Thursday, 22 January 2015

अच्छा व्यवहार
तीन गिलहरियाँ थीं. नाम था ईना, मीना और डीका. ईना और मीना बहनें थीं. डीका उन दोनों की सहेली थी.

ईना और मीना सीधी-साधी और भोली-भाली गिलहरियाँ थीं. परन्तु डीका बहुत शरारती थी. हर समय अपनी सहेलिओं को सताती थी. कभी उनकी स्कूल की पुस्तकें फाड़ देती थी, कभी उनकी यूनिफार्म पर रंगो से लकीरें डाल देती थी, कभी टीचर से झूठी शिकायत कर देती थी. टीचर से दोनों बहनों को बार-बार डांट पड़ती थी.

दोनों बहनें अपनी सहेली के व्यवहार से तंग आ चुकी थीं.  उन्होंने उसे कई बार कहा भी था कि उसे इस तरह का बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिये, परन्तु डीका थी कि कुछ समझने को तैयार ही न थी.

हार कर ईना और मीना ने डीका से बोलना बंद कर दिया. डीका चिढ़ गयी. कोई भी उससे मित्रता नहीं करना चाहता था. सब जानते थे की वह अपनी शरारतों से परेशान कर देती है.

डीका ने एक दिन स्वयं ही अपनी पुस्तकें फाड़ कर टीचर से कहा कि ईना और मीना ने उसकी पुस्तकें फाड़ दीं हैं.

टीचर ने दोनों बहनों को डांटा और कहा, “अपने पापा को कहना कि  कल मुझे आकर मिलें.”

उनके पापा टीचर से मिले. टीचर ने उनकी शिकायत की. पापा ने दोनों को खूब डांटा. दोनों ने कहा कि उनकी कोई गलती नहीं थी. डीका ने झूठी शिकायत की थी. पर पापा गुस्से में थे. उन्होंने कुछ सुना ही नहीं.

रात में दोनों बहनों ने मिल कर तय किया कि वह डीका को सबक सिखाएंगी.

“अब तक हम उसके साथ अच्छा व्यवहार करते रहे हैं. पर अच्छा व्यवहार तो अच्छे लोगों के साथ ही किया जा सकता है. बुरे लोगों के साथ बुरा व्यवहार ही करना चाहिये,” ईना ने कहा.

“ठीक कहा तुमने, हमने आज तक उस दुष्ट की एक भी शिकायत नहीं लगाई, कभी उसे तंग नहीं किया फिर भी वह हम से बुरा व्यवहार ही करती रही है. अब हम उसे सीधा कर देंगे,” मीना बोली.

ईना और मीना की नानी भी उनके साथ ही रहती थी. वह ईना, मीना के कमरे में ही सोती थी. नानी अपने बिस्तर पर लेटी थी. उसने ईना और मीना की बातें सुन ली थीं.

नानी ने दोनों से कहा, “ किसी अच्छे व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार करना तो साधारण बात है, ऐसा तो कोई भी साधारण व्यक्ति कर सकता है. बात तो तब है जब हम बुरे व्यक्ति के साथ भी अच्छा व्यवहार करें.”

“पर नानी अगर बुरा व्यक्ति अपना व्यवहार बदले ही नहीं तो हमारी अच्छाई किस काम की?” ईना ने पूछा.

“अरे, अगर बुरा व्यक्ति बदलना नहीं चाहता तो इसका यह अर्थ नहीं की हम अपनी अच्छाई छोड़ कर बुरे बन जाएँ,” नानी ने  कहा.

बात ईना और मीना को समझ आ गई. और दोनों ने तय किया कि न वह डीका से कोई बात करेंगी और न ही उसकी ओर कोई ध्यान न देंगी.

पर अगले दिन एक अनहोनी हो गई.

जब ईना, मीना और डीका आपस में बातचीत करती थीं, तब तीनों एक साथ स्कूल आया-जाया करती थीं. पर अब डीका अकेले ही स्कूल आती-जाती थी.

डीका स्कूल से अकेले आ रही थी. रास्ते में एक जगह, एक पेड़ के पीछे, एक सियार खड़ा था. उसने झपट कर डीका को पकड़ लिया. उसे लेकर वह बदमाश अपने अड्डे की ओर भागा. डीका डर के मारे चिल्ला भी न सकी.
ईना, मीना ने सब देख लिया.

“मैं सियार का पीछा करती हूँ. तुम भाग कर पुलिस को सूचित करो,” ईना ने मीना से कहा.

“हम दुष्ट की सहायता क्यों करें?” मीना ने कहा.

“भूल गई नानी ने कल रात क्या समझाया था? अब देर मत करो, वही करो जो मैं कह रही हूँ,” ईना ने कहा और सियार के पीछे भागी.

मीना पुलिस स्टेशन की ओर भागी. पर रास्ते में ही उसे पुलिस जीप में दिखाई दिया. एक इंस्पेक्टर जीप में बैठा था. सारी बात जान कर इंस्पेक्टर अपनी जीप में सियार के अड्डे की ओर दौड़ा दी.

सियार पकड़ा गया. डीका की विश्वास ही न हुआ की वह बच गई है. उसने इंस्पेक्टर को धन्यवाद दिया.

“अरे, धन्यवाद ईना और मीना को दो. अगर ईना इस बदमाश का पीछा न करती और मीना मुझे तुरंत सूचित न करती तो हम तुम्हें न बचा पाते. यह बदमाश तो पहले ही कितने बच्चों का अपहरण कर चुका है. आज पकड़ा गया, वह भी रंगे हाथों. अब जेल में चक्की पीसेगा.”

डीका ने सुना तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. वह तो दोनों को खूब तंग करती आई थी. उनकी झूठी शिकायतें भी करती थी. दोनों ने उससे बोलना भी बंद कर दिया था. परन्तु उन्होंने ने ही उसकी सहायता की और उसे बदमाश सियार के चंगुल से छुड़वाया.

डीका को अपनी भूल का अहसास हुआ, उसने ईना और मीना से क्षमा मांगी. तीनों फिर से अच्छी सहेलियां बन गयीं.
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© आई बी अरोड़ा      

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