अंगूठी
लटू सियार एक पेड़ के
पीछे छिप कर खड़ा था. सुंदर हिरणी अपने घर से बाहर आई. उसने मोतियों की एक सुंदर
माला पहन रखी थी. अचानक लटू ने उसके गले पर झपट्टा मारा और माला खींच ली. हिरणी को
समझ ही न आया कि क्या हुआ है. माला छीन कर लटू सरपट भागा. तभी चतुरलाल बन्दर अपने
घर से बाहर आया. हिरणी ने चिल्ला कर कहा, “वह सियार मेरी माला लेकर भाग रहा है.”
चतुरलाल ने लटू का
पीछा किया और उसे धर दबोचा. उसे पकड़ कर वह पुलिस स्टेशन ले आया. सियार की तीन माह
की कैद हुई. लटू ने मन ही मन निश्चय किया कि जेल से छूट कर वह बन्दर से बदला लेगा.
जेल से छूट कर वह
अपने मित्र नटू भेड़िये के पास आया. मित्र को देखते ही उसने गुस्से से कहा, “मैं
उस बन्दर को मार डालूँगा”
“उसे मार कर फिर जेल
में ही जाओगे. मैं भी उससे बदला लेना चाहता हूँ. हम मिल कर कोई ऎसी चाल चलेंगे कि
उस बदमाश बन्दर को नानी याद आ जायेगी,” नटू ने उसे समझाया.
तभी फोन की घंटी
बजी. नटू ने फोन उठाया और झिड़क कर कहा, “मैं कब से तुम्हारे फोन की प्रतीक्षा कर
रहा हूँ.”
फोन पर बात कर उसने
लटू सियार से कहा, “कल भीमा भालू बैंक से पाँच लाख रूपए निकालेगा. उसे अपने लिए घर
लेना है. पर वह ले न पायेगा क्योंकि जैसे वह बैंक से रूपए ले कर बाहर आयेगा हम उसे
लूट लेंगे.”
कुछ सोच कर लटू
सियार ने कहा, “यही अवसर है जब हम उस चतुरलाल बन्दर की चतुराई निकाल सकते हैं.
भालू को लूटेंगे हम और पकड़ा जायेगा बन्दर.”
“वह कैसे?” भेड़िये
ने पूछा.
“ऐसी चाल सोची है की
वह अब बच नहीं सकता,” सियार ने अकड़ कर कहा.
“क्या चाल सोची है
तुमने?” भेड़िये ने पूछा.
“भालू को लूटने मैं
जाऊंगा. चेहरे पर नक़ाब और हाथों पर सफ़ेद दस्ताने पहन लूंगा. भीमा को लूटने के बाद
नक़ाब और दस्ताने बन्दर के घर में छिपा दूंगा. कुछ रूपए भी वहां छोड़ आऊंगा.”
“लेकिन तुम उसके घर
के अंदर कैसे जाओगे?”
“जैसे ही भालू बैंक
के भीतर जायेगा मैं तुम्हें फ़ोन पर बता दूँगा. तुम्हें बन्दर के घर जाकर किसी तरह उसे घर से बाहर
निकालना होगा.”
“मैं समझ गया. मैं
ऐसा नाटक करूंगा कि उसे घर से बाहर आना ही होगा,”
भेड़िये ने इतराते
हुए कहा.
अगले दिन लटू सियार
बैंक के निकट भीमा भालू की प्रतीक्षा करने लगा. उसने हाथों पर सफ़ेद दस्ताने पहन
रखे थे. चेहरे पर एक नक़ाब पहन रखा था. जैसे ही भीमा बैंक की अंदर गया उसने नटू को फोन
कर कहा, “भीमा बैंक पहुँच गया है. जैसे वह रूपए लेकर बाहर आयेगा मैं उसे लूट
लूंगा. तुम अपने मिशन पर निकल पड़ो.”
कुछ देर बाद एक बैग
में रूपए लिए भीमा बैंक से बाहर आया. वह अपनी कार की और चल दिया. तभी सियार उस पर
झपट्टा. भीमा भालू था तो लम्बा तगड़ा पर था वह डरपोक. नक़ाबपोश को अपने सामने देख
कर वह डर गया. सियार ने उसका बैग छीन लिया. भीमा कुछ कर न सका. जब सियार कुछ दूर
निकल गया तब भीमा ने अपने आप को सँभाला. उसे अपने आप पर गुस्सा भी आया. वह चोर के
पीछे भागा.
उधर एक स्कूटर पर
बैठ नटू भेड़िया चतुरलाल बन्दर के घर की ओर आया. चतुरलाल के घर के निकट उसने जानबूझ
कर एक कार को टक्कर मार दी और चिल्लाया, “देख कर कार नहीं चलाते. अंधे हो क्या?”
कार एक चीता चला रहा
था. गुस्से से भरा वह कार से बाहर आया और बोला, “टक्कर तुमने मारी और क्षमा मांगने
के बजाय मुझ पर ही बिगड़ रहे हो.”
कई पशु इकट्ठे हो
गये. शोर सुन कर चतुरलाल बन्दर भी घर से बाहर आ गया. पर वह एक भूल कर बैठा. घर का दरवाज़ा
उसने बंद न किया. यह देख कर नटू मन ही मन
प्रसन्न हुआ. सबका ध्यान बांटने के लिए वह झगड़े पर उतर आया.
तभी सियार भागता हुआ
उधर आया. वह चतुरलाल बन्दर के घर में चला गया. भीतर जाकर उसने नक़ाब और सफ़ेद
दस्ताने अलमारी में छिपा दिए. रुपयों का एक बंडल भी वहां रख दिया.
भेड़िये और चीते का
झगड़ा देखने में सब इतने मग्न थी कि किसी ने भी सियार को न आते देखा, न जाते
देखा. भीमा भालू हाँफते हुए उधर आ पहुंचा.
उसे देख भेड़िये ने चीते से कहा, “क्षमा कर दो, गलती मेरी ही थी. यह लो हज़ार रूपए,
अपनी कार ठीक करा लेना.” चीते को रूपए थमा वह अपने स्कूटर पर चल दिया.
चतुरलाल बन्दर ने
भालू को देखा तो समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. पास आकर उसने पूछा, “क्या बात है? इतने
घबराये हुए क्यों हो?”
“मैं लुट गया. किसी
ने मेरा बैग छीन लिया. बैग में पाँच लाख रूपए थे.”
“तुम ने पुलिस स्टेशन
जाकर रिपोर्ट लिखाई या नहीं?”
“मैं तो लुटेरे का
पीछा कर रहा था. वह इधर ही आया है. पर अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा.”
भीमा भालू को साथ
लेकर चतुरलाल पुलिस स्टेशन आया. इंस्पेक्टर होशियार सिंह ड्यूटी पर था. वह रिपोर्ट
लिख ही रहा था कि फोन की घंटी बजी. इंस्पेक्टर ने फोन उठा कर पूछा “कौन बोल रहा?”
“मैं अपना नाम नहीं
बता सकता. पर मुझे आपको एक सूचना देनी है. चतुरलाल बन्दर ने ही भीमा भालू को लूटा
है. उसके घर की तलाशी लें. सारे सबूत मिल जायंगे.”
फोन लटू सियार ने ही
किया था. पर इंस्पेक्टर यह बात जान न पाया. पर उसे कुछ संदेह हुआ. उसने भालू से
पूछा, “ इस लूट के बारे कौन-कौन जानता है?”
“कोई भी नहीं. मैंने
तो अभी तक किसी से बात नहीं की.”
इंस्पेक्टर ने
चतुरलाल से कहा, “ आपके घर की तलाशी लेनी है. चलिये मेरे साथ.”
“मेरे घर की तलाशी
क्यों लेनी है? यह क्या चक्कर है.” चुतरलाल ने आश्चर्य से पूछा.
“वह सब बाद में
बताऊंगा.” इंस्पेक्टर ने कहा.
तीनों बन्दर के घर
आये. तलाशी लेने पर इंस्पेक्टर
को नक़ाब, दस्ताने और दस हज़ार रूपए मिले.
“इंस्पेक्टर, लुटेरे
ने यही नक़ाब और ऐसे ही सफ़ेद दस्ताने पहन रखे थे,” भीमा चिल्लाया.
बन्दर हक्का बक्का
रह गया था. वह कुछ कह ही न पाया.
“इंस्पेक्टर, इस
बंदर को अभी गिरफ्तार कर लो.” भालू का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया था.
“चुप हो जाओ और मुझे
जांच करने दो,” इंस्पेक्टर ने डपट कर कहा.
इंस्पेक्टर ने नक़ाब
और दस्तानों की जांच की. एक दस्ताने में उसे एक अंगूठी मिली.
“क्या यह तुम्हारी
अंगूठी है?” उसने चतुरलाल से पूछा.
“नहीं.”
“मेरा भी ऐसा ही
विचार था. लगता है हड़बड़ाहट में दस्ताने उतारते समय लुटेरे की अंगूठी भी उतर गई और
इस दस्ताने में रह गई. उसी ने मुझे फोन किया और कहा कि चोरी के सबूत तुम्हारे घर
में मिलेंगे.”
“यह अंगूठी मैंने
कहीं देख रखी है. पर याद नहीं आ रहा कि कहाँ देखी थी.” चतुरलाल ने अंगूठी हाथ में
लेकर ध्यान से देखी.
“ज़रा सोचो, किसी के
हाथ में देखी थी या किसी के घर पर या किसी दुकान में?” इन्स्पेक्टर ने पूछा.
“यह तो लटू सियार की
है. हां, यह उसी की है. तीन-चार माह पहले उसने सुंदर हिरणी की माला खींच ली थी. तब
मैंने ही उसे पकड़ा था. उस समय यह अंगूठी उसने पहन रखी थी.”
“इंस्पेक्टर, यह
हमें मूर्ख बना रहा है. इसकी बातों में मत
आइये और इसे गिरफ्तार करिये,” भीमा बीच में बोला.
“अभी पता चल जायेगा
कि सच क्या है,” इंस्पेक्टर ने कहा और और दोनों को साथ लेकर नटू के अड्डे पर आ
गया. उसे पता था कि लटू नटू के अड्डे पर ही समय बिताता है.
उन्हें देख कर नटू
और लटू की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई.
“हमें यह अंगूठी
मिली है. क्या तुम जानते हो यह किस की है?” इंस्पेक्टर ने बड़े विनम्रता से पूछा.
लटू ने तुरंत अपने
बायें हाथ की और देखा और बोला, “अरे, यह तो मेरी है, आपको कहाँ से मिली?”
इतना कहते ही उसके
चेहरे का रंग उड़ गया. उसने मन ही मन कहा, “यह मैं क्या बोल बैठा? मुझे तो कहना
चाहिये था कि यह मेरी अंगूठी नहीं है. अब फंस गया.”
“उसी दस्ताने में
जिसे पहन कर तुमने भीमा को लूटा था.” इंस्पेक्टर ने कहा.
लटू और नटू के होश
उड़ गये. इंस्पेक्टर ने कड़क आवाज़ में कहा, “ रूपए कहाँ हैं?”
लटू डर गया और भीमा
का बैग ले आया.
“ लटू भाई, मुझे
फंसाने की चाल तो तुमने खूब चली थी. पर तुम भूल गये की हर अपराधी कोई न कोई गलती
कर बैठता है. तुम भी गलती कर बैठे और पकड़े गये,” चतुरलाल ने कहा.
“ भई, अब गलती का
परिणाम भी तो भुगतना पड़ेगा.” इतना कह इंस्पेक्टर ने लटू और नटू को हथकड़ी लगा दी.
© आई बी अरोड़ा
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