अधुरा सपना
पर्शिया (फ़ारस) के
राजा डेरियस (दारा) को हरा कर सिकंदर ने भारत की ओर बढ़ने का निर्णय लिया.
अपने सेनिकों से
उसने कहा, “मित्रों, अब तक यहाँ के लोगों ने हमें सिर्फ अपने सपनों में ही देखा था,
लेकिन हमारा सामना पहली बार किया था. अगर हम यहाँ से ही लौट जाते हैं तो यह लोग
हमें कायर और डरपोक समझेंगे और हम पर टूट पड़ेंगे. फिर भी अगर कोई सैनिक यूनान लौट
जाना चाहता है तो लौट सकता है. लेकिन स्मरण रहे, विश्व-विजय पर निकले अपने राजा का
साथ छोड़ने वाले सैनिकों पर देवता अवश्य नाराज़ होंगे.”
सिकन्दर की बातों का
यूनानियों पर इतना प्रभाव पड़ा कि सब सैनिक एक साथ चिल्लाये, “हम सब आपके साथ हैं. आपके
साथ विश्व के दूसरे छोर तक जाने को हम तैयार हैं.”
सेना कूच के लिए
तैयार थी. सिकन्दर ने देखा कि सभी सैनिकों ने लूट का बहुत सारा सामान इकट्ठा कर
रखा था. सामान गाड़ियों और खच्चरों पर लदा था. इतने सामान के साथ आगे बढ़ना कठिन लग
रहा था.
सिकंदर ने अपना और
अपने मित्रों का सामान एक जगह इकट्ठा करवा दिया. सारे सैनिक उत्सुकता से देख रहे
थे. उसने आदेश दिया, “इस सामान को आग लगा दो.”
सारी सेना स्तब्ध सी
देखती रही. सिकंदर और उसके मित्रों का सामान जलने लगा.
सिकंदर ने सैनिकों
से कहा, “आवश्यक सामान रख कर बाकि सब जला डालो.”
अपने राजा के
व्यवहार से प्रभावित हो, सैनिकों ने अपना
सारा अनावश्यक सामान खुशी से चीखते-चिल्लाते हुए जला डाला. तब यूनानी सेना भारत की
ओर चल दी.
भारत में तक्षशिला के राजा अम्बी से यूनानियों का सामना हुआ. तक्षशिला
एक विशाल राज्य था. धरती उपजाऊ थी, अच्छी चरागाहें थीं, राज्य सम्पन्न था.
परन्तु अम्बी ने
युद्ध न किया. सिकंदर से मित्रता करने वह यूनानियों के शिविर में आया. उसने कहा,
“राजन, अगर आप हमारा दाना-पानी छीनने नहीं आये तो हम आपस में युद्ध क्यों करें?
रही धन की बात, अगर हम आपसे अधिक धनी हैं तो अपना धन आप के साथ बांटने को तैयार
हैं. और अगर आपका धन-भंडार अधिक बड़ा है तो आपके धन का भागीदार होने में हमें कोई
आपत्ति नहीं.”
सिकंदर ने प्रसन्न
हो कर कहा, “अगर आप सोचते हैं कि अपनी विनम्रता के कारण हमसे मुकाबला करने से बच
जायेंगे तो आप गलत सोच रहे हैं. हम आप से अवश्य मुकाबला करेंगे, परन्तु हमारा
मुकाबला उपहारों के लेन-देन का होगा.”
दोनों ने एक-दूसरे
को बहुमूल्य उपहार दिए. अम्बी की भांति कई और राजाओं ने सिकंदर के साथ युद्ध करने
के बजाय यूनानियों की अधीनता स्वीकार कर ली. इन राजाओं की सहायता से सिकन्दर ने
तक्षशिला के आस-पास का सारा क्षेत्र जीत लिया.
अब सिकंदर ने पुरु
(पोरस) को अपने शिविर में आमंत्रित किया. पुरु का राज्य झेह्लम नदी के पूर्वी तट
पर था. पुरु ने उत्तर भिजवाया कि सिकंदर से उसकी भेंट अवश्य होगी. परन्तु यह भेंट
यूनानी शिविर में नहीं, युद्ध के मैदान में होगी.
अभी तक किसी भी
शक्तिशाली भारतीय राजा के साथ यूनानियों को युद्ध न करना पड़ा था. परन्तु पुरु के
साथ युद्ध किये बिना आगे बढ़ना संभव न था. पुरु ने अपनी सेना नदी के पूर्वी तट पर
इकट्ठी कर रखी थी. सेना में हाथी भी थी जो एक दीवार के समान नदी तट पर खड़े थे.
पुरु के सेना किसी
भी आक्रमण के लिए तैयार थी. नदी पार करना असंभव लग रहा था. एक गतिरोध पैदा हो गया
था.
सिकंदर ने सैनिकों
को आदेश दिया कि वह खूब शोर मचाएं. शोर सुन,
पुरु की सेना समझी कि यूनानी सेना नदी पार करने का प्रयास कर रही है. पुरु के सेना
सावधान हो गई. परन्तु कोई भी नदी पार न आया. यूनानी बस शोर मचाते रहे, नदी पार
करने का कोई प्रयास उन्होंने नहीं किया. पुरु की सेना ढीली पड़ गई. उनकी सतर्कता कम
हो गई. इस असावधानी का लाभ उठा, यूनानी चकमा देने में सफल हो गये.
अँधेरी और तूफानी
रात में कुछ घुड़सवारों और पैदल सिपाहियों को साथ ले, सिकन्दर अपनी शिविर से दूर
जाकर नदी पार करने का प्रयास करने लगा. वर्षा हो रही थी, बिजली चमक रही थी, नदी
में बाढ़ आई हुई थी. बिना घबराये, यूनानी पानी में आगे बढ़ते रहे. कुछ सैनिक नदी की तेज़
धारा में बह भी गये. परन्तु सिकंदर और बाकि सैनिक नदी पार जाने में सफल हो गये.
नदी का पूर्वी तट
कीचड़ से भरा था. यूनानी कीचड़ में फंस गये. तब सिकंदर ने चिल्ला कर कहा, “मित्रो, देखो
तुम्हें यश और कीर्ति दिलाने के लिए मुझे कैसे-कैसे खतरों से गुज़रना पड़ता है.”
यूनानी उत्साह से भर
गये. जो सैनिक नावों में सवार थे वह भी नदी में कूद गये. पूरी ताकत लगा कर वह नदी
पार कर गये और पुरु की सेना की ओर चल दिए. योजना थी कि अगर पुरु की सेना आ जाती है
तो उसे तब तक रोका जाये जब तक सारी यूनानी सेना नदी पार नहीं कर लेती.
पुरु को संदेह हुआ
कि यूनानी नदी पार कर रहे हैं. एक हज़ार घुड़सवार और साठ रथों की एक टुकड़ी उसने
यूनानियों को रोकने के लिए भेजी. यूनानी तैयार थे. घमासान लड़ाई हुई. पुरु के सैनिक
हार गये और अपने रथ भी खो बैठे. पुरु समझ गया कि शत्रु सेना नदी पार करने में सफल
हो गई है. उसने अपनी सारी सेना को यूनानी सेना की ओर मोड़ दिया.
पुरु की सेना के
आगे-आगे सुसज्जित हाथी चल रहे थे. पुरु स्वयं भी एक विशाल हाथी पर बैठा था. इस
सेना का सीधा सामना करने के बजाय, दायें और बायें से हमला करने का निर्णय सिकन्दर
ने लिया. एक सेनापति दायें ओर से पुरु की
सेना पर टूट पड़ा, सिकंदर ने बायें ओर से आक्रमण किया. इस दुतरफा हमले से पुरु की
सेना में भगदड़ मच गई. हाथी घबरा कर पीछे हटने लगे और अपने ही सैनिकों को रोंदने
लगे. परन्तु इस अफरा-तफरी में भी एक भीषण युद्ध हुआ.
अपने हाथी पर बैठा
पुरु अपनी सेना का संचालन कर रहा था. हाथी बड़ी सूझबूझ से अपने राजा को शत्रुओं के
हमले से बचा रहा था और शत्रुओं को खदेड़ भी रहा था. पुरु बड़ी वीरता से लड़ रहा था.
बाणों की वर्षा से वह बुरी तरह घायल हो गया था. ऐसा लग रहा था कि वह हाथी से गिर
पड़ेगा. पर तभी हाथी संभल कर नीचे बैठ गया. पुरु उतर कर धरती पर आ गया. हाथी अपनी
सूंड से राजा के शरीर में चुभे तीर खींच-खींच कर निकालने लगा.
यूनानियों ने पुरु
को घेर लिया. पुरु की सेना हार गई. पुरु बंधी बना लिया गया. उसकी वीरता ने सिकन्दर
को बहुत प्रभावित किया था. उसने पुरु से पूछा, “आपके साथ कैसा व्यवहार किया जाये?”
“जैसा एक राजा के
साथ होना चाहिये,” पुरु ने निडरता से कहा.
सिकंदर आश्चर्यचकित
हो गया, “आप कोई अन्य निवेदन नहीं करना चाहते क्या?”
“नहीं,” पुरु ने
गर्व के साथ कहा.
“आप सचमुच एक महान
वीर हैं.” ऐसा कह सिकंदर ने पुरु को उसका राज्य लौटा दिया.
इस भीषण युद्ध ने
यूनानियों को हतोत्साहित कर दिया. उन्होंने आगे जाने से इनकार कर दिया. सिकन्दर
बहुत निराश हुआ पर उसे वापस लौटने का निर्णय लेना ही पड़ा. भारत विजय का उसका सपना
अधुरा ही रह गया.
(प्लूटार्क के वर्णन
से प्रेरित)
*******
© आई बी अरोड़ा
सिकंदर से सम्बंधित कहानियां
Like the story. An old but still fresh :)
ReplyDeletethanks Ravish
DeleteNice story telling.
ReplyDeletethanks Abhijit
Delete