चाँदनी महल का रहस्य
(पाँचवा भाग)
हीरों की चोरी
रजत चाँदनी महल का रहस्य जानने को उतावला हो रहा था. वह यह भी जानना चाहता है कि बूढ़े से पूछताछ करने पर पुलिस को क्या जानकारी मिली थी. लेकिन वह जानता था कि इंस्पेक्टर संजीव उसे कुछ न बताएगा. उसे अपने मित्र शशांक का ध्यान आया. शशांक के पिता पुलिस अधीक्षक थे. माँ को बता कर वह शशांक के घर आया. शशांक के पिता घर पर ही थे. उसकी बात सुन वह बोले, “अच्छा तुम हो वह साहसी लड़के जिस ने एक अपराधी को पकड़वाया था. शाबाश बेटा, कठिनाई के समय आदमी को कभी भी अपना साहस और धैर्य नहीं खोना चाहिए.”
“अंकल, उस बूढ़े ने कुछ बताया?” रजत अपने को रोक न पाया.
“तुम तो बहुत उत्सुक हो सब जानने के लिए,” शशांक के पिता ने मुस्कराते
हुए कहा. वह कुछ पल चुप रहे और फिर बोले, “वह कोई बूढ़ा नहीं है. उसने बस वैसा भेष बना रखा था. उसका नाम प्रताप है. पर जो कहानी उसने सुनाई है वह बहुत ही रोचक है.”
“अंकल,
प्लीज़, क्या मुझे वह कहानी सुनायेंगे?”
“अवश्य.
सुनो, आज से पाँच वर्ष पहले जयपुर में हीरों के एक व्यापारी जगत मल के घर में दस करोड़ के हीरों की चोरी हुई थी. चोरी मान सिंह नाम के
एक आदमी ने की थी. मान सिंह उस समय जगत मल का ड्राइवर था. पर वह
अकेला नहीं था. उसका पूरा गिरोह था. चार लोगों ने उसका साथ दिया था. वह थे भवानी सिंह, दुर्गा सिंह, पन्ना लाल और प्रताप. भवानी सिंह और दुर्गा सिंह दोनों मान सिंह के भाई हैं. वह दोनों जगत मल के घर पर चौकीदारी करते थे. पन्ना लाल और प्रताप सेठ के शो रूम में काम करते थे. चोरी की
सारी योजना मान सिंह ने बनाई थी. सारा काम
उन्होंने बड़ी चालाकी और सावधानी के साथ किया और अपना कोई सुराग उन्होंने नहीं
छोड़ा था.
“हीरे चुराने के बाद मान सिंह ने हीरे छिपा दिए. अपने साथियों को उसने कुछ समय के लिए जयपुर के बाहर जाकर कहीं छिपे रहने के लिए कहा. उसका मानना था कि समय बीतने के साथ पुलिस की जांच-पड़ताल सुस्त पड़ जाएगी
क्योंकि पुलिस को उनका कोई सुराग न मिला था. उसका कहना था कि जब जाँच ठंडी पड़
जायेगी तभी वह हीरों को बेचने की बात सोचेंगे.
“एक साल बाद मान सिंह ने पचास लाख के हीरे बेच कर सब को वह पैसे बाँट दिए और कहा कि तीन साल बाद सब चाँदनी महल में मिलेंगे और बाकी के हीरे तब सब में बाँटे जायेंगे. उसने यह भी चेतावनी दी कि पाँचों में से कोई भी अपने पास
मोबाइल फोन नहीं रखेगा और न ही एक दूसरे से मिलने की कोशिश करेगा.”
“बाकी चोरों ने उसकी बात मान ली?” रजत ने पूछा.
“प्रताप ने बताया कि पन्ना लाल ने यह बात मानने से मना कर दिया था. उसका कहना था कि हीरे उसी समय बाँट दिए जाएँ पर मान सिंह अपनी बात पर अड़ा रहा, सब में खूब कहा-सुनी हुई पर हार कर सब को मान सिंह की बात माननी ही पड़ी.”
“फिर तीन साल बाद क्या हुआ, अंकल?” रजत ने पूछा.
“तीन सालों बाद सब चाँदनी महल आ गये लेकिन मान सिंह नहीं आया. न ही उसका कोई सन्देश आया. उसके भाइयों को भी न पता था कि वह कहाँ था और उसने हीरे कहाँ छिपा कर रखे थे. गिरोह में फूट पड़ गई. मान सिंह
के भाइयों ने कहा कि उन्हें मान सिंह के पते-ठिकाने की कोई जानकारी न थी. वह दोनों
भी हैरान थे कि मान सिंह क्यों न आया था. लेकिन प्रताप और पन्ना लाल को भाइयों की बात का विश्वास नहीं था. उन दोनों को लगा था कि तीनों भाई उन्हें धोखा देकर सारे हीरे हड़पना चाहते थे. वह उनके दुश्मन बन गये. उधर दुर्गा सिंह और भवानी सिंह भी अपने भाई पर क्रोधित थे. उन्हें लगा कि मान सिंह उन्हें धोखा देकर अकेले ही सारे हीरे हड़पना चाहता था. तभी से चारों चोर मान सिंह और हीरों की तलाश कर रहे हैं. इस तलाश का केंद्र है चाँदनी महल. सब को लगता है कि हीरे चाँदनी महल में कहीं छिपा कर रखे गये हैं.”
“पर अंकल, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मान सिंह ने उन्हें भ्रमित करने के लिए ऐसा झूठ बोला हो? हीरे उसी के पास हों? मुझे नहीं लगता वह हीरों को अपने से दूर रखता होगा,” रजत ने कहा.
“पर इतने हीरे लेकर यहाँ-वहाँ भागते फिरना भी कोई समझदारी वाली बात नहीं है. हीरे उसने कहीं छिपा कर ही रखे होंगे, चाँदनी महल में नहीं तो कहीं और.”
“अंकल, मुझे
लगता है कि उस पोस्ट-कार्ड में हीरों से संबंधित कोई गुप्त सन्देश होगा,” रजत ने कुछ सोच कर कहा.
“ऐसा हो सकता है,” पुलिस अधीक्षक ने कहा.
“अंकल, एक बात सोचने की है. अगर चाँदनी महल में कोई रहता नहीं है तो वह पत्र चाँदनी महल के पते पर क्यों भेजा गया? कोई तो है जो चाँदनी महल के पते पर आई डाक लेता होगा. आप उस डाकिये से पूछताछ करवाएं जो राज नगर की डाक बाँटता है. उससे कोई न कोई जानकारी मिलेगी,” रजत ने कहा.
“अरे, तुम तो बहुत चतुर हो. डाकिये से अवश्य ही हमें कुछ जानकारी मिलेगी. मैं अभी इंस्पेक्टर संजीव को कहता हूँ कि वह उस डाकिये से तुरंत पूछताछ करे.”
“अंकल, क्या मैं इंस्पेक्टर साहब के साथ जा सकता हूँ?” रजत के अंदर का गुप्तचर कुलबुला रहा था.
“नहीं, तुम्हें इस मामले में उलझना नहीं चाहिए. अपराधियों को पकड़ना पुलिस का काम है, बच्चों का नहीं. और यह अपराधी तो खतरनाक अपराधी हैं. उन्हें भनक भी नहीं लगनी चाहिये कि तुम इस मामले से जुड़े हो.”
“अंकल, प्लीज़. मुझे साथ जाने दें. हो सकता है कोई ऐसी बात मुझे सुझाई दे जाए जो जाँच में सहायक हो,” रजत ने कहा.
“नहीं, मैं तुम्हारी बात नहीं मान सकता. लेकिन तुम कल आना. हम इस केस पर कल आगे चर्चा करेंगे.”
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©आइ बी
अरोड़ा
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