चाँदनी
महल का रहस्य
(सातवाँ भाग)
तस्वीर
इंस्पेक्टर संजीव को इस बात का पूरा विश्वास था कि चाँदनी महल के अंदर कोई था. इसलिए वह पूरी तरह सतर्क था. वह नहीं चाहता था कि हवेली में
छिपा आदमी उन्हें चकमा देकर भाग जाने में सफल हो. उसे इस बात का भी ध्यान रखना था कि वह आदमी कहीं अचानक किसी पर हमला न कर दे. वह बिना शोर किये होशियारी के साथ हर कमरे की तलाशी लेने लगा. बाकी सब लोग साँस रोके चुपचाप खड़े थे. रजत बहुत
उत्तेजित था. उसे पूरा विश्वास था कि इस जगह का रहस्य अवश्य खुल जायेगा.
एक कमरे से संजीव को थोड़ी आहट सुनाई दी. उसने हौले से दरवाज़ा खोला और फुर्ती के साथ अंदर जाकर एक आदमी को दबोच कर पकड़ लिया. वह आदमी इतना हक्का-बक्का रह गया था कि कुछ कर ही न पाया. उसे पता ही न चला था कि उस हवेली के अंदर पुलिस आ चुकी थी. संजीव ने उसे हथकड़ी लगा दी. उसे पकड़ कर बाहर ले आया.
रजत उसे पहचान गया, “अंकल, यह तो वही भिखारी है जिसने मुझ से वह पत्र छीना था.”
“कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे थे?” इंस्पेक्टर ने पूछा. वह आदमी कुछ न बोला. पुलिस अधीक्षक के संकेत पर सिपाही उसे पुलिस स्टेशन ले गये.
उसके जाने के बाद सब हवेली की तलाशी लेने लगे. हवेली बिलकुल खाली थी. दीवारों और फर्श पर धूल की परते जमी हुई थीं. जगह-जगह मकड़ी के जले बने हुए थे. चाँदनी महल एक भूत-बंगले जैसा लग रहा था. लगता था की महीनों से कोई भीतर नहीं आया था.
एक
कमरे की दीवार पर एक तस्वीर टंगी थी. पर उस पर इतनी धूल जमी थी कि किसी का उस और ध्यान ही नहीं गया. रजत ने वह तस्वीर देखी. उत्सुकता वश हाथ उठा कर उसने उसको छूआ. तस्वीर हल्की सी हिली और थोड़ी सी धूल छिटक कर रजत पर आ गिरी.
“यहाँ तो ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे हीरों के विषय में या उन चोरों के बारे में कुछ पता चले,” पुलिस अधीक्षक ने कहा.
“पर सर, वह आदमी कुछ तो यहाँ ढूँढ़ रहा था,” इंस्पेक्टर ने कहा.
“हाँ, अंकल, वह भिखारी ऐसे ही नहीं आया होगा. वह तो इस घर के बाहर ही अड्डा जमा कर बैठा था. वह भीतर क्यों आया था, कोई कारण
तो होगा? कुछ तो है जो वह ढूँढ रहा था?” रजत ने कहा.
“पर यहाँ तो कुछ भी नहीं. एक वस्तु भी नहीं. हीरों का कोई सुराग यहाँ नहीं मिल सकता,” पुलिस अधीक्षक के कहा.
“अंकल, मुझे लगता यह कि यह रहस्य यहीं खुलेगा. आप मेरे साथ आइये,” वह उन्हें उस कमरे ले आया जहाँ दीवार पर तस्वीर टंगी थी, “किसी सिपाही से कहें कि यह तस्वीर दीवार से उतार ले.”
अधीक्षक के संकेत पर एक सिपाही ने तस्वीर उतार कर रजत को दी. रजत ने उसे अपने रुमाल से साफ़ करने की कोशिश की. उस पर धूल की मोटी परत जमी हुई थी. थोड़े प्रयास के बाद तस्वीर कुछ साफ़ हुई. वह तस्वीर एक औरत की थी जिसने एक बच्चे को गोद में उठा रखा था.
“अंकल, अब मुझे याद आ रहा है कि उस पत्र में एक चित्र के बारे में कुछ लिखा था. शायद वही यह चित्र हो?” रजत ने कहा.
“संभव है.”
“इसमें ऐसा क्या है जो इसे बहुमूल्य बनाता हैं?” रजत से बड़बड़ाया. तभी रजत को तस्वीर के रहस्य की कुंजी मिल गई. उसने कहा, “अंकल, इसके फ्रेम की जांच करवानी होगी.”
“क्यों?”
“यह देखने के लिए कि यह तस्वीर कितनी बहुमूल्य है.”
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©आइ बी
अरोड़ा
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