एक वन में एक पेड़
था. वह पेड़ वन के अन्य पेड़ों से बहुत छोटा था. यह बात उस पेड़ को बहुत खटकती थी. हर
समय वह मन ही मन सोचा करता था, “कितना अच्छा होता अगर मैं वन का सबसे ऊँचा पेड़ होता.
वन के सब पेड़ मुझ से ईर्षा करते.”
उस पेड़ की एक पक्षी
से गहरी मित्रता थी. पेड़ को लगता था कि उसका मित्र संसार का सबसे सुंदर पक्षी है.
उसने एक दिन अपने मित्र से कहा, “मित्र, तुम संसार के सबसे सुंदर पक्षी हो. क्या
सब तुम से ईर्षा करते हैं?”
“मैं नहीं जानता कि
मैं सबसे सुंदर पक्षी हूँ और सब मुझ से ईर्षा करते हैं,” पक्षी ने भोलेपन से कहा.
“मेरा मन चाहता है
कि मैं संसार का सबसे ऊँचा वृक्ष बन जाऊं. सब मुझ से ईर्षा करें. इस वन में सभी वृक्ष कितने ऊंचें हैं. क्या तुम जानते
हो कि यह सभी वृक्ष इतने ऊंचे कैसे हो गये?” पेड़ ने पूछा.
“नहीं, मुझे तो ऐसी
कोई जानकारी नहीं है.”
“अरे, कोई तो जानता
होगा?”
“एक साधु बाबा
कभी-कभी इस वन में आते हैं. वह जानते होंगे. इक दिन हाथी कह रहा था कि साधु बाबा को हर बात की समझ है,” पक्षी ने कहा.
“वह जब भी इस वन में
आयें तो मुझे बताना. मैं स्वयं उनसे बात करूंगा,” पेड़ ने कहा.
अब पेड़ उत्सुकता से साधु
की प्रतीक्षा करने लगा. एक दिन पक्षी ने आकर उस पेड़ से कहा,
“साधु बाबा इधर आ रहे हैं.”
पेड़ ने देखा कि एक
बहुत ही बूढ़ा व्यक्ति उस ओर आ रहा था. उसकी सफ़ेद दाड़ी उसके घुटनों को छू रही थी.
उसके पास आते ही पेड़ ने कहा, “बाबा, प्रणाम. बाबा, आपको मेरी सहायता करनी ही होगी.”
“कहो, मैं क्या कर
सकता हूँ तुम्हारे लिए?” साधु ने पूछा.
“बाबा, मैं चाहता
हूँ कि मैं वन का सबसे ऊँचा पेड़ बन जाऊं. आप मुझे बतायें कि मैं ऊँचा कैसे हो सकता
हूँ.”
“अरे, ऊँचा होकर
क्या होगा?” साधु बाबा ने कहा.
“वन के सब वृक्ष
ऊंचे हैं. कुछ वृक्ष तो आकाश को छू रहे हैं. सिर्फ मैं ही छोटा हूँ. मुझे अच्छा नहीं लगता. आप मुझ पर कृपा करें. मुझे
ऐसा उपाये बतायें जिससे मैं भी खूब ऊँचा हो जाऊं,” पेड़ ने कहा.
“मुझे तो लगता है कि
दूसरों की नकल करने से कभी किसी का हित नहीं होता,” साधु ने समझाया.
“नहीं बाबा, मुझे भी
औरों की भांति ऊँचा होना है.” पेड़ मिन्नत करने लगा.
“ठीक है, मेरी बात
ध्यान से सुनो. तुम अपनी जड़ों को धरती में जितना गहरा फैला दोगे उतने ही तुम आकाश में ऊंचे
होते जाओगे.”
“बस इतनी से बात
है,” पेड़ ने कहा.
“हां, पर एक बात का
ध्यान रखना. इतना भी ऊँचा मत हो जाना कि बादलों को आने-जाने में रुकावट हो.” इतना कह साधु बाबा चल दिये.
पेड़ प्रसन्नता से
झूमने, गाने लगा. उसने अपने मित्र से कहा, “देखना अब मैं सब पेड़ों से ऊँचा हो
जाऊँगा. आकाश को छू लूंगा.”
“तुमने सुना नहीं
बाबा ने क्या चेतावनी दी थी?” मित्र ने कहा.
“अरे छोड़ो, अब तो
मेरे मन में जो आयेगा मैं वही करूंगा.”
पेड़ अपनी जड़ों को
धरती में दूर तक फैलाने लगा. जैसे-जैसे उसकी जड़ें धरती में फैलती गईं वैसे-वैसे वह
ऊपर उठता रहा. हर दिन वह थोड़ा और ऊंचा हो जाता. एक सुबह जब वह नींद से जागा तो उसने देखा कि वह वन का सबसे ऊँचा पेड़
बन गया था. पल भर को उसे विश्वास न हुआ. वह ज़ोर से हंसा और उसने चिल्ला कर
कहा, “अरे, सब इधर देखो. अब इस वन में मैं ही सबसे ऊँचा पेड़ हूँ. तुम सब पेड़ मुझ
से छोटे हो. हा हा हा.”
उसका मित्र आया तो पेड़
को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ.
“मित्र, अब तो तुम
सबसे ऊंचे पेड़ हो. तुम्हारे मन की इच्छा पूरी हो गई.”
“अभी तुम ने देखा ही
क्या है? कुछ दिनों के बाद देखना वन के यह सारे पेड़ ऐसे लगेंगे जैसे कि छोटी-मोटी
झाड़ियाँ हों,” पेड़ ने अकड़ कर कहा.
“लगता है कि तुम
साधु बाबा की चेतावनी भूल गये हो?” पक्षी ने कहा.
“अरे, मेरे ऊंचे
होने से बादलों को क्या दिक्कत हो सकती है?” पेड़ ने थोड़ा झुंझला कर कहा.
“तुम्हें बाबा की
बात मान लेनी चाहिये. इसलिये अपना हठ छोड़ दो,” पक्षी ने समझाया.
पेड़ तो जैसे गर्व से
फूला न समा रहा था. उसने अपने मित्र की एक न सुनी. वह ऊँचा होता गया. धरती के भीतर
अपनी जड़ों को उसने बहुत दूर तक फैला दिया. उसे देख कर वन के सभी पशु, पक्षी, पेड़, पौधे आश्चर्यचकित हो गए. पेड़ बहुत ही ऊंचा हो गया था. ऐसा लग रहा था कि वह आकाश को छू
रहा था.
पर वह पेड़ अभी भी संतुष्ट न था. एक दिन उसके मन में आया कि अगर वह थोड़ा और ऊँचा हो जाये तो चाँद को भी छू लेगा.
पर वह पेड़ अभी भी संतुष्ट न था. एक दिन उसके मन में आया कि अगर वह थोड़ा और ऊँचा हो जाये तो चाँद को भी छू लेगा.
तभी आकाश में घने
बादल घिर आये. सब बादल दक्षिण से उत्तर की ओर जा रहे थे. अचानक सब बादल रुक गये.
अपने रास्ते में एक विशाल पेड़ को देख कर सारे बादल भौंच्चके रह गये. ऐसा तो आज तक न हुआ
था. किसी पेड़ ने उनका रास्ता रोकने का साहस न किया था. सब बादल गुस्से से गरजने
लगे.
“ओ मूर्ख पेड़, हमारा
रास्ता रोक कर क्यों खड़े हो?” एक बादल ने कहा. वह विशाल हाथी जैसा दिख रहा था.
“गलती तुम्हारी है
जो इतना नीचे उड़ रहे हो. तम्हें तो बहुत ऊपर उड़ना चाहिये,” पेड़ ने अकड़ कर कहा.
“हमारे रास्ते से
हटो और हमें आगे जाने दो,” बादल ने गरज कर
कहा.
“मैं संसार का सबसे
ऊँचा पेड़ हूँ. मैं नहीं हट सकता. तुम सब थोड़ा ऊपर हो कर निकल जाओ,” पेड़ ने इतराते
हुए कहा.
“हम सब बहुत भारी
हैं. अभी हमें कई जगह वर्षा करनी है. हम ऊपर नहीं जा सकते,” कई बादल एक साथ
बोले.
पेड़ ने उनकी बात की
ओर ध्यान ही न दिया और अकड़ कर खड़ा रहा. बादल गुस्से में चीखने चिल्लाने लगे. सारा
वन उनकी गर्जना सुन कर काँप उठा. लेकिन ऊंचे पेड़ पर तो जैसे कोई प्रभाव ही न पड़ा.
वह अपनी मस्ती में झूमता रहा.
अचानक ज़ोर से बिजली
चमकी. सबसे ऊँचा पेड़ जलने लगा. पेड़ के कुछ भाग टूट कर दूर जा गिरे. वन के अन्य
पेड़ों ने जब यह दृश्य देखा तो सब थर-थर कांपने लगे.
ऊँचा पेड़ बहुत
चिल्लाया, सबसे सहायता मांगने लगा, पर कोई भी उसकी सहायता न कर पाया. देखते ही
देखते पेड़ पूरी तरह जल गया.
कुछ दिन बाद साधु
बाबा उस वन में फिर आये. जले हुए पेड़ को देख कर उन्होंने मन ही मन कहा, “किसी को भी जीवन में
इतना हठी न होना चाहिये. हठी प्राणियों का अंत ऐसा ही होता है.”
© आई बी अरोड़ा
Well written.
ReplyDeletethanks for appreciating it
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