“यह कैसा आदेश”(अंतिम भाग)
‘तो क्या किसी मछली
ने राजा की नाक काट नहीं खायी?’
‘नहीं भाई, ऐसा कुछ
नहीं हुआ. वो बन्दर तुम्हें बुद्धू बना गया.’
हाथी की बात सुन
बीगू कुछ सोच में पड़ गया. उसने अपने साथियों से कहा, ‘तुम यहीं मेरी प्रतीक्षा
करो, मैं अभी थोड़ी देर में आता हूँ.’
बीगू सीधा जंगल के
राजा के पास आया. राजा को प्रणाम कर उसने कहा, ‘वनराज, अब आपकी नाक कैसी है”
‘यह कैसा बेहूदा
सवाल है? क्या हुआ मेरी नाक को?’ शेर ने चिढ़ते हुए पूछा.
‘रिंकू बन्दर कह रहा
था कि एक छोटी-सी मछली ने आपकी नाक काट खायी.’
‘उस बन्दर ने ऐसा
कहा तुम से?’ शेर की आँखें गुस्से से लाल हो गईं.
‘जी महाराज.’
‘मुझे विश्वास नहीं
होता की वह बन्दर इतना साहस कर सकता है.’
बीगू ने आगे आकर शेर
से कुछ कहा और वापस लौट आया.
झील के पास आकर उसने
अपने साथियों से कहा, ‘चलो सब पेट भरकर मछलियाँ खायें. अपने अन्य साथियों को भी
बुला लो.’
सब बगुले मज़े से
मछलियाँ खाने लगे. उसी समय एक कौआ वहां आया. बगुलों को मछलियाँ खाता देख उसके मुहं
में भी पानी आ गया. बीगू ने उसे एक मछली दी और कहा, ‘यह मछली तुम ले जाओ पर मेरा
एक काम कर दो.’
‘क्या करना है?’
‘रिंकू बन्दर से बस
इतना कहना कि सब बगुले खूब मछलियाँ कहा रहे हैं.’
कौवे ने मछली अपनी
चौंच में उठा ली और वहां से चल दिया. कुछ दूर एक पेड़ पर उसे बन्दर दिखाई दिया. वो
उस पेड़ की डाल पर आ बैठा और चटखारे ले कर मछली खाने लगा.
‘आज मछली कहाँ से
मिल गई?’ बन्दर ने पूछा.
‘बीगू बगुले ने दी.’
‘क्या बगुले मछलियाँ
पकड़ रहे हैं?’
‘सब बगुले मछलियाँ
पकड़ कर खा रहे हैं.’
बन्दर ने सोचा कि
मूर्ख बगुलों को तंग करने का एक अच्छा अवसर उसे मिल गया था. वो झटपट झील किनारे
आया और चिल्ला कर बोला, ‘यह क्या किया तुम सब ने? वनराज के आदेश का उल्लंघन किया?
भूल गये कि मैंने तुम सब को चेतावनी दी थी. अब तुम सब को सज़ा मिलेगी.’
सब बगुले हंसने लगे.
बन्दर को बड़ा आश्चर्य हुआ. वह तो सोचे बैठा था कि बगुले डर जायेंगे और उसके सामने
गिड़गिड़ाने लगेंगे.
‘अरे मूर्खो, वनराज
को गुस्सा आ गया तो जीवन भर के लिए हंसना भूल जाओगे,’ बन्दर ने गुस्से से कहा.
‘हमने ऐसा क्या
अपराध कर दिया है कि वनराज हमें सज़ा देंगे,’ बीगू ने पूछा.
‘वनराज ने आदेश दिया
है कि इस झील की मछलिया कोई नहीं पकड़ सकता. मैं तुम्हें अभी थोड़ी देर पहले ही तो
बता कर गया था.’
‘यह आदेश मैंने कब
दिया?’ यह गरजती आवाज़ वनराज की थी. शेर एक पेड़ की ओट में खड़ा सब सुन रहा था.
वनराज की आवाज़ सुन
बन्दर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी. उसने सपने में भी न सोचा था कि शेर स्वयं वहां
आ जायेगा.
बन्दर कुछ कह न
पाया. डर से उसकी घिग्घी बंद हो गई. अब दुम दबा कर भागने में ही उसे अपनी भलाई
लगी. पर वह भाग न पाया. शेर ने लपक कर उसे उसकी गर्दन से पकड़ लिया.
बन्दर ने जान बचाने
के लिए वनराज से क्षमा मांगी.
‘आज तो मैं तुम्हें
छोड़ देता हूँ. परन्तु तुमने फिर कोई ऐसी शरारत की तो तुम्हें पेड़ से बाँध कर उलटा लटका दूँगा.
बन्दर की आँखों से
आंसू बहने लगी, उसकी रोनी सूरत देख सब खूब मज़ा आया.
बीगू ने शेर से कहा, 'आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपने मेरा कहा माना.'
शेर ने बीगू से
कहा, ‘तुमने सारी बात मुझे बता कर समझदारी की. पर तुम लोगों को भी एक बात का ध्यान
रखना चाहिये, कभी भी किसी सुनी-सुनाई बात पर युहीं विश्वास नहीं कर लेना
चाहिये.’
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