चाँदनी महल का रहस्य
(छटा भाग)
पान वाला
रजत यह जानने को बहुत उत्सुक था कि पुलिस को डाकिये से क्या जानकारी मिली थी. अगले दिन रजत फिर शशांक के घर आया. उसके पिता अभी घर न आये थे. वह वहीं रुक कर उनकी प्रतीक्षा करने लगा.
जब वह आये तो उन्होंने रजत को बताया कि डाकिये से पूछताछ हो गई थी. डाकिये ने बताया था कि चाँदनी महल की डाक एक पान वाला लेता है जिसकी दुकान वहीं पास में है.
“अंकल, मैंने उसी पान वाले से चाँदनी महल के बारे में पूछा. उसने बड़े अजीब ढंग से मेरे साथ बात की थी. मुझे घूर कर देख रहा था. वह ठीक आदमी नहीं लगता,” रजत ने बीच में कहा.
“पुलिस ने पान वाले से भी पूछताछ की. पान वाले ने बताया कि चाँदनी महल किसी मान सिंह का है. लेकिन मान सिंह की मृत्यु हो चुकी है. दुर्गा सिंह उसका भाई है. दुर्गा सिंह एक बार पान वाले से मिला था. उसे कह गया था कि अगर उसके नाम का कोई पत्र आये तो अपने पास रख ले. वह स्वयं आकर उससे पत्र ले लिया करेगा. उसके एक-दो पत्र ही आये थे जो पान वाले ने डाकिये से लेकर रख लिए थे और लंबे समय बाद दुर्गा सिंह उससे वह पत्र ले गया था,” शशांक के पिता ने कहा.
“अंकल, जो पोस्ट-कार्ड मुझे मिला था उस पर भेजने वाले ने अपना नाम नहीं लिखा था. हो सकता है वह पत्र भावनी सिंह ने लिखा हो, अपने भाई दुर्गा सिंह को. शायद उसने भाई को कोई गुप्त सन्देश भेजा हो.”
“पर वह पत्र द्वारा संदेश क्यों भेजेगा?”
“दोनों भाई अवश्य ही अलग-अलग छिपे हैं. मोबाइल फोन उनके पास है नहीं. पुलिस के या अपने अन्य साथियों के डर से वह शायद एक-दूसरे से मिलना नहीं चाहते. इसलिए वह पत्रों द्वारा ही एक-दूसरे से समर्पक करते होंगे.”
“मेरे विचार से दोनों भाई पन्ना लाल और प्रताप को धोखा देकर सारे हीरे हड़पना चाहते हैं. इसी कारण कहीं छिप कर एक दूसरे को गुप्त सन्देश भेज रहे हैं.” शशांक के पापा ने कहा.
“अंकल,
क्या पुलिस ने उस भिखारी से पूछताछ की जो चाँदनी महल के निकट बैठा भीख मांगता है?
उसी ने मुझ से वह पत्र छीना था. उसके पास तो पिस्तौल भी थी,” रजत ने पूछा.
“पुलिस
उसे पकड़ने गई थी पर वह वहाँ नहीं मिला. शायद भाग गया है या कहीं छिप गया है.”
“अंकल मुझे लगता है कि इस रहस्य की कुंजी हमें चाँदनी महल में ही मिलेगी,” रजत ने सुझाव दिया.”
“अभी तक तो ऐसा कोई सुराग मिला नहीं जिससे यह अनुमान लगाया जा सके.”
“पर अंकल, उस जगह की तलाशी लेने में कोई हर्ज नहीं है. कम से कम यह तो निश्चित हो जाएगा कि उस जगह का कोई रहस्य नहीं है.”
“हाँ, तुम ठीक कह रहे हो. मैं स्वयं यह काम करूंगा.” उन्होंने फोन कर इंस्पेक्टर से कहा कि कुछ सिपाही लेकर चाँदनी महल आ जाए.
“अंकल, क्या मैं आपके साथ चल सकता हूँ?”
“ऐसा मुझे करना तो नहीं चाहिए, परन्तु मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा. शायद इस रहस्य की कुंजी तुम्हारे हाथ ही लग जाए.”
शंशाक के पापा रजत को साथ ले चाँदनी महल आ गये. इंस्पेक्टर कुछ सिपाहियों के साथ पहले ही पहुँच चुका था. एक सिपाही को बाहर तैनात कर सब भीतर आ गये. मेन गेट से अंदर आकर उन्होंने देखा कि हवेली का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था.
“सावधान, मुझे लगता है कि भीतर कोई है. होशियार रहना, कोई भागने न पाए,” पुलिस अधीक्षक ने कहा.
बिना आवाज़ किये सब भीतर आ गये. सब खिड़कियाँ, दरवाज़े बंद होने के कारण भीतर अँधेरा था, पुलिस अधीक्षक ने संजीव को संकेत किया. वह बड़ी सावधानी के साथ एक-एक कमरे की तलाशी लेने लगा.
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©आइ बी
अरोड़ा
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