Thursday, 24 March 2016

होली आई

होली आई होली आई 
ज़ोर से बोला भालू भाई
रंगों की पिचकारी लेकर
 लोमड़ी झटपट दौड़ी आई 

बन्दर भी भागा भागा आया
मुंह अपने पर ही रंग लगाया
बन्दर पर थी मस्ती छाई
होली थी उसकी मन भायी

भालू ने हाथी पर रंग डाला
मुंह उसका नीला कर डाला
पर हाथी भी था न कोई कम
भालू को उसने पीला रंग डाला

लाल गुलाल और हल्का पीला
हरा बैंगनी और पक्का नीला
जिसने  भी जो रंग पाया
उसी रंग में सबको नहलाया

पर एक जानवर ऐसा भी था
जिसको कोई रंग न पाया 
छिप कर था वह बैठा घर में
 कोई उसे ढूंढ न पाया

वह तो था जंगल का राजा
रंगों से था वह पर डरता
होली पर वह छिप कर रहता
होली पर वह नाटक करता

लोमड़ी भी थी खूब चालाक
शेर को उसने ढूंढ निकाला
शेर छिपा था बिस्तर के नीचे
सबने उसको खींच निकाला

शेर बहुत ज़ोर से चिल्लाया
“बहुत बीमार हूँ मैं भाइया
रात भर मुझ को नींद न आई 
 कुछ तो तरस करो तुम भाई”

कौन था पर उसकी सुनने वाला 
यह नाटक था देखा भाला
सब ने उस पर हर रंग डाला
और मुंह कर दिया थोड़ा काला

फिर सब मिलकर सुर में गाये
“साल में इक बार होली आये  
होली में जो भी छिप जाए
उसे तो बस भगवान बचाये"

© आइ बी अरोड़ा 

Wednesday, 23 March 2016

“नटखट नट्टू” (अंतिम भाग)
सब भैंसें गुस्से से शेर की ओर दौड़ीं. अब शेर का माथा ठनका. वह समझ गया कि भैंसों पर दहाड़ कर उसने भूल कर दी थी.
सामने गुस्से से भरी भैंसें थीं और पीछे मगरमच्छों से भरी नदी. उसे तैरना आता था, पर मगरमच्छों के कारण नदी के पार जाना आसान न था. मगरमच्छों ने एक साथ हमला कर दिया तो जान भी जा सकती थी.  
एक तरफ भैंसें थीं और दूसरी ओर मगरमच्छ. ऐसी स्थिति में भैंसों का सामना करने के अतिरिक्त उसके पास कोई रास्ता न था. शेर बहादुर था पर घमंडी भी था. उसने भैंसों से लड़ने का मन बना लिया.
नट्टू खरगोश नदी किनारे ही घास, पत्तियाँ खा रहा था. उसने भी शेर की दहाड़ सुनी थी. उसने भैसों के झुण्ड को शेर की ओर जाते देख लिया था. वह एक पल में समझ गया कि शेर पर आफत आने वाली थी.
‘श्रीमान, अब आप एक बड़ी मुसीबत में फंस गये हैं. आपको इस मुसीबत से निकालने का कोई उपाये तो मुझे करना ही पड़ेगा, आपको वचन जो दे रखा है मैंने,’ नट्टू ने अपने आप से कहा.
नट्टू जानता था कि उसे तुरंत ही कुछ करना होगा. शेर शक्तिशाली था पर इतनी सारी भैंसों का अकेले सामना नहीं कर सकता था. अगर उसे देर तक भैंसों से लड़ना पड़ा तो उसकी जान भी जा सकती थी.
नट्टू ने नदी के किनारे रेत पर लेटे हुए मगरमच्छों को देखा. सब के सब आँखें बंद किये मज़े से धूप में सुस्ता रहे थे. मगरमच्छों को देख कर नट्टू के मन एक योजना आई.
नट्टू मगरमच्छों के निकट आया और चिल्ला कर बोला, ‘तुम सब के सब तो छिपकलियों की तरह सुस्त और मूर्ख हो. उठो सब यहाँ से और जाकर नदी में डुबकियां लगाओ. अब मैं यहाँ धूप में लेट कर थोड़ा आराम करूंगा. उठो, भागो.’
नट्टू की बात सुन कर मगरमच्छ दंग रह गये. जंगल का कोई भी प्राणी उनसे इस तरह बात नहीं करता था. सब जानते थे कि मगरमच्छों को छिपकली शब्द से ही चिढ़ थी. अगर कोई उन्हें  छिपकली कह कर बुलाता तो वह अपना आपा खो बैठते थे. गुस्से से वह कांपने लगते थे. और सब मिलकर चिढ़ाने वाले पर टूट पड़ते थे.
‘मित्रो, लगता है इस मूर्ख खरगोश को आजतक किसी न यह नहीं बताया कि बढ़ों के साथ कैसे व्यवहार करना चाहिये. क्यों न आज हम इसे थोड़ी शिक्षा दें,’ एक मगरमच्छ ने कहा.
‘नहीं भाई, इस दुष्ट को शिक्षा देने की कोई आवश्यकता नहीं है. इसे तो पकड़ कर खा जाना चाहिये,’ दूसरे मगरमच्छ ने कहा.
‘पकड़ो इस बदमाश को,’ सब एक साथ चिल्लाये. सब एक साथ उस पर झपटे.
नट्टू भाग खड़ा हुआ. पर वह वैसे न भागा जैसे वह भागा करता था, आंधी सामान तेज़. वह भागा पर धीरे-धीरे भागा. उसने ऐसे दिखाया कि जैसे उसकी एक टाँग में चोट लगी थी. मगरमच्छों को लगा कि चोटिल खरगोश तेज़ न भाग पायेगा. अगर वह उसका पीछा करते रहे तो उसे पकड़ लेंगे.
नट्टू धीरे-धीरे भागता रहा और रुक-रुक कर मगरमच्छों को चिढ़ाता भी रहा. गुस्से से भरे मगरमच्छ उसके पीछे दौड़ते रहे.  नट्टू चालाकी के साथ उन्हें उस ओर ले आया जिस ओर भैंसों का झुण्ड था.
शेर की ओर बढ़ती भैंसों को अचानक मगरमच्छों की गंध आई. वह रुक गईं. उन्होंने देखा कि कई मगरमच्छ गुस्से से भरे उनकी ओर आ रहे थे. नट्टू अब झाड़ियों में छिप गया. भैंसों ने समझा कि सभी मगरमच्छ उन पर हमला करने आ रहे थे.
भैंसें असमंजस में पड़ गईं. शेर की ओर से उनका ध्यान हट गया. वह इस नई मुसीबत से बचने का उपाये सोचने लगीं. भैंसों को देख कर मगरमच्छ भी चौकने हो गये. झुण्ड बहुत बड़ा था और मगरमच्छ नदी से बहुत दूर आ चुके थे. ऐसी खुली जगह में भैंसों से लड़ना आसान न था. पर वह डरे नहीं और भैंसों की ओर देखते हुए डरावनी आवाजें निकालने लगे.
भैंसों का किसी से भी लड़ने का मन न था. वह तो मज़े से धीमे-धीमे चलते दक्षिण की ओर जा रहीं थीं. बस शेर की दहाड़ सुन कर थोड़ा गुस्सा हो गईं थीं.
भैंसें न शेर से लड़ीं, न मगरमच्छों से. सब अपने रास्ते चल दीं. मगरमच्छ भी झटपट नदी की ओर वापस चल दिए. शेर झाड़ियों में छिपा सब देख रहा था. झुण्ड के जाते ही उसने भी राहत की सांस ली.
‘श्रीमान, क्या मेरी योजना सफल रही?’ नट्टू ने पूछा. उसका प्रश्न सुनकर शेर को आश्चर्य हुआ. उसे पता ही न चला था कि नट्टू पास ही झाड़ियों में छिपा बैठा था. पर वह खरगोश की सूझबूझ से खूब प्रभावित हुआ था.
‘तुम्हारी चाल तो पूरी तरह सफल रही.’ शेर ने प्यार से उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा.
‘तो अब आप क्या सोचते हैं? क्या मुझ जैसा छोटा प्राणी आपके किसी काम आ सकता है या नहीं?’ नट्टू ने मुस्कुरा कर पूछा.
‘आज एक बात मैं बड़े विश्वास के साथ कह सकता हूँ, इस संसार में सबसे शक्तिशाली प्राणी को भी मित्रों की आवश्यकता पड़ सकती है. इसलिये सच्चा शक्तिशाली वही होता है जिसके कई मित्र होते हैं. आओ, आज से हम दोनों मित्र बन जाएँ.’
शेर और नटखट खरगोश मित्र बन गये.

Monday, 21 March 2016

“नटखट नट्टू” (भाग 1)
एक वन में एक खरगोश रहता था. नाम था नट्टू. था वह बहुत ही नटखट. वन के अन्य प्राणियों को सताने में उसे खूब आनंद आता था.
वन के बीचों-बीच एक नदी बहती थी. उस नदी में कई मगरमच्छ भी थे. बेचारे मगरमच्छों को तो नट्टू सबसे अधिक तंग किया करता था.
जब मगरमच्छ रेत पर लेट कर धूप सेंक रहे होते वह नदी किनारे आ जाता. उन्हें छेड़ता, उन्हें चिढ़ाता, उनका मज़ाक उड़ाता. नट्टू की शैतानियों से तंग आकर अगर कोई मगरमच्छ उसे पकड़ने के लिए उस पर झपटता तो वह आंधी समान वहां से भाग खड़ा होता.
मगरमच्छ नट्टू की भांति तेज़ न भाग पाता. वह उसे पकड़ न पाता और हार मन कर रुक जाता. तब नट्टू दूर खड़े हो कर उस मगरमच्छ पर खूब ज़ोर से हंसता, उसकी खिल्ली उडाता. बेचारा मगरमच्छ अपना-सा मुहं लेकर रह जाता. बस गुस्से से भरी आँखों से नट्टू को देखता, पर कुछ कर न पाता.
परन्तु एक दिन नटखट नट्टू बड़ी भूल कर बैठा. उस दिन नदी किनारे उसे कोई मगरमच्छ दिखाई न दिये. लेकिन उसे एक शेर दिखाई दिया. शेर पानी पीकर नदी से वापस लौट रहा था. नट्टू शेर का मज़ाक उड़ाने लगा.
शेर ने जब देखा कि एक छोटा सा खरगोश उसकी खिल्ली उड़ा रहा है तो गुस्से से आगबबुला हो गया. गुस्से से उसका शरीर तन गया और बाल खड़े हो गये.
आज तक किसी ने भी उसके साथ ऐसा अभद्र व्यवहार करने का साहस न किया था. जंगल के सब प्राणी उसका सम्मान करते थे. उससे डरते भी थे.
शेर का विकराल रूप देख कर नट्टू भयभीत हो गया. उसने वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी. परन्तु बिजली की फुर्ती से शेर नट्टू पर झपटा. एक पल में ही उसने नट्टू को पकड़ लिया.
नट्टू समझ गया कि अब उसकी जीवन लीला समाप्त होने वाली थी. डर कर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं. फिर एक ही पल में उसने अपने को संभाल भी लिया.
नट्टू चालाक था और शेर के चंगुल से बचने की चाल सोचने लगा. उसने बड़ी निडरता से कहा, ‘श्रीमान, मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गयी जो मैंने आपका मज़ाक उड़ाया. मुझे सच में बहुत पछतावा हो रहा है. मुझे ऐसा न करना चाहिये था. मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ. आप आप मुझ पर दया करें और मुझे छोड़ दें. आपका यह उपकार मैं कभी न भूलूंगा. अगर आप कभी किसी मुसीबत फंस गये तो मैं अवश्य आपकी सहायता करूंगा.’
नट्टू की बात सुन शेर आश्चर्यचकित हो गया.
‘तुम तो अजब प्राणी हो. तुम्हारे जैसा दु:साह्सी प्राणी तो मैंने आज तक नहीं देखा. तुम्हें लगता है कि कभी मुझे तुम जैसे तुच्छ प्राणी की सहायता लेनी पड़ सकती है? क्या तुम्हें लगता है कि मेरे जैसे शक्तिशाली पशु पर कभी कोई मुसीबत आ सकती है?’
‘श्रीमान, मैं जानता हूँ कि आप इस वन में सबसे शक्तिशाली हैं, आप बहुत चतुर भी हैं; पर यह संसार बहुत अनोखा है, यहाँ कभी भी और किसी पर भी कोई मुसीबत आ सकती है.’
‘अरे, मैं तो जानता न था कि तुम इतने बुद्धिमान हो. अच्छा यह बताओ कि अगर मैं कभी मुसीबत में फंस जाता हूँ तो तुम किस प्रकार मेरी सहायता करोगे?’ शेर ने पूछा.
‘आप पर आई मुसीबत को मैं ठीक से समझने का प्रयास करूंगा, सब समझ कर मैं यह तय करूंगा कि उस मुसीबत से छुटकारा पाने का सही तरीका क्या हो सकता है. फिर मैं वही करूंगा जिससे आप उस मुसीबत से बाहर आ पायें,’ नट्टू ने बड़े विश्वास से कहा.
शेर अपनी हंसी न रोक पाया. वह ज़ोर से हंसा, ‘तो तुम अपनी समझबूझ से मुझ पर आई मुसीबत से मुझे छुटकारा दिलाओगे. तुम्हारा विश्वास तो प्रशंसा करने योग्य है. चलो मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार कर लेता हूँ. पर अगर मुसीबत के समय तुमने मेरी सहायता नहीं की तो मैं तुम्हें जीवित नहीं छोडूंगा.’
जैसे ही शेर ने अपना पंजा हटाया नट्टू जान बचा कर भाग खड़ा हुआ.
इस घटना के पाँच दिन के बाद की बात है. जंगली भैंसों का का बहुत बड़ा झुण्ड नदी किनारे उत्तर से दक्षिण की ओर जा रहा था. वह झुण्ड घास की तलाश में हर वर्ष दक्षिण की ओर जाता था.
भैंसों ने एक पेड़ के नीचे शेर को देखा. शेर नर्म-नर्म घास पर लेटा आराम कर रहा था. शेर ने भी सर उठा कर भैंसों को देखा. भैंसों को डराने के इरादे से वह ज़ोर से दहाड़ा. भैंसों को शेर का इस तरह, बिना किसी कारण, दहाड़ना अच्छा न लगा. उन्हें लगा कि शेर उनका अपमान कर रहा था.
‘इस शेर को थोड़ा सबक सिखाना पडेगा. हमने तो इसे ज़रा भी परेशान नहीं किया था. फिर यह हम पर इस तरह क्यों दहाड़ा?’ झुण्ड के नेता ने थोड़ा गुस्से से कहा.
‘इस घमंडी शेर को थोड़ा सबक सिखाना ही होगा, सिखाना ही होगा,’ कई भैंसे एक साथ बोलीं.


Wednesday, 2 March 2016

 “यह कैसा आदेश”(अंतिम भाग)
‘तो क्या किसी मछली ने राजा की नाक काट नहीं खायी?’
‘नहीं भाई, ऐसा कुछ नहीं हुआ. वो बन्दर तुम्हें बुद्धू बना गया.’
हाथी की बात सुन बीगू कुछ सोच में पड़ गया. उसने अपने साथियों से कहा, ‘तुम यहीं मेरी प्रतीक्षा करो, मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ.’
बीगू सीधा जंगल के राजा के पास आया. राजा को प्रणाम कर उसने कहा, ‘वनराज, अब आपकी नाक कैसी है”
‘यह कैसा बेहूदा सवाल है? क्या हुआ मेरी नाक को?’ शेर ने चिढ़ते हुए पूछा.
‘रिंकू बन्दर कह रहा था कि एक छोटी-सी मछली ने आपकी नाक काट खायी.’
‘उस बन्दर ने ऐसा कहा तुम से?’ शेर की आँखें गुस्से से लाल हो गईं.
‘जी महाराज.’
‘मुझे विश्वास नहीं होता की वह बन्दर इतना साहस कर सकता है.’
बीगू ने आगे आकर शेर से कुछ कहा और वापस लौट आया.
झील के पास आकर उसने अपने साथियों से कहा, ‘चलो सब पेट भरकर मछलियाँ खायें. अपने अन्य साथियों को भी बुला लो.’
सब बगुले मज़े से मछलियाँ खाने लगे. उसी समय एक कौआ वहां आया. बगुलों को मछलियाँ खाता देख उसके मुहं में भी पानी आ गया. बीगू ने उसे एक मछली दी और कहा, ‘यह मछली तुम ले जाओ पर मेरा एक काम कर दो.’
‘क्या करना है?’
‘रिंकू बन्दर से बस इतना कहना कि सब बगुले खूब मछलियाँ कहा रहे हैं.’
कौवे ने मछली अपनी चौंच में उठा ली और वहां से चल दिया. कुछ दूर एक पेड़ पर उसे बन्दर दिखाई दिया. वो उस पेड़ की डाल पर आ बैठा और चटखारे ले कर मछली खाने लगा.
‘आज मछली कहाँ से मिल गई?’ बन्दर ने पूछा.
‘बीगू बगुले ने दी.’
‘क्या बगुले मछलियाँ पकड़ रहे हैं?’
‘सब बगुले मछलियाँ पकड़ कर खा रहे हैं.’
बन्दर ने सोचा कि मूर्ख बगुलों को तंग करने का एक अच्छा अवसर उसे मिल गया था. वो झटपट झील किनारे आया और चिल्ला कर बोला, ‘यह क्या किया तुम सब ने? वनराज के आदेश का उल्लंघन किया? भूल गये कि मैंने तुम सब को चेतावनी दी थी. अब तुम सब को सज़ा मिलेगी.’
सब बगुले हंसने लगे. बन्दर को बड़ा आश्चर्य हुआ. वह तो सोचे बैठा था कि बगुले डर जायेंगे और उसके सामने गिड़गिड़ाने लगेंगे.
‘अरे मूर्खो, वनराज को गुस्सा आ गया तो जीवन भर के लिए हंसना भूल जाओगे,’ बन्दर ने गुस्से से कहा.
‘हमने ऐसा क्या अपराध कर दिया है कि वनराज हमें सज़ा देंगे,’ बीगू ने पूछा.
‘वनराज ने आदेश दिया है कि इस झील की मछलिया कोई नहीं पकड़ सकता. मैं तुम्हें अभी थोड़ी देर पहले ही तो बता कर गया था.’
‘यह आदेश मैंने कब दिया?’ यह गरजती आवाज़ वनराज की थी. शेर एक पेड़ की ओट में खड़ा सब सुन रहा था.
वनराज की आवाज़ सुन बन्दर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी. उसने सपने में भी न सोचा था कि शेर स्वयं वहां आ जायेगा.
बन्दर कुछ कह न पाया. डर से उसकी घिग्घी बंद हो गई. अब दुम दबा कर भागने में ही उसे अपनी भलाई लगी. पर वह भाग न पाया. शेर ने लपक कर उसे उसकी गर्दन से पकड़ लिया.
बन्दर ने जान बचाने के लिए वनराज से क्षमा मांगी.
‘आज तो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ. परन्तु तुमने फिर कोई ऐसी शरारत की तो तुम्हें पेड़ से बाँध कर उलटा लटका दूँगा.
बन्दर की आँखों से आंसू बहने लगी, उसकी रोनी सूरत देख सब खूब मज़ा आया.
बीगू ने शेर से कहा, 'आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने मेरा कहा माना.' 
शेर ने बीगू से कहा, ‘तुमने सारी बात मुझे बता कर समझदारी की. पर तुम लोगों को भी एक बात का ध्यान रखना चाहिये, कभी भी किसी सुनी-सुनाई बात पर युहीं विश्वास नहीं कर लेना चाहिये.’  

Tuesday, 1 March 2016

 “यह कैसा आदेश”
अचरज वन के बीचों-बीच एक झील थी. झील में कई प्रकार की मछलियाँ थीं. झील के किनारे बगुले भी रहते थे. बगुले झील की मछलियों का शिकार करते थे और उन मछलियों को बड़े चाव से खाते थे.
एक दिन कई बगुले झील के किनारे इकट्ठे हो रखे थे. सब ने पेट भर कर मछलियाँ खाने का मन बना रखा था. सब चुपचाप झील किनारे खड़े, एकटक पानी की ओर देख रहे था. जैसे ही कोई मछली किनारे के निकट दिखाई देती, कोई न कोई बगुला उसे पकड कर चट कर जाता.
तभी रिंकू बन्दर वहां आया. वह बहुत ही शरारती था. अन्य पशुओं को तंग करने में उसे बड़ा मज़ा आता.
उसने बगुलों को धमका कर कहा, ‘यह क्या कर रहे हो तुम लोग?’
बगुले सहम गये और एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. बीगू बागुला सबसे बुद्धिमान था. उसने धीमे से कहा, ‘हम सब अपना पेट भर रहे हैं. तुम ज़रा चुप रहो नहीं तो मछलियाँ भाग जायेंगी.’
‘क्या तुम जानते नहीं कि इस झील में मछलियाँ पकड़ना मना है?’ बन्दर ने अकड़ते हुए कहा.
‘क्यों?’ बगुले ने पूछा.
‘क्योंकि यह वनराज का आदेश है.’
‘यह कैसा आदेश है? अगर हम मछलियां नहीं पकड़ेंगे तो खायेंगे क्या?’
‘मैं कुछ नहीं जानता. बस, तुम सब को इस आदेश का पालन करना होगा. ऐसा न करोगे तो सज़ा मिलेगी, हर एक को.’ बन्दर ऐसे बोल रहा था जैसे कि वह स्वयं ही वन का राजा हो.
बीगू ने अपने साथियों से कहा, ‘हमें राजा के पास जाना होगा. हम उनसे पूछेंगे कि अगर हम मछलियाँ नहीं पकड़ेंगे तो खायेंगे क्या.’
‘मेरी मानो तो वनराज के सामने इन मछलियों की बात भी न करना,’ बन्दर ने कहा.
‘क्यों?’
‘एक दिन वनराज इस झील में पानी पी रहे थे. एक मछली ने उनकी नाक काट खायी. अपमान और गुस्से से वो आग-बबूला हो गये. उन्होंने उस शैतान मछली को सज़ा देने का फैसला कर लिया.’
‘फिर क्या हुआ?’
‘कोई भी उस शैतान मछली को पकड़ कर उनके सामने न ला पाया. बस, वनराज ने आदेश दे दिया कि जब तक वह बदमाश मछली पकड़ी नहीं जाती कोई भी झील की मछलियों का शिकार न करेगा.’
बन्दर की बात सुन कुछ बगुले हंसने लगे. एक बगुले ने कहा, ‘यह तो कमाल हो गया, एक छोटी सी मछली ने जंगल के राजा की नाक कट खायी और हमारे बहादुर राजा कुछ न कर पाये.’
‘तुम वनराज का मज़ाक उड़ा रहे हो? इतना साहस?’ बन्दर ने आँखें दिखाते हुए कहा.
बीगू बगुले ने सब बगुलों को झिड़क कर कहा, ‘चुप हो जाओ और हंसना बंद करो. अब यह सोचो कि अगर हम ने मछलियाँ नहीं पकड़ीं तो हम क्या खायेंगे.’
‘हम क्या कर सकते हैं? हमें इस वन से कहीं ओर जाना होगा.’
बन्दर उन सब की रोनी सूरत देख कर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था. पर उसने बड़ी गंभीरता से कहा, ‘भाइयो, मैं चलता हूँ पर तुम सब राजा के आदेश का पूरा-पूरा पालन करना.’
कुछ समय बाद शंकर हाथी पानी पीने आया. उसने देखा सब बगुले झील के किनारे से दूर एक जगह इकट्ठे थे. सब चुपचाप थे और थोड़ा चिंतित दिखाई दे रहे थे.
‘क्या बात है, आज मछलियाँ नहीं पकड़ रहे, क्या भूख हड़ताल पर हो?’ हाथी ने पूछा.
‘नहीं दादा, हम तो बस राजा के आदेश का पालन कर रहे हैं,’ बीगू ने कहा.
‘कैसा आदेश?’ हाथी ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.
बीगू ने सारी बात बतायी. उसकी बात सुन हाथी हंसने लगा. ‘तुम सब बहुत भोले हो. उस शरारती बन्दर ने तुम सब को मूर्ख बनाया है. बीगू, तुम तो जानते ही हो कि वह बन्दर कितना शैतान है. वनराज ने कोई आदेश नहीं दिया है.’
(कहानी अभी बाकि है)