Tuesday, 27 January 2015

बेटी का विवाह
बिरजू एक गाँव में रहता था. वह मजूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट पालता था. वह मेहनती था. ईमानदार था. लगन के साथ काम करता था. पर गाँव में उसकी कमाई कम ही थी.
वह अपनी बेटी लक्ष्मी से बहुत प्यार करता था. लक्ष्मी विवाह के योग्य हो गई थी. परन्तु बिरजू के पास बेटी का विवाह करने के लिए पैसे ही न थे.
एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा, “इस गाँव में मजूरी कर मैं कभी भी इतने पैसे न कमा पाऊँगा कि बेटी का विवाह कर पाऊँ. मैंने सुना है कि माधवपुर एक बड़ा नगर है. हमारे गाँव से बहुत दूर भी नहीं है. अगर मैं वहां चला जाऊं तो मुझे कोई न कोई ढंग का काम मिल ही जायेगा. एक दो वर्षों में मैं इतने पैसे जमा कर लूंगा कि हम लक्ष्मी का विवाह कर सकेंगे.”
उसकी पत्नी को यह बात जंच गयी. उसने कहा, “तुम्हें ऐसा ही करना चाहिये. तुम हमारी चिंता न करना. मैं मजूरी कर यहाँ घर चला लूंगी. तुम बस लक्ष्मी के विवाह के लिए पैसे इकट्ठे करना.”
बिरजू माधवपुर की ओर चल दिया. रास्ता एक जंगल से होकर जाता था. रास्ते में उसने एक गाड़ी देखी. गाड़ी सामान से भरी हुई थी. सामान जमना प्रसाद का था जो गाड़ी के साथ ही था. गाड़ी का एक पहिया धरती में धंस गया था. एक आदमी पहिया बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था. परन्तु पहिया बाहर न आ रहा था. बिरजू ने उसकी सहायता की और पूरी ताकत लगा के पहिया बाहर निकाल दिया. 
जमना प्रसाद बहुत प्रसन्न हुआ. उसने बिरजू से पूछा, “कहाँ जा रहे हो?”
बिरजू सीधा-साधा था. उसने सब सच-सच बता दिया. जमना प्रसाद ने कहा, “मैं एक व्यापारी हूँ और माधवपुर का रहने वाला हूँ. मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें काम पर रख लूंगा.”
माधवपुर पहुंच बिरजू जमना प्रसाद की दुकान पर काम करने लगा. मेहनत और लगन से उसने व्यापार का हर काम सीख लिया. ईमानदार तो वह इतना था कि जमना प्रसाद सारा काम उसको सौंप निश्चिंत हो गया.
एक वर्ष कैसे बीता बिरजू को पता ही न चला. एक दिन जमना प्रसाद ने कहा, “बिरजू, अब तुम्हें घर जाना चाहिये और बेटी का विवाह करना चाहिये.”
उसने बिरजू को दस हज़ार रूपए दिए और कहा, “यह तुम्हारी मेहनत की कमाई है. तुम्हारी मेहनत की कारण मुझे इस वर्ष दुगना लाभ हुआ. और यह लो पाँच सौ रूपए और यह सोने के कंगन. बेटी के विवाह पर मेरी ओर से बेटी को देना.”
 बिरजू ने जमना प्रसाद के पाँव छू कर धन्यवाद दिया. वह गाँव की ओर चल दिया. वह बहुत प्रसन्न था और बेटी की विवाह का सपना देख रहा था.
रंगनाथ नाम का ठग जंगल के रास्ते में बैठा था. वह बहुत धूर्त था. उस रास्ते से आने-जाने वाले यात्रियों को बहला-फुसला कर वह फांस लेता था और अवसर मिलते ही उन यात्रियों को लूट लेता था. बिरजू को उस रास्ते जाता देख वह उसके साथ हो लिया. बातों ही बातों में उसने जान लिया कि बिरजू बहुत धन कमा कर माधवपुर से घर लौट रहा है.
खाने के समय उसने बिरजू को थोड़ी मिठाई खाने को दी. बिरजू ने बिना सोचे समझे वह मिठाई खा ली. मिठाई में रंगनाथ ने बेहोशी की दवा मिला रखी थी. बिरजू बेहोश हो गया. रंगनाथ ने उसके रूपए और सोने के कंगन चुरा लिए.
रंगनाथ चोरी का सामान बेच देता था. कभी भी चोरी की हुई कोई वस्तु अपने पास न रखता था. पर इस बार चुराये हुए कंगन देख कर उसका मन ललचा गया. कंगन इतने सुंदर थे कि उन्हें बेचने का उसका मन न हुआ. उसने कंगन रख लिए और घर लौट कर अपनी पत्नी, कजरी, को दिए. कजरी यह न जानती थी की उसका पति एक ठग है और लोगों को लूटता है. वह तो यही सोचती थी कि रंगनाथ किसी सेठ के पास काम करता है.
कंगन देख कर कजरी की खुशी का ठिकाना न रहा, “ब्याह के बाद पहली बार मेरे लिए सोने की कोई चीज़ लाये हो.”
कजरी लोगों के घरों में खाना पकाने का काम करती थी. वह जमना प्रसाद के घर भी काम करती थी. जब कंगन पहन कर वह जमना प्रसाद के घर खाना बनाने आई तो उसके हाथों में सोने के कंगन देख कर जमना प्रसाद चौंक पड़ा. वह बोला, “कजरी कंगन तो तुमने बहुत सुंदर पहन रखे हैं. ज़रा दिखाना.”
“मेरा पति मेरे लिए यह कंगन लाया है. ब्याह के बाद आज पहली बार कोई भेंट दी है उसने,” कजरी चहकते हुए बोली. उसने कंगन उतार कर जमना प्रसाद को दिखाए.
जमना प्रसाद देखते ही समझ गया कि यह वही कंगन हैं जो उसने बिरजू को दिए थे. उसने मन ही मन कहा, “ क्या बिरजू ने यह कंगन इसके पति की बेच दिए? या फिर इसके पति ने चुरा लिए? क्या करता है इसका पति? पता लगाना पड़ेगा.”
उसने कजरी से कहा, “एक आदमी मेरी दुकान पर काम करता है. उसकी बेटी का ब्याह होने वाला है. मैं उसे कोई उपहार देना चाहता हूँ. सोचता हूँ ऐसे ही कंगन ले कर दे दूँ. ज़रा अपने पति से कहना मुझ से कल मिले.”
रंगनाथ जब जमना प्रसाद से मिलने आया तो थोड़ा घबराया हुआ था. जमना प्रसाद ने उससे कहा, “ भई, कंगन तो बहुत सुंदर लिए हैं तुमने कजरी के लिये. मुझे भी ऐसे ही एक जोड़ी कंगन लेने हैं.”
रंगनाथ कुछ कह न पाया, उसकी बोलती बंद हो गयी थी.
“मेरे साथ चलोगे? मैं कंगन आज ही ले लेता हूँ.”
“आज न जा पायेंगे, मुझे कुछ काम है,” रंगनाथ ने झिझकते हुए कहा.
“तो कल चलेंगे, या फिर जिस दिन भी तुम्हारे पास समय हो उसी दिन चलेंगे.”
“ऐसे कंगन अब न मिलेंगे, वह सुनहार कहीं चला गया है,” रंगनाथ ने हड़बड़ा कर कहा.
“तुमने यह कंगन चुराये हैं या खरीदें हैं?” जमना प्रसाद ने आँखें दिखाते हुए कहा.
“आप क्या कह रहे हैं? मैं चोर नहीं हूँ, कंगन मैंने खरीदें हैं,” रंगनाथ ने चिल्ला कर कहा.
“झूठ मत बोलो, तुमने बिरजू की हत्या करके यह कंगन और उसके दस हज़ार रूपए चुराये हैं,” जमना प्रसाद ने कड़कती आवाज़ में कहा.
रंगनाथ के होश उड़ गये. उसे समझ ही न आया कि जमना प्रसाद को कैसे पता चला कि उसने बिरजू को लूटा था. परन्तु उसने बिरजू की हत्या न की थी. घबरा कर उसने कहा, “मैंने किसी की हत्या नहीं की. मैंने तो उस आदमी को बस बेहोश किया था.’
“तो तुम स्वीकार करते हो की तुमने कंगन और रूपए चुराये हैं.”
रंगनाथ समझ गया कि उसकी चोरी पकड़ी गयी है. अब अगर जमना प्रसाद उसकी शिकायत कर देगा तो उसे कठोर दंड मिल सकता है. उसे पछतावा होने लगा. उसने जमना प्रसाद से क्षमा मांगी.
“जाओ और अभी बिरजू के पैसे और कंगन लौटा कर आओ’”
रंगनाथ ने कजरी को सब सच बता दिया. वह बहुत दुःखी हुई पर उसने रूपए और कंगन उसे दे दिए.
उधर बिरजू निराशा में डूबा हुआ था. बेटी का विवाह करने का सपना टूट गया था. माधवपुर वापस जाने का उसका मन न था. लेकिन रंगनाथ ने जब उसके रूपए और कंगन लौटा दिए तो उसे विश्वास न हुआ. उसने रंगनाथ को क्षमा कर दिया और धूमधाम से बेटी का विवाह किया.

© आई बी अरोड़ा

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