Monday, 21 March 2016

“नटखट नट्टू” (भाग 1)
एक वन में एक खरगोश रहता था. नाम था नट्टू. था वह बहुत ही नटखट. वन के अन्य प्राणियों को सताने में उसे खूब आनंद आता था.
वन के बीचों-बीच एक नदी बहती थी. उस नदी में कई मगरमच्छ भी थे. बेचारे मगरमच्छों को तो नट्टू सबसे अधिक तंग किया करता था.
जब मगरमच्छ रेत पर लेट कर धूप सेंक रहे होते वह नदी किनारे आ जाता. उन्हें छेड़ता, उन्हें चिढ़ाता, उनका मज़ाक उड़ाता. नट्टू की शैतानियों से तंग आकर अगर कोई मगरमच्छ उसे पकड़ने के लिए उस पर झपटता तो वह आंधी समान वहां से भाग खड़ा होता.
मगरमच्छ नट्टू की भांति तेज़ न भाग पाता. वह उसे पकड़ न पाता और हार मन कर रुक जाता. तब नट्टू दूर खड़े हो कर उस मगरमच्छ पर खूब ज़ोर से हंसता, उसकी खिल्ली उडाता. बेचारा मगरमच्छ अपना-सा मुहं लेकर रह जाता. बस गुस्से से भरी आँखों से नट्टू को देखता, पर कुछ कर न पाता.
परन्तु एक दिन नटखट नट्टू बड़ी भूल कर बैठा. उस दिन नदी किनारे उसे कोई मगरमच्छ दिखाई न दिये. लेकिन उसे एक शेर दिखाई दिया. शेर पानी पीकर नदी से वापस लौट रहा था. नट्टू शेर का मज़ाक उड़ाने लगा.
शेर ने जब देखा कि एक छोटा सा खरगोश उसकी खिल्ली उड़ा रहा है तो गुस्से से आगबबुला हो गया. गुस्से से उसका शरीर तन गया और बाल खड़े हो गये.
आज तक किसी ने भी उसके साथ ऐसा अभद्र व्यवहार करने का साहस न किया था. जंगल के सब प्राणी उसका सम्मान करते थे. उससे डरते भी थे.
शेर का विकराल रूप देख कर नट्टू भयभीत हो गया. उसने वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी. परन्तु बिजली की फुर्ती से शेर नट्टू पर झपटा. एक पल में ही उसने नट्टू को पकड़ लिया.
नट्टू समझ गया कि अब उसकी जीवन लीला समाप्त होने वाली थी. डर कर उसने अपनी आँखें बंद कर लीं. फिर एक ही पल में उसने अपने को संभाल भी लिया.
नट्टू चालाक था और शेर के चंगुल से बचने की चाल सोचने लगा. उसने बड़ी निडरता से कहा, ‘श्रीमान, मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गयी जो मैंने आपका मज़ाक उड़ाया. मुझे सच में बहुत पछतावा हो रहा है. मुझे ऐसा न करना चाहिये था. मैं आपसे क्षमा मांगता हूँ. आप आप मुझ पर दया करें और मुझे छोड़ दें. आपका यह उपकार मैं कभी न भूलूंगा. अगर आप कभी किसी मुसीबत फंस गये तो मैं अवश्य आपकी सहायता करूंगा.’
नट्टू की बात सुन शेर आश्चर्यचकित हो गया.
‘तुम तो अजब प्राणी हो. तुम्हारे जैसा दु:साह्सी प्राणी तो मैंने आज तक नहीं देखा. तुम्हें लगता है कि कभी मुझे तुम जैसे तुच्छ प्राणी की सहायता लेनी पड़ सकती है? क्या तुम्हें लगता है कि मेरे जैसे शक्तिशाली पशु पर कभी कोई मुसीबत आ सकती है?’
‘श्रीमान, मैं जानता हूँ कि आप इस वन में सबसे शक्तिशाली हैं, आप बहुत चतुर भी हैं; पर यह संसार बहुत अनोखा है, यहाँ कभी भी और किसी पर भी कोई मुसीबत आ सकती है.’
‘अरे, मैं तो जानता न था कि तुम इतने बुद्धिमान हो. अच्छा यह बताओ कि अगर मैं कभी मुसीबत में फंस जाता हूँ तो तुम किस प्रकार मेरी सहायता करोगे?’ शेर ने पूछा.
‘आप पर आई मुसीबत को मैं ठीक से समझने का प्रयास करूंगा, सब समझ कर मैं यह तय करूंगा कि उस मुसीबत से छुटकारा पाने का सही तरीका क्या हो सकता है. फिर मैं वही करूंगा जिससे आप उस मुसीबत से बाहर आ पायें,’ नट्टू ने बड़े विश्वास से कहा.
शेर अपनी हंसी न रोक पाया. वह ज़ोर से हंसा, ‘तो तुम अपनी समझबूझ से मुझ पर आई मुसीबत से मुझे छुटकारा दिलाओगे. तुम्हारा विश्वास तो प्रशंसा करने योग्य है. चलो मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार कर लेता हूँ. पर अगर मुसीबत के समय तुमने मेरी सहायता नहीं की तो मैं तुम्हें जीवित नहीं छोडूंगा.’
जैसे ही शेर ने अपना पंजा हटाया नट्टू जान बचा कर भाग खड़ा हुआ.
इस घटना के पाँच दिन के बाद की बात है. जंगली भैंसों का का बहुत बड़ा झुण्ड नदी किनारे उत्तर से दक्षिण की ओर जा रहा था. वह झुण्ड घास की तलाश में हर वर्ष दक्षिण की ओर जाता था.
भैंसों ने एक पेड़ के नीचे शेर को देखा. शेर नर्म-नर्म घास पर लेटा आराम कर रहा था. शेर ने भी सर उठा कर भैंसों को देखा. भैंसों को डराने के इरादे से वह ज़ोर से दहाड़ा. भैंसों को शेर का इस तरह, बिना किसी कारण, दहाड़ना अच्छा न लगा. उन्हें लगा कि शेर उनका अपमान कर रहा था.
‘इस शेर को थोड़ा सबक सिखाना पडेगा. हमने तो इसे ज़रा भी परेशान नहीं किया था. फिर यह हम पर इस तरह क्यों दहाड़ा?’ झुण्ड के नेता ने थोड़ा गुस्से से कहा.
‘इस घमंडी शेर को थोड़ा सबक सिखाना ही होगा, सिखाना ही होगा,’ कई भैंसे एक साथ बोलीं.


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