मूर्ति बनाइये, मूर्ति ऐसी होनी चाहिये कि देखने वाले को लगे कि वह मूर्ति को नहीं, स्वयं ज़ोरान को देख रहा है. अपनी कला का भरपूर प्रयोग करें और एक सजीव मूर्ति बनाएं, तुरंत.’

मूर्तिकार ने अपने राजा को निराश न किया. जो मूर्ति उसने बनाई उसे देख कर स्वयं राजा भी दंग रह गये. उन्हें लगा कि जैसे ज़ोरान ही उनके सामने खड़ा था और अभी उनसे बात करने लगेगा.

राजा ने मूर्तिकार की खूब प्रशंसा की और उसे पुरूस्कार भी दिया. उस मूर्ति को पूर्वी चौकी के निकट स्थापित कर दिया गया. जो कोई भी उधर से आता-जाता उसे लगता कि ज़ोरान स्वयं चौकी के निकट खड़ा सीमा की निगरानी कर रहा है.

ब्राशिया के गुप्तचर भी धोखा खा गये. वह भी समझे की ज़ोरान के घाव ठीक हो गये थे और वह स्वयं सीमा की निगरानी करने लगा था. गुप्तचरों ने अपने राजा को सूचना दी. ब्राशिया के राजा का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. वह समझ गया की वीलीयन ने उससे झूठ कहा था.

लड़ाई के बाद वीलीयन ने कहा था कि ज़ोरान गम्भीर रूप से घायल था और वह बच न पायेगा. फिर कुछ दिनों के बाद उसने राजा यंगहार्ज़ से कहा था, ‘महाराज, कुछ चरवाहे मेरे लिए तलाविया में जासूसी करते हैं, उन्होंने सूचना भिजवाई है कि ज़ोरान मर गया है. तलाविया के राजा अपना डॉक्टर ले कर पूर्वी चौकी आये थे. परन्तु उनके पहुँचने से पहले ही ज़ोरान की मृत्यु हो चुकी थी.’

लेकिन जब ब्राशिया के राजा को पता चला कि ज़ोरान जीवित था और सीमा की निगरानी कर रहा था तो उसका गुस्सा फूट पड़ा. राजा यंगहार्ज़ के आदेश पर वीलीयन को कैद कर लिया गया. उसे मृत्युदंड देने का आदेश दिया.

वीलीयन रोने-गिडगिडाने लगा. राजा से दया की भीख मांगने लगा. पर उसके आंसू देख कर भी राजा का क्रोध कम न हुआ.

कुछ सोच कर राजा ने कहा, ‘मैं तुम्हें एक शर्त पर क्षमा कर सकता हूँ. तुम पूर्वी चौकी जाओ और पता लगाओ कि ज़ोरान जीवित है या मर चुका है. अगर वह जीवित है तो तुम उसे द्वंद युद्ध लड़ने के लिए चुनौती दो और उससे द्वंद युद्ध लड़ो.’

वीलीयन ने झट से राजा की शर्त मान ली. ज़ोरान से लड़ने का उसका कोई इरादा न था. वह तो तलाविया की ओर जाने वाला भी न था. सिर्फ मृत्युदंड से बचने के लिए उसने राजा की बात मान ली थी. वह तो ब्राशिया से भाग जाने का एक अवसर चाहता था.

‘यह मत सोचना कि तुम इस बार चकमा दे पाओगे. नीले पंखों वाला पक्षी हर समय तुम पर निगरानी रखेगा और तुम्हारी हर बात, तुम्हारे हर काम की हमें सूचना देता रहेगा. अगर तुम ने इस बार कोई चाल चली तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित है,’ ब्राशिया के राजा यंगहार्ज़ ने थोड़ा क्रोध से कहा.

वीलीयन मन ही मन डर गया. उसे पता न था की जादूगर आर्विज़ राजा की सहायता कर रहा था. वीलीयन समझ गया कि इस बार वह बुरी तरह फंस गया था. अब वह बच कर भाग न सकता था. राजा के आदेश का पालन करने के अतिरिक्त उसके पास कोई रास्ता न था.

वीलीयन तलाविया की पूर्वी चौकी आया. चौकी के निकट स्थित चाँद सराय में ही ठहरा. इस बार भी उसने एक सौदागर का भेष बना रखा था. वह सोच रहा था कि शायद रायज़र शराब पीने के लिए सराय में कभी आये; वह फिर से उसे फुसलाने का प्रयास करना चाहता था. परन्तु तलाविया का कोई भी सैनिक उस सराय में नहीं आया.
दिन बीत रहे थे. नीले पंखों वाला पक्षी सदा उसके आस-पास ही रहता था. वह पक्षी कब आता और कब जाता, वीलीयन कभी न जान पाया.

जब वीलीयन को कोई रास्ता न सुझाई दिया तो उसने एक लालची चरवाहे को पैसों का लालच दे कर पूर्वी चौकी की जासूसी करने के लिये मनवा लिया. चरवाहे ने बहुत प्रयास किया परन्तु उसे कोई जानकारी न मिली.

‘ज़ोरान कैसे हर समय सीमा की निगरानी करता रहता है? वह तो यहाँ का नायक है. कुछ दिन उस पर कड़ी नज़र रखो,’ वीलीयन ने चरवाहे से कहा.

कुछ दिनों के बाद उस चरवाहे ने बताया कि सीमा की निगरानी ज़ोरान नहीं करता, जिसे सब ज़ोरान समझते थे वह तो पत्थर की मूर्ति थी.

‘ज़ोरान तो कब का मर चुका है. आप लोगों को मूर्ख बनाने के लिए एक पत्थर की मूर्ति बनवा कर चौकी के निकट स्थापित कर दी गई है. सब उस मूर्ती को देख कर समझते हैं कि ज़ोरान जीवित है और सीमा की रक्षा कर रहा है.’

‘यह जानकारी तुम्हें कहाँ से मिली?’ वीलीयन ने पूछा.

‘उनकी सेना का एक सैनिक है, जिसे शराब पीने की आदत हो गई थी, नए नायक ने उसे सेना से निकाल दिया था, वह सब जानता है. उसी ने मुझे बताया.’

कुछ भी करने से पहले वीलीयन इस सूचना को अच्छी तरह से परख लेना चाहता था. रात में वह स्वयं जांच करने निकला. उसने पूरी सावधानी बरती. बड़ी चालाकी से वह उस जगह आया जहां ज़ोरान खड़ा सीमा की निगरानी कर रहा था. निकट आने में उसे डर लग रहा था, पर जान हथेली पर रख वह पास आया. जब उसने ज़ोरान को छुआ तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा. वहां ज़ोरान नहीं था, बस एक पत्थर की मूर्ति थी.

प्रसन्नता से वह झूम उठा. उसने तुरंत वापस लौट अपने राजा को यह सूचना देने की बात सोची. परन्तु वह जानता न था कि तलाविया के बिछाए हुए जाल में वह फंस गया था. जिस सैनिक ने चरवाहे को यह सूचना दी थी वह तलाविया का एक गुप्तचर था.
©आइ बी अरोड़ा