Wednesday, 14 January 2015

मूर्ख बन्दर
इक बन्दर था हाथी से चिढ़ता
हर दम था वह हाथी से लड़ता
“माना तुम हो शक्तिशाली
पर मेरी भी है बात निराली

तुम से छोटा हूँ तो क्या
वन में मुझ सा है कौन भला
जो चाहूँ वह मैं कर जाऊं
इस वन का राजा भी बन जाऊं”

हाथी सुन कर थोड़ा झुंझलाया
सिर अपना उसने खुजलाया
“यह सब मुझ से क्यों हो कहते
अच्छा लगता तुम राजा बनते 

सिंह से कहता हूँ यह बात 
नहीं टालते वह मेरी बात 
सिंहासन से हट जायेंग 
दिन तुम्हारे फिर जायेंगे”



 मूर्ख बन्दर अब घबराया
सिंह को अपने पीछे ही पाया   
गुस्से से थीं उसकी आँखें लाल
 डर से बन्दर हुआ बेहाल

बोल गया था वो ऊंचे बोल
मन हुआ अब डांवांडोल
हाथ पाँव उसके लगे कांपने
सिंह को पाया जब सामने.

© आई बी अरोड़ा 

आपको यह कवितायें भी अच्छी लगेंगी:

4 comments: