होली आई
होली आई होली
आई
ज़ोर से बोला
भालू भाई
रंगों की
पिचकारी लेकर
लोमड़ी झटपट दौड़ी आई
बन्दर
भी भागा भागा आया
मुंह
अपने पर ही रंग लगाया
बन्दर
पर थी मस्ती छाई
होली
थी उसकी मन भायी
भालू ने
हाथी पर रंग डाला
मुंह उसका
नीला कर डाला
पर हाथी
भी था न कोई कम
भालू
को उसने पीला रंग डाला
लाल
गुलाल और हल्का पीला
हरा
बैंगनी और पक्का नीला
जिसने
भी जो रंग पाया
उसी
रंग में सबको नहलाया
पर एक जानवर ऐसा भी था
जिसको कोई रंग न पाया
छिप कर था वह बैठा घर में
कोई उसे ढूंढ न पाया
वह तो
था जंगल का राजा
रंगों
से था वह पर डरता
होली
पर वह छिप कर रहता
होली
पर वह नाटक करता
लोमड़ी
भी थी खूब चालाक
शेर
को उसने ढूंढ निकाला
शेर
छिपा था बिस्तर के नीचे
सबने
उसको खींच निकाला
शेर बहुत
ज़ोर से चिल्लाया
“बहुत
बीमार हूँ मैं भाइया
रात
भर मुझ को नींद न आई
कुछ तो तरस करो तुम भाई”
कौन था पर
उसकी सुनने वाला
यह नाटक
था देखा भाला
सब ने
उस पर हर रंग डाला
और मुंह
कर दिया थोड़ा काला
फिर सब
मिलकर सुर में गाये
“साल में
इक बार होली आये
होली में
जो भी छिप जाए
उसे तो बस
भगवान बचाये"
© आइ बी अरोड़ा
wah:-)
ReplyDeletethanks amit
DeleteSuch a sweet poem about Holi... :-)
ReplyDeletethanks maniparna
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