चाँदनी महल का रहस्य
(चौथा भाग)
पुलिस इंस्पेक्टर
संयोगवश एक पुलिस जीप उधर से गुज़री. जीप में इंस्पेक्टर संजीव किसी काम से कहीं जा रहा था. सुनसान जगह में सड़क किनारे एक कार को खड़ा देख कर इंस्पेक्टर को कुछ संदेह हुआ. उसने अपनी जीप रोक दी और गाड़ी से उतरने लगा. लेकिन जीप से उतरते-उतरते उसके मन में एक बात आई. वह रुक गया
और फिर जीप की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया.
रजत ने
पुलिस जीप को रुकते देखा तो वह मन ही मन प्रसन्न हुआ. उसे लगा कि पुलिस अधिकारी
अवश्य उसकी सहायता करेगा. लेकिन जब इंस्पेक्टर
जीप से उतरते-उतरते फिर जीप में बैठ गया तो रजत थोड़ा घबरा गया. वह मन ही मन उस
अधिकारी से प्रार्थना करने लगा, ‘प्लीज़, जाइये नहीं, मेरी सहायता करिये.’
लेकिन इंस्पेक्टर वहाँ से गया नहीं. उसने जीप को घुमा कर कार के सामने खड़ा कर दिया और बाहर आ गया. इस बीच बूढ़े ने चाकू को जेब में छिपा कर रख लिया था. जेब से ही उसने नोक को रजत के पेट में चुभा कर धीरे से कहा, “लड़के, चुपचाप बैठे रहना. अगर मुँह खोला तो यह चाकू पेट के अंदर चला जाएगा. तुम्हारी जान लेने में मुझे ज़रा भी हिचकिचाहट न होगी.”
इंस्पेक्टर संजीव ने निकट आकर पूछा, “क्या कोई परेशानी है? मैं आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?”
“नहीं, नहीं साहब. कोई परेशानी नहीं है. हम लोग अपने गाँव जा रहे हैं. मेरे भांजे को उलटी आने लगी तो मैंने गाड़ी रोक दी. अब यह पूरी तरह स्वस्थ हो गया. हम बस जाने ही वाले है. वैसे भी हमें बहुत देर हो गई है.”
इतना कह कर उसने चाकू पर दबाव डाला और बड़े प्यार से कहा, “क्यों बेटा? अब अच्छा लग रहा है न? उलटी तो
नहीं आ रही? अब चलें? पहले ही बहुत देर हो गई है.”
चाकू रजत की पेट में चुभने लगा, पर वह बड़े तेज़ी से सोच रहा था. उसे लग रहा था कि बूढ़े आदमी
से बचने का इससे अच्छा अवसर उसे दुबारा न मिलेगा. उसे शीघ्र ही कुछ करना होगा. वह चिल्ला कर इंस्पेक्टर से सहायता मांग सकता था पर उसे डर लग रहा था कि बूढ़ा सच में ही न चाकू से उसका पेट काट डाले. तभी उसने सोचा कि एक पुलिस अफसर के सामने बूढ़ा उसे मारने का साहस न कर पायेगा. इंस्पेक्टर ने अपनी जीप कार के सामने खड़ी कर रखी थी. इंस्पेक्टर स्वयं उधर ही खड़ा था जिधर बूढ़ा कार में बैठा था. इंस्पेक्टर का हाथ उसकी पिस्तौल के निकट था. रजत ने अनुमान लगाया कि इंस्पेक्टर को भी कुछ संदेह था और वह पूरी तरह सतर्क था. ऐसी स्थिति में बूढ़े के लिए चाकू मार कर वहाँ से भागना संभव न होगा.
रजत ने निर्णय लिया कि इस मुसीबत से बचने के लिए उसे थोड़ा जोखिम तो उठाना ही पड़ेगा.
उसने चिल्ला कर कहा, “सर, मुझे बचाओ, यह आदमी मेरा अपहरण कर रहा है.”
इंस्पेक्टर ने एक ही पल में अपनी पिस्तौल निकाल कर बूढ़े के माथे से लगा दी. रजत का अनुमान सही निकला. बूढ़ा उसे मारने का साहस न कर पाया. परन्तु वह घबराया भी नहीं. मुस्कराते हुए उसने इंस्पेक्टर से कहा, “अरे साहब, मेरा भतीजा बहुत ही नटखट है. उसकी बात का बुरा न माने. यह शरारती तो सब को हैरान कर देता है.”
फिर उसने रजत से कहा, “अब क्या शरारत सूझ गई है तुम्हें? पुलिस वालों से मसखरी नहीं करते. ”
“नहीं सर, यह झूठ कह रहा है. इसने मेरा अपहरण किया है. इसके हाथ में एक चाकू है जो इसने मेरे पेट पर चुभा रखा है,” रजत ने भी हिम्मत से काम लिया.
“अरे बेटा, मैंने कितनी बार समझाया है. हर समय इस तरह शरारत करना अच्छी बात नहीं होती,” बूढ़े ने चाकू दबाते हुए कहा.
‘पहले
भाँजा कहा और अब भतीजा? लड़का शायद सच बोल रहा है,’ इंस्पेक्टर ने मन ही मन कहा. फिर उसने गरजती आवाज़ में कहा, “अपने हाथ उठा कर बाहर आ जाओ, अभी!”
बूढ़ा समझ गया कि वह फंस गया था. इंस्पेक्टर से बच कर निकल भागना संभव न था. उसने गुस्से से रजत को देखा. फिर घूम कर इंस्पेक्टर को देखा. उसने धीरे से चाकू कार में ही गिरा दिया और बाहर आ गया. रजत ने चाकू उठा कर पुलिस अफसर को दिखाया और कार से बाहर आ गया. “सर, यह रहा इसका चाकू जो इसने कार में गिरा दिया था.”
इंस्पेक्टर ने बूढ़े को हथकड़ी लगा दी और उसे जीप में बिठा दिया. रजत को लेकर वह पुलिस स्टेशन आ गया. जो कुछ रजत जानता था वह उसने इंस्पेक्टर को बता दिया. इंस्पेक्टर ने उसे घर भिजवा दिया लेकिन उसे चेतावनी भी दी कि वह कभी भी चाँदनी महल की ओर न जाए.
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©आइ बी
अरोड़ा
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