चाँदनी
महल का रहस्य
(अंतिम भाग)
रहस्य
जो सिपाही दुर्गा सिंह अर्थात पान वाले को पकड़ने गये थे वह दोनों खाली हाथ लौट आये. उन्होंने बताया कि पान वाला दुकान बंद कर गायब हो गया था.
“तुमने अच्छे से पूछताछ की? उसके घर नहीं गए?” संजीव ने उन दोनों से पूछा.
“साहब, खूब पूछताछ की. लेकिन किसी को उसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. किसी को नहीं पता कि वह कौन था, कहाँ रहता था.”
“उसकी दुकान का मालिक कौन है? क्या उसे भी कुछ नहीं पता? उसने ऐसे ही दुकान किराये पर दे दी थी?” संजीव ने थोड़ा गुस्से से कहा.
“हाँ. साहब. उससे भी बात हो गई है. उसकी दुकान भी वहीं पास में ही. उसने बताया कि
उसने बिना छानबीन किये ही दुर्गा दास को दुकान किराये पर दे दी थी,” एक सिपाही बोला.
रजत सारी बात सुन कर कुछ सोच में पड़ गया. उसने शशांक के पिता से कहा, “अंकल, एक बात मन में आ रही है, मान सिंह और उसके दोनों भाई गायब हैं, सिर्फ पन्ना लाल और प्रताप पकड़े गए है. मुझे लगता है कि जो हीरे हमें मिले हैं उनकी जांच करवानी चाहिए.”
“क्यों?”
“शायद मान सिंह ने नकली हीरे चाँदनी महल में छिपा कर रखे थे. असली हीरे उसके पास ही हैं, अभी भी.”
“क्यों?”
“मुझे संदेह है कि वह पन्ना लाल और प्रताप को धोखा देना चाहता है और उनके हिस्से के हीरे हड़प लेना चाहता है.”
“तुम्हारा संदेह ठीक हो सकता है.” पुलिस अधीक्षक ने संजीव से कहा कि तुरंत हीरों की जांच करवाई जाए.
जाँच ने रजत के संदेह को सत्य प्रमाणित कर दिया. चाँदनी महल में छिपा कर रखे गये हीरे नकली थे. यह बात रजत को शशांक के पिता ने फोन कर बताई थी.
“अंकल, तीनों भाई गायब हैं. असली हीरे उन्हीं के पास होंगे. अब वह पोस्ट-कार्ड ही कोई सुराग दे सकता है.”
“पोस्ट-कार्ड
से क्या सुराग मिलेगा?”
“सर,
हर लैटर पर डाकघर अपनी मोहर लगाता है. उस मोहर से शायद पता लगे की वह पोस्ट-कार्ड किस जगह से पोस्ट किया गया था. हो सकता है तीनों में से कोई या फिर शायद तीनों उसी जगह छिपे हों,” रजत ने सुझाव दिया.
“अरे वाह, तुम तो हर बार कोई न कोई नई बात सुझा देते हो. मैं संजीव को इस काम पर लगा देता हूँ. तीनों में से एक भाई भी पकड़ा गया तो हम इस गुत्थी को सुलझा सकते हैं.”
फिर कई दिनों तक शशांक के पिता का कोई फोन न आया. रजत उत्सुकता से उनके फोन की प्रतीक्षा कर रहा था. बीच में एक दिन शशांक ने बताया था कि उसके पापा ने कहा था की रजत के सुझाव के अनुसार ही आगे जाँच की जा रही थी.
दस दिन बाद शशांक के पापा ने उसे बुलाया. वह शशांक के घर पहुँचा तो उसके पिता ने उसे एक मैडल दिया जो पुलिस विभाग से उसकी चतुराई और बहादुरी के लिए उसे दिया गया था.
“अंकल, यह बताएं कि क्या चोर पकड़े गए? क्या हीरे मिल गए?”
“हाँ, तीनों भाई पकड़े गए और हीरे भी मिल गए. संजीव ने भिखारी के अड्डे की तलाशी ली तो उसे वह पोस्ट-कार्ड मिल गया. भिखारी अर्थात पन्ना लाल ने ही उसे बताया था कि पोस्ट-कार्ड कहाँ रखा था.
“उस पोस्ट-कार्ड पर राज गढ़ के एक डाकघर की मोहर लगी थी. हमारी टीम राज गढ़ पहुँच गई. वहाँ जाने से पहले पन्ना लाल और प्रताप से जानकारी ले कर तीनों भाइयों के चित्र हमारे आर्टिस्ट ने बना दिए थे.”
“अंकल, क्या उन दोनों ने सही जानकारी दी थी?”
“वह तो चाहते हैं कि तीनों भाई पकड़े जाएँ. दोनों ने तीनों भाइयों के बारे में बहुत कुछ बता दिया था. इस सारी जानकारी के कारण हमारी टीम ने उन को गिरफ्तार कर लिया. पर सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि हीरे चाँदनी महल में ही मिले.”
“क्या?” रजत ने सुना तो दंग रह गया.
“हाँ, हीरे उसी घर में छिपा कर रखे हुए थे. वहीं जहाँ वह तस्वीर टंगी थी. यह जानकारी मान सिंह ने दी थी. उस तस्वीर के पीछे, दीवार में एक तिजौरी लगी थी. तिजौरी दीवार में लगा कर उस पर सीमेंट का पलस्तर कर दिया गया था और उसके ऊपर दीवार पर तस्वीर पर लटका दी गई थी.”
“बहुत ही चालाक है यह मान सिंह.”
“अरे, उसी के कहने पर दुर्गा सिंह पान वाला बन कर चाँदनी महल की चौकीदारी कर रहा था. उसे पता था कि पन्ना लाल ही भिखारी है. उसने प्रताप को भी चाँदनी महल के आसपास कई बार देखा था. तीनों
भाइयों की योजना थी कि किसी न किसी तरह प्रताप और पन्ना को रास्ते से हटा कर सारे
हीरे वह तीनों आपस में बाँट लें.”
“अपने
साथियों को ही ठगना चाहते थे तीनों भाई,”
“हाँ,
वह पोस्ट-कार्ड भी सोच समझ कर लिखा गया था, यह उनकी चाल थी. उनकी योजना थी कि उस पोस्ट-कार्ड को पन्ना लाल के निकट कहीं गिरा देंगे ताकि पत्र पढ़ कर वह चाँदनी महल से वह तस्वीर चुराने जाए और वह उसे पकड़वा दें और उससे छुटकारा पा लें. लेकिन वह पत्र डाकिये से कहीं गिर गया और तुम्हें मिल गया. पोस्ट-कार्ड पन्ना लाल तक पहुँच तो गया पर दुर्गा सिंह को इस बात की जानकारी न थी. लेकिन उन्हें यह पता चल गया था कि पन्ना लाल और प्रताप पकड़े हैं, इसलिए अब वह हीरे निकाल कर देश से भाग जाने की तैयारी कर रहे थे. अगर हमारी टीम एक दिन भी देरी से पहुँचती तो शायद वह भाग जाने में सफल हो जाते.”
“अंकल, चाँदनी महल का रहस्य सुलझ ही गया.”
“पर इसके लिए हम तुम्हारे आभारी हैं. मुझे लगता है कि बड़े हो कर तुम एक अच्छे पुलिस अफसर बन सकते हो.”
उनकी बात सुन कर रजत प्रसन्नता से खिल उठा.
समाप्त
©आइ बी
अरोड़ा
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