क्रोध का परिणाम
विराट देश का राजा
विक्रमजीत न्यायप्रिय था. वह बड़ी कुशलता से देश का राजकाज चलाता था. देश की सारी प्रजा
सुखी थी. सब अपने राजा का बहुत सम्मान करते थे.
विक्रमजीत का इकलौता
बेटा विश्वजीत स्वभाव का क्रोधी था. छोटी-छोटी बातों पर भी उसे गुस्सा आ जाता था.
गुस्से में वह अपना आपा खो बैठता था. राजा ने कई बार उसे समझाया था कि क्रोध से
सदा हानि ही होती है. सबसे अधिक हानि क्रोध करने वाले की ही होती है. परन्तु
राजकुमार पिता की इन बातों को सदा अनसुना कर देता था.
विराट देश की
राजधानी के निकट सुंदरवन था. उस वन में कई विरले और दुर्लभ पशु पक्षी रहते थे. उस वन
के पशु पक्षिओं का शिकार करने पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था. वन का रखवाला सरजू राजा के
इस आदेश का पालन सख्ती से करता था.
यह सब जानते हुए भी
राजकुमार अपने मित्रों के साथ अकसर सुंदरवन आया करता था. अगर वह वहां पशुओं का
शिकार करने लगते तो सरजू उन्हें रोकने का प्रयास करता था. राजकुमार गुस्से में आकर
सरजू को डांटता था. कई बार तो उसके मित्रों ने सरजू को मारा-पीटा भी था.
परन्तु एक दिन
राजकुमार और उसके मित्रों ने वन में बहुत उत्पात मचाया. सरजू ने बड़ी कठोर वाणी में
राजकुमार से कहा, “आप सब तुरंत यहाँ से चले जाएँ. अन्यथा मैं अभी जाकर महाराज से
शिकायत कर दूंगा.”
राजकुमार गुस्से से
आग बबूला हो गया. वह अपना आपा खो बैठा. बिना सोचे समझे उसने सरजू पर अपनी तलवार से
वार कर दिया. सरजू अपना बचाव न कर पाया. उसके मृत्यु हो गई.
अब राजकुमार घबरा
गया. वह समझ गया की वह बहुत बड़ी मुसीबत में फंस गया है. परन्तु उसके मित्रों ने
कहा, “अरे, चिंता न करो. हम सब महाराज से कहेंगे कि दोष सरजू का था, उसने ही अकारण
तुम पर हमला किया था. तुमने तो बस अपना बचाव करने के लिए तलवार उठाई थी.”
राजकुमार मित्रों की
बातों में आ गया. परन्तु गुप्तचरों ने घटना की सारी जानकारी महामंत्री को दे दी
थी. महामंत्री को चिंता हुई. वह जानता था कि महाराज किसी अपराधी को क्षमा नहीं
करते. राजकुमार को भी क्षमा न करेंगे.
मंत्री की अपनी कोई
सन्तान न थी. वह राजकुमार विश्वजीत को अपने पुत्र समान ही मानता था. वह राजकुमार
को महाराज के दंड से बचाना चाहता था. वह चुपचाप सरजू की पत्नी से मिला. उसने कहा,
“सरजू के साथ जो हुआ वह बहुत ही गलत हुआ. पर अब वह लौट कर नहीं आ सकता. मैं जीवन
भर तुम्हारे परिवार की देखभाल करूंगा. बस इस घटना का किसी को पता न लगना चाहिये.”
सरजू की पत्नी ने
महामंत्री की बात मानने में ही अपनी भलाई समझी. महामंत्री को लगा कि समस्या सुलझ
गई है. परन्तु ऐसा हुआ नहीं.
राजकुमार और उसके
मित्र सब घबराये हुए थे. वह भयभीत थे कि कहीं सरजू का परिवार महाराज के पास न
पहुंच जाये. उन्होंने तय किया कि वह स्वयं महाराज के पास जाकर उन्हें एक मनगढ़न्त
कहानी सुना देंगे.
और उन सब ने ऐसा ही
किया. उनकी मनगढ़न्त कहानी सुनकर राजा ने कहा, “उस रखवाले का इतना साहस कि उसने
राजकुमार पर हमला किया? उसे कठोर दंड दिया जायेगा.”
“महाराज, उसकी तो
मृत्यु हो गई. राजकुमार ने सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए उस पर तलवार से वार किया
था,” एक मित्र ने कहा.
“ऐसे अपराधी के
परिवार को भी दंड मिलना चाहिये,” राजा ने कहा और सेनापति को आदेश दिया कि सरजू के
सारे परिवार को कैद कर लिया जाये.
सिपाही सरजू के
परिवार के सभी सदस्यों को पकड़ कर ले आये. उन सब पर तो जैसे बिजली आन गिरी. पर सरजू
की पत्नी ने साहस से काम लिया. उसने राजा से कहा, “महाराज, अगर सरजू ने राजकुमार
पर हमला किया था तो महामंत्री ने हमें कैद करने के बजाय हमारी देख भाल करने का वचन
क्यों दिया? सत्य तो यह है कि राजकुमार ने मेरे पति की हत्या की है.”
विक्रमजीत ने
महामंत्री की ओर देखा. महामंत्री की पाँव तले से ज़मीन खिसक गई. वह आँखें नीचे किये
चुपचाप खड़ा रहा. राजकुमार और उसके मित्र भी थरथर काँप रहे थे.
“हमें तो पहले ही
संदेह था की राजकुमार ने ही क्रोध में आकर सरजू की हत्या की होगी. परन्तु राजकुमार
के अपराध से बड़ा अपराध महामंत्री ने किया. उन्होंने राजकुमार के अपराध को छिपा कर
ऐसी भूल की है जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता,” राजा ने गरजती वाणी में कहा.
महामंत्री की आँखों
से पश्चाताप के आंसू बहने लगे. राजकुमार और उसके मित्र भी चुपचाप रो रहे थे. पर इस
सब का राजा पर कोई प्रभाव न पड़ा. उन्होंने राजकुमार, उसके मित्रों और महामंत्री को
देश से निर्वासित कर दिया.
राजा का आदेश सुन कर
राजसभा में सन्नाटा छा गया. किसी ने भी कल्पना न की थी कि महाराज अपने इकलौते
पुत्र को इतना कठोर दंड देंगे. कुछ मंत्रियों ने राजा से प्रार्थना की, “ महाराज,
दया करें, इन सब की भूल को क्षमा कर दें, इन सब को इतना कठोर दंड न दें.”
“अगर इन लोगों को
इनके अपराध की सज़ा न मिली तो प्रजा का हम से विश्वास उठ जायेगा. अगर इन्हें क्षमा
कर दिया तो किस अधिकार से हम अन्य अपराधियों को दंड देंगे. इन्हें तो इतना कठोर
दंड मिलना चाहिये कि कोई भी अपराध करने का साहस न कर पाए,” राजा ने कड़क आवाज़ में
कहा.
राजा अपने निर्णय पर
अटल रहा. देश के हर नागरिक पर इस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा. अपराधियों की दिल दहल
गये. देश में अपराध की घटनाएं लगभग समाप्त हो गईं.
© आई बी अरोड़ा
No comments:
Post a Comment