Tuesday, 6 January 2015

सज़ा
(भाग 1 )
श्रीमान सियार एक चोर था. हर चोरी वह बहुत ही सोच समझ कर करता था. चोरी की पूरी योजना बनाता था. जिस जगह चोरी करनी होती थी उस जगह की पूरी जानकारी प्राप्त कर लेता था. घर के अंदर-बाहर जाने वाले रास्तों को ठीक से समझ लेता था. चोरी के समय घर के भीतर कितने लोग होंगे इसका भी पता लगा लेता था. सुरक्षा का क्या प्रबंध हैं इसकी भी जानकारी ले लेता था.
सबसे अधिक होशियारी वह चोरी करते समय दिखाता था. जहां चोरी करता वहां अपना एक भी सुराग न छोड़ता था. इस कारण पुलिस को कभी पता ही न चलता था की चोरी किसने की है. लाख कोशिश के बाद भी पुलिस उसे पकड़ न पाई थी. इंस्पेक्टर होशियार सिंह को श्रीमान सियार पर संदेह तो था. पर वह उसे कभी पकड़ न पाया.
एक दिन भेष बदल कर श्रीमान सियार बैंक आया. उसे न तो पैसे निकालने थे न जमा करने थे. वह तो बस यह देखने आया था की क्या कोई बैंक से भारी रकम निकाल रहा है.
एक बैंक अधिकारी के साथ वह बातें करने लगा, “अगर मैं पाँच वर्षों के लिए पैसे जमा कराऊँ तो मुझे कितना ब्याज मिलेगा?”
बैंक अधिकारी उसे अलग-अलग बचत योजनों के बारे में बताने लगा. परन्तु श्रीमान सियार का ध्यान तो श्रीमान हिरण की ओर था जो उस समय बैंक से दस लाख रूपये निकाल रहा था.  श्रीमान हिरण की बेटी का विवाह कुछ दिनों बाद होने वाला था. विवाह के लिए जो भी प्रबंध करना था उसके लिए उसे पैसे चाहिए थे. इसी कारण वह दस लाख एक साथ निकाल रहा था.
“इतने पैसे घर में रखने की क्या आवश्यकता है? आप थोड़े-थोड़े पैसे भी निकाल सकते हैं.” एक बैंक अधिकारी ने श्रीमान हिरण को समझाया.
“अरे कौन बार-बार पैसे निकालने आये? वैसे भी सारे पैसे कुछ ही दिनों में खर्च हो जायेंगे.” श्रीमान हिरण ने कहा.
श्रीमान हिरण की बातें सुन श्रीमान सियार के दिमाग में घंटियाँ बज रही थीं. उसके मन में लड्डू फूट रहे थे. दो माह पहले ही उसने हिरण के घर की पूरी टोह ली थी. उसने सुन रखा था की हिरण की बेटी का विवाह होने वाला है. उसे बस यह पता न था की विवाह कब होगा.
“मैं सोच कर आपको बताऊंगा हूँ कि मुझे कितने रूपये जमा कराने हैं.” श्रीमान सियार ने उस बैंक अधिकारी से कहा जो उसे बचत योजनाओं के बारे में अभी बता रहा था और झटपट वहां से चल दिया. उसे तुरंत यह जानकारी प्राप्त करनी थी की हिरण के घर में कितने लोग हैं. उसने तय कर लिया था कि आज रात ही वह हिरण के घर चोरी करेगा.
भिखारी के भेष में वह हिरण के घर पर निखरानी करने लगा. थोड़ी ही देर में वह जान गया की घर पर सिर्फ तीन लोग ही थे, हिरण, उसकी पत्नी और बेटी जिसका विवाह होने वाला था. शाम के समय बेटी अपने मित्रों के साथ चली गयी. एक मित्र के घर पर पार्टी थी. वह रात में देर से ही लौटने वाली थी.
“इससे अच्छा अवसर कभी न मिलेगा. हिरण के घर में घुसना बिलकुल आसान है. घर पर सिर्फ दो लोग हैं. उन्हें पता भी न चलेगा और दस लाख रूपये मेरे पास होंगे. यह तो सुनहरा अवसर है.”
अपनी समझदारी पर वह स्वयं ही इतरा रहा था. आज तक इस नगर में किसी चोर ने इतनी बड़ी चोरी न की थी. उसे पूरा विश्वास हो गया की आज रात के बाद चोरों के इतिहास में उसका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा. नगर के सब चोर उससे ईर्षा करेंगे.

रात दस बजे श्रीमान सियार बहुत ही चालाकी और होशियारी के साथ श्रीमान हिरण के घर में घुस गया. उसने चेहरे पर काला कपड़ा लपेट रखा था. भीतर घुसते ही उसे हंसने की आवाज़ सुनाई दी.
(क्रमश) 
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© आई बी अरोड़ा

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2 comments:

  1. आगे पढ़ना ही होगा , संशय पैदा कर दिया आपकी कहानी ने , आखिर किसकी हंसी आ रही थी , और फिर श्रीमान सियार ने क्या किया ?

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  2. धन्यवाद योगी ,आपको कहानी पसंद आई अच्छा लगा,शीघ्र ही दूसरा व् अंतिम भाग पोस्ट कर दूंगा

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