“यह कैसा आदेश”
अचरज वन के
बीचों-बीच एक झील थी. झील में कई प्रकार की मछलियाँ थीं. झील के किनारे बगुले भी
रहते थे. बगुले झील की मछलियों का शिकार करते थे और उन मछलियों को बड़े चाव से खाते
थे.
एक दिन कई बगुले झील
के किनारे इकट्ठे हो रखे थे. सब ने पेट भर कर मछलियाँ खाने का मन बना रखा था. सब
चुपचाप झील किनारे खड़े, एकटक पानी की ओर देख रहे था. जैसे ही कोई मछली किनारे के
निकट दिखाई देती, कोई न कोई बगुला उसे पकड कर चट कर जाता.
तभी रिंकू बन्दर
वहां आया. वह बहुत ही शरारती था. अन्य पशुओं को तंग करने में उसे बड़ा मज़ा आता.
उसने बगुलों को धमका
कर कहा, ‘यह क्या कर रहे हो तुम लोग?’
बगुले सहम गये और एक
दूसरे का मुंह ताकने लगे. बीगू बागुला सबसे बुद्धिमान था. उसने धीमे से कहा, ‘हम
सब अपना पेट भर रहे हैं. तुम ज़रा चुप रहो नहीं तो मछलियाँ भाग जायेंगी.’
‘क्या तुम जानते
नहीं कि इस झील में मछलियाँ पकड़ना मना है?’ बन्दर ने अकड़ते हुए कहा.
‘क्यों?’ बगुले ने
पूछा.
‘क्योंकि यह वनराज
का आदेश है.’
‘यह कैसा आदेश है?
अगर हम मछलियां नहीं पकड़ेंगे तो खायेंगे क्या?’
‘मैं कुछ नहीं
जानता. बस, तुम सब को इस आदेश का पालन करना होगा. ऐसा न करोगे तो सज़ा मिलेगी, हर
एक को.’ बन्दर ऐसे बोल रहा
था जैसे कि वह स्वयं ही वन का राजा हो.
बीगू ने अपने
साथियों से कहा, ‘हमें राजा के पास जाना होगा. हम उनसे पूछेंगे कि अगर हम मछलियाँ
नहीं पकड़ेंगे तो खायेंगे क्या.’
‘मेरी मानो तो वनराज
के सामने इन मछलियों की बात भी न करना,’ बन्दर ने कहा.
‘क्यों?’
‘एक दिन वनराज इस
झील में पानी पी रहे थे. एक मछली ने उनकी नाक काट खायी. अपमान और गुस्से से वो
आग-बबूला हो गये. उन्होंने उस शैतान मछली को सज़ा देने का फैसला कर लिया.’
‘फिर क्या हुआ?’
‘कोई भी उस शैतान
मछली को पकड़ कर उनके सामने न ला पाया. बस, वनराज ने आदेश दे दिया कि जब तक वह बदमाश
मछली पकड़ी नहीं जाती कोई भी झील की मछलियों का शिकार न करेगा.’
बन्दर की बात सुन
कुछ बगुले हंसने लगे. एक बगुले ने कहा, ‘यह तो कमाल हो गया, एक छोटी सी मछली ने
जंगल के राजा की नाक कट खायी और हमारे बहादुर राजा कुछ न कर पाये.’
‘तुम वनराज का मज़ाक
उड़ा रहे हो? इतना साहस?’ बन्दर ने आँखें दिखाते हुए कहा.
बीगू बगुले ने सब
बगुलों को झिड़क कर कहा, ‘चुप हो जाओ और हंसना बंद करो. अब यह सोचो कि अगर हम ने
मछलियाँ नहीं पकड़ीं तो हम क्या खायेंगे.’
‘हम क्या कर सकते
हैं? हमें इस वन से कहीं ओर जाना होगा.’
बन्दर उन सब की रोनी
सूरत देख कर मन ही मन बहुत खुश हो रहा था. पर उसने बड़ी गंभीरता से कहा, ‘भाइयो,
मैं चलता हूँ पर तुम सब राजा के आदेश का पूरा-पूरा पालन करना.’
कुछ समय बाद शंकर
हाथी पानी पीने आया. उसने देखा सब बगुले झील के किनारे से दूर एक जगह इकट्ठे थे.
सब चुपचाप थे और थोड़ा चिंतित दिखाई दे रहे थे.
‘क्या बात है, आज
मछलियाँ नहीं पकड़ रहे, क्या भूख हड़ताल पर हो?’ हाथी ने पूछा.
‘नहीं दादा, हम तो
बस राजा के आदेश का पालन कर रहे हैं,’ बीगू ने कहा.
‘कैसा आदेश?’ हाथी
ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.
बीगू ने सारी बात
बतायी. उसकी बात सुन हाथी हंसने लगा. ‘तुम सब बहुत भोले हो. उस शरारती बन्दर ने
तुम सब को मूर्ख बनाया है. बीगू, तुम तो जानते ही हो कि वह बन्दर कितना शैतान है. वनराज
ने कोई आदेश नहीं दिया है.’
(कहानी अभी बाकि है)
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