चाँदनी महल का रहस्य
(आठवां भाग)
हीरे
तस्वीर को लेकर सब पुलिस अधीक्षक के दफ्तर आ गये. तुरंत एक सिपाही को बुलाया गया जो बढ़ई का काम जानता था. उसने सावधानी के साथ फ्रेम खोला. उसने कहा, “साहब, यह फ्रेम कुछ अजीब सा है. इसको काट कर देखें?’
फ्रेम काटा गया तो अंदर से खोखला निकला और वहीं उस खोखली जगह में हीरे छिपा कर रखे गये थे. हीरे देख कर सब प्रसन्नता से खिल उठे. शशांक के पापा ने रजत से कहा, “तुम्हारा संदेह सही निकला. इस भेद का रहस्य इस तस्वीर में ही था.”
“अंकल, उस पत्र में किसी चित्र के विषय में कुछ लिखा था. वह पत्र दुर्गा सिंह तक पहुँचा ही नहीं. भिखारी ने पत्र मुझ से छीन लिया. वह भी यही पत्र पढ़ कर चाँदनी महल में घुसा था. उसे भी संदेह होगा कि हीरे उसी घर में हैं. पर उसे यह समझ ना आया कि दीवार पर टंगी तस्वीर में ही हीरे छिपा कर रखे हुए थे. वास्तव में मैंने जब इसे पहली बार देखा था तो मैंने इसे हल्के से छूआ था. थोड़ी धूल छिटक कर मुझ पर ही आ गिरी थी. पर मुझे इसमें कुछ भी महत्वपूर्ण दिखाई नहीं दिया था. परन्तु जब उस घर में कुछ भी न मिला तो मुझे लगा कि दीवार पर
लटकी तस्वीर ही रहस्य की कुंजी होनी चाहिए. मुझे लगा कि वह तस्वीर बहुमूल्य इसलिए थी क्योंकि हीरे उसके अंदर छिपे थे.
“तुम तो पूरे शर्लक होम्स हो,” अधीक्षक ने उसकी प्रशंसा की.
“अंकल, मुझे लगता है कि मान सिंह ने ही हीरे इस तस्वीर के फ्रेम में छिपकर रखे होंगे. और तस्वीर को चाँदनी महल में दीवार पर लटका दिया होगा. योजना के अनुसार उन सब को उसी घर में तीन साल बाद मिलना था, लूट का माल आपसे में बांटने के लिए.” रजत ने कहा.
“पर प्रश्न यह उठता है कि पत्र लिखने वाले को इस तस्वीर के विषय में कैसे पता चला. और क्या सचमुच मान सिंह की मृत्यु हो चुकी है जैसा पान वाले ने बताया था? यह भी समझ नहीं आ रहा कि वह पोस्ट-कार्ड मान सिंह ने लिखा था या भवानी सिंह ने. अगर भवानी सिंह ने लिखा था तो उसे इस चित्र की जानकारी कैसे मिली?” इंस्पेक्टर संजीव ने कहा.
“मुझे लगता है कि तीनों भाइयों को इस तस्वीर की जानकारी थी. संजीव उस भिखारी से ज़रा स्वयं पूछताछ करो. वह कुछ न कुछ जानता होगा,” पुलिस अधीक्षक के संजीव से कहा.
अगले दिन भी माँ को बता कर रजत शशांक के पिता से उनके ऑफिस में आकर मिला. उसी समय इंस्पेक्टर संजीव भी उनसे मिलने आया. संजीव ने बताया कि भिखारी से लंबी पूछताछ की थी. शुरू में तो वह कुछ बता न रहा था, पर संजीव ने हार न मानी थी और आखिरकार भिखारी ने अपने बारे में सब कुछ बता दिया था.
इंस्पेक्टर संजीव ने कहा, “सर, वह भिखारी कोई और नहीं मान सिंह का चौथा साथी पन्ना लाल है. कोई आठ-दस महीने से वह भिखारी का भेष बना कर चाँदनी महल के बाहर बैठ, भीख माँगा करता था. वह इस ताक में था कि अगर मान सिंह या उसके भाई वहाँ हीरे लेने आयें तो वह उनसे अपने हिस्से के हीरे छीन लेगा.
“उसने यह भी बताया कि पाँच-छह महीने पहले मान सिंह से उसकी अचानक मुलाकात हो गई थी. उसने मान सिंह से अपने हिस्से के हीरे मांगे थे. मान सिंह के मना करने पर दोनों में झगड़ा हो गया था, हाथापाई भी हुई थी. और मान सिंह ने उसे घायल कर था और भाग गया था.”
“लेकिन पान वाले ने कहा था कि मान सिंह मर चुका है,” रजत ने शंका व्यक्त की.
“उस पान वाले के बारे में भिखारी अर्थात पन्ना लाल ने कहा है कि वह मान सिंह का भाई दुर्गा सिंह है. लेकिन दुर्गा सिंह को पता न चला था कि पन्ना लाल भिखारी के भेष चाँदनी महल के सामने बैठ कर भीख माँगता था. वास्तव में पन्ना लाल भिखारी बन कर चाँदनी महल पर नज़र रखे हुए था और दुर्गा सिंह की निगरानी भी करता था. उसे विश्वास था कि कभी न कभी मान सिंह चाँदनी महल आयेगा या दुर्गा सिंह से मिलेगा. पन्ना लाल अपने हिस्से के हीरे किसी भी कीमत पर पाना चाहता था.”
“दुर्गा सिंह को पकड़ो, तुरंत,” संजीव की रिपोर्ट सुन कर पुलिस अधीक्षक ने कहा.
“सर, मैंने पहले ही तीन आदमी भेज दिए हैं, वह आते ही होंगे,” इंस्पेक्टर संजीव ने कहा.
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©आइ बी
अरोड़ा
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